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Thursday, August 25, 2011

पूजा और फूल

          बहुतों को मैंने सबेरे-सबेरे उठ कर हाथ में लम्बी-सी लकड़ी ले सडक-किनारे-किनारे दूसरों की बाड़ी और बगीचे के फूल तोड़ते देखा हैं.शायद वे घर या मन्दिर में पूजा के लिए फूल इकट्ठा करते हैं.मुझे इतराज उनकी पूजा पर नहीं है,क्योंकि हरेक को ये अधिकार है कि आप चाहे जैसी और जितनी लम्बी पूजा कर  सकते हैं.हाँ, मुझे एतराज उनके फूल तोड़ने के तरीके पर जरुर है.आखिर आप अपने घर की बाड़ी /बगीचे में भी तो फूल ऊगा सकते हैं ?
        एक मेरे साथी हैं.वह मेरी ही तरह पेशे से इंजिनियर है.वे बड़ी लम्बी पूजा करते हैं. यही कोई आधा घंटा. वह भी कम-से.हम दोनों साथ-साथ में ड्यूटी जाते थे क्योंकि,उस वक्त एक ही गाड़ी शेयर कर रहे थे.क्वार्टर से निकल पहले मन्दिर जाते और फिर पावर-हॉउस.मन्दिर में जाने के पहले गाड़ी रोक कर हम कुछ फूल जरुर इकट्ठा कर लेते.मंदिर में वे पूजा करते और मैं गाड़ी में बैठ कर साहब का इन्तजार करता.आधे घंटे में वे माथे पर टीका और हाथ में प्रसाद लेकर आते.मैं प्रसाद लेता और रास्ते में नारियल और मीठी तिरंजी का स्वाद लेते रहता.हम काफी लम्बे अरसे तक  एक-साथ रहे. मगर,न उन्होंने मुझे टोका और न ही मैंने उन्हें.आपको जान कर ताज्जुब होगा की हम लम्बे समय तक गाड़ी ही नहीं क्वार्टर भी शेयर करते रहे. 
            साहब इंजिनियर है.उनका तकनीकी ज्ञान विशद है.चूँकि,पूजा का मामला है.और हमारे देश में पूजा पर्सनल है.आप किसी की पूजा या उस में लगने वाले समय पर कमेंट्स नहीं कर सकते.कुछ चीजे बहुत निजी होती है.हमारे देश में पूजा बहुत निजी है.वह नितांत व्यैक्तिक है.ड्यूटी के समय कोई नमाज अदा करने गया हो तो इस बात का नोटिश लेना अव्यवहारिक होगा.ड्यूटी-प्लेस में दुर्गा या हनुमान जी का फोटो लगाना आपकी आस्था का मामला है.मशीन कई दिनों से बंद है और उसे चालू करना है तो आपको पहले पूजा करनी होगी. एक बार इसी तरह की पूजा में HOD होने के नाते पंडित मुझे पूजा में बैठने का आग्रह करने लगा.बड़ी मुश्किल से मैं कोई आवश्यक कार्य होने की बात कह टाल सका. ऐसे समय पूजा में बैठे बड़े साहब के सामने सिचुअशन बड़ी आड हो जाती है.एक दूसरे हमारे साहब, पूजा के दौरान अगरबत्ती लगा कर आँख बंद किये हुए हाथ जोड़े इतने देर खड़े रहते हैं कि कई लोगों के पैर थरथराने लगते है.
        पूजा का समय होता है, प्रात: 8 से 9 बजे के बीच.यह समय बड़ा क्रिटिकल होता है,.साहब के लिए नहीं,लोगों के लिए.मेम छूटते ही कह देती हैं कि साहब, पूजा में हैं.गोया कि आप प्रात: 8 से 9 बजे के बीच
साहब से बात नहीं कर सकते.कितना भी जरुरी काम हो,आपको इस काल-खंड को बड़े धैर्य से पास करना होगा
          पूजा में नारियल और फूल जरुरी हैं.इन दोनों के बिना पूजा हो ही नहीं सकती.नारियल सडा भी निकल जाये तो कोई बात नहीं मगर, फूलों का ताजा होना जरुरी है.एक दिन   प्रात: भ्रमण के दौरान मैंने एक फूल तोड़ने वाले से पूछा-
"तुम ये फूल एक ही जगह से इकट्ठा क्यों नहीं करते ? क्यों अलग-अलग पेड़ों से तोड़ते हो ?
"सर,दूसरे-दूसरे पेड़ों से फूल इकट्ठा कर भगवान् को भोग लगाने में ज्यादा पुण्य मिलता है."-उसने मेरे ज्ञान में वृध्दि की.

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