Pages

Monday, November 21, 2011

बुद्ध भूमि महाविहार नागपुर(Budhd Bhoomi Mahavihar)

 पिछले दिनों मार्च 2011  में जब हम लोग नागपुर गए थे तो बुद्ध भूमि महाविहार भी गए थे. यह विहार नागपुर के आउटर में कामठी रोड पर स्थित है. यह डा. भदंत आनंद कौशल्यायन के द्वारा संचालित किया जा रहा था. मगर अब  उनके महा परिनिर्वाण के बाद भी यह उसी तरह संचालित किया जा रहा है, जैसे कि उनके जीवित अवस्था में संचालित किया जा रहा था. हमें वहां छोटे-छोटे चीवरधारी बच्चें अध्ययनरत  मिले.भंते जी का सपना था कि भारत को बौद्धमय बनाना है, जैसे की बाबा साहेब डा. आम्बेडकर की सोच थी, तो कुछ बच्चों को शुरू से ही इस पुनित कार्य में लगाना होगा.बच्चें विहार में रहे. बुद्ध विहार की मेनेजमेंट कमेटी  उनके रहने और खाने-पीने का बंदोबस्त करे.
       बच्चों को शुरू से ही संस्कारित करना उस नींव की तरह है, जो मजबूती के साथ खड़ी रहती है.धम्म प्रचार का यह ठोस उपाय है- भंते जी की सोच थी. धम्म के कार्य में रूचि रखने वाले साधारण गृहस्थ भी चीवर धारण करते हैं.मगर, बच्चें जो शुरू से ही धम्म-कार्य में संस्कारित होते हैं, वे अंत तक पूरे  मनोयोग से यह कार्य करते हैं.
      हम चीवर धारी बच्चों से इंटरेक्ट हुए. वे काफी प्रसन्न लग रहे थे. मुझे लगा कि उनकी सुख-सुविधा का ठीक ध्यान रखा जा रहा है. विहार के कई कमरों में बच्चों के आवास और खान-पान की व्यवस्था की जाती है.विहार परिसर के ही लम्बे-चौड़े प्रागण में दीक्षा-भूमि की शैली में भव्य स्तूप-नुमा कन्स्ट्रशन किया जा रहा है.मुख्य सडक मार्ग पर ही बड़ी-सी गेट है. जिससे आप बुद्ध भूमि महा विहार परिसर में प्रवेश करते हैं. कन्स्ट्रशन वर्क्स को देखने से लगता है की कार्य लम्बे समय से पेंडिंग है.
        मैंने देखा है की बुद्ध विहार के निर्माण कार्यों में पैसे की कमी एक बड़ा मसला है.हम देखते हैं की बाबा साहब के अनुयायियों की, ज्यादा से ज्यादा यह दूसरी पीढ़ी है. ये ठीक है की कुछ लोग नौकरी में आ गए हैं.मगर अभी भी करीब 70 % लोग कम-या ज्यादा उसी स्थिति में है जिन्हें रोजी-रोटी के लाले हैं. अब बेचारे वे बुद्ध विहार बनाने में कैसे मदद करे ? हिन्दू उन्हें मदद करते नहीं है जबकि 100%  दलित समाज के लोग, हिन्दू मन्दिर बनाने में मदद करते हैं-तन से, मन से और धन से.

No comments:

Post a Comment