Friday, April 17, 2020

सिद्धार्थ गौतम या आदित्य ?

सिद्धार्थ गौतम या आदित्य ?
1.  सिद्धार्थ के गोत्र की चर्चा करते हुए बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने लिखा है- परिवार का गोत्र ‘आदित्य’ था(प्रथम काण्डः पूर्वजः भगवान बुद्ध और उनका धम्म, पृ. 4)। आगे उन्होंने लिखा है- पांचवें दिन नामकरण संस्कार किया गया। बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। उसका गोत्र ‘गौतम’ था। इसलिए जन-साधारण में वह सिद्धार्थ गौतम नाम से प्रसिद्ध हुआ(वही, पृ. 9)।

2 .  प्रश्न है,  एक ही समय  ‘गौतम’ और 'आदित्य'  दो गोत्र कैसे हो सकते?  स्मरण रहे, 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' बाबासाहब अम्बेडकर की अंतिम कृति थी जिसका 'परिचय' लिख कर उन्होंने अंतिम सांस ली थी.  कई विद्वान उनके द्वारा वर्णित बुद्धजीवनी और  बुद्ध उपदेशों पर प्रश्न उठाते रहे हैं। निस्संदेह, कुछ वर्ष और वे जीवित रहते तो निस्संदेह,  उठती तमाम शंकाओं का समाधान वे स्वयं करते ।

 3. सिद्धार्थ के 'गौतम' या 'आदित्य' गोत्र सम्बन्धी प्रश्न पर भदंत धर्मानन्द कोसम्बी कहते हैं-
अमरकोश  में बोधिसत्व के छह नाम दिए गए हैं- शाक्यसिंह, सर्वार्थसिद्ध, शौद्धोदनि, गौतम, अर्कबंधु और मायादेवी-सुत। इनमें से शाक्यसिंह, शौद्धोदनि और मायादेवी-सुत ये तीन विशेषण हैं। प्रश्न है कि ‘सर्वार्थसिद्ध’ और ‘गौतम’ इन दो नामों में से उनका असली नाम कौन-सा था ? या ये दोनों ही नाम उनके थे(भगवान बुद्ध; जीवन और दर्शन(पृ. 79- 80)?

तिपिटक-वांग्मय में बोधिसत्व का नाम सर्वार्थसिद्ध था, ऐसा कहीं उल्लेख नहीं मिलता। केवल जातक अट्ठकथा के 'निदान-कथा' में सिद्धत्थ (सिद्धार्थ) नाम आया है जो शायद ‘ललितविस्तर से लिया गया है। ललितविस्तर में ‘बोधिसत्व’ को बार-बार ‘सिद्धार्थकुमार’ कहा गया है। उसी का पालि-रूपान्तर ‘सिद्धत्थ’ है। सर्वार्थसिद्ध का पालि-रूपान्तर ‘सब्बत्थ-सिद्ध’ होता है और वह विचित्र लगता है। इसलिए कदाचित जातक-अट्ठकथाकार ने ‘सिद्धत्थ’ नाम का प्रयोग किया है(वही)।

धर्मानन्द कोसम्बी आगे लिखते हैं-  इसमें शंका नहीं कि ‘बोधिसत्व’ का नाम ‘गौतम’ था। थेरीगाथा में महाप्रजापति गौतमी की जो गाथाएं हैं, उनमें से एक यह है-
‘बहूनं वत अत्थाय, माया जनयि गोतमं।
व्याधिमरणतुन्नानं, दुक्खक्खन्धं ब्यपानुदि।’
अर्थात, बहुतों के कल्याण के लिए माया ने गौतम को जन्म दिया। व्याधि और मरण से पीड़ित जनों की दुक्ख-राशि को उसने नष्ट किया।
परन्तु ‘महापदानसुत्त’ में बुद्ध को ‘गोतमो गोत्तेन’ कहा गया है। इसी प्रकार अपदान-ग्रंथों में अनेक स्थानों पर ‘गोतमो नाम नामेन’ ऐसे दो प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। उनसे शंका पैदा होती है कि क्या बोधिसत्व का नाम और गोत्र एक ही था(वही) ?

भदन्तजी के अनुसार, परन्तु सुत्तनिपात की निम्न गाथा(पब्बज्जा सुत्तः गाथा 18-19) से वह शंका दूर हो जाती है-
उजुं  जनपदो  राजा  हिमवन्तस्स  पस्सतो।  धनिविरियेन   सम्पन्नो  कोसलेसु   निकेतिनो।
आदिच्चो नाम गोत्तेन साकियो नाम जातिया, तम्हा कुला पब्बजितोम्हि राज न कामे अभिपत्थयं।
उक्त गाथा में शाक्यों का गोत्र ‘आदित्य’ कहा गया है। चूंकि ‘सुत्तनिपात’ प्राचीनतम है, अतः ‘आदित्य’ ही शाक्यों का वास्तविक गोत्र होगा। अमरकोश में बुद्ध का जो नाम अर्कबन्धु आया है, वह उनका गोत्र-नाम समझना चाहिए। क्योंकि वह ' आदिच्चाे नाम गोत्तेन' वाक्य से ठीक मिलता है(वही).
4.  निस्संदेह, जैसे कि भदंत धम्मानंद  कोसम्बी ने सभी सम्बद्ध साक्ष्यों का विचार किया है,  शाक्य-वंश के कुल गुरु गौतम होने के कारण सिद्धार्थ आगे चलकर ' सिद्धार्थ गौतम' नाम से विश्व में प्रसिद्द हुए. इसकी पुष्टि भदन्त धर्मकीर्ति भी करते हैं-  जयसेन(सिद्धार्थ के प्रपितामह)  के परिवार का गोत्र आदित्य था. वंश शाक्य (सूर्यवंश) था. जाति  क्षत्रिय एवं गुरु के गोत्र से गौतम कहलाये जाते थे(भ. बुद्ध का इतिहास और धम्म दर्शन पृ 10) ।
5. अपने पारिवारिक कुल देवता, गुरु, गावं या जाति, वंश का नाम, अपने नाम के साथ जोड़ कर बतलाने की भिन्न-भिन्न क्षेत्र/प्रदेशों/देशों में भिन्न-भिन्न परम्पराएं हैं. यह आप पर निर्भर है कि आप अपने परिवार का गोत्र चलाते हैं या अपने गुरु का ? प्रतीत होता है, सिद्धार्थ के साथ गुरु का गोत्र आगे बढाया गया.

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