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Tuesday, April 30, 2019

गोंडी भाषा

गोंडी भाषा:
अभी कुछ समय पूर्व हमारे आदिवासी बंधुओ ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को मेमोरेंडम सौंप कर 'गोंडी भाषा' को तीसरी भाषा के रूप में पढाये जाने की जो वकालत की है, यह अनुकरणीय और अभिनंदनीय है.
सनद रहे, गोंडी भाषा, जो अब तक सिर्फ बोली जाती रही, की लिपि बना ली गई है. इसके शब्दकोष और अन्य पाठ्य-पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं. प्रयास रहे, कि कम-से-कम आदिवासी बच्चे अनिवार्यत:गोंडी भाषा पढ़ें, ठीक वैसे ही जैसे ईसाई मिशनरी स्कूलों में अंग्रेजी, गुरुद्वारों के स्कूलों में गुरुमुखी, मदरसे में उर्दू पढायी जाती है.
प्रत्येक समाज का इतिहास होता है, महापुरुष होते हैं. समाज की संस्कृति होती है, भाषा होती है. संविधान ने प्रत्येक सांस्कृतिक-सामजिक इकाई को यह अधिकार दिया है कि वे अपने शैक्षणिक संस्थान खोले और अपने इतिहास और सस्कृति को सुरक्षित रखें. क्योंकि, शैक्षणिक संस्थान; भाषा, संस्कृति और सामाजिक पहचान को जीवित रखने का अनुत्तर साधन है. इसी संवैधानिक प्रावधान के तहत अल्पसंख्यक अपने अपने शिक्षा-संस्थान संचालित करते हैं.

धर्मयुद्ध


धर्मयुद्ध
तेज बहादूर यादव जंग लड़ तो रहे हैं, किन्तु क्या वे इस लायक है ? सपा-बसपा ने दांव तो लगा दिया है किन्तु क्या वे इसकी गंभीरता समझते हैं ? पूर्व BSF जवान के वीडियो सस्पेंस पैदा करते हैं ?
यह बिलकुल सही है कि कांग्रेस को मैदान से हट जाना चाहिए. क्योंकि, अब यह जंग 'रिवेंजर' के जैसे सिर्फ उत्तेजना से देखने की नहीं रह गयी है. मोदी विरोधियो के लिए यह जंग पीएम मोदी के शब्दों में 'घर में घुस कर मारने' के हद तक पहुच गई है.
बेगुसराय के बाद सचमुच अब वाराणसी, 'धर्मयुद्ध' बन गया है. देश की जनता और मीडिया को भोपाल में प्रज्ञा ठाकुर को और वाराणसी में तेज बहादूर यादव का धन्यवाद अदा करना चाहिए कि इन्होने अपनी-अपनी वजह से इस चुनावी जंग को 'धर्मयुद्ध' बना दिया है.

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता


चुनाव आयोग की विश्वसनीयता
BSF के पूर्व सैनिक तेज बहादूर यादव को, चुनाव आयोग ने इसलिए 'अयोग्य' घोषित नहीं करना चाहिए कि उन्हें सेना के 'कोर्ट ऑफ़ मार्शल' ने बर्खास्त किया गया था. क्योंकि कम-से-कम प्रज्ञा ठाकुर की तरह वे किसी आतंकवादी घटना के आरोपी नहीं है. दूसरे, उन्होंने केंटिन में सैनिकों को दिए जाने वाले भोजन की क्वालिटी पर सवाल खड़ा किया था, जो सैनिकों को भोजन सम्बन्धी सुविधाओं से अभिप्रेरित है, न कि सेना के प्रति अपनी इन्टेग्रिटी पर.

Monday, April 29, 2019

मेरिट, माई फुट

मेरिट, माई फुट 
जो लोग 'मेरिट' के नाम पर ऊलुल-जलुल तर्क दिया करते थे, 10% रिजर्वेशन पा कर खामोश हैं ? हमें रामविलास पासवान जैसे मोदी भक्त दलित नेताओं का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि दलित-सवर्णों के बीच जारी एक अंतहीन खुनी संघर्ष को एक झटके से निपटा दिया !

भिक्खु-संघ

भिक्खु-संघ
यह सही है कि अधिकांश भिक्खु विनय-पालन में प्रमाद करते हैं और यही कारण है कि उनके प्रति लोगों के आदर-भाव में उत्तरोत्तर कमी हो रही है. परन्तु इसके लिए हम भी कम जिम्मेदार नहीं हैं ?
धम्म-प्रचार, भिक्खु का धर्म है. किन्तु यह सरलता व सहजता से कर सकें, क्या हम यह सुनिश्चित करते हैं ? अंतत: भिक्खु समाज पर आश्रित है. बदली हुई परिस्थितियों में उसे कैसे रहना चाहिए ? क्या हमने इस पर विचार किया है, तत्संबंधित नियम बनाए हैं ? और, उन नियमों का क्रियान्वयन सुनिश्चित किया है ? यह ठीक है कि विनय सम्बन्धी नियम बनाना भिक्खु-संघ का कार्य है, वे नियम पालन किए जा रहे हैं या नहीं, यह देखना भी भिक्खु-संघ का कार्य-क्षेत्र है. किन्तु भिक्खु-संघ अंतत: समाज पर ही तो निर्भर है न ?
भिक्खुओं की रहनी-गहनी पर उंगली उठाना सरल है. गलतियाँ हो सकती हैं. विनय को लेकर बुद्ध के ज़माने से विवाद होते रहे हैं. जरुरत है, समाधान खोजने की. हम उंगली उठा कर अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते ?

मैं हैरान हूँ : महादेवी वर्मा

प्रभु दयाल की पोस्ट-
मैं हैरान हूँ "* --
मैं हैरान हूं यह सोचकर, 
किसी औरत ने क्यों नहीं उठाई उंगली ?
तुलसीदास पर ,जिसने कहा,
"ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।"
मैं हैरान हूं,
किसी औरत ने
क्यों नहीं जलाई 'मनुस्मृति'
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियां ?
मैं हैरान हूं ,
किसी औरत ने क्यों नहीं धिक्कारा ?
उस ‘राम’ को
जिसने गर्भवती पत्नी सीता को ,
परीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर से बाहर
धक्के मार कर ।
किसी औरत ने लानत नहीं भेजी
उन सब को, जिन्होंने
औरत को समझ कर वस्तु
लगा दिया था दाव पर
होता रहा ‘नपुंसक’ योद्धाओं के बीच
समूची औरत जाति का चीरहरण ?
महाभारत में ?
मै हैरान हूं यह सोचकर ,
किसी औरत ने क्यों नहीं किया ?
संयोगिता अंबा-अंबालिका के
दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध
आज तक !
और मैं हैरान हूं ,
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना ‘श्रद्धेय’ मानकर
पूजती हैं मेरी मां-बहने
उन्हें देवता-भगवान मानकर ?
मैं हैरान हूं,
उनकी चुप्पी देखकर
इसे उनकी सहनशीलता कहूं या
अंध श्रद्धा, या फिर
मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा ?
---------------------------
महादेवी वर्मा जी की यह कविता, किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं रखी गई है, क्यों कि यह भारतीय(तथाकथित आदर्श मनुवादी) संस्कृति पर गहरी चोट करती है ?

Saturday, April 27, 2019

देश की सुरक्षा

देश की सुरक्षा 
एक लारी ड्राइवर कहीं पर आतंकवादियों को देखने की पुलिस थाने में खबर देता है. इसे बिना जाँच-परख किए सुरक्षा में सन्नद्ध हमारी सुरक्षा एजेंसिया राज्यों को आवश्यक सुरक्षा सम्बन्धी एडवायजरी जारी करती है. कुछ समय बाद वह ड्राइवर 'सिरफिरा' निकलता है. यह है हमारे देश की 'सुरक्षा' का हाल, जिसका बखान दिन-रात मोदीजी करते हैं ?

जातिगत घृणा

जातिगत घृणा
जातिगत घृणा आरोपित है. इसमें हिनता की कोई बात नहीं है. महार, चमार, भंगी आदि घृणास्पद शब्द नहीं हैं. घृणा इन जातियों से जोड़ दी गई है. ऊँच-नीच की घृणा आरोपित है. घृणा इन जातियों से चिपका दी गई है. और, कालांतर में ये जातियां, घृणा की पर्यायवाची बना दी गई। सवाल है कि ये जातियां क्या करें ?
दलितों के मसीहा बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने इसका तोड़ दे दिया है. और वह है, उच्च शिक्षा और धर्मांतरण। निस्संदेह, डॉ अम्बेडकर के आन्दोलन की वजह से इन जातियों ने गंदे व्यवसायों को त्याग दिया है और उच्च शिक्षा प्राप्त कर उस आरोपित घृणा को नकार दिया है.

सनद रहे, इस सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन में, दलितों के बौद्ध-धर्मांतरण ने एक महत्ती भूमिका निभायी है. आप बुद्धिज्म को अपना कर एक तरह जहाँ अवैज्ञानिक बातों को त्याग कर वैज्ञानिक सोच विकसित करते हैं, वहीँ दूसरी तरफ अपनी जड़ों और परम्पराओं(अवैदिक संस्कृति) से भी जुड़े रहते हैं.

Vipassana: Dr, Ambedkar's Warning

Dr, Ambedkar's Warning
In regards to the preparation of Buddha's gospel, care must be taken to emphasis the social and moral teachings of the Buddha. I have to emphasis this, what is emphasized, is meditation, contemplation and Abhidhamma. This way of presenting Buddhism to Indian, would be fatal to our cause(Dr. Babasaheb Ambedkar; Memorandam to Buddhist Sasana Council of Burma Govt)..

