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Tuesday, June 18, 2019

शर्म मगर, उन्हें नहीं आती ?

शर्म मगर, उन्हें नहीं आती ? 
दलित हितों के सयम्भू नेता अभी भी बहनजी को कोसने में लगे हैं ! कोसने में लगे हैं कि 'मोदी सुनामी' के चलते वे नावं सहित कैसे समंदर में 'गायब' हो गए ? उन्हें जरा भी शर्म नहीं है कि 'चुनावी रणनीति' के तहत बीजेपी क्यों और कैसे सैकड़ों छतरीधारियों को वर्षो से जूतें घीस रहे कार्य-कर्ताओं के सिर पर अचानक आसमान से उतारती है ? उन्हें इस बात पर जरा भी शर्म नहीं आती कि शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पूरे पांच साल बीजेपी को जी भर कोसने के बाद कैसे चुनाव के वक्त सारे मतभेद एक तरफ रख एक हो जाते हैं ? उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती कि हजारों जातियों में बंटे हम दलित, क्यों हजारों पार्टियाँ बना कर एक-दूसरे के वोट काटते रहते हैं ! क्या यह सच नहीं कि हम बंटे हैं और, बंटे रहना चाहते हैं ?

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