tag:blogger.com,1999:blog-92195658201054140472024-03-19T14:18:07.880+05:30Amrit UkeyAmrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.comBlogger1266125tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-25751553711641189112021-04-15T22:35:00.002+05:302021-04-15T23:16:47.596+05:30धम्मपद का ब्राह्मणीकरण<p>धम्मपद का ब्राह्मणीकरण</p><p>धम्मपद की यह गाथा 'मनुस्मृति' को भी पीछे छोड़ रही है-</p><p>न ब्राह्मणस्स पहरेय्य, नास्स मुञ्चेथ ब्राह्मणो</p><p>धि ब्राह्मणस्स हन्तारं, ततो धि यस्स मुञ्चति. 389</p><p>चीवरधारी ब्राह्मण ग्रन्थकारों ने विज्ञ पाठकों को संदेह का लाभ देने के लिए उक्त गाथा का अर्थ बहुत ही गड्ड-मड्ड किया है. बहुत कठिन शब्द नहीं हैं उक्त गाथा में. कोई भी प्रारंभिक पालि का अध्येयता बड़ी आसानी से इसका अनुवाद कर सकता है-</p><p>ब्राह्मण पर प्रहार न करे, न ब्राह्मण उस(प्रहार कर्ता) को जाने दे</p><p>धिक्कार है, ब्राह्मण की हत्या करने वाले को, धिक्कार उसको भी जिसको जाने देता है.</p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-70701304895550656742021-04-15T10:53:00.001+05:302021-04-15T10:53:46.166+05:30ईर्ष्या<p> ईर्ष्या</p><p>एक धनि व्यक्ति था. उसके पास बहुत धन था. उसने शहर की सबसे अच्छी लोकेशन पर एक बड़ा और आलीशान मकान बनवाया. यही नहीं, उसमें सुन्दर फर्नीचर, कालीन आदि बेशकीमती जरुरत की तमाम वस्तुओं से उसे सुसज्जित किया और अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहने लगा.</p><p>वह अपने मकान को देखकर बहुत प्रसन्न होता. जो भी मित्र आता, उसे घुमा-घुमा कर अपना मकान दिखाता और फर्नीचर तथा बेशकीमती वस्तुओं के बारे में जानकारी देता. </p><p>कुछ समय उपरांत उसके एक मित्र उसके यहाँ आये तो वह बहुत उदास और चुप-चुप था. मित्र में पूछा- "भाई, बात क्या है, आज हमें मकान नहीं दिखाओगे?" इस पर उस धनी व्यक्ति ने कहा- अब मकान क्या दिखाऊं, देखते नहीं, मेरे पडोसी ने मेरे घर से भी बड़ा मकान बना लिया है !</p><p><br /></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-44132788737576956152021-04-14T17:33:00.007+05:302021-04-15T08:01:30.892+05:30भिक्खुओं के लिए 7 अपरिहाणीय धर्म<p>भिक्खुओं के लिए 7 अपरिहाणीय धर्म</p><p><br /></p><p> "भिक्खुओ! तुम्हे 7 अपरिहाणीय धर्म उपदेश करता हूँ. उन्हें सुनो, कहता हूँ."</p><p>"अच्छा भंते !"</p><p>"1. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु बार-बार बैठक करने वाले रहेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं. </p><p>2. जब तक भिक्खुओ! एक होकर बैठक करेंगे, एक ही उत्थान करेंगे, एक ही संघ के करणीय को करेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं. </p><p>3. भिक्खुओ! जब तक अप्रज्ञप्तों को प्रज्ञप्त नहीं करेंगे, प्रज्ञप्त का उच्छेद नहीं करेंगे, प्रज्ञप्त भिक्खु-नियमों के अनुसार व्यवहार करेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.</p><p>4. भिक्खुओ! जब तक चिर प्रवजित, संघ के नायक थेर भिक्खु हैं, उनका सत्कार करेंगे, गुरुकार करेंगे, मानेंगे, पूजेंगे, उनको सुनने योग्य मानेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.</p><p>5. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु तृष्णा के वश में नहीं पड़ेंगे तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.</p><p>6. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु आरण्यक सयनासन की इच्छा वाले रहेंगे तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.</p><p>7. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु यह याद रखेगा कि अनागत में सुन्दर समण आये, सुख से विहरें, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं(महापरिनिब्बान सुत्त: दीघ निकाय)."</p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-68120440127717060612021-04-14T17:11:00.005+05:302021-04-15T15:33:53.502+05:30धर्म की आवश्यकता<p>1. यदि नए जगत को किसी धर्म को अपनाना ही हो, ध्यान रहे कि नया जगत पुराने जगत से सर्वथा भिन्न है और नए जगत को पुराने जगत की अपेक्षा धर्म की अत्यधिक जरुरत है, तो वह बुद्ध का धम्म ही हो सकता है. - डॉ अम्बेडकर : बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य.</p><p>2. समाज को अपनी एकता को बनाये रखने के लिए या तो कानून का बंधन स्वीकारना होगा या फिर नैतिकता का. दोनों के अभाव में समाज निश्चय ही टुकडे-टुकड़े हो जायेगा.</p><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">3. हर व्यक्ति का अपना दर्शन होना चाहिए. एक ऐसा मापदंड होना चाहिए जिससे वह अपने जीवन का आचरण परख सकें. क्योंकि जीवन में ज्ञान, विनय, शील, सदाचार का बड़ा महत्व है.</div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;"><br /></div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">4. मनुष्य सिर्फ पेट भरने के लिए जिंदा नहीं रहता है. उसके पास मन है. मन के विचार को भी खुराक की जरूरत होती है. और धम्म मानव मन में आशा का निर्माण करता है, उसे सदाचार का सुखी जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है.</div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;"><br /></div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">5. कुछ लोग धर्म को व्यक्तिगत समझते हैं. जबकि, बाबासाहब अम्बेडकर के अनुसार बुद्ध का धर्म सामाजिक है. उसका केंद्र बिंदु समाज है. एक आदमी का दूसरे आदमी के बीच व्यवहार का नाम धर्म है. आदमी अगर अकेला है तो उसे धर्म की आवश्यकता नहीं होगी. किन्तु आदमी अकेला नहीं है, वह समाज का अंग है. जहाँ दो आदमी होंगे, वहां धर्म की आवश्यकता होगी.