Friday, April 26, 2019

पालि सवणीया।

पालि बुद्ध वचनं

पालि, भगवा वाचा।
पालि, ति-पिटकं  भासा।
पालि, बुद्ध वाणी।
पालि, अम्हाकं संखारं भासा।

पालिं सिक्खणं।
अतीव सरलं।

सिसु, आरम्भे
परिवार जनानं भसितं सुणोति।
अनुकम्मेन सो भासितुुं पयतति।
सवणं, भासा सिक्खणस्स पठमं सोपानं।

सिसु, सरल सद्दानं वुच्चारणं करोति।
अम्हे अपि आरम्भे, सरल सद्दानं भासनीयं।
भासनंं,  भासा सिक्खणस्स दुतियं सोपानं।

सिसु वड्ढति, बालको भवति
बालको, पाठसालायं गच्छति।
तत्थ सो लिपि सिक्खति,
पाठं लिखति।
लेखनं, भासा सिक्खणस्स ततियं सोपानं।

लिपि सिक्खित्वा
सो पाठं पठति।
पठनं, भासा सिक्खणस्स
चतुत्थं सोपानं।

अम्हे अपि,
वारं वारं पालि भसितं सवणीयं।
पालि-वाक्यं भासनीयं।

वारं वारं सवणेन,
पालि सद्द-सागरो भवति ।
वारं वारं भासणेन,
भासा पभावकारी होति।

पालि भासा भासनीया
पालि भासा सवणीया।

पालि अम्हाकं भासा।
पालि भगवा भासा।

असोक काले,
पालि रट्ठ भासा आसि।
जना पालि भसितन्ति, वदन्ति।

पालि, बहु सरला भासा।
पालि, बहु मधुरा भासा।

पालि भगवा वाणी।
पालि ति-पिटकं वाणी ।
पालि भासनीया
पालि सवणीया।

विपस्सना

विपस्सना
भारतीय परिप्रेक्ष्य में विपस्सना गैर-जरुरी और भ्रामक है। यह न केवल बुद्ध के वैज्ञानिक सोच को  डॉयलुट करता है वरन क्रांतिकारी  'अम्बेडकर विचारधारा और चिंतन' की हत्या करता है.
क्योंकि-
1- विपस्सना के भारतीय प्रचारक गोयनकाजी, विपस्सना को बुद्ध से जोड़ते हैं, जो गलत है. बुद्धिज़्म पर शोध परक और प्रमाणिक ग्रन्थ  बाबा साहब अम्बेडकर कृत  'बुद्ध एंड धम्मा' से ऐसा कुछ प्रमाणित नहीं होता। इसके विपरीत, इस ग्रन्थ में विपस्सना को बुद्ध के नाम जोड़ने और प्रचारित करने की भर्त्सना ही की गई है।

2- गोयनकाजी, बुद्ध जीवन सम्बंधित प्रमुख घटनाओं को- चाहे जन्म सम्बन्धी हो, अभिनिष्क्रमण या धम्मचक्कपरिवत्तन अथवा महापरिनिब्बाण;  बाबासाहब अम्बेडकर के उलट अवैज्ञानिक,  दैविक और संयोगात्मक घटनाओं से विश्लेषण करते हैं।

3. बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने भारतीय संविधान के साथ-साथ अपने कालजयी ग्रन्थ 'बुद्धा एंड धम्मा' में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया है। गोयनकाजी, इसके उलट जातक कथाओं पर आधारित काल्पनिक और मनगढ़ंत घटनाओं को बुद्ध से जोड़कर अवैज्ञानिक धार्मिक सोच और चिंतन को बढ़ावा देते हैं।

4- बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने बुद्ध को, उनके दर्शन को 'सामाजिक मुक्ति' के सन्दर्भ में ग्रहण किया था। उन्होंने धम्म को व्यक्ति से कहीं अधिक समाज के लिए जरुरी बतलाया था। गोयनकाजी, इसके उलट, बुद्ध को 'अध्यात्मिक मुक्ति' का मार्ग मानते हैं।

5- बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने बुद्ध को भारतीय संस्कृति और परम्पराओं(अवैदिक संस्कृति) के सन्दर्भ में देखा था। इसके उलट गोयनकाजी, बुद्ध और उनकी परम्पराओं को विदेशों से आयात करते हैं, जो स्थानीय संस्कृति और परम्पराओं से संपृक्त है और जहाँ कालांतर में 'हिन्दू संस्कृति' हावी हुई है। विपस्सना भी उन में से एक है. दूसरे शब्दों में, विपस्सना हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार है।  - अ ला ऊके  @amritlalukey.blogspot.com

Thursday, April 25, 2019

ग्लेमर

ग्लेमर
'इंटरव्यू' हो या 
'बनारस का रोड शो'
स्वभाव-जन्य 
सरलता का 
दूर दूर तक अभाव 
कृतिमता
हर चेहरे पर
उदघोष करती है
पीएम के
विजय रथ का !

इंटरव्यू

इंटरव्यू
मोदी बायोपिक' को परदे पर दिखाए जाने की परमिशन न देने की सूचना चुनाव आयोग ने पहुंचा दी थी और इस की भरपाई के रूप में मीडिया ने फ़िल्मी एक्टर अक्षय कुमार के द्वारा मोदीजी का 'गैर राजनैतिक इंटरव्यू' करा कर फ़िल्मी बाजे-गाजे के साथ परदे पर उतार दिया. न चुनाव आयोग को प्राब्लम और न जनता को ?

विकृत व्यवस्था

वे 
थूकते थे
उन पर,
उनकी व्यवस्था पर
इसलिए
उन्होंने
बांध दिए गाळगे
उनके मुंह पर

न हो 
अपवित्र
कोई जनेऊ-धारी 
इसलिए,
उन्होंने 
बाँध दिया था झाड़ू
उनकी कमर पर

परन्तु,  
सैकड़ों वर्षों बाद 
आज भी
देख कर 
लगाते झाड़ू
उन्हें
सड़क पर
मुझे लगा, जैसे
व्यवस्था के सीने को
नाखूनों से खरोच रहे हो.

बीजेपी विरोधी बंटते वोट

बीजेपी विरोधी बंटते वोट
हमारे लोग बीजेपी को हराने लम्बी-लम्बी बातें करते हैं किन्तु बीजेपी विरोधी वोटों को बांटने के भी अधिकाधिक प्रयास करते हैं ? कुछ लोग तो भले ही उन्हें अपने परिवार और मोहल्ले के वोटों से संतोष करना पड़े, चुनाव में खड़े होते हैं. मकसद प्रचार और खुद को राजनीति में उतारने का हो सकता है. किन्तु, इन तमाम प्रयासों से बीजेपी विरोधी वोट तो बंटते ही हैं ?
दरअसल, आजकल जीत के लिए चुनाव-मेनेजमेंट अधिक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो चला है. फसल, बोने से कहीं अधिक उसे घर में लाना महत्वपूर्ण है. बूथ मेनेजमेंट जितना प्रभावकारी होगा, जीत की सुनिश्चिन्तता उतनी ही अधिक होगी.

Wednesday, April 24, 2019

होति तथागतो परं मरणा’’ति?


एकं समयं आयस्मा च महाकस्सपो आयस्मा च सारिपुत्तो बाराणसियं विहरन्ति इसिपतने मिगदाये। अथ खो आयस्मा सारिपुत्तो सायन्ह समयं पटिसल्‍लाना वुट्ठितो येनायस्मा महाकस्सपो तेनुपसङ्कमि; उपसङ्कमित्वा आयस्मता महाकस्सपेन सद्धिं सम्मोदि। सम्मोदनीयं कथं सारणीयं वीतिसारेत्वा एकमन्तं निसीदि। एकमन्तं निसिन्‍नो खो आयस्मा सारिपुत्तो आयस्मन्तं महाकस्सपं एतदवोच-
‘‘किं नु खो, आवुसो कस्सप, होति तथागतो परं मरणा’’ति? ‘‘अब्याकतं खो एतं, आवुसो, भगवता।"
‘‘किं पनावुसो, न होति तथागतो परं मरणा’’ति
‘‘एवम्पि खो, आवुसो, अब्याकतं भगवता। "
‘‘किं नु खो, आवुसो, होति च न च होति तथागतो परं मरणा’’ति? ‘‘अब्याकतं खो एतं, आवुसो, भगवता।"
‘‘कस्मा चेतं, आवुसो , अब्याकतं भगवता’’ति
‘‘न हेतं, आवुसो, अत्थसंहितं नादि विसुद्धचरियकं न निब्बिदाय न विरागाय न निरोधाय न उपसमाय न अभिञ्‍ञाय न सम्बोधाय न निब्बानाय संवत्तति। तस्मा तं अब्याकतं भगवता’’ति।
‘‘अथ किञ्‍चरहावुसो, ब्याकतं भगवता’’ति
‘‘इदं दुक्खन्ति खो , आवुसो, ब्याकतं भगवता; अयं दुक्खसमुदयोति ब्याकतं भगवता; अयं दुक्खनिरोधोति ब्याकतं भगवता; अयं दुक्खनिरोधगामिनी पटिपदाति ब्याकतं भगवता’’ति। 
‘‘कस्मा चेतं, आवुसो, ब्याकतं भगवता’’ति
‘‘एतञ्हि, आवुसो, अत्थसंहितं एतं आदि विसुद्धचरियकं एतं निब्बिदाय विरागाय निरोधाय उपसमाय अभिञ्‍ञाय सम्बोधाय निब्बानाय संवत्तति। तस्मा तं ब्याकतं भगवता’’ति। द्वादसमं।

अंतर्जातीय विवाह: एक बड़ा झोल

अंतर्जातीय विवाह
जाति-पांति तोड़ने के लिए अंतर्जातीय विवाह बहुत ही सार्थक हैं. किन्तु इसके अपने दोष भी हैं. हमारे शीर्षस्थ दलित नेता बाबासाहब डॉ अम्बेडकर का अनुकरण करते हुए जात-बिरादरी के बाहर शादी तो कर लेते है, किन्तु इससे उनके किचन में हमारी पहुँच ख़त्म हो जाती है !
अंतर्जातीय विवाह का यह बड़ा झोल है. अगर हमारे लोग किचन तक नहीं जा पाएंगे तो नीतिगत फैसलें तो वहीँ होते हैं न ? यदि हम डॉ अम्बेडकर और महामना ज्योतिबा फुले को देखें तो दोनों के किचन में भारी फेर दिखता है. बाबासाहब जहाँ अकेले दिखते हैं, वहीँ सावित्री बाई अपने पति के हर कदम पर कंधे से कन्धा मिलाते दिखती है। 

बीजेपी और इवीएम

बीजेपी और इवीएम
क्या कारण है कि हम से तकनीकी रूप से अधिक संपन्न देश इवीएम का प्रयोग नहीं करते ? क्या कारण हैं कि चुनाव आयोग इवीएम का लगातार बचाव करता है ? क्या कारण है कि बीजेपी भी इवीएम की पूरी ताकत से वकालत करती है ?
जो पार्टी सदियों पुरानी सड़ी-गली परम्पराओं का बचाव करती है, वही, आधुनिक तकनीक से युक्त मशीन का बचाव करती है ? साफ है, कहीं तो झोल है ?

