Friday, August 9, 2019

समता

समता
अशोक सभी भिक्खुओं की वंदना करता था।  यह बात उसके अमात्य यश को अच्छी न लगी। वह बोला- महाराज! इन शाक्य श्रमणों में सब जाति के लोग हैं , इनके सामने आपको सिर झुकाना उचित नहीं है। तब, अमात्य की बात पर सम्राट अशोक चुप रहे।
 कुछ समय बाद बकरें-भेड़ आदि वध्य प्राणियों के सिर मंगा कर अमात्यों से उन्हें बेच लाने को कहा। यश  अमात्य को मृत मनुष्य का सिर देकर बेचने भेजा। बकरे आदि प्राणियों के सिरों की कुछ कामत मिली। लेकिन मनुष्य के सिर का कोई खरीददार नहीं मिला। तब, अशोक ने उसे किसी को मुप्त में देने की आज्ञा दी।  किन्तु उसे मुप्त लेने वाला भी कोई नहीं मिला। इस पर अशोक ने यश से पूछा-
"इसे लोग मुप्त क्यों नहीं लेते ?"
"क्योंकि इस सिर से लोग घृणा करते हैं।"
"इसी सिर से लोग घृणा करते हैं या  सब मनुष्यों के सिर से घृणा करेंगे ?"
"महाराज! किसी के भी काट कर लाए सिर से लोग घृणा करेंगे।"
"क्या मेरे सिर से भी ?" - इस पर अमात्य चुप रहा। उसकी हिचकिचाहट देख कर सम्राट ने अभयदान देते हुए पुन: अपना प्रश्न दोहराया।
"महाराज के सिर से भी लोग घृणा करेंगे।"
इस पर अशोक ने कहा-  "यदि मेरा ऐसा सिर भिक्खुओं के आगे झुकता है तो आपको बुरा क्यों लगता है  ?
(स्रोत-  अशोकावदान:बोधिचर्यावतार :भूमिका )

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