</div><p><br /></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-5465971566413149882021-04-12T23:08:00.003+05:302021-04-15T17:24:40.192+05:30प्रो. पी. लक्ष्मी नरसू<p>प्रो. पी. लक्ष्मी नरसू</p><p>1. लेखक से मेरी भेट कभी नहीं हुई. डॉ. पट्टाभिसितारामैय्या, जो प्रो. नरसू के मित्र थे, से ही मुझे उनके बारे में जानकारी प्राप्त हुई. प्रो. पी लक्ष्मी नरसू डायनामिक्स के प्रतिष्ठित प्रोफ़ेसर थे. इसके अलावा वे एक बड़े समाज सुधारक थे. प्रो. नरसू ने जाति-पांति की प्रथा के विरुद्ध अपनी पूरी ताकत से संघर्ष किया. हिन्दू धर्म में इस कुप्रथा के फलस्वरूप जो अत्याचार होता था, उसके खिलाफ विद्रोह का झंडा खड़ा किया था. </p><p>वे बौद्ध धर्म के बड़े प्रशंसक थे और इसी विषय पर सप्ताह-दर-सप्ताह व्याख्यान दिया करते थे. अपने विद्द्यार्थियों में बड़े प्रिय थे. उनका व्यक्तिगत स्वाभिमान और राष्ट्राभिमान दोनों उच्च कोटि के थे. </p><p>पिछले कुछ समय से लोग बौद्ध धर्म के बारे में किसी अच्छे ग्रन्थ की जानकारी चाहते थे. उनकी इच्छा पूर्ति के लिए मुझे प्रो. नरसू के इस ग्रन्थ की सिफारिश करने में कुछ भी हिचकिचाहट नहीं है. मैं सोचता हूँ की अभी तक बौद्ध धर्म के सम्बन्ध में जितने भी ग्रन्थ लिखे गए हैं, उनमें यह ग्रन्थ सर्व श्रेष्ठ है('दी इसेन्स ऑफ़ बुद्धिज्म' के तृतीय संस्करण प्रकाशन: डॉ अम्बेडकर). </p><p>2. प्रो. नरसू मद्रास में डायनेमिक्स के जाने-माने विद्वान थे. आपके साथ ही सी. अयोध्यादास जी भी काम करते थे. प्रो. नरसू और सी. अयोध्यादास ने साउथ बुद्धिस्ट एसोसियन' की स्थापना की थी और इसके माध्यम से 1910 में भारत सरकार से बौद्धों की अलग से जनगणना कराई. उस समय 18000 बौद्ध मद्रास राज्य में थे. </p><p>3. मद्रास शहर में उस समय महाबोधि नाम की एक बौद्ध संस्था थी. उस संस्था के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर लक्ष्मी नरसू नायडू व सचिव सिंगारावेलू थे. </p><p>मद्रास में परिहार (पराया) अति शुद्र जाति के बहुत से लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार लिया था. इन नव बौद्धों के नेता पंडित अयोधीदास थे. इन लोगों ने रायपेट में एक घर किराये से ले लिया और उसमें बौद्ध आश्रम की स्थापना की थी. मैं उसमें पालि सुत्त कहा करता था और सिंगारावेलू उसका तमिल में अनुवाद करते थे.</p><p>प्रो. नरसू प्रत्येक शुक्रवार को सायं के समय बौद्ध आश्रम आते थे. आप महाविद्यालय के वाचनालय से कुछ पुस्तके मेरे वचन के लिए लाते थे. किसी विषय का तुलनात्मक अध्ययन किस प्रकार करना चाहिए, यह मैंने पहली बार प्रो. नरसू से सीखा था. प्रो. नरसू का व्यवहार बहुत ही अच्छा था. उनमें किसी भी प्रकार का बुरा व्यसन नहीं था. वे एक खुले दिल के व्यक्ति थे. मद्रास राज्य के समाज सुधारकों में उनकी गणना होती थी(धर्मानन्द कोसम्बी; आत्मचरित्र आणि चरित्र: जगन्नाथ सदाशिव सुखठणकर). </p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-90080390357463139532021-04-12T20:08:00.004+05:302021-04-12T20:13:56.038+05:30देसस्स सासका<p>देसस्स सासका</p><p> </p><p>गच्छ, </p><p>अत्तनो घरस्स भित्तिसु</p><p>लिखाहि-</p><p>"मयं</p><p>अस्स देसस्स</p><p>सासका." </p><p><br /></p><p>जाओ</p><p>अपने घर की दीवारों पर </p><p>लिख दो-</p><p>कि हम </p><p>इस देश के शासक हैं.</p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-83187609209221017982021-04-12T17:56:00.000+05:302021-04-12T17:56:08.383+05:30कचवरं<p>अहं घरस्स कचवरं पठि, किं मग्गो अत्थि ?</p><p>मग्ग विसये न संसयं.</p><p>ते पुब्बे बाबासाहबेन दस्सितं </p><p>घरे यदि कचवर अत्थि, तस्स संसोधनं आवस्सकं.</p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-80834669227422260982021-04-12T17:15:00.006+05:302021-04-12T17:16:21.819+05:30बुद्ध का अट्ठंगिक मार्ग-<p>बुद्ध का अट्ठंगिक मार्ग-</p><p>1. सम्यक दिट्ठि- भले-बुरे का ठीक-ठीक ज्ञान.</p><p>2. सम्यक संकल्प- राग, द्वेष रहित संकल्प.</p><p>3. सम्यक वाचा- झूठ, चुगली और कटु वचन न बोलना.</p><p>4. सम्यक कम्मान्त- हिंसा, चोरी, व्यभिचार रहित कर्म. </p><p>5. सम्यक जीविका- अनवर्जित कर्म करते हुए आजीविका चलाना.</p><p>6. सम्यक वायाम- इन्द्रियों का संयम.</p><p>7. सम्यक सति- सति(स्मृति) बोध को सतत क्रियाशील रखना.</p><p>8. सम्यक समाधि- कुशल कर्मों के सम्पादन और अकुशल कर्मों के त्याग का सतत चिंतन. </p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-60786033211924211032021-04-12T13:22:00.000+05:302021-04-12T13:22:00.788+05:30महासमुद्र के 8 गुण<p> महा समुद्र किनारे से गहरा नहीं होता. क्रमश: गहरा होता है. इसी तरह धम्म का ज्ञान धीरे-धीरे गहरा होता है.</p><p><br /></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-49181081926500579922021-04-12T07:39:00.004+05:302021-04-12T07:51:32.039+05:30संस्मरण<p>भदंत आनंद कोसल्यायन पंजाब में जन्में (5 जन. 1905) थे, पर उनका कार्य-क्षेत्र भारत में सारनाथ, वर्धा और अपने जीवन के उत्तरार्ध में नागपुर रहा. वे अपने जीवन के अंतिम दिनों तक(22 जून 1988) लिखते रहे.</p><p>सन 1964 में राहुलजी के देहांत का तार लंका में आया तो हम लोग केन्डी के एक विहार में थे. भंतेजी उस समय अंगुत्तर निकाय का अनुवाद कर रहे थे. तार पढ़ कर एक क्षण आँखे मुंदकर मौन रहने के बाद कहने लगे- अब तो राहुलजी के हिस्से का भी लिखना है, और लिखने लगे(भिक्खु मेघंकर: सम्पादकीय: धम्मपद).