प्रधानमंत्री का इंटरव्यू

प्रधानमंत्री का इंटरव्यू
मीडिया चेनलों ने चुना फ़िल्मी एक्टर अक्षय कुमार को मोदीजी का इंटरव्यू लेने ? प्रतीत होता है, मोदीजी की अपेक्षा अक्षय कुमार को प्रचार की अधिक पड़ी है. चुनावी माहौल में कई आलोचनाओं/ विवादों में घिरे मोदीजी का अक्षय कुमार से इंटरव्यू एक सोचा-समझा पब्लिसिटी स्टंट है. क्या अच्छा होता, अक्षय कुमार के स्थान पर प्रसून बाजपेयी स्तर के कोई पत्रकार मोदीजी से सवाल-जवाब करते ? कड़े और ज्वलंत सवालों से बच कर जनता को फ़िल्मी चका-चौंध में उलझाए रखना मोदीजी जानते हैं ?

Tuesday, April 23, 2019

उदितराज प्रहसन

उदितराज प्रहसन
यह सच है कि उदित राज ने दलित-विमर्श के लिए काम किया. यह भी सच है कि दबी जुबान से ही सही, एकाध समय पर उन्होंने स्टेंड भी लिया. मगर यह भी सच है कि वे पार्टी खर्च चलाने के नाम पर बिक गए और फिर, बिकते चले गए. हम जैसे उनके शुभ चिंतकों को भारी पीड़ा हुई. उन्हें अपनी भूल सुधार करने लाख हिदायतें दी गई, किन्तु बिका आदमी देर-सबेर अपना मोल भी भूल जाता है.
बहरहाल, देर आयद, दुरुस्त आयद. उन्हें शीघ्र सदबुद्धि का लाभ हो.

ईश्वर की खोज:राहुल सांकृत्यायन:

ईश्वर की खोज
अज्ञान का दुसरा नाम ईश्वर है। हम अपने अज्ञान को साफ स्वीकार करने में शर्माते है। अतः उसके लिए संभ्रांत नाम 'ईश्वर' ढूँढ निकाला गया है। ईश्वर विश्वास का दूसरा कारण मनुष्य की असमर्थता और बेबसी है।
अज्ञान और असमर्थता के अतिरिक्त यदि और कोई भी आधार ईश्वर विश्वास के लिए है, तो वह है धनिको और धूर्तो की अपनी स्वार्थ रक्षा का प्रयास। समाज मे हो रहे हजारों अत्याचारों और अन्यायों को वैध साबित करने के लिए उन्होने ईश्वर का बहाना ढूँढ निकाला है। धर्म की धोकाधड़ी को चलाने के लिए और उसे न्यायपूर्ण साबित करने के लिए ईश्वर का खयाल बहुत सहायक है(राहुल सांकृत्यायन: तुम्हारी क्षय,  पेज 17)

आतंक

आतंक
आतंक के मूल में असुरक्षा की भावना है. आदमी स्वभाव-वश क्रूर नहीं है, असुरक्षा की चिंता ही उसे क्रूरता की हद तक ले जाती है. समाज, जहाँ वह रहता है, से अगर सुरक्षित महसूस करें तो उसे आतंक पैदा करने की जरुरत ही न पड़े. दरअसल, कमजोर व्यक्ति ही आतंक का सहारा लेता है.
व्यक्ति हो या देश, अगर वह आतंक पैदा करता है अथवा आतंक को समर्थन देता है, निस्संदेह वह किसी असुरक्षा से भयभीत है. हमें इस तारतम्य में बुद्ध का शांति सन्देश आतंक को निर्मूल करने आश्वस्थ करता है. 'वैर से वैर कभी शांत नहीं होता', इस दिशा में मार्ग प्रशस्त करता है.
बलशाली व्यक्ति को चाहिए कि वह कमजोर व्यक्ति का सम्मान करें. 'जिओ और जीने दो' पर अमल करे. नैतिकता का प्रदर्शन न कर उसे व्यवहार में लाए.

उ. प्र. का फार्मूला

उ. प्र. का फार्मूला
'हिन्दू' दरअसल, लोगों को धार्मिक रूप से बेवकूफ बनाने का षडयंत्र है . तिलकादी के समय जिस ट्रिक से महाराष्ट्र में 'गणेश उत्सव' की खोज कर उसे हर नुक और कार्नर पर मनाने की प्रोग्रामिंग की गई, ठीक उसी ट्रिक पर कभी इस शब्द को गढ़ा गया था.
निस्संदेह, इस धार्मिक गोलबंदी के शिकार तेली, तम्बोली, महार, चमार, धोबी, मल्लाह बड़े जल्दी होते हैं ! ये ठीक हैं कि महारों और चमारों में बाबासाहब डॉ अम्बेडकर के तत्संबंधी राष्ट्रयापी आन्दोलन से सामाजिक चेतना जाग्रत हो चुकी है और वे अब इस चक्कर में नहीं पड़ते किन्तु पिछड़ा वर्ग जो इस 'हिन्दू' गोलबंदी का एक बड़ा लाट है, अभी भी पूरी तरह 'हिन्दू' अफीम की गिरफ्त में है !
आज, बहुत जरुरी है कि उ प्र वाला फार्मूला पूरे देश में बहन मायावती और अखिलेश यादव पूरी सिद्दत से लागू करें. अखिलेश एक पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं और अभी तक की पारिवारिक और प्रदेश की राजनीति ने उन्हें काफी परिपक्कव बना दिया है. हमें इस फार्मूले को अन्य प्रदेशों में सफल न होने का कोई कारण नहीं दिखाई देता.

तरुणावस्था

तरुणावस्था 
सुपिनाे
महासागरा. 

पक्खिनो 
विय डीयति
आकासे 
विचरति, 
रमति

पकती 
अतीव सुंदरा 
कीळति, 
पमोदति 
सतरंगी मोरा 
विय नच्चति. 

मन मोहना 
चित चंचला
झर झरा, 
निम्मळा
भम भमरा

जयजय भव
ता यस भव.

Monday, April 22, 2019

अवकुज्ज सुत्त

अवकुज्ज सुत्त
भिक्खुओ! संसार में तीन तरह के लोग होते हैं।
तयोमे भिक्खवे, पुरिसा संतो संविज्जमाना लोकस्मिंं ।
कौन-से तीन तरह के ?
कतमे तयो ?
औंधे घड़े जैसे प्रज्ञा वाला, तराजू के पल्ले जैसे प्रज्ञा वाला और सीधे घड़े जैसे प्रज्ञा वाला ।
अवकुज्ज पञ्ञो पुरिसो, उच्छंग पञ्ञो पुरिसो, पुथु पञ्ञो पुरिसो ।
भिक्खुओ! औंधे घड़े जैसा आदमी कैसा होता है ?
कतमो च भिक्खवे, अवकुज्ज पञ्ञो पुग्गलो ?
यहाँ,भिक्खुओं, कोई-कोई आदमी विहार जाता है,
इध, भिक्खवे,  एकच्चो पुरिसो आरामं गन्ता होति,
धम्म सवण करने के लिए भिक्खुओं के पास आता है।
भिक्खूनं सन्तिके धम्म सवणाय।
तस्स भिक्खू धम्मंं देसेन्ति,
भिक्खु उसको धम्म का उपदेश देते हैं,
आदि कल्याणं, मज्झ कल्याणं, परियोसान-कल्याणं सात्थं सव्यंजनं
आरम्भ में कल्याण कारी, मध्य में कल्याणकारी, अंत में कल्याणकारी अर्थ सहित, व्यंजन सहित
केवलपरिपुण्णं परिसुद्धं विसुद्धचरियं पकासेन्ति।
सम्पूर्ण रूप से पूर्ण, परिशुद्ध, विशुद्धचर्या के लिए प्रकाशित करते हैं।
वह आसन पर बैठा हुआ उस उपदेश को
सो तस्मिंं आसने निसिन्नो तस्सा कथाय
न आरंभ में ग्रहण करता है, न मध्य में ग्रहण करता है, न अंत में ग्रहण करता है।
नेव आदिं मनसि करोति, न मज्झं मनसि करोति न परियोसानं मनसि करोति।
उस आसन से उठने पर भी उस उपदेश को
वुट्ठितो अपि तम्हा आसना तस्सा कथाय
न आरंभ में ग्रहण करता है, न मध्य में ग्रहण करता है, न अंत में ग्रहण करता है।
नेव आदिं मनसि करोति, न मज्झं मनसि करोति न परियोसानं मनसि करोति।
भिक्खुओ, जैसे उलटे घड़े में डाला हुआ पानी गिर पड़ता है, ठहरता नहीं।
सेय्याथापि भिक्खवे, कुम्भो निक्कुज्जो तत्र उदकं आसि त्तंं विवट्ठति, नो संठाति।
भिक्खुओ, ऐसा आदमी औंधे घड़े जैसी प्रज्ञा वाला आदमी कहलाता है।
एवमेवं भिक्खवे, अयं वुच्चति अवकुज्ज पञ्ञो पुग्गलो।

कतमो च भिक्खवे उच्छंग पञ्ञो पुग्गलो ?
भिक्खुओ, तराजू के पल्ले जैसा आदमी कैसा होता है ?
इध, भिक्खवे,  एकच्चो पुग्गलो आरामं गन्ता होति,
यहाँ,भिक्खुओं, कोई-कोई आदमी विहार जाता है,
धम्म सवण करने के लिए भिक्खुओं के पास आता है।
भिक्खूनं सन्तिके धम्म सवणाय।
तस्स भिक्खू धम्मंं देसेन्ति।
भिक्खु उसको धम्म का उपदेश देते हैं
आदि कल्याणं, मज्झ कल्याणं--------विसुद्धचरियं पकासेन्ति।
आरम्भ में कल्याणकारी, मध्य में कल्याणकारी--------विशुद्धचर्या के लिए प्रकाशित करते हैं
वह आसन पर बैठा हुआ उस उपदेश को
सो तस्मिंं आसने निसिन्नो तस्सा कथाय
आरंभ में ग्रहण करता है, मध्य में ग्रहण करता है, अंत में ग्रहण करता है।
आदिंं मनसि करोति, मज्झं मनसि करोति, परियोसानं मनसि करोति।
उस आसन से उठने पर उस उपदेश को
वुट्ठितो अपि तम्हा आसना तस्सा कथाय
न आरंभ में ग्रहण करता है, न मध्य में और न अंत में।
नेव आदिं मनसि करोति, न मज्झं मनसि करोति न परियोसानं मनसि करोति।
जैसे भिक्खुओ, किसी आदमी के पल्ले में नाना प्रकार की खाद्य-वस्तुएं हों-
सेय्याथापि भिक्खवे, पुरिसस्स उच्छंगे नाना खज्ज कानि(खाद्य वस्तुएं)-
तिल हों, चावल हों, लड्डू हों, बेर हों
तिला तंडुला मोदका बदरा
उसके आसन से उठते ही असावधानी से वे बिखर जाए।
तम्हा आसना वुट्ठन्तो सति सम्मोसा पकिरेय्य।
भिक्खुओ, ऐसा आदमी तराजू के पल्ले जैसे प्रज्ञा वाला आदमी कहलाता है।
एवमेवं भिक्खवे, अयं वुच्चति उच्छंग पञ्ञो पुग्गलो।

