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Wednesday, July 17, 2013

क्या दलित-आदिवासियों के धर्मान्तरण के पीछे भय और लालच है ?

क्या दलित-आदिवासियों के धर्मान्तरण के पीछे भय और लालच है ?
भय और लालच से अगर कोई धर्मांतरण करता है तो यह अनुचित है, इस तरह के विचार 'राष्ट्रीय एकता समिति' द्वारा मानस भवन श्यामला हिल्स भोपाल में आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए  गए (दैनिक भाष्कर 17 जुला 2013 ).
 विदित हो कि कुछ ही दिनों पहले शिवराज सिंह सरकार द्वारा दलित-आदिवासियों के धर्मांतरण के विरुद्ध   म प्र धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2013  पारित कराया गया है. पारित कराने के दिन से ही जिस तरह विधेयक का तीव्र विरोध किया जा रहा है, को देखते हुए आर एस एस और भाजपा के लिए यह जरुरी था की वे इस तरह की संगोष्ठियाँ आयोजित करा कर डेमेज कंट्रोल करे.
संगोष्ठी के अध्यक्ष आर डी शुक्ला, सञ्चालन समिति के उपाध्यक्ष रमेश शर्मा आदि के अनुसार प्रदेश के झाबुआ जैसे पिछड़े जिलों में अनुचित तरीकों से धर्मांतरण करने की शिकायतें मिलती रहती हैं.
-सवाल न. 1:  कि शुक्ला और शर्मा ही क्यों होते हैं इस तरह की संगोष्ठियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ?  आखिर, इन संगोष्ठियों के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष मरकाम या परतेती क्यों नहीं होते ?
-सवाल न. 2: धर्म स्वातंत्र्य विधेयक के विरोध को काउंटर करने के लिए आर एस एस और भाजपा के लोगों को  'राष्ट्रीय एकता समिति' के बेनर तले क्यों आगे आना पड़ा ? क्या दलित-आदिवासियों के धर्मान्तरण से  देश की राष्ट्रीय एकता को खतरा है ? और अगर खतरा है तो इसके डेमेज कंट्रोल का ठेका शुक्ला और शर्मा को ही क्यों है ?   शुक्ला और शर्मा जो देश की जनसंख्या के मात्र 3%  है और जिनकी बिरादरी, वृहत्तर  हिन्दू  समाज  को 6,000 से अधिक  उंच-नीच की गैर बराबर जातियों में बांटने के लिए जिम्मेदार है, किस तरह राष्ट्रीय एकता के  स्वयंभू  ठेकेदार बन सकते हैं ? 
 सवाल न 3 - क्या धर्म भय और लालच से बदला जा सकता है ? डा आम्बेडकर जिसे खुद भाजपा के लोग प्रात: वन्दनीय महापुरुषों की श्रेणी में रखते हैं,  उन्हें प्रखर देशभक्त करार देते हैं और उनका फोटो ले कर रथ यात्रा निकालते हैं, ने इसका कड़ा प्रतिवाद किया है. डा आंबेडकर, जिन्होंने सन 1956  में हजारों/लाखों अपने अनुयायियों के साथ आर एस एस के हेड क्वार्टर नागपुर में ही बौद्ध धर्म अपनाया था, को खुद ये राष्ट्रीय एकता के ठेकेदार देश-भक्ति का अनुपम उदाहरण मानते हैं. अगर यह सच है तो दलित-आदिवासियों के धर्मान्तरण से राष्ट्रीय एकता को कैसे खतरा है ? 
 सवाल न. 4, दलित आदिवासियों के धर्मान्तरण से तथाकथित राष्ट्रीय एकता अर्थात हिन्दू धर्म को किस तरह खतरा है ? और अगर मान लिया जाए कि खतरा है तो जो कारण दलित-आदिवासियों के धर्मान्तरण के लिए जिम्मेदार हैं , उन्हें दूर क्यों नहीं किया जाता ? अगर उन जातिय अपमानों को दलित-आदिवासी अन्य धर्मों में नहीं पाते और वे वहां अपना आत्म-सम्मान को रिकाग्नाइज्ड करते हैं तो जीने के उनके इस  मौलिक अधिकार को आप अपने जातिय/वर्ग हित के लिए किस तरह प्रतिबंधित कर सकते हैं?

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