</p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-235503295534209772021-04-11T17:18:00.001+05:302021-04-11T19:22:38.795+05:30 महाप्रजापति गोतमी<p>पूर्वज</p><p>4. शुद्धोदन का विवाह महामाया से हुआ था. उसके पिता का नाम अंजन था और माँ का सुलक्षण. अंजन कोलिय था और देवदह नाम की बस्ती में रहता था.</p><p>5. शुद्धोदन एक बड़ा योद्धा था. जब शुद्धोदन ने अपनी वीरता का परिचय दिया तो उसे एक और विवाह करने की अनुमति मिल गई. उसने महा प्रजापति गोतमी को चुना, महाप्रजा पति गोतमी महामाया की बड़ी बहन थी(डॉ अम्बेडकर : बुद्धा एंड हिज धम्मा. पूर्वज: खंड 1, भाग 1).</p><p><br /></p><p>महामाया की मृत्यु </p><p>2. महामाया अचानक बीमार पड़ी. 6-7. जब उसने अंतिम सांस ली, तब सिद्धार्थ मात्र 7 दिन का था.</p><p>8. सिद्धार्थ का एक छोटा भाई भी था. उसका नाम नन्द था. वह शुद्धोदन का महाप्रजापति से उत्पन्न हुआ था.</p><p><br /></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-58130575311656702232021-04-11T16:23:00.007+05:302021-04-12T19:43:37.877+05:30घायल हंस की कथा <p><span face=""Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif" style="background-color: white; color: #050505; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">घायल हंस की कथा जो सिद्धार्थ से जोड़ी गई है और जो पाठ्य-पुस्तकों में पढाई जाती है, ति-पिटक ग्रंथों में उसका कोई उल्लेख नहीं है. </span></p><p><span style="color: #050505;"><span style="background-color: white; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">यह कथानक बुद्धचरित पर लिखे गए एक काव्य ग्रन्थ 'दी लाईट ऑफ़ एसिया' से लिया गया है जिसके रचियता एडविन आर्नोड हैं. यह कृति सन 1879 में छपी थी और इतनी प्रसिद्द हुई कि विश्व के तमाम ख्यात-नाम रचना धर्मियों ने इसे अपनी कला का विषय बनाया. स्वाभाविक है, चित्र-कला पर भी इसका भारी प्रभाव पड़ा. भारत की बात करें तो रामचंद शुक्ल ने सन 1922 में इसका पद्यानुवाद कर 'बुद्धचरित्र' की रचना की थी. </span></span></p><p><span style="background-color: white; color: #050505; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जैसे की काव्य-ग्रंथों में होता है, यहाँ भी हुआ. बुद्ध के एतिहासिक चरित्र को काल्पनिक और परा-प्राकृतिक बना कर, परस्पर विरोधी बातों से भर दिया गया (डॉ सुरेन्द अज्ञात : एसिया का प्रकाश ). </span></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-38142345997028640002021-04-10T19:55:00.002+05:302021-04-10T19:55:07.951+05:30ललितागिरी (नाल्टीगिरी)<p><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: Mangal, serif; font-size: 11.5pt;">ललितागिरी
(नाल्टीगिरी के नाम से भी जाना जाता है) भारतीय राज्य में एक प्रमुख बौद्ध परिसर
है जिसमें प्रमुख स्तूपों</span><span style="color: #050505; font-size: 11.5pt;">, '</span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: Mangal, serif; font-size: 11.5pt;">एसोटेरिक</span><span style="color: #050505; font-size: 11.5pt;">' </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: Mangal, serif; font-size: 11.5pt;">बुद्ध
चित्रों</span><span style="color: #050505; font-size: 11.5pt;">, </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: Mangal, serif; font-size: 11.5pt;">और मठों (विहारों)</span><span style="color: #050505; font-size: 11.5pt;">, </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: Mangal, serif; font-size: 11.5pt;">क्षेत्र
के सबसे पुराने स्थलों में से एक है ।</span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">रत्नागिरी
और उदयगिरी साइटों के साथ</span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">, </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">ललितगिरी पुस्पगिरी विश्वविद्यालय का
हिस्सा है जो एक ही नामों की पहाड़ियों के शीर्ष पर स्थित है ।</span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">तीन
जटिलों को </span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">′′ </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">डायमंड ट्रायंगल </span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">′′ </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">के नाम
से जाना जाता है ।</span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">इस
परिसर में महत्वपूर्ण खोजों में बुद्ध की रिलिक्स शामिल है । तांत्रिक बौद्ध धर्म
का अभ्यास इस साइट पर किया गया था ।</span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">ललितगिरी</span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">, </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">उड़ीसा
के सबसे प्रारंभिक बौद्ध स्थलों में से एक</span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">, </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">ने मौर्यन काल (</span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">322-185 </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">ईसा
पूर्व) से शुरू होकर </span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">13 </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">वीं शताब्दी ईडी तक एक निरंतर
