Mainpat (मैनपाट)
भारत में तिब्बती शरणार्थियों का जिक्र किया जाए तो धड़ाम से छत्तीसगढ़ स्थित मैनपाट की याद आती है। अगर आपने कभी मैनपाट का विजिट किया है तो फिर आप उसे जल्दी भूल नहीं पाएंगे। दरअसल , मैनपाट है ही ऐसी जगह।
मैनपाट, बीहड़ जंगल के पार पहाड़ी-मैदानी इलाके में स्थित है। यह छत्तीसगढ़ राज्य के अंबिकापुर (सरगुजा ) जिले में अवस्थित है। अंबिकापुर-रायगढ़ (NH) में अंबिकापुर से करीब 50 कि मी दूर सीतापुर से आपको मैनपाट के लिए मुड़ना होता है।
रोड कही कहीं बेहद खतरनाक है। मगर, घने जंगल के बीच से गुजरती सर्पाकार सड़क से ड्राईव करते वाकई थ्रीलिंग होती है। एक लम्बी दूरी के बाद कई मोड़ पार कर लम्बे-लम्बे तोरणनुमा झंडे दिखने लगते हैं। बस आपका मैनपाट यही है।
दरअसल, हम लोग सीतापुर गए थे। वहाँ पर मेरे ब्रदर-इन-लॉ डॉ अविनाश नागदेवे का हेड क्वार्टर था। उनकी ड्यूटी पास ही के प्रायमरी हेल्थ सेंटर में थी। यह अप्रेल 28, 2012 का दिन था। बिज़ी शेड्यूल्ड के चलते वे यद्यपि हमारे साथ नहीं थे। मगर, उनके दोनों प्यारे-प्यारे बच्चों को हमने साथ ले लिया था। चूँकि मैनपाट , सीतापुर से काफी दूर है इसलिए हम लोगों ने टिफिन तैयार कर रख लिया था।
मैनपाट, तिब्बतियों का शरणार्थी स्थल है। भारत सरकार ने तिब्बती शरणार्थियों को मैनपाट और इससे मिलते-जुलते आबो-हवा वाले दूसरे स्थानों में तब बसाया था।
तिब्बत संबंधी चीनी नीति के चलते जब तिब्बती शरणार्थी तिब्बत छोड़ बड़ी मात्र में हमारे देश में आए तब, भारत सरकार के पास इसके आलावा कोई चारा नहीं था कि वह इस संबंध में मानवीय दृष्टिकोण अपनाए। मजे की बात यह कि इन शरणार्थियों में तिब्बतियों के धार्मिक गुरु दलाई लामा भी उनके साथ शरणार्थी के रूप में भारत आए थे।
तिब्बत, ठंडा और पहाड़ी इलाका है। तिब्बत्तियों के सांस्कृतिक परिवेश के मद्दे नजर ही आम आबादी से हट कर तिब्बतियों को बसाया गया था ताकि अपनी संस्कृति और भाषा को वे अक्षुण रख सके। तो भी अपनी मातृभूमि से इतनी दूर विस्थापित किए जाने से समय के साथ--साथ उनके रहन-सहन में बदलाव आ रहा है, जो अपरिहार्य है।
बसाहट की दृष्टी से यह अलग-अलग केम्पों में बसा है। एक केम्प से दूसरे केम्प में जाने के लिए कच्चे-पक्के रास्ते हैं। ऐसा नहीं लगता कि सड़कें/सीवेज और नालियों की व्यवस्था किसी लोकल प्रशासन के जिम्मे हैं। बल्कि , पूछने पर बताया गया है कि वे खुद अपने लोगों की लोकल बॉडी बना यह सब काम करते हैं। तिब्बतियों को विभिन्न क्राफ्ट वर्क करते देखा जा सकता है। इससे उन्हें कितनी आय होती है , यह एक अलग विषय है। बेशक , हमारे देश के गावं-देहातों की जनता से उनकी तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि , तिब्बती अमूमन बड़े मेहनती होते हैं। आपने उन्हें कभी भीख मंगाते नहीं देखा होगा।
मैनपाट, बीहड़ जंगल के पार पहाड़ी-मैदानी इलाके में स्थित है। ऊँचे-ऊँचे साल वन से आच्छादित यह क्षेत्र तिब्बतियों के कारण बड़ा ही मनोहर
कारी दृश्य उपस्थित करता है। कुल 7 केम्प हैं जो तक़रीबन एक-दूसरे से
6 से 7 कि मी दूर हैं। तिब्बती युवाओं को बाईक से एक केम्प से दूसरे केम्प जाते हुए आप देख सकते हैं। बाइक को रोड की दरकार नहीं होती। कुछ युवाओं से पता चला कि इतने वर्षों बाद भी मातृभूमि से उनका संबंध कटा नहीं है। आज भी तिब्बत उनके लिए उतना ही पूज्य है।
स्वेटर/जेकेट, मफ़लर, टोप, शाल आदि ऊनी कपडे बेचते हुए आपने तिब्बतियों को देखा होगा। तिब्बतियों द्वारा बनायी गयी कालीन बहुत प्रसिद्द है। हमारे देश में ऊनी गर्म कपडे का मतलब है तिब्बती और तिब्बती का मतलब है ऊनी गर्म कपड़ें। यह अलग बात है कि आजकल नेपालियों को देख कर यह भ्रम होता है।
तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा है। तिब्बत एक बुद्धिस्ट देश है। तिब्बत, बुद्धिस्ट महायान शाखा का केंद्र रहा है। पाठकों को स्मरण होगा कि बौद्ध दार्शनिक पंडित राहुल सांस्कृत्यायन जब अपने घुमक्कड़ अवधि में तिब्बत गए थे तब , उन्होंने वहाँ से ऐसे कई बौद्ध धर्म ग्रंथों को ढूंढ लाया था जो विलुप्त हो गए थे। यह वही बौद्ध सांस्कृतिक धरोहर वाला तिब्बत है। तिब्बती जहाँ कहीं जाते हैं , अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर को अनिवार्यत: ले जाते हैं। यह सांस्कृतिक धरोहर उनकी जैसे सांसों में बसा है। इस महायानी बुद्धिस्ट धरोहर से रुबरूं होना है तो आपको जरुर मैनपाट जाना चाहिए।
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