कतमो च भिक्खवे पुथु पञ्ञो पुग्गलो ?
भिक्खुओ, बहुल प्रज्ञा वाला आदमी कैसा होता है ?
इध, भिक्खवे,  एकच्चो पुग्गलो आरामं गन्ता होति,
यहाँ,भिक्खुओं, कोई-कोई आदमी विहार जाता है,
भिक्खूनं सन्तिके धम्म सवणाय।
धम्म सवण करने के लिए भिक्खुओं के पास आता है।
उसे भिक्खु उपदेश करते हैं
तस्स भिक्खू धम्मंं देसेन्ति
आदि कल्याणं, मज्झ कल्याणं--------विसुद्धचरियं पकासेन्ति।
आरम्भ में कल्याणकारी, मध्य में कल्याणकारी--------विशुद्धचर्या के लिए प्रकाशित करते हैं
वह आसन पर बैठा हुआ उस उपदेश को
सो तस्मिंं आसने निसिन्नो तस्सा कथाय
आरंभ में भी ग्रहण करता है, मध्य में भी ग्रहण करता है, अंत में भी ग्रहण करता है।
आदिंं अपि मनसि करोति, मज्झं अपि मनसि करोति, परियोसानं अपि मनसि करोति।
उस आसन से उठने पर उस उपदेश को
वुट्ठितो अपि तम्हा आसना तस्सा कथाय
आरंभ में भी ग्रहण करता है, मध्य में भी ग्रहण करता है, अंत में भी ग्रहण करता है ।
आदिं अपि मनसि करोति,  मज्झं अपि मनसि करोति, परियोसानं अपि मनसि करोति।
जैसे भिक्खुओ, जैसे सीधे घड़े में डाला हुआ पानी उसमें ठहरता है, गिरता नहीं
सेय्याथापि भिक्खवे, कुम्भो उक्कुज्जो तत्र उदकं आसित्तं संठाति नो विवट्ठति
एवमेवं खो भिक्खवे, अयं वुच्चति पुथु पञ्ञो पुग्गलो।
इमे खो भिक्खवे, तयो पुग्गला संतो संविज्जमाना लोकस्मिं।
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 विवट्ठति - पीछे हटता है/दूसरी ओर जाता है/ नष्ट कर देता है। 

Sunday, April 21, 2019

देश की सुरक्षा

देश की सुरक्षा
व्यक्ति सुरक्षित है तो समाज सुरक्षित है. समाज सुरक्षित है तो गाँव सुरक्षित है. गाँव सुरक्षित है तो देश सुरक्षित है. क्योंकि, व्यक्ति से समाज, समाज से गाँव और गाँव से देश बनता है.
क्या यह सच नहीं है ? हमने गांधी दर्शन में ऐसा ही पढ़ा है. अगर आप इससे अलहदा राय रखते हैं तो यह आपकी मर्जी. मगर, तब अपने गले में गांधीजी की फोटो लगाने की क्या जरुरत है ?
आप व्यक्ति और समाज को नजरअंदाज कर देश की सुरक्षा का ढिन्डोरा नहीं पीट सकते ? देश के सुरक्षा का ढिन्डोरा पीटने के पहले समाज के प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह दलित हो, मुस्लिम अथवा कृश्चियन, की सुरक्षा आपको सुनिश्चित करनी होगी. उन्हें भय-रहित करना होगा और यह सुरक्षा का अहसास आपके पोर्टल से नहीं, उनके पोर्टल से आना चाहिए.

Thursday, April 18, 2019

समाज और संस्कृति

समाज और संस्कृति
किसी भी समाज की संस्कृति उसके संस्कारों में झलकती है. दरअसल, संस्कार अर्थात जीवन जीने का तरीका और बोल-भाषा ही उस समाज को चिन्हित करते हैं, परिभाषित करते हैं. संस्कार समाज की पहचान होते हैं. संस्कारों को संपन्न कराने की विधि होती है, उसका साहित्य होता है. साहित्य में जीवन, आचरण, संबोधन आदि के तरीके होते हैं और इन तरीकों से ही उस समाज की पहचान होती है.
बौद्ध समाज में आचरण अथवा संबोधन के लिए 'श्री', 'ॐ'(ओम) आदि शब्दों का प्रयोग नहीं होता. वास्तव में 'श्री', 'ॐ'(ओम) आदि शब्द हिन्दू/वैदिक संस्कृति के प्रतीक हैं. श्री का अर्थ 'लक्ष्मी' से अभिप्रेरित है. किन्तु दलित/बुद्धिस्ट समाज के कुछ लोग अनजाने में 'श्री' आदि शब्दों का प्रयोग उसी प्रकार करते पाए जाते हैं जैसे सूर्य नमस्कार में 'ॐ' का . बौद्ध संस्कृति में आवुस/ आयुष्यमान अथवा आदरणीय/परम आदरणीय/ मान्यवर आदि आदर सूचक शब्दों का प्रयोग होता है. इसी प्रकार स्वर्गवासी के लिए 'परिनिब्बुत' शब्द का प्रयोग किया जाता है.
स्मरण रखे, शब्द और भाषा ही संस्कृति को गढ़ते हैं, समाज की रक्षा करते हैं. कभी इस देश में बुद्ध का शासन था. पालि जन-भाषा थी. आम जनता पालि बोलती थी. वरना क्या कारण है कि अशोक के शिलालेखों में कश्मीर से कन्या कुमारी तक उत्कीर्ण आलेख पालि भाषा में हैं ? बाबासाहब अम्बेडकर ने हमें रास्ता दिखा दिया है. बस हमें उसे संभाल कर रखना है, सहेज कर रखना है.
सनद रहे,पालि ग्रंथों के साथ बौद्ध-भिक्खुओं का उच्छेद ब्राह्मणवाद ने किया था. बाबासाहब ने पुन: इस बुद्ध भूमि पर बौद्ध धर्म का झंडा गाड़ दिया है. धम्म के अध्येयता जानते हैं कि आरम्भ में जब पालि ग्रंथों का संस्कृत में अनुवाद हुआ तब इस तरह के वैदिक/हिन्दू शब्द धम्म ग्रंथों में अनायास/सप्रयास आए. हमें अब मुर्दों को ढोने की जरुरत नहीं है .

रामलीला

रामलीला 
मुझे इस चुनाव में मोदीजी की कम बाबा रामदेव की अधिक चिंता है ! यदि बीजेपी हार गई तो उनके 'स्वदेशी माल' का क्या होगा, जो वर्तमान में हर नुक्कड़ पर पहुँच गया है ? क्या बाबा का 'दन्तकांति' दन्त मंजन दिग्विजय सिंह जी जैसे कांग्रेस के आला राजनीतिबाजों के दांतों की कांति बरकरार रख पाएगा ?

दिल्ली रामलीला मैदान में उनका 'सलवार सूट' पहन कर मंच से भागने वाला सीन जहाँ भारत के राजनीति में दहशत पैदा करता है, वही जनमानस में बाबाओं की विविध लीलाओं का बेदर्दी से पर्दाफाश करता है ? यह सच है कि कई बाबा अपने कारगुजारियों से सीकंजों के पीछे पहुँच गए हैं, जबकि रामदेव बाबा ने 'योगा' के साथ-साथ बिजनेस में एंट्री मार कर बड़ी-बड़ी विदेशी मल्टी-नेशनल कंपनियों की बेंड बजा दी है. मगर अगर सत्ता बदलती है तो क्या वे कंपनिया बाबा रामदेव की बेंड नहीं बजाएंगे ? देखना होगा यह 'रामलीला' कैसे होगी ?

Wednesday, April 17, 2019

सिविल वार

सिविल वार
भोपाल में, एक लम्बे जद्दोजहद के बाद अंतत: आरएसएस ने राजनीति के चाणक्य, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्त्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री दिग्विजय सिंह के विरुद्ध मालेगावं बम धमाके की आरोपी और कट्टर हिंदुत्व की छवि वाली साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतार कर साफ संकेत दे दिया है कि उसे चुनाव कैसे और किस मुद्दे पर लड़ना है ?
निस्संदेह, यह मुकाबला दिलचस्प होगा. बीजेपी दिनों-दिन कट्टर धार्मिक ध्रुवीकरण के तरफ बढ़ते जाएगी, वही दूसरी ओर दिग्विजय सिंह को अपने ही घर में अपने ही लोगों से लड़ना होगा.

जहाँ तक हिन्दू बहुल भारत में 'हिंदुत्व' का सवाल है, कांग्रेस और बीजेपी दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं. इधर 'विकास' का चेहरा सामने रख कर जिस तरह आरएसएस/बीजेपी के लोग खुल्लम-खुल्ला वोटों का धार्मिक ध्रुवीकरण कर रहे हैं, वहीँ कांग्रेस के घाघ नेता बड़ी जल्दी समझ गए कि बीजेपी उन्हीं के जूते से उन्हीं के सिर पर चटाचट गिन रही है. उन्होंने अपनी चाल को रिविव्वु करना ही ठीक समझा. अब कबड्डी के मैदान में दोनों पार्टियाँ आमने-सामने हैं.  