सांस्कृतिक अनुक्रम को बनाए रखा । यह भी ज्ञात है कि इस साइट ने </span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">3 </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">वीं
शताब्दी ईसा पूर्व से </span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">10 </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक बौद्ध धर्म</span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">, </span><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.5pt; mso-ascii-font-family: inherit; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: inherit;">अखंडता
की निरंतर उपस्थिति बनाए रखी ।</span><span style="color: #050505; font-family: "inherit","serif"; font-size: 11.5pt; mso-bidi-font-family: "Segoe UI"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-10602942815561220792021-04-09T17:16:00.000+05:302021-04-09T17:16:50.986+05:30द्रविड़ प्रदेश <p><b>उत्तर भारत</b>-</p><p>13 सदी में ही बौद्ध विहीन हो गया था.</p><p><br /></p><p><b>द्रविड़ प्रदेश- </b></p><p>1. बुद्धदत्त(450 ईस्वी)</p><p>यह शायद बुद्धघोस के पहले सिंहल आये थे. दोनों की भेट समुद्र में नौका पर हुई थी.इनके ग्रन्थ हैं- 1. विनय विनिच्छय, 2. उत्तर विनिच्छय, 3. अभिधम्मावतार, 4. मधुर अत्थविलासिनी, 5. रूपारूपविनिच्छय. </p><p>2. बुद्धघोस(450 ईस्वी)- </p><p>3. धम्मपाल(500 ईस्वी)-</p><p>द्रविड़ प्रदेश में इनके द्वारा रचित ग्रन्थ कम नहीं हैं. दरअसल, बुद्धघोस द्वारा छोड़े हुए कार्य की पूर्ति इनके द्वारा हुई है. इनका जन्म तमिल प्रदेश के कांचीपुरम नमक स्थान में हुआ था. व्हेन-सांग ने जिन धर्म पाल का उल्लेख किया है, वे इनके गुरु थे.</p><p>इनकी रचनाएँ हैं-</p><p>1. परमत्थ दीपनी(खुद्दक निकाय के उन ग्रंथों की अट्ठकथायें जिनका बुद्धघोस ने आख्यान नहीं किया है. यथा उदान, इतिवुत्तक, विमान वत्थु, पेतवत्थु , थेरगाथा, थेरीगाथा एवं चरिया पिटक)</p><p>2. नेत्तिप्पकरण अट्ठकथा 3. दीघ निकाय अट्ठकथा टीका 4. मज्झिम निकाय अट्ठकथा टीका. 5. संयुत्त निकाय अट्ठकथा टीका 6. अंगुत्तर निकाय अट्ठकथा टीका. 7. जातक अट्ठकथा टीका 8. अभिधम्म अट्ठकथा टीका 9. बुद्धवंस टीका 10. विसुद्धि मग्ग टीका </p><p>4. अनुरुद्ध- ये कांची के पास कावेरिपटटन के निवासी थे. इनकी रचाएं हैं- 1. अभिधम्मअत्थ संगह, 2. नाम रूप परिच्छेद , 3. परमत्थ विनिच्छय.</p><p>5. कस्सप(1200 ईस्वी) - इनकी रचनाएँ हैं - 1. मोह विच्छेदनी (अभिधम्म मातिका टीका) , 2. विमति विनोदनी (विनय कथा टीका). </p><p>बुद्धप्पिय दीपंकर(1300 ईस्वी)- इनकी रचनाएँ हैं- 1. महा रूप सिद्धि 2. पजज मधु </p><p><br /></p><p>14वीं सदी में मलिक काफूर ने मथुरा को जीता और सरे मंदिरों और विहारों को ध्वस्त कर दिया. घनघोर अत्याचार किया गया. ऐसे निर्मम हत्यारों से भिक्खु अपने को पीले कपड़ों में रख कर कितने दिनों तक बच सकते थे ? जो जीवित बचे वे सिंहल भाग गए और बिना ग्वाले की गायों की भांति जो बौद्ध गृहस्थ बच रहे, <u>वे ब्राह्मणों के शिष्य हो गए.</u> इस तरह द्रविड़ प्रदेश से बौद्ध धर्म का उच्छेद हो गया(राहुल सांस्कृत्यायन : पालि साहित्य का इतिहास पृ. 264 ).</p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-6038108458781876822021-04-09T11:29:00.003+05:302021-04-09T11:29:17.690+05:30ति-पिटक लेखन<p> ति-पिटक लेखन</p><p>कंठस्थ बौद्ध ग्रंथों की शुद्धता तथा सुरक्षा के लिए दूसरी संगीति के 125 वर्षों बाद तीसरी संगति असोक के समय पटना में हुई थी. इसी के निर्णयानुसार असोक के पुत्र स्थविर महेंद्र ई. पू. तीसरी सदी में सिंहल आये और यह देश कासाय धारी भिक्खुओं से आलोकित हो उठा. पर पिटक की परम्परा अभी भी मौखिक ही थी और यह सूत्रधरों, विनयधरों तथा मात्रिकाधरों के ह्रदय में निहित था. ऐसी विशाल सामग्री का ह्रदय जैसे कोमल भंगुर पात्र में सुरक्षित रखना अत्यंत कठिन है, अतयव सिंहल राज वट्ट गामणि (ई. पू. प्रथम शताब्दी) के समय निर्णय लिया गया और इसके अनुसार 'अलोक विहार' में ति-पिटक ताल-पत्रों पर लिखा गया(पृ. 191). </p><p>सूत्र, विनय तथा अभिधर्म को पढ़ाते समय आचार्य परम्परा के अनुसार जो व्याख्या करते थे, वही सिंहली अट्ठकथाओं के रूप में प्रस्तुत हुई और इन्हें भी लिपिबद्ध किया गया था. ईस्वी सदी के प्रारंभ होते ही सिंहल थेरवाद का गढ हो गया. वहां पर लिपिबद्ध किये गए पिटक ग्रन्थ बाहर भी पहुँच जाते थे, पर सिंहल अट्ठकथाएं सिंहल प्राकृत भासा में थी और शायद ही उनमें से कुछ दक्षिण या उत्तर भारत में पंहुची हों. उनकी भासा सिंहल-प्राकृत थी, जो तीसरी-चौथी सदी के सिंहल शिलालेखों में मिलती है. प्राकृत होने से यह बहुत कठिन नहीं थी. समयानुसार पीछे यह मांग होने लगी की उन्हें मागधी में कर दिया तो बड़ा लाभ हो, क्योंकि इनके प्रयोग का क्षेत्र विस्तृत हो जाता. इसी आवश्यकता की पूर्ति बुद्धघोस , बुद्धदत्त तथा धर्मपाल आदि आचार्यों ने की(बुद्धघोस युग :पाली भासा का इतिहास: राहुल सांस्कृत्यायन).</p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-34976299574627403292021-04-09T08:09:00.006+05:302021-04-09T19:19:38.959+05:30 दिव्यावदान <p>दिव्यावदान </p><p>यह संस्कृत में है. इस ग्रन्थ का चीनी अनुवाद 265 ईस्वी में हो चुका था.</p><p>दिव्य अवदानों या कथाओं का संकलन का नाम है- दिव्यावदान. इसमें असोकवदान आदि कुल 38 अवदान हैं. अवदान और जातक कथा में अन्तर यह हैं कि जातक कथा में बुद्ध के पुनर्जन्म की कथाएं हैं जबकि अवदान में नायक अन्य भी हैं. </p><p>बौद्ध कालीन इतिहास और संस्कृति का वर्णन दिव्यावदान से प्राप्त होता है.