Wednesday, August 7, 2019

लदाख

लद्दाख 
धर्मकीर्तिजी लिखते हैं, ईसा की पहली-दूसरी शताब्दी में यह प्रदेश सम्राट कनिष्क के साम्राज्य का भाग था। आठवीं शताब्दी में यह तिब्बत के अधिकार में था। वर्तमान समय में यह भारत में आता है।
लद्दाख में जयेन्द्र महाविहार बौध्द-विद्या का केन्द्र है। आलवी का बौध्द विहार सबसे पुराना माना जाता है। हेमिस में 17 वीं सदी में निर्मित बौध्द विहार है। लद्दाख में विहारों को गोम्पा कहते हैं। कालान्तर में यहां भी लामा परम्परा विकसित हुई। 

अलेक्जेंडर एडमिलर मेगास्थनीज़ फिलनि एल्डर दोहराते है के एक जमाने मे लदाख सोने का बहुत बड़ा उत्पादक हुवा करता था. बल्टीस्थान और लदाख की धरती सोने की बड़ी उत्पादक ओर सोने के धुलाई के लिए प्रसिद्ध थी.
चीनी-तीर्थयात्री भिक्षु, जुआनजांग, सी। 634 कहते है यह एक #सुवर्ण_भूमि के नाम से जाना जाते थी,
जिसे लदाखी मो लो टो कहते है.
7 वी शताब्दी भारत मे लदाख को झांगजुंग नाम से जाना जाता था. 634 में लदाख ने तिब्बती सुजेरनीति को स्वीकार किया फिर लदाख पर तिब्बती राज्य स्थापित हो गया. ईस्वी 665  में लदाख पर तिबित का पूर्ण रूप से शासन अथापित हो गया. फिर 671 ईस्वी में एक छोटासा विद्रोह हुवा जो असफल हुवा था.
ईस्वी 731 में तिबित ने गिलगित पर आक्रमण कर आपना राज्य स्थापित किया।
842 ईस्वी में तिब्बती शासन टूटने के बाद तिब्बत के राजा ने लदाख राजवंश की स्थापना की. न्यामी गोन इनके नेतत्व में पहिला लदाखी राजवंश की स्थापना की.
लदाख में बौद्ध धर्म के आने के पहिले बोर्न धर्म था, फिर बौद्ध धर्म का प्रचार हुवा
लदाख का प्राचीन इतिहास बड़ा यह एक उसका छोटा अंश है
एक समय मे पवित्र ओर सुवर्ण भूमि कहने वाला लदाख आधुनिक युग मे इतना बर्बर कि हुवा तो 1947 में हुवे विलय के कारण लदाखि जनता अपना स्वतंत्र राज्य भारत मे चाहती थी जो जम्मु कश्मीर से अलग हो।  मगर तब के शासकों ने इस बात को नजर अंदाज किया और हजारो लदाखी नागरिकों को कश्मीरी लोगो का गुलाम किया।
कश्मीर यह एक आतंकवाद से भरा हुवा प्रदेश उसके वजहा से लदाख में विकास नही हो पाया था और यह #धारा370 जो लदाख को अन्य भारत से तोड़ रही थी पर्यटन से भरपूर यह प्रदेश राजनीतिक गलतियो से पिछड़ा था
लदाख के धर्म गुरु रिनपुछे कुशल बकूला द्वारा लदाख स्वतंत्र राज्य की मांग होती रही है मगर
उनको बी नजरअंदाज किया गया. अभी के केंद्र सरकार ने जो फैसला लिया है वे एक महत्वपूर्ण काम है इस से उन हजारो लदाखिओ को आझादी ओर न्याय मिला जो विनाकारन आतंकवाद से पिछड़े रहे थे
आब लदाख आपनी सांस्कृतिक राजनैतिक आजादी में है.
लदाखि लोगो को ढेर सारी बधाई हो
आतिश दीपंकर
बौद्ध अभ्यासक

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