Tuesday, April 16, 2019

अनैतिक सम्बन्ध

अनैतिक सम्बन्ध
'आजतक' न्यूज रूम से निकाले जाने के बाद  पुण्य प्रसून बाजपेयी कुछ दिनों तक एबीपी न्यूज पर दिखे. किन्तु अब लगातार सुमित अवस्थी ही दिख रहे हैं. साफ है, एबीपी के कर्ता-धर्ताओं को पुण्य-प्रसून बाजपेयी पसंद नहीं आए.
सभी को अपनी दुकान चलानी है. दुकान प्राथमिकता है. बाजार की सभी दुकाने 'लाभ' पर चलती है. दुकान का कंसेप्ट ही 'लाभ' है. आप जन -कल्याण की भावना से दुकान पर नहीं बैठ सकते ? एक पत्रकार ने तो यहाँ तक कह दिया कि हमारी भी तो पसंद-नापसंद है ? अगर यह पसंद -नापसंद हमारी बातों में झलकती है तो इसमें गलत क्या है ?
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है. कहने को तो विधायिका पहला स्तम्भ है. किन्तु हम बिधायिका और उसके विधायकों, सांसदों को सारे-आम बिकते देखते हैं. विधायक और सांसदों की संपत्ति पांच साल में ही दुगनी/तिगुनी हो जाती है ! अगर विधायक/सांसद करोड़ों रूपया चुनाव में खर्च करेगा तो कमाएगा ही. कमाएगा नहीं तो अगली बार कैसे चुनाव लडेगा ?
चाहे न्यायपालिका हो या कार्यपालिका के अफसरान, सब लोकतंत्र के प्रहरी हैं. सबके साथ पेट लगा है. और इस पेट का सम्बन्ध भूख से है. सैद्धांतिक रूप से भूख का सम्बन्ध भोजन से होना था. किन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं है. भूख का अनैतिक सम्बन्ध जमाखोरी से है ?

बाबासाहब अम्बेडकरो

बाबासाहब अम्बेडकरो
जुतिकरो, जुतिमंतो
सूरियो, पभंकरो
जन नायको, जन-चेतना वाहको
ञायिको, नीतिको, विधिको
समता, स्वतंत्ता, बंधुता संवड्ढको
संविधान सिप्पकारो
भगवा धम्मं पुनं पतिट्ठापिको

जय जय ते महा पुरिसो 
नमामि,
अहं ते ति-बारं नमामि, 

वन्दामी। 

लाख टके का सवाल

राहुल, अखिलेश और बहनजी चाहे तो अपनी अपनी संख्या के अनुपात में ज्वाईंट फ्रंट बनाकर देश की भावी सरकार बना सकते हैं. राहुल और अखिलेश में ऐसी पहल करने की क्षमता है. यह उ प्र और दिल्ली में 'आप' से चल रही बातचीत से साफ़ संकेत मिलता है. जहाँ तक बहनजी का सवाल है, अगर सम्मान जनक स्थान उन्हें मिले तो वे इस अवसर को जाने नहीं देगी.
किन्तु कांग्रेस के नीति-निर्धारक शायद ही ऐसा होने दे ? और यह स्वाभाविक ही है. जो पार्टी देश पर वर्षों शासन कर चुकी हो, यह बहुत ही सामान्य प्रवृति है.
अगर अखिलेश और राहुल अपनी-अपनी सीमाओं को 'ओव्हर रुल' कर इस दिशा में आगे बढे तो ना-मुमकिन कुछ नहीं >

15 लाख का सवाल

15 लाख का सवाल
ताज़ा चुनावी आंकड़ों के अनुसार, बीजेपी सत्ता से खिसकती दिख रही है. अगर ऐसा है, तो उस 15 लाख का क्या होगा जो मोदीजी हमारे खाते में डालने वाले थे ? बात मेरे अकेले की नहीं है, मेरे जैसे देश के करोड़ों मतदाताओं की है, जो आज भी आस लगाए बैठे हैं. क्या सुप्रीम कोर्ट 'सुओ-मोटो' इसका संज्ञान लेगा ? अथवा झूठ बोलने के लिए कोई गाइड लाइन जारी करेगा ?

कुछ लोग इसे 'चुनावी जुमला' कहते हैं. किन्तु क्या ऐसे जुमलों से, जहाँ लोग इसे अपने सुनहरे भविष्य से जोड़ते हैं, झूठ बोला जाना चाहिए ? चुनाव में अपार धन खर्च होता है, जनबल लगता है. क्या ऐसे खर्चीले चुनाव झूठ बोल कर लड़ा जाना चाहिए ? 

दरअसल, संवैधानिक प्रावधानों के तहत राजनैतिक पार्टियों को आम जनता के सामने आगे आने वाले पांच वर्षों के लिए अपना एक्शन प्लान रखना होता है, उसके तकनीकी पहलुओं पर डिस्कशन करना होता है, न की झूठ बोलना. झूठ बोलना और बाद में उसे 'चुनावी जुमला' बताना निस्संदेह गैर जिम्मेदाराना और आम जनता के पैसों से खिलवाड़ करना है ?

और फिर, चुनाव के समय कही गई बातें चुनावी जुमलें ही हैं तो लोग किस राजनैतिक पार्टी का विश्वास करेंगे ? जनता  कौनसी पार्टी उसके हित में हैं, कौनसी नहीं है, कैसे तय करेगी ?  इन झूठ के जुमलों से ही चुनाव लड़ा जाना है तो फिर इसमें देश की जनता के गाढ़ी कमाई का अरबों रूपया और मानव-समय क्यों खर्च हों ?


Monday, April 15, 2019

ति-पिटक: बुद्ध वचनों का संग्रह

बुद्ध वचनों का संग्रह
बुद्ध उपदेश देते और भिक्खु उसे कंठस्थ कर लेते। बाद में कुछ भिक्खुओं को यह दायित्व सौंपा गया।  ऐसे भिक्खुओं को 'भाणक' कहा जाता था। बुद्ध उपदेश लोक भाषा में देते थे। मगध और उसके आस-पास के क्षेत्र में जो भाषा बोली जाती थी, उसे आज हम 'पालि' के नाम से जानते हैं।

ईसा की पहली सदी तक बुद्ध-उपदेश मौखिक ही रहे। यद्यपि ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी पूर्व लिपि इजाद हो चुकी थी, जैसे कि हम अशोक शिलालेखों में देखते हैं। परन्तु बुद्ध बचनों को अभी कंठस्थ कर ही रखा जाता था। शायद, भिक्खुओं को यह अधिक सुगम प्रतीत होता था। अशोक ने अपने आदेशों को प्रसारित करने लेखन पद्यति को अपनाया। इसमें गलती होने अथवा उनके आदेशों/वचनों का मनमाना अर्थ निकालने की गुंजाईश नहीं थी, जैसे कि बुद्धकाल और तदन्तर बुद्ध-वचनों के साथ हुआ। सनद रहे,  अपने शिलालेखों की लिपि को अशोक ने 'धम्मलिपि' कहा है।

 ईसा की पहली सदी में शायद, तमाम बुद्ध वचनों को संग्रह करने की आवश्यकता हुई। भारत में बुद्ध वचनों और उनके प्रचारक बौद्ध भिक्खुओं का समूल उच्छेद बौद्ध विरोधी ताकतों द्वारा किया जा चुका था। और इस बौद्ध विरोधी षडयंत्र का नेतृत्व ब्राह्मणवाद कर रहा था।  क्योंकि बुद्धिज़्म,  ब्राह्मणवाद की जड़ों पर ही वार करता था, उसकी मूल स्थापनाओं पर प्रहार करता था। ब्राह्मणवाद के खौंप से बौद्ध भिक्खु धम्म-ग्रंथों के साथ, जितने वे अपने सिर पर लाद सकते थे, पडोसी देशों की शरण में गए । इसमें दक्षिण में सिंहलद्वीप(सिरिलंका), म्याँमार(बर्मा ), स्याम(थाईलेंड ) और चीन, तिब्बत, अफगानिस्तान  उत्तर-पूर्व में प्रमुख हैं। सिहंल द्वीप में तो धम्म-प्रचार के लिए अशोक ने अपने पुत्र महिंद और पुत्री संघमित्ता को भेजा था। भारत में बौद्ध भिक्खु और बुद्ध वचनों की दुर्गति से हम भली-भांति परिचित हैं. यही कमोबेश हाल पडोसी देशों में भी हुआ। परन्तु दुश्मनों के हाथों से धम्म को दुर्गति से बचाने का वन्दनीय प्रयास सर्व-प्रथम सिंहल द्वीप में हुआ और इसके लिए वहां के राजा वट्ट गामिणि  सामने आए थे ।

बुद्ध-वचनों के संग्रह के लिए बुद्ध के महापरिनिर्वाण से लेकर वर्तमान युग तक बुद्ध संगीतियों का आयोजन होता रहा है, जिसमें पहली संगीति तो बुद्ध महापरिनिर्वाण के तीन मास पश्चात(लगभग 483 ई. पू. ) ही हुई थी। यह संगीति राजगीर(राजगृह) के वैभार पर्वत स्थित सप्तपर्णी गुहा में महास्थविर महाकाश्यप की अध्यक्षता में हुई थी। इस संगीति में उपाली से विनय सम्बन्धी और बुद्ध के उपस्थापक आनंद से धम्म के बारे में पूछा गया था। उन्होंने जो कुछ भगवान से सुना, प्रस्तुत किया था। द्वितीय संगीति, प्रथम संगीति से 100 वर्ष बाद (लगभग 383 ई.पू )  महा स्थविर रेवत की अध्यक्षता में वैशाली में हुई थी।  इस संगीति में प्रमुख रूप से विनय विरुद्ध आचरण पर उठे विवाद पर बुद्ध वचनों का संगायन हुआ था ।

तृतीय संगीति सम्राट अशोक के समय (लगभग 248 ई. पू. ) पाटलीपुत्र में हुई थी। इसके अध्यक्ष मोग्गलिपुत्त तिस्स थे।  धम्म को राज्याश्रय होने से दूसरे मतावलम्बी भी खुद को बौद्ध बता कर अपने मत को भी बुद्ध-सम्मत बताने लगे थे। इस संगीति के बाद धम्म का काफी प्रचार-प्रसार हुआ। मोग्गलिपुत्त तिस्स ने अन्य वादों की तुलना में थेरवाद को स्थापित कर 'कत्थावत्थु' नमक ग्रन्थ की रचना की। चतुर्थ संगीति सिंहलद्वीप के शासक वट्ट गामणि(ई. पू. 29-17) के शासन काल में हुई थी.यह सिंहलद्वीप के मातुल जनपद की आलोक नामक गुहा में महास्थविर धम्मरक्खित की अध्यक्षता में संपन्न हुई थी।  इस संगीति में तिपिटक और इस पर लिखी अट्ठकथाओं को पहली बार लिपिबद्ध किया गया(पालि साहित्य का इतिहास, पृ. 1-2ः राहुल सांकृत्यायन)।
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चतुर्थ संगीति के नाम से एक और बौद्ध संगीति का नाम आता है जो सम्राट कनिष्क के राज्यकाल में संपन्न हुई थी।  कुछ के मतानुसार यह पंजाब के जालंधर में तो दूसरे कुछ लोगों के अनुसार कश्मीर में हुई थी। स्थविर वसुमित्र इसके सभापति थे और आचार्य बुद्धघोष उप-सभापति थे। इस संगीति में ति-पिटक के संस्कृत में भाष्य लिखे गए और ताम्र-पत्रों पर अंकित कर उन्हें पत्थरों की पेटियों में रखा गया।