</p><p>यह भारतीय इतिहास और संस्कृति के स्रोतों का आधार ग्रन्थ है. इतिहास की पुस्तकें बिना दिव्यावदान के उद्धरणों के प्राचीन इतिहास की पुष्टि असंभव होती है. तब भी हिंदी में इसका अनुवाद नहीं मिलता.</p><p><br /></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-10409742185464368552021-04-08T10:09:00.003+05:302021-04-08T20:54:54.386+05:30धम्मपद में इंद्र ब्रह्मा आदि देवता और स्वर्ग-नरक<p>धम्मपद में इंद्र ब्रह्मा आदि देवता और स्वर्ग-नरक</p><p>(1)</p><p>1. अप्पमादेन मधवा देवानं सेट्ठतं गतो. </p><p>अप्रमाद से ही इंद्र देवताओं में श्रेष्ठ बना. 30</p><p>2. यमलोकं च इमं सदेवकं. </p><p>इस यमलोक तथा इस पृथ्वी को. 44</p><p>3. अदस्सनं मच्चुराजस्स गच्छे</p><p>यमराज को न दिखाई देने वाला बने. 46</p><p>4. न देवो न गंधब्बो न मारो सह ब्रम्हुना. </p><p>न देवता, न गन्धर्व, न मार सहित ब्रह्मा ही. 105</p><p>5. सकुंतो जालमुत्तो व अप्पो सग्गाय गच्छति. </p><p>जाल से मुक्त पक्षियों की तरह कुछ ही स्वर्ग जाते हैं. 174</p><p>6. पठव्या एक रज्जेन सग्गस्स गमनेन वा. </p><p>पृथ्वी का अकेले राजा होने अथवा स्वर्ग जाने. 178</p><p>7. एतेहि तीहि ठानेहि गच्छे देवानं संतिके. </p><p>इन तीन बातों के करने से आदमी देवताओं के पास जाता है. 224</p><p><br /></p><p>2.</p><p>अनेक जाति संसारं सन्धाविस्स अनिब्बिसं.</p><p>गहकारकं गवेसन्तो दुक्खा जाति पुनप्पुनं.</p><p>बारम्बार जन्म लेना दुक्ख है. </p><p>गृहकारक को ढूंढते हुए मैं अनेक जन्मों तक लगातार संसार में दौड़ता रहा. 153</p><p>देवापि तं पसंसति ब्रम्हुणा पि पसंसति.</p><p>देवता भी उसकी प्रशंसा करते है और ब्रह्मा भी.230</p><p>यम पुरिसा पि च ते उपतिट्ठा. तेरे पास यमदूत आ खड़े हैं. 235</p><p>अभूतवादी निरयं उपेति. असत्यवादी नरक में जाता है. 306</p><p>निन्दं ततियं निरयं चतुत्थं.</p><p>(प्रमादी पुरुष की गति)--- तीसरी निंदा, चौथी नरक. 309</p><p>निरया उपकंखति. तो नरक में ले जाया जाता है. 311</p><p>खाणातीता हि सोचन्ति निरयम्हि समप्पिता. 315</p><p>क्षण हाथ से निक़ल जाने के बाद नरक में पड़ कर शोक करना होता है.</p><p>यस्स गतिं न जानन्ति, देवा गंधब्ब मानुसा. 420</p><p>जिसकी गति को न देवता जानते हैं, न गन्धर्व न मनुष्य.</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-40735229437249922442021-04-07T19:51:00.001+05:302021-04-07T19:51:41.327+05:30धम्मपद अट्ठकथा<p> धम्मपद अट्ठकथा</p><p>इसके रचियता बुद्धघोस(4-5 वीं सदी) बताये जाते हैं. इसमें कई कथा- कहानियों के माध्यम से गाथाओं का अर्थ समझाया गया है. ये कथानक सुत्तपिटक और विनयपिटक तथा जातक कथाओं से लिए गए हैं. </p><p> </p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-51254065828191213842021-04-07T12:23:00.014+05:302021-04-08T22:59:20.226+05:30धम्मपद और ताराराम <p> ताराराम </p><p>"...... उपनिषदों के निरपेक्ष ब्रह्म या परं ब्रह्म की अवधारणा बुद्ध के समय प्रचलन में नहीं आयी थी।</p><p>किसी भी पालि सुत्त में अंतिम सत्य के रूप में उपनिषद के ब्रह्म सिद्धांत का हवाला नहीं दिया गया है।</p><p>अतः इसकी आलोचना का प्रश्न ही नहीं उठता---।"</p><p>"---उपनिषद का परब्रह्म का विचार ईश्वर, ब्रह्म अथवा प्रजापति के रूप में वैदिक विचारों के केंद्रीय-बिंदु के रूप में आविर्भूत नहीं हूं था।</p><p>जीवों के ऊपर ब्रह्मा की सर्वोच्चता और वैदिक कर्मकांड करके कल्पो स्वर्ग प्राप्त करने की वांछनीयता का बुद्ध द्वारा बार-बार खंडन किया गया है।</p><p>महानतम वैदिक देव, इंद्र, ब्रह्मा प्रजापति कईं पालि ग्रंथों में बुद्ध के श्रद्धालु शिष्य प्रतीत होते है।"</p><p>"यह तथ्य कि बुद्ध अपने कईं प्रवचनों में आदर्श ब्रह्म की प्रशंसा करते है और अपने कई प्रवचनों में ब्रह्मचर्य, ब्रह्मकाया, ब्रह्मभूतः शब्दों का प्रयोग करते है, परंतु इससे हमें भ्रांति में नहीं पड़ना चाहिए। </p><p>'ब्रह्म' शब्द पर वैदिक ब्राह्मणों का एकाधिकार नहीं था; यह शब्द बुद्धकाल में लोगों के बीच में सामान्य प्रयोग में था।</p><p>धम्मपद के ब्राह्मण-वग्ग में ब्राह्मण शब्द का अर्थ वैदिक-पुरोहित्य (पौरोहित्य) ब्राह्मण नहीं है।</p><p>बौद्ध-धम्म में सच्चे ब्राह्मण की अवधारणा का अर्थ अर्हत अथवा बुद्ध की अवधारणा है।</p><p>ब्राह्मण शब्द मुनि अथवा श्रमण का पर्यायवाची है।"</p><p>"ब्रह्मचर्या का अर्थ धम्मचरिया है।</p><p>पालि मूल/पाठों में ब्रह्मचरिया का जो अर्थ है, वही शान्तिदेव अपने बोधिचरियावतार में बोधिचर्या का अर्थ लेते है।</p><p>चूंकि ब्रह्म, बोधि, धम्म और बुद्ध का प्रयोग यहां पर्यायवाची शब्दों के रूप में हुआ है।</p><p>अतः ब्रह्मकाया का अर्थ धम्मकाया है अर्थात परम तत्व (धम्म धातु) अथवा निर्वाण-धम्म।</p><p>निर्वाण एक ऐसी शांति है, जो अनिर्वचनीय है।</p><p>ब्रह्मभूत शब्द का अर्थ निब्बूत अथवा सीतिभूत है, जो तथागत का उपनाम है।"</p><p> (ब्राह्मणवाद, बुद्ध धम्म और हिंदूवाद, पृष्ठ 66-67)</p><p>-------------------------------</p><p>1. बाबासाहब अम्बेडकर ने बौद्ध-हिन्दू संघर्ष को दो संस्कृतियों का खुनी संघर्ष कहा है. </p><p>2. बौद्ध परम्परा में, सिंहलद्वीप के ग्रन्थ दिव्यावदान(300 ईस्वी), असोकवदान और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ(1600 ईस्वी) के 'हिस्टरी आफ बुद्धिज्म' ग्रन्थ उक्त खुनी संघर्ष के साक्षी हैं.</p><p> इन ग्रंथों में बतलाया गया है कि कैसे पुष्यमित्र शुंग( ईस्वी ) ने बौद्धों का बड़े पैमाने पर संहार किया था और लाखों बुद्धविहार धराशायी किये थे. पुष्यमित्र शुंग ने राजज्ञा जारी की थी जो किसी समण का सिर लायेगा उसे 100 सोने की मोहरे दिए जायेंगे.</p><p>3. ह्वेनसांग(650 ईस्वी) के अनुसार, राजा शशांक(600 ईस्वी ) ने बुद्धगया के विहारों को जमीदोज कर बोधिवृक्ष को जला दिया था.</p><p>4. हिन्दू परम्परा में कुमारिल भट्ट(550 ईस्वी) ने बुद्ध की कठोर निंदा की है.</p><p>'शंकर दिग्विजय' में शंकर(788-820 ईस्वी) के शिष्य सुधन्वा राजा का बौद्धों के प्रति द्वेष उल्लेखित है. </p><p>"स्कंधगुप्त सम्राट(455- 474 ईस्वी) ने जैसा किया था, उसका अनुशरण करते हुए सुधन्वा राजा ने भी(शंकर की इच्छा से) अपने भृत्यों को यह आज्ञा दी थी की रामेश्वर के सेतु से हिमालय पर्वत तक, बौद्धों को मार डालो, उनके बुद्धे-बच्चों को तक न छोडो और जो उनको मारने से हिचके, उसे भी मार डालो. </p><p>वाल्मीकि रामायण हो या मनुस्मृति, बौद्ध द्वेष सर्व विदित है.</p><p>(1.)</p><p> ब्रह्म- 1. बुद्ध ने वैदिक ऋषियों के दर्शन को बेकार जान उसकी सम्पूर्ण रूप से अवहेलना की(बुद्ध और उनके पूर्वज/समकालीन खण्ड 1 भाग- 5/6: डॉ, अम्बेडकर; बुद्धा एंड हिज धम्मा ). 2. बुद्ध ने ब्राह्मणों के चार आधारभूत सिद्धांत यथा वेद. आत्मा, चातुर्वर्ण व्यवस्था और पुनर्जन्म आधारित कर्मवाद को अस्वीकार कर दिया(वही). 3. ब्रह्म और उसकी संकल्पना को बुद्ध ने नकार दिया(वही).</p><p>(2.) </p><p>"जीवों के ऊपर ब्रह्मा की सर्वोच्चता और वैदिक कर्मकांड करके कल्पित स्वर्ग प्राप्त करने की वांछनीयता का बुद्ध द्वारा बार-बार खंडन किया गया है। महानतम वैदिक देव, इंद्र, ब्रह्मा प्रजापति कईं पालि ग्रंथों में बुद्ध के श्रद्धालु शिष्य प्रतीत होते है।" </p><p>क्या उक्त दोनों वाक्य आपस में विरोधाभाषी नहीं ?</p><p>(3.) </p><p>धम्मपद के ब्राह्मण-वग्ग में ब्राह्मण शब्द का अर्थ वैदिक-पुरोहित्य (पौरोहित्य) ब्राह्मण नहीं है। बौद्ध-धम्म में सच्चे ब्राह्मण की अवधारणा का अर्थ अर्हत अथवा बुद्ध की अवधारणा है। ब्राह्मण शब्द मुनि अथवा श्रमण का पर्यायवाची है।"</p><p>बुद्धकाल में 'ब्राह्मण' शब्द रूढ़ था. वह ब्राह्मणों की लिए ही प्रयोग होता था. यथा- यम्हा धम्मं विजानेय्य सम्मा सम्बुद्ध देसितं. सक्कच्चं तं नमस्सेय्य अग्गिहुत्तं व ब्राह्मणो. धम्मपद 393</p><p>जिस उपदेशक से बुद्ध द्वारा उपदिष्ट धर्म जाने, उसे वैसे ही नमस्कार करे जैसे ब्राह्मण अग्नि होत्र को.</p><p>बुद्ध ब्राह्मण की सर्वोच्चता को पसंद नहीं करते थे और इसलिए जब भी अवसर आया उन्होंने ब्राह्मण की गर्हा की. ऐसे ढेरों प्रसंग हैं जिन्हें इस सन्दर्भ में उल्लेखित किया जा सकता है. </p><p>(4.) </p><p>"ब्रह्मचर्या का अर्थ धम्मचरिया है।</p><p>निस्संदेह, ब्रह्मचरिया ही धम्मचरिया है. किन्तु सवाल यह नहीं है. सवाल यह है कि हर उत्तम चीज में ब्रह्म कैसे घुस गया ? जिस ब्रह्म को बुद्ध नकार रहे हैं, वह उत्तमता का प्रतीक कैसे हो सकती है ?</p><p>(5.) </p><p>"<span face="Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif" style="background-color: white; color: #333333; font-size: 14.85px;">ब्रह्मभूत शब्द का अर्थ निब्बूत अथवा सीतिभूत है, जो तथागत का उपनाम है।"</span></p><p><span face="Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif" style="color: #333333;"><span style="background-color: white; font-size: 14.85px;">निब्बुत पालि शब्द है, जिसका अर्थ 'बुझ जाना' है. बाकि ब्राह्मणीकरण है. </span></span></p><p><span style="color: #333333;"><span style="background-color: white; font-size: 14.85px;">(6.) </span></span></p><p><span style="color: #333333;"><span style="background-color: white; font-size: 14.85px;">ब्रह्म, आत्मा, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नरक, देवलोक, परलोक का बुद्ध ने उपदेश नहीं दिया. जबकि धम्मपद में अनेक गाथाये हैं जो इनका प्रचार करती हैं.</span></span></p><p><span><span style="background-color: white; color: #333333; font-size: 14.85px;">(7.) </span></span></p><p><span><span style="background-color: white; color: #333333; font-size: 14.85px;">धम्मपद की ये गाथाये कौन सा उपदेश देती है, सिवाय ब्राह्मण सर्वोच्चता और स्वच्छंदता के ? मातरं पितरं हन्त्वा, राजानो द्वे च खत्तिये. रट्ठं सानुचरं हन्त्वा, अनीघो याति ब्राह्मणो. 294</span></span></p><p><span style="color: #333333;"><span style="background-color: white; font-size: 14.85px;">(8) </span></span></p><p><span style="color: #333333;"><span style="background-color: white; font-size: 14.85px;">ति-पिटक में जो बुद्धवचन के रूप में लिखा और कहा गया है, उसे 'बुद्धवचन' स्वीकारते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए(परिचय: डॉ. अम्बेडकर: बुद्धा एंड हिज धम्मा)</span></span></p><p><span style="color: #333333;"><span style="background-color: white; font-size: 14.85px;"><span face=""Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif" style="color: #050505; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">(9.) </span></span></span></p><p><span style="color: #333333;"><span style="background-color: white; font-size: 14.85px;"><span face=""Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif" style="color: #050505; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">बुद्धिज्म को समता का प्रतीक कहा जाता है, फिर धम्मपद में 'ब्राह्मणवग्ग' ही क्यों ? अन्य वर्गों का क्या अपराध था ? विशेष कर तब, जब ब्राह्मण के बारे में बुद्ध के अच्छे विचार नहीं थे.