पांचवी संगीति म्याँमार (बर्मा) के सम्राट मिन्डोन मिन(1871 ईस्वी ) के काल में रत्नपुञ्ञ नामक नगर में हुई थी। इस संगीति में भदंत जागर स्थविर की अध्यक्षता में सम्पूर्ण बुद्ध वचनों को संगमरमर की पट्टिकाओं पर उत्कीर्ण करा कर उन्हें एक स्थान पर गढवा दिया गया था(राहुल सांकृत्यायन : बुद्धचर्या )।

छटी संगीति बुद्ध परिनिर्वाण के 2500 वर्ष पूर्ण होने पर सन 1954 में बर्मा (म्याँमार ) की ही राजधानी  रंगून के सिरिमंगल नामक स्थान में संपन्न हुई थी। भदंत रेवत स्थविर इसके अध्यक्ष थे।  इस अवसर पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए भदंत आनंद कोसल्यायान के साथ बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर सम्मिलित हुए थे।

1. सुत्त-पिटक के 5 निकाय- दीघ-निकाय, मज्झिम-निकाय, संयुत्त-निकाय, अंगुत्तर-निकाय, खुद्दक-निकाय।
दीघ-निकाय- इसके तीन वग्ग(वर्ग); सीलक्खन्धवग्ग, महावग्ग और पथिकवग्ग में ब्रह्मजाल, साम××ाफल सुत्त, अम्बट्ठसुत्त, पोट्ठपाद सुत्त, महापदान सुत्त, महापरिनिब्बान सुत्त, लक्खनसुत्त, सिंगालोवाद सुत्त आदि 34 सुत्तों का संग्रह हैं। इसके कई सुत्त जैसे ‘आटानाटियसुत्त’ जिसमें भूतप्रेत संबंधी बाते हैं, काफी बाद के हैं(पालि साहित्य का इतिहास, पृ. 7ः राहुल सांकृत्यायन)।
मज्झिम-निकाय- इसके तीन पण्णासक(भाग); मूल-पण्णासक, मज्झिम-पण्णासक और उपरि-पण्णासक हैं। प्रथम दो पण्णासकों में 50-50 और अन्तिम में 52, इस प्रकार अलगद्दूपमसुत्त, अरियपरियेसनसुत्त, रट्ठपालसुत्त, अंगुलिमालसुत्त, अस्सलायनसुत्त, सुभसुत्त आदि कुल 152 सुत्त हैं। इसका घोटमुखसुत्त स्पष्ट रूप से बुद्ध महापरिनिर्वाण के बाद का है(वही, पृ. 12)।
परिवर्ती काल में बौद्ध-धर्म तथा दर्शन के विचारों के संबंध में मतभेद होने लगा था।  प्रारम्भ में थेरवाद(स्थिरवाद) और महासांघिक दो निकाय थे, किन्तु बाद में कई निकाय हो गए। अशोक के समय(ई. पू. 247-232) इसके 18 निकाय हो चुके थे(वही, पृ. 3)।
सुत्तपिटक में दीघ, मज्झिम, संयुत्त तथा अंगुत्तर ये चारों निकाय और पांचवें खुद्दक निकाय के खुद्दक पाठ, धम्मपद, उदान, इतिवुत्तक और सुत्तनिपात अधिक प्रमाणिक है। सुत्त पिटक में आयी वे सभी गाथाएं जिन्हें बुद्ध के मुख से निकला ‘उदान’ नहीं कहा गया है, पीछे की प्रक्षिप्त ज्ञात होती है। इनके अतिरिक्त भगवान बुद्ध उनके शिष्यों की दिव्य शक्तियां और स्वर्ग, नरक, देव तथा असुर की अतिशयोक्तिपूर्ण कथाओं को भी प्रक्षिप्त ही माना जा सकता है(वही, पृ. 12)। 
संयुत्त-निकाय- यह ग्रंथ 5 वग्ग(सगाथवग्ग, निदानवग्ग, खन्धवग्ग, सळायतनवग्ग और महावग्ग) तथा 56 संयुत्तों में विभक्त है। सगाथवग्ग में गाथाएं हैं। निदानवग्ग में प्रतीत्यसमुत्पादवाद के नाम से संसार-चक्र की व्याख्या की गई है। खन्धकवग्ग में पंच-स्कन्ध का विवेचन है। सळायतनवग्ग में पंच-स्कन्धवाद तथा सळायतनवाद प्रतिपादित है। महावग्ग में बौद्ध-धर्म, दर्शन और साधना के महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर व्याख्यान विद्यमान है(वही, पृ. 98)।
अंगुत्तर-निकाय- इसमें संख्या क्रम में 11 निपात हैं जो 160 वग्गों(वर्गों) में विभक्त हैं। कालामसुत्त, मल्लिकासुत्त, सीहनादसुत्त आदि इसके प्रसिद्ध सुत्त हैं। इसका 11 वां निपात स्पष्ट रूप से अप्रमाणिक है(बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ 232)।