</span></span></span></p><p><span style="color: #333333;"><span style="background-color: white; font-size: 14.85px;"><span face=""Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif" style="color: #050505; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">(10.) </span></span></span></p><p><span style="color: #333333;"><span style="background-color: white; font-size: 14.85px;"><span face=""Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif" style="color: #050505; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">बुद्धा एंड हिज धम्मा में बाबासाहब अम्बेडकर ने ति-पिटकाधीन कई ग्रंथों से उद्धरण लिए हैं. उद्धरण को जस के तस लिखा जाता है.</span></span></span></p><p><span style="color: #050505;"><span style="background-color: white; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">(11.) </span></span></p><p><span style="color: #050505;"><span style="background-color: white; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">न ब्राह्मणस्स पहरेय्य नास्स मुंचेथ ब्राह्मणो. </span></span></p><p><span style="color: #050505;"><span style="background-color: white; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">धि ब्राह्मणस्स हन्तार ततो धि यस्स मुंचति. 389</span></span></p><p><span style="background-color: white; color: #050505; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">ब्राह्मण पर प्रहार न करे, न ब्राह्मण उसे छोड़े.</span></p><p><span style="background-color: white; color: #050505; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">ब्राह्मण हत्या करने वाले को धिक्कार है, उसको धिक्कार है, जो उसे छोड़ता है. </span></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-27118506310289628472021-04-07T09:09:00.000+05:302021-04-07T09:09:01.613+05:30आचरेसु पालि(2) <p> आचरेसु पालि(1) </p><p>किसी भी भाषा को सीखने का तरीका है, व्यवहार में लाना. निम्न कुछ वाक्यों को फेसबुक/ वाट्सएप में कमेन्ट करते समय प्रयोग करे.</p><p>भंडागारे नियुत्तो- स्टोर्स में नियुक्त</p><p>बाहासु गहेत्वा- बांहों में लेकर.</p><p>कदलिसु गजे रक्खन्ति- केले के पेड़ों से हाथियों की रक्षा(व्यंग)</p><p>मुसली दण्डेहि न भायति- मुसल को डंडे से कैसा डर ?</p><p>पुनं मिलाम- पुन: मिलते हैं.</p><p>बालो मिच्छा मञ्ञति- मुर्ख मिथ्या ही सोचता है.</p><p>सीलं रक्खेय्य- शील की रक्षा करें.</p><p>सप्पुरिसो यं यं देसं गच्छति, तहं- तंह पूजितो होति.</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-70016376329184646552021-04-06T22:49:00.001+05:302021-04-06T22:59:26.258+05:30असोक का भाबरू(जयपुर) सिलालेख<p>असोक के सिलालेखों में बुद्धवचनों के जो अभिलेख मिलते हैं, यह एतिहासिक विरासत अनुत्तर है. यथा असोक का भाबरू(जयपुर) सिलालेख जिसमें 7 सुत्तों में सदाचरण सम्बन्धी निर्देश उत्कीर्ण हैं.</p><p>1. विनय समुकसे(समुत्कर्ष) धम्म चक्क पवत्तन सुत्त </p><p>2. अलिय वसानि(वंस)- अंगुत्तर निकाय; चतुक्क निपात </p><p>3. अनागत भयानि- अंगुत्तर निकाय; पंचक निपात</p><p>4. मुनि गाथा- मुनि सुत्त; सुत्त निपात</p><p>5. मोनेय सूते- नालक सुत्त; सुत्त निपात</p><p>6. उपतिसपसिने(सारिपुत्त/उपतिस पन्ह)- सारिपुत्त सुत्त; सुत्त निपात</p><p>7. राहुलोवाद सूते(चुळ राहुलोवाद सुत्त/ अम्बलट्ठित राहुलो वाद सुत्त)- मज्झिम निकाय </p><p> </p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-5135243222400640262021-04-06T21:50:00.000+05:302021-04-06T21:50:10.832+05:30आरक्षण के विरोध में प्रेमचन्द: कँवल भारती<p><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;"> 1934 में पहली बार भारत सरकार ने मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों में 25 प्रतिशत आरक्षण की विज्ञप्ति जारी की थी। प्रेमचंद ने उसका भरपूर विरोध किया। उनका हिंदू मन आहत हो गया. जिस राष्ट्रवादी सोच के तहत प्रेमचन्द ने दलितों के लिए पृथक निर्वाचन के अध्किार का विरोध किया, उसी सोच के तहत उन्होंने मुसलमानों के आरक्षण का भी विरोध किया। उन्होंने जुलाई 1934 के ‘हंस’ में लिखा: ‘साम्प्रदायिकता के नाम पर, मुसलमानों के लिए पच्चीस प्रतिशत स्थान सुरक्षित कर दिए गए हैं। हमारी समझ में इसका अर्थ यही है कि सरकार हमारी राष्ट्रीय प्रगति को कुचलने का प्रयत्न कर रही है। वह नहीं चाहती कि हममें जीवन आ जाए। इस प्रकार साम्प्रदायिकता का पोषण करके वह हमारी राष्ट्रीयता को हवा में उड़ा देना चाहती है। सरकार का यह रुख बड़ा भयावह है। राष्ट्र के लिए यह कितना खतरनाक सिद्ध होगा, इसकी कल्पना करते ही महान खेद होता है। लेकिन सरकार को इसकी क्या परवाह है? उसे तो राष्ट्रीयता छिन्न-भिन्न करनी है। प्रत्येक समझदार व्यक्ति ने स्पष्ट शब्दों में नौकरियों के साम्प्रदायिक विभाजन का विरोध किया है।’</span></p><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> नौकरियों के साम्प्रदायिक विभाजन का विरोध करने वाले समझदार राष्ट्रवादी हिन्दू आज भी हैं, जो नौकरियों के जातीय विभाजन का विरोध करते हैं। और ये समझदार राष्ट्रवादी भला ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य और कायस्थों के सिवा कौन हो सकते हैं? प्रेमचन्द कितने तुच्छ दिमाग के थे कि मुसलमानों को भारत-राष्ट्र का अंग ही नहीं मान रहे थे! जैसे आज हिन्दुत्ववादी दलितों को भारत-राष्ट्र का अंग नहीं मानते, वरना सुप्रीम कोर्ट पूछता कि उन्हें कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण चाहिए? विचारणीय सवाल यह है कि कोई राष्ट्र नीचे कैसे गिर सकता है, अगर उसके कमजोर वर्ग को विशेष प्रावधान से ऊपर उठाने की व्यवस्था की जाती है? मुसलमानों के लिए नौकरियों में आरक्षण की विज्ञप्ति 1934 में जारी हुई थी। उस समय तक भारत का विभाजन नहीं हुआ था। मुसलमान भारत-राष्ट्र के ही अंग थे। इसका मतलब यह हुआ कि 1934 तक सरकारी नौकरियों में मुसलमानों को प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं था। दलित और पिछड़ी जातियों को तो खैर शिक्षित ही नहीं किया गया था। फिर सरकारी नौकरियों में किनकी इजारेदारी थी। जाहिर है कि सवर्ण हिन्दुओं की। फिर मुसलमानों को 25 प्रतिशत नौकरियाँ देने से किस हिन्दू राष्ट्र को खतरा महसूस कर रहा था? ज़ाहिर है हिन्दू राष्ट्र को!</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">आगे प्रेमचन्द एक और निहायत बचकाना तर्क देते हैं, जैसे आज भी कुछ छद्म प्रगतिशील लोग दलितों के आरक्षण के सम्बन्ध में देते है---‘इसका यह अर्थ नहीं कि हम मुसलमानों की उन्नति के विरोधी हैं। हमें उनके लिए 25 प्रतिशत स्थानों के सुरक्षित होने पर भी खेद नहीं है, खेद है इस साम्प्रदायिक मनोवृत्ति पर, जिससे राष्ट्रीयता का गला घुट रहा है।’ वाह रे, प्रेमचन्द, मुस्लिम-विरोधी हैं, पर नहीं हैं, बस खेद है कि मुसलमानों को नौकरियाॅं देने से राष्ट्रीयता का गला घुट रहा है। कौन मूर्ख कहेगा कि यह प्रेमचन्द का मुस्लिम-विरोधी वक्तव्य नहीं है? छद्म प्रगतिशील भी ऐसे ही बोलते हैं कि ‘हम दलितों के विरोधी नहीं हैं, हम दलितों की तरक्की चाहते हैं। पर उनको आरक्षण देने से राष्ट्रीयता का गला घुट रहा है।’</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> मुसलमानों के सवाल पर प्रेमचन्द आगे और भी घोर सनातनी हिन्दूवादी दृष्टिकोण से लिखते हैं--'नौकरियों के इस प्रकार विभाजन से क्या होगा?साम्प्रदायिक द्वेष की मनोवृत्ति पनपनेगी, धर्मान्धता बढ़ेगी, हृदय ईर्ष्यालु होंगे, योग्यता का मूल्य गिर जायगा। मूल्य रहेगा साम्प्रदायिकता का। उसी का भयानक ताण्डव दृष्टिगोचर होगा, और यह राष्ट्र के लिए कितना घातक हो सकता है, यह किसी भी समझदार व्यक्ति की समझ से बाहर की बात नहीं है। प्रत्येक समझदार व्यक्ति इस दृष्टिकोण का विरोध करेगा और चाहेगा कि नौकरियाँ सम्प्रदाय के नाम पर नहीं, योग्यता के नाम पर दी जाएॅं।’ </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ये ठीक वही तर्क हैं, जो सनातनी हिन्दू और छद्म प्रगतिशील हिन्दू दलितों के आरक्षण के बारे में आज भी देते हैं। इन तर्को में सबसे बेहूदा तर्क योग्यता का है। यह तर्क इसलिए दिया जाता है, क्योंकि द्विज हिन्दू अपने सिवा किसी अन्य को योग्य मानते ही नहीं, और दलितों को तो बिल्कुल भी नहीं। जब मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री बने थे, तो इन्हीं ‘योग्य’ हिन्दुओं ने दीवालों पर नारा लिखा था--‘अहीर का काम भैंस चराना है, शासन करना नहीं।’ असल में द्विज हिन्दू और खास तौर से ब्राह्मण समझते हैं कि वे योग्य और श्रेष्ठ पैदा हुए हैं, इसीलिए वे शासन-प्रशासन और न्यायपालिका में मुख्य पदों पर हैं। पर यह सच नहीं है, सच यह है कि सत्ता उनको चाहती है, इसलिए वे हर जगह मुख्य पदों पर हैं। चूॅंकि सत्ता उन्हीं के हाथों में है, इसलिए योग्य-अयोग्य का पैमाना भी उन्हीं के हाथों में है। </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">हिन्दुओं की इसी विषैली मनोवृत्ति के कारण भारत का विभाजन हुआ, और पाकिस्तान बना। यह ठीक ही हुआ, वरना हिन्दू कभी भी किसी मुसलमान को यहाँ प्रधानमंत्री नहीं बनने देते।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">(6/4/2021)</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">Bharti Kanwal</div></div>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-13670649352282011452021-04-06T20:01:00.006+05:302021-04-06T20:04:27.519+05:30ति-पिटक में शाक्यॉ को अक्षम और नीचा दिखाया गया(3)-<p>ति-पिटक में शाक्यॉ को अक्षम और नीचा दिखाया गया(3)-</p><p>एक बार बुद्ध, कोसल देश की यात्रा करते हुए कपिलवत्थु पहुंचे. उनके आगमन की खबर सुनकर उनके चचेरे भाई महानाम उनसे मिलने पंहुचे. मेल-मुलाकात के बाद बुद्ध ने उनसे एक रात रुकने की व्यवस्था करने को कहा. किन्तु महानाम ने ऐसा न कर सुझाव दिया कि वे अपने पुराने परिचित भरंडु कालाम के यहाँ रात बिताये(अंगुत्तर निकाय; तिकनिपात: भरंडु कालाम सुत्त).</p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-30476955974032723072021-04-06T08:04:00.001+05:302021-04-06T08:06:11.526+05:30एवं मे सुत्तं (1)<p>एवं मे सुत्तं(1) </p><p>1. </p><p>जो हाथ देता है, उसे बचाया जा सकता है</p><p>जो हाथ ही नहीं देता, उसे बचाना कैसे संभव है ?</p><p>यं इच्छेय्य, तं रक्खणं संभवं.</p><p>यं न इच्छेय्य, तं कथं सम्भवं ?</p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9219565820105414047.post-23188175581857076282021-04-06T07:49:00.000+05:302021-04-06T07:49:04.045+05:30भोपाल के बुद्ध विहार <p>नम्रता बुद्धविहार- कोलर रोड</p><p>करुणा बुद्धविहार- पञ्चशील/अम्बेडकर नगर</p><p>प्रबुद्ध बुद्धविहार- चार इमली </p><p>अशोक बुद्धविहार- अन्नानगर/हबीबगंज </p><p>हबीबगंज बुद्धविहार-</p><p>बुद्धभूमि बुद्धविहार- चुना भट्टी</p><p>पण शील नगर बुद्ध विहार- 2</p><p>अम्बेडकर नगर बुद्ध विहार- 2 </p><p> </p><p><br /></p>Amrithttp://www.blogger.com/profile/08225251080476685661noreply@blogger.com0