खुद्दक-निकाय-  इसके 15 ग्रंथ हैं-
1. खुद्दक-पाठ ;ज्ञचद्ध.  यह छोटा-सा ग्रंथ है, जिसमें ति-सरण, दस शिक्षा-पद, मंगलसुत्त, रतनसुत्त आदि पाठ हैं। 2. धम्मपद- 423 गाथाओं के इस लघु-ग्रंथ में बुद्ध के उपदेशों का सार है, जो यमकवग्ग, चितवग्ग, लोकवग्ग आदि 26 वग्गों में संगृहित है। 3. उदान- आठ वग्गों में विभाजित 80 सुत्तों का लघुग्रंथ है। 4. इतिवुत्तक- इस लघु-ग्रंथ में 112 सुत्त, 4 निपात में संगृहित हैं जिसके प्रत्येक सुत्त में ‘इतिवुत्तं भगवता’(ऐसा भगवान ने कहा) पद बार-बार आता है। 5. सुत्तनिपात ;ैदद्ध- यह प्राचीन ग्रंथ पांच वग्ग; उरगवग्ग, चूलवग्ग, महावग्ग, अट्ठकवग्ग और पारायणवग्ग में विभक्त है जिसमें मेत्तसुत्त, पराभवसुत्त, रतनसुत्त, मंगलसुत्त, धम्मिकसुत्त, सल्लसुत्त, सारिपुत्त आदि अनेक सुत्तों का संग्रह हैं। 6. विमानवत्थु- इसके ‘इत्थिविमान’ और ‘पुरिसविमान’ दो भाग हैं। इसमें देवताओं के विमान(चलते प्रासादों) के वैभव का वर्णन है। यह बुद्ध-भाषित प्रतित नहीं होता। 7. पेतवत्थु- नरक के दुक्खों का वर्णन करते, इस लघु-ग्रंथ के 4 वग्गों में 51 वत्थु(कथा) हैं। यह स्पष्ट ही परवर्ती ग्रंथ है। 8. थेरगाथा- इस प्राचीन काव्य-संग्रह में महाकच्चायन, कालुदायी आदि 1279 थेरों की गाथाएं हैं। 9. थेरीगाथा- इस प्राचीन काव्य-संग्रह में पुण्णा, अम्बपालि आदि 522 थेरियों की गाथाएं संग्रहित हैं। 10. जातक कथा- इसमें बुद्धकाल के प्रचलित 547 लोक-कथाओं का संग्रह है। भारतीय कथा-साहित्य का यह सबसे प्राचीन संग्रह है। 11. निद्देस- ‘चूलनिद्देस’ और ‘महानिद्देस’ दो भागों में यह सुत्तनिपात की टीका हैं। महानिद्देस से बुद्धकालिन बहुत-से देशों तथा बंदरगाहों का भोगोलिक वर्णन प्राप्त होता है। 12. पटिसम्मिदामग्ग- इसमें अर्हत के प्रतिसंविद(आध्यात्मिक और साक्षात्कारात्मक ज्ञान) की व्याख्या है। यह ‘अभिधम्म’ की शैली में 10 परिच्छेदों में हैं। 13. अपदान- अपदान(अवदान) चरित को कहते हैं। इसके दो भाग; थेरापदान और थेरीपदान में पद्यमय गाथाओं का संग्रह है। 14. बुद्धवंस- यह पद्यात्मक ग्रंथ 28 परिच्छेदों का है और जिनमें 24 बुद्धों का वर्णन है। बौद्ध-परम्परा इसे बुद्ध-वचन नहीं मानती। 15. चरियापिटक- यह भी बुद्धवंस की शैली का है।(पालि साहित्य का इतिहासः पृ. 120-147)।
विनय-पिटक- इसमें भिक्खु-भिक्खुणियों के आचार नियम है। इसके 5 भाग; पाराजिक, पाचित्तिय, महावग्ग, चुल्लवग्ग और परिवार हैं। पाराजिक और पाचित्तिय जिसे ‘विभंग’ कहा गया है, में भिक्खुओं तथा भिक्खुणियों से संबंधित नियम हैं। महावग्ग और चुलवग्ग को संयुक्त रूप से ‘खन्धक’ कहा जाता है। परिवार, सिंहल में रचा गया यह 21 परिच्छेदों का ग्रंथ बहुत बाद का है(वही, पृ. 164)।
अभिधम्मपिटक- इसके मूल को पहले ‘मातिका’ कहा जाता था। यह दार्शनिक ग्रंथ अतिविशाल है। मातिकाओं को छोड़कर सारा अभिधम्म-पिटक पीछे का है। इसका एक ग्रंथ ‘कथावत्थु’ तो तृतीय संगीति के प्रधान मोग्गल्लिपुत्त तिस्स ने स्थविरवादी-विरोधी निकायों के खण्डन के लिए लिखा था। अभिधम्मपिटक 7 भागों में हैं- 1. धम्म-संगणि- इसको अभिधम्म का मूल माना जा सकता है। इसमें नाम(मन) और रूप-जगत की व्याख्या प्रस्तुत की गई है। 2. विभंग- इसमें रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार तथा विज्ञान स्कन्धों की व्याख्या दी गई है। 3. धातु-कथा- इस ग्रंथ में स्कन्ध, आयतन और धातु का संबंध धर्मों के साथ किस प्रकार से हैं, इसे व्याख्यायित किया गया हैं। 4. पुग्गल-प××ाति- पुग्गल(पुद्गल) की प××ाति(प्रज्ञप्ति) करना इस ग्रंथ का विषय है। इसमें व्यक्तियों का नाना प्रकार से विवेचन है। 5. कथा-वत्थू- इसके 23 अध्यायों में 18 निकायों के सिद्धांतों को प्रश्न और उसका समाधान के रूप में स्थविरवादी सिद्धांत की स्थापना की गई है। 6. यमक- इस ग्रंथ में प्रश्नों को यमक(जोड़े) के रूप में रख कर विषय को प्रस्तुत किया गया है। 7. पट्ठान- यह आकार में बहुत बड़ा अत्यन्त दुरूह शैली का ग्रंथ हैं। इसके 4 भाग हैं। इस ग्रंथ में धम्मों के पारस्परिक प्रत्यय-संबंधों का विधानात्मक और निषेघात्क अध्ययन प्रस्तुत किया गया है(वही, पृ. 167-179)।
अट्ठकथा- तिपिटक पर जो समय-समय पर टीका लिखी गई, उसे अट्ठकथा कहते हैं। अट्ठ अर्थात् अर्थ। ये अट्ठकथाएं कई देशों में कई लिपियों में प्राप्त हैं। सिंहल की प्राचीन अट्ठकथाओं में ‘महा-अट्ठकथा’(सुत्त-पिटक), ‘कुरुन्दी’(विनय-पिटक), ‘महा-पच्चरि’(अभिधम्मपिटक) का नाम आता है। इसके अलावा अन्धक-अट्ठकथा, संखेप-अट्ठकथा का भी उल्लेख है। महावंस के अनुसार, महेन्द्र सिंहल में पालि-तिपिटक के साथ अट्ठकथाएं भी लाए थे। अकेले बुद्धघोस(50 ईस्वी) ने इन अट्ठकथाओं पर जो अट्ठकथाएं लिखी, वे दृष्टव्य हैं-  सुत्त-पिटक अट्ठकथाएं :- सुमúल-विलासिनी(दीघनिकाय), पप×च-सूदनी(मज्झिमनिकाय), मनोरथ-पूरणी(अúुत्तर निकाय), सारत्थ-पकासिनी(संयुत्त निकाय)। खुद्दक-निकाय की अट्ठकथाएं- परमत्थजोतिका(1. खुद्दक-पाठ 2. सुत्तनिपात 3. जातक)। धम्मपदअट्ठकथा। विनय-पिटक अट्ठकथाएं- समन्तपासादिका, कùावितरणी(पातिमोक्ख), अट्ठसालिनी(धम्मसúणी), सम्मोह विनोदिनी(विभú), धातुकथाप्पकरण-अट्ठकथा, पुग्गल-प××ातिप्पकरण-अट्ठकथा, कत्थावत्थुप्पकरण-अट्ठकथा, यमकप्पकरण-अट्ठकथा, पट्ठानप्पकरण-अट्ठकथा। अभिधम्म-पिटक की अट्ठकथाएं- 1. अत्थसालिनी(धम्म-सúणि) 2. सम्मोहविनोदिनी(विभú) 3. परमत्थदीपनी/प×चप्पकरण अट्ठकथा(धातु-कथा, पुग्गल-प××ाति, कथा-वत्थु, यमक, पट्ठान)। संदर्भ- बुध्दघोस की रचनाएंः भूमिकाः विशुद्धिमग्ग भाग- 1।
थेरवादी साहित्य पालि में निबद्ध है और इसका यह विशेष महत्व है कि किसी भी अन्य बौद्ध सम्प्रदाय का साहित्य इतने प्राचीन और सर्वांग-सम्पूर्ण रूप से मूल भारतीय भाषा में उपलब्ध नहीं है। यह निर्विवाद है कि अन्य सम्प्रदायों के प्राचीन साहित्य के चीनी अथवा तिब्बति अनुवादों के मूल का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका है(बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ. 227)।
अन्य प्रसिध्द बौद्ध ग्रंथ- विसुद्धिमग्ग(बुद्धघोस), मिलिन्द-प×ह, दीपवंस और महावंस(दोनों सिंहलद्वीप के प्रसिद्ध ग्रंथ), महावत्थु, ललितविस्तर, बुद्धचरित(अश्वघोस) आदि।
मिलिन्द-प×ह में यवन राजा मिनान्डर और भिक्खु नागसेन(ई. पू. 150) के मध्य सम्पन्न संलाप संगृहित है। थेरवाद की सिंहली परंपरा इसे अनु-पिटक और म्यांमार तथा थाई परम्परा ति-पिटक मानती है। मिलिन्द-प×ह के 6 परिच्छेदों में पहले तीन ही प्राचीन लगते हैं(दर्शन-दिग्गदर्शन, पृ. 550)।
विसुद्धिमग्ग- यह तीन भागों और तेईस परिच्छेदों में विभक्त है। ग्रंथ का प्रधान विषय योग है। पहला भाग शील-निर्देश है, जिसमें शील और धुतांगों का वर्णन है। दूसरे भाग में समाधि-निर्देश है, जिसमें छह अनुस्मृति, समाधि आदि 11 परिच्छेद हैं। तीसरा भाग प्रज्ञा-निर्देश है, जिसमें स्कन्ध, आयतन-धातु, इंन्द्रिय-सत्य, पटिच्च समुप्पाद आदि 10 परिच्छेदों का समावेश है। 
महावत्थु- इसे महासांघिकों का विनय-पिटक कहा जाता है। इसके 3 भाग है। पहले में दीपंकर आदि नाना अतीत बुद्धों के समय में बोधिसत्व की चर्या का वर्णन है, दूसरे में  तुषित-लोक में बोधिसत्व के जन्म-ग्रहण से प्रारम्भ कर सम्बोधि-लाभ तक का विवरण है। तीसरे भाग में ‘महावग्ग’ के सदृश्य संघ के प्रारम्भिक उदय का वर्णन है(वही, पृ. 326)।
ललितविस्तर- बुद्ध-जीवनी के इस विशाल ग्रंथ में वैपुल्य-सूत्रा(प्रज्ञापारमिताएं आदि) के उपदेश के लिए बुद्ध से सहस्त्रों भिक्षुओं और बोधिसत्वों की परिषद में नाना देवताओं की अभ्यर्थना तथा मौन के द्वारा उसका बुद्ध से स्वीकार वर्णित है।बीच में तुषित लोक से बोधिसत्व के बहुत विमर्श के अनन्तर मातृ-गर्भ में अवतार से आरम्भ कर सम्बोधि के अनन्तर धर्म-चक्र प्रवर्तन तक का वृतान्त निरूपित किया गया है(वही,  पृ. 327)।
प्रसिद्ध महायानी सूत्रा- प्रज्ञापारमिता, सद्धम्म-पुण्डरिक, सुखावतीव्यूह, मध्यमक-कारिका(नागार्जुन- 175 ई.), लंकावतारसूत्रा, महायान-सूत्रालंकार(असंग- 375 ई.), योगाचारभूमिशास्त्रा, विज्ञप्तिमात्रातासिद्धि(वसुबन्धु- 375 ई.), न्यायप्रवेश(दिग्नाग- 425 ई.), प्रमाणवार्तिक(धर्मकीर्ति- 600 ई.), बोधिचर्यावतार(शांन्तिदेव- 690-740 ई.), तत्वसंग्रह(शान्तरक्षित- 750 ई.), रत्नकूट, दिव्यादान, मंजुश्री-मूलकल्प(तांत्रिक-ग्रंथ) आदि। इन सूत्रों में एक ओर शून्यता के प्रतिपादन के द्वारा विशुद्ध निर्विकल्प ज्ञान का उपदेश किया गया है; दूसरी ओर, बुद्ध की महिमा और करुणा के प्रतिपादन के द्वारा भक्ति उपदिष्ट है(वही, पृ. 339)। महायानी सूत्रों का रचनाकाल ई.पू. प्रथम सदी से चौथी सदी तक मानना चाहिए(वही,  पृ. 328-333)।
कंजूर-तंजूर- यह तिब्बति ति-पिटक का नाम है। कंजूर में 1108 और तंजूर में 3458 ग्रंथ संग्रहित हैं(वही, पृ. 332)।
प्रज्ञापारमिता- इसमें शून्यता का अनेकधा प्रतिपादन किया गया है। प्रज्ञापामितासूत्रों के अनेक छोटे-बड़े संस्करण प्राप्त होते हैं। यथा दशसाहस्त्रिाका, अष्टसाहस्त्रिाका, प×चविंशतिसाहस्त्रिाका,  शतसाहस्त्रिाका, पंचशतिका, सप्तशतिका, अष्टशतिका, वज्रच्छेदिका, अल्पाक्षरा आदि हैं(वही, 334)।
अवतंसकसूत्रा- इस नाम से चीनी ति-पिटक और कंजूर में विपुलाकार सूत्रा उपलब्ध होते हैं। चीनी ति-पिटक में अवतंसकसूत्रा तीन शाखाओं में मिलता है जो कि क्रमशः 80, 60 और 40 जिल्दों में हैं(वही, पृ. 336)।

रत्नकूट- चीनी और तिब्बति ति-पिटकों में ‘रत्नकूट’ नाम से 49 सूत्रों का संग्रह उपलब्ध है। असंग(350 ई.) और शांतिदेव(690-740 ई.) के द्वारा रत्नकूट के उध्दरण प्राप्त होते हैं। बुद्धोन के अनुसार रत्नकूट के मूलतः 100,000 अध्याय थे जिनमें से केवल 49 शेष हैं(वही, पृ. 337)।
सुखावतीव्यूह- इस नाम से संस्कृत में 2 ग्रंथ उपलब्ध होते हैं। दोनों में अमिताभ बुद्ध का गुणगान है। ये सूत्रा जापान के ‘जोड़ो’ अथवा चीनी ‘चि’ एवं ‘शिन’ सम्प्रदाय के प्रधान ग्रंथ हैं (वही, पृ. 337)।
कारण्डव्यूह- इस ग्रंथ में ‘अवलोकितेश्वर’ की महिमा का विस्तार है। यहां एक प्रकार का ईश्वरवाद वर्णित है क्योंकि उसमें ‘आदिबुद्ध’ को ही ध्यान के द्वारा जगत-स्त्राष्टा कहा गया है। ‘आदिबुद्ध’ से ही अवलोकितेश्वर का आविर्भाव हुआ तथा अवलोकितेश्वर की देह से ‘देवताओं’ का। अवलोकितेश्वर पंचाक्षरी विद्या ‘ओम मणि पर्िंे हूँ ’ को धारण करते हैं।
लंकावतारसूत्र- यह योगाचार का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। सब कुछ प्रतिभासात्माक अथवा विकल्पात्मक भ्रान्तिमात्रा है, केवल निराभास एवं निर्विकल्प चित्त ही सत्य है- ग्रंथ का यह प्रतिपाद्य विषय दूसरे से सातवें परिवर्त(अध्याय) तक वर्णित है(वही, पृ. 339)।
सद्धम्मपुण्डरिक- इस ग्रंथ में निदान, उपाय कौशल्य, ओपम्य, अधिमुक्ति, औषधि; आदि कुल सत्ताईस परिवर्त हैं। मैत्राी, प्रज्ञा पारमिता ग्रंथ का प्रमुख विषय है। इसके रचयिता के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसी मान्यता है कि ईसा की पहली सदी में इस महायानी ग्रंथ की रचना की गई। भारत के बाहर नेपाल, तिब्बत, चीन जापान, मंगोलिया,भूटान, तायवान आदि देशों में यह एक पवित्रा ग्रंथ है। बीसवीं सदी में जापान के निचिरेन बौद्ध सम्प्रदाय के प्रसिध्द्ध आचार्य फ्युजी गुरुजी- जिन्होंने प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध की भयानकता के दृष्टिगत कई देशों में बुध्द का शांति संदेश देते हुए विश्व-शांति स्तूपों का निर्माण किया; के प्रेणास्रोत सद्धम्मपुण्डरिक सूत्रा रहे हैंै(प्रस्तावनाः सद्धम्मपुण्डरिकसूत्राः प्रो. डॉ. विमलकीर्ति)।

Saturday, April 13, 2019

आस्था और हम

राम राज्य की थ्योरी, 
भ्रामक-सी लगती है
तमाम आस्था के बावजूद 
टिक नहीं पाते, सतही तौर पर
विरासत में मिले संस्कार
उभर कर तैर आते हैं
अनुत्तीर्ण, अनसुलझे
प्रश्न ?
आज की पीढ़ी
किंकर्त्तव्य विमूढ़-सी
है चौराहे पर खड़ी
और पथ
प्रश्न-चिन्ह-सा
जड़ गया है ताला
शब्दों, अर्थों की
व्यवस्था पर
दोष
यही तो प्रश्न है
है किसका ?
तमाम कोशिशों के बावजूद
सतत फिसलन
अन्दर
पिघलता-सा लावा
जलता हुआ
धधकता हुआ !

भारतीय संविधान और डॉ अम्बेडकर

क्या संविधान लिखकर वाकई कोई कारनामा किया था बाबा साहेब ने? चलो इसबार सच्चाई जान लेते हैं।
1895 में पहली बार बाल गंगाधर तिलक ने संविधान लिखा था अब इससे ज्यादा मैं इस संविधान पर न ही बोलूँ वह ज्यादा बेहतर है, फिर 1922 में गांधीजी ने संविधान की मांग उठाई, मोती लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और पटेल-नेहरू तक न जाने किन किन ने और कितने संविधान पेश किये । ये आपस् में ही एक प्रारूप बनाता तो दूसरा फाड़ देता, दुसरा बनाता तो तीसरा फाड़ देता और इस तरह 50 वर्षों में कोई भी व्यक्ति भारत का एक (संविधान) का प्रारूप ब्रिटिश सरकार के सम्पक्ष पेश नही कर सके। उससे भी मजे की बात कि संविधान न अंग्रेजों को बनाने दिया और न खुद बना सके। अंग्रेजों पर यह आरोप लगाते कि तुम संविधान बनाएंगे तो उसे हम आजादी के नजरिये से स्वीकार कैसे करें। बात भी सत्य थी लेकिन भारत के किसी भी व्यक्ति को यह मालूम नही था कि इतने बड़े देश का संविधान कैसे होगा और उसमे क्या क्या चीजें होंगी? लोकतंत्र कैसा होगा? कार्यपालिका कैसी होगी? न्यायपालिका कैसी होगी? समाज को क्या अधिकार, कर्तव्य और हक होंगे आदि आदि..
अंग्रेज भारत छोड़ने का एलान कर चुके थे लेकिन वो इस शर्त पर कि उससे पहले तुम भारत के लोग अपना संविधान बना लें जिससे तुम्हारे भविष्य के लिए जो सपने हैं उन पर तुम काम कर सको। इसके बावजूद भी कई बैठकों का दौर हुआ लेकिन कोई भी भारतीय संविधान की वास्तविक रूपरेखा तक तय नही कर सका। यह नौटँकीयों का दौर खत्म नही हो रहा था,साइमन कमीशन जब भारत आने की तैयारी में था उससे पहले ही भारत के सचिव लार्ड बर्कन हेड ने भारतीय नेताओं को चुनौती भरे स्वर में भारत के सभी नेताओं, राजाओं और प्रतिनिधियों से कहा कि इतने बड़े देश में यदि कोई भी व्यक्ति संविधान का मसौदा पेश नही करता तो यह दुर्भाग्य कि बात है। यदि तुम्हे ब्रिटिश सरकार की या किसी भी सलाहकार अथवा जानकार की जरूरत है तो हम तुम्हारी मदद करने को तैयार है और संविधान तुम्हारी इच्छाओं और जनता की आशाओं के अनुरूप हो। फिर भी यदि तुम कोई भी भारतीय किसी भी तरह का संविधानिक मसौदा पेश करते हैं हम उस संविधान को बिना किसी बहस के स्वीकार कर लेंगे। मगर यदि तुमने संविधान का मसौदा पेश नही किया तो संविधान हम बनाएंगे और उसे सभी को स्वीकार करना होगा।
यह मत समझना कि आजकल जैसे कई संगठन संविधान बदलने की बातें करते हैं और यदि अंग्रेज हमारे देश के संविधान को लिखते तो हम आजादी के बाद उसे संशोधित या बदल देते। पहले आपको यह समझना आवश्यक है कि जब भी किसी देश का संविधान लागू होता है तो वह संविधान उस देश का ही नही मानव अधिकार और सयुंक्त राष्ट्र तथा विश्व समुदाय के समक्ष एक दस्तावेज होता है जो देश का प्रतिनिधित्व और जन मानस के अधिकारों का संरक्षण करता है। दूसरी बात किसी भी संविधान के संशोधन में संसद का बहुमत और कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की भूमिका के साथ समाज के सभी तबकों की सुनिश्चित एवं आनुपातिक भागीदारी भी अवश्य है। इसलिए फालतू के ख्याल दिमाग से हटा देने चाहिए। दुसरा उदाहरण।
जापान एक विकसित देश है। अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु हमले से ख़ाक कर दिया था उसके बाद जापान का पुनरूत्थान करने के लिए अमेरिका के राजनेताओं, सैन्य अधिकारियों और शिक्षाविदों ने मिलकर जापान का संविधान लिखा था। फरवरी 1946 में कुल 24 अमेरिकी लोगों ने जापान की संसद डाइट के लिए कुल एक सप्ताह में वहां के संविधान को लिखा था जिसमे 16 अमेरिकी सैन्य अधिकारी थे। आज भी जापानी लोग यही कहते है कि काश हमे भी भारत की तरह अपना संविधान लिखने का अवसर मिला होता। बावजूद इसके जापानी एक धार्मिक राष्ट्र और अमेरिका एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र होते हुए दोनों देश तरक्की और खुशहाली पर जोर देते हैं।
लार्ड बर्कन की चुनौती के बाद भी कोई भी व्यक्ति संवैधानिक मसौदा तक पेश नही कर सका और दुनिया के सामने भारत के सिर पर कलंक लगा। इस सभा में केवल कांग्रेस ही शामिल नही थी बल्कि मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा जिसकी विचारधारा आज बीजेपी और संघ में सम्मिलित लोग थे। राजाओं के प्रतिनिधि तथा अन्य भी थे। इसलिए नेहरू इंग्लैण्ड से संविधान विशेषज्ञों को बुलाने पर विचार कर रहे थे। ऐसी बेइज्जती के बाद गांधीजी को अचानक डॉ अम्बेडकर का ख्याल आया और उन्हें संविधान सभा में शामिल करने की बात की।
इस समय तक डॉ अम्बेडकर का कहीं कोई जिक्र तक नही था, सरदार पटेल ने यहाँ तक कहा था कि डॉ अम्बेडकर के लिए दरबाजे तो क्या हमने खिड़कियाँ भी बन्द की हुई है अब देखते हैं वो कैसे संविधान समिति में शामिल होते हैं। हालाँकि संविधान के प्रति समर्पण को देखते हुए पटेल ने बाबा साहेब को सबसे अच्छी फसल देने वाला बीज कहा था। कई सदस्य, कई समितियां, कई संशोधन, कई सुझाव और कई देशों के विचारों के बाद केवल बीएन राव के प्रयासों पर जिन्ना ने पानी फेर दिया जब जिन्ना ने दो दो संविधान लिखने पर अड़ गए। एक पाकिस्तान के लिए और एक भारत के लिए।
पृथक पाकिस्तान की घोषणा के बाद पहली बार 9 दिसम्बर 1946 से भारतीय संविधान पर जमकर कार्य हुए। इस तरह डॉ अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करके दुनिया को चौंकाया। आज वो लोग संविधान बदलने की बात करते हैं जिनके पूर्वजों ने जग हंसाई करवाई थी। मसौदा तैयार करने के पश्चात आगे इसे अमलीजामा पहनाने पर कार्य हुआ जिसमें भी खूब नौटँकियां हुई .. अकेले व्यक्ति बाबा साहेब थे जिन्होंने संविधान पर मन से कार्य किये। पूरी मेहनत और लगन से आज ही के दिन पुरे 2 साल 11 माह 18 दिन बाद बाबा साहेब ने देशवासियों के सामने देश का अपना संविधान रखा जिसके दम पर आज देश विकास और शिक्षा की ओर अग्रसर बढ़ रहा है और कहने वाले कहते रहें मगर बाबा साहेब के योगदान ये भारत कभी नही भुला सकता है। हम उनको संविधान निर्माता के रूप तक सीमित नही कर सकते, आर्किटेक्ट ऑफ़ मॉडर्न इंडिया यूँ ही नही कहा गया कुछ तो जानना पड़ेगा उनके योगदान, समर्पण, कर्तव्य और संघर्षों को।
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