Tuesday, April 10, 2012

Why discrimination against Christians ?


  खबर ( दैनिक भाष्कर जबलपुर: 7  अप्रेल 2012 ) है कि 'पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट'  नामक संगठन ने देश के चर्च शिखर नेतृत्व से दलित ईसाईयों के साथ किये जा रहे सौतेले व्यवहार के विरुध्द आवाज बुलंद की है. मूवमेंट के अध्यक्ष आर एल फ्रांसिस ने मांग की है कि चर्च-ढांचे के प्रशासनिक पदों पर दलित ईसाईयों कि भागीदारी सुनिश्चित की जाए
      स्मरण रहे, दलित ईसाई देश के ईसाई समाज की कुल जन संख्या का 70 % है. मूवमेंट के अध्यक्ष आर एल फ्रांसिस के अनुसार, भारतीय चर्च द्वारा संचालित सामाजिक, शैक्षणिक और धार्मिक संगठनों के प्रशासन में दलित ईसाईयों के साथ भेदभाव किया जाता है, उन्हें महत्वपूर्ण पदों से दूर रखा जाता है.
       फ्रांसिस के अनुसार,  दलित पादरियों और ननों के साथ भेदभाव आम बात है. चर्च खुद तो उनके साथ भेदभाव बरतता है मगर, भारत सरकार से उन्हें 'अनुसूचित जातियों' की सूची में शामिल करने की मांग करता है जो कि धर्मान्तरित करोड़ों दलित ईसाईयों के साथ सरासर विश्वासघात है.

Monday, April 9, 2012

सवाल नीयत का है

  सवाल नीयत का है    
        खबर है कि उ.प्र. के नए मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने पूर्व मुख्य-मंत्री मायावती के फैसले को उल्ट कर राज्य के विभिन्न संस्थानों के द्वारा जारी ठेकों में दलित जातियों का आरक्षण समाप्त कर दिया है. विदित हो कि वर्षों से दलितों की यह मांग थी कि नौकरियों के साथ सरकारी ठेकों में भी आरक्षण का प्रावधान हो. यह ऐसा फैसला था जिसके तहत मायावती की नीयत का पता चलता था कि वह दलित जातियों के उत्थान के लिए कितनी सिद्दत से काम रही थी.
        दलित जातियों की यथा-स्थिति में बदलाव के लिए केन्द्रीय व् राज्य स्तरों पर बहुतेरे कार्य-क्रम चलाये जाते हैं. यहाँ तक कि संवैधानिक बाधा के नाम पर नए कानून बनाये जाते हैं. मगर, इतना सब होने के बाद भी दलित जातियों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आता ? दरअसल, सवाल नीयत का है.

Friday, April 6, 2012

प्रेरक प्रसंग

1. भदंत आनंद कौसल्ल्यायन एक बार डा. बाबा साहेब आंबेडकर से मिलने के लिए उनके दादर निवास पर गए हुए थे. चर्चा के दौरान बाबा साहेब ने पूछा-
"भंते जी. आपको भ. बुध्द की कौन-सी मूर्ति अच्छी लगती है ?"
" वह जो ध्यानस्थ अवस्था में आँख बंद किये हुए बैठे हैं." - भदंत जी ने स्वभावत: जवाब दिया.
" और मुझे वह जो हाथ में भिक्षा-पात्र लिए बुध्द,  चारिका के लिए निकल पड़ते हैं।  - बाबा साहेब ने अपनी पसंद बतलाई।
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2. महाराजा रंजितसिंह आम के बगीचे में टहल रहे थे।  तभी एक छोटा-सा पत्थर उनको आ लगा। महाराजा के अनुचर एक बच्चे को पकड़ कर लाए।
"पर मैंने तो आम तोड़ने के लिए पत्थर मारा था ?" - बच्चे ने डरते हुए कहा।
" तो हम तुम्हें कैसे सजा दे सकते हैं, जबकि वही पत्थर पेड़ को लगता तो वह तुम्हें आम देता ! है न ?" - महाराज रंजीत सिंह ने मुस्करा कर सोने का एक सिक्का बच्चे को देते हुए कहा।
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3. सन 1934  की अवधि में बंबई(मुम्बई ) सरकार ने एक जाँच-समिति नियुक्त किया था जिसका काम नाना पेशवा से संबंधित जाँच करना था। छानबीन करते वक्त समिति के एक ब्राह्मण सदस्य को पेशवा के दफ्तर में नाना पेशवा के रखैलों की सूची मिली। उसने वह अपने सीनियर ब्राह्मण सदस्य को दिखाई। सीनियर ने उस चिट्ठी को तुरंत निगल जाने को कहा।
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४. राजस्थान के अलवर में स्थापित महात्मा ज्योतिबा फुले की मूर्ति का अनावरण मान्य. कांशीराम साहब के हाथों हुआ था।  साहब को भनक लगी कि बनारस के डा. सम्पूर्णानंद की मूर्ति के तरह महात्मा ज्योतिबा फुले की मूर्ति को गंगा जल से धोने की तैयारी है.
 खबर मिलते ही पत्रकारों को बुला कर साहब ने डपटते हुए कहा-
" अव्वल तो ऐसी किसी घटना को रोकना मुख्यमंत्री का काम है. और अगर मुख्यमंत्री अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाता है तो उसे और उसके कांग्रेस पार्टी को मिटटी में मिलाना ये कांशीराम चमार की जिम्मेदारी है। " ( बहुजन संगठक 24  जुल. 2000 ).

Thursday, April 5, 2012

Indian Toilet paper

       Indian Toilet paper
    कल मीडिया ने जिस तरह भय का माहौल बनाया था, लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था. देश के टी वी चेनलों ने 'इंडियन एक्सप्रेस' के न्यूज को इस तरह पेश किया जैसे लग रहा था, मानो हम इण्डिया नहीं पाकिस्तान में बैठे हो.
      रूटीन ड्रिल के तहत सैनिक की दो टुकडियां अभ्यास के लिए निकली थी, जैसे कि रक्षा मंत्रालय द्वारा स्पष्ट किया गया. इसके लिए मंत्रालय या हायर कमांड को सूचना देना जरुरी नहीं होता. इस तरह के ड्रिल-कार्यक्रम साल भर पहले से तय होते हैं.
        अब इस खबर को एक अंग्रेजी दैनिक राष्ट्रीय समाचार पत्र 'इन्डियन एक्सप्रेस ' इस तरह प्रकाशित करता है, मानो सेना ने दिल्ली पर कब्जा करने के लिए 'मूह' किया हो. निश्चित रूप से इस खबर से कई लोगों को पडोसी देश पाकिस्तान में इस तरह हुई घटनाओं की याद आई होगी. मजे की बात है कि मिलट्री हेड क्वार्टर इसे 'मूर्खतापूर्ण खबर' बतलाता है. रक्षा-मंत्रालय 'सेना का मनोबल कंम करने की खबर' कहता है.पी. एम्. ओ. भी इसे 'बेबुनियाद खबर' कहता है. तब, भी देश का मिडिया इसे पूरी तन्मयता के साथ प्रसारित करते रहता है. 
      लोग भूले नहीं होंगे, पिछले दिनों अन्ना हजारे के आन्दोलन को भी मिडिया कुछ इसी तरह सनसनीखेज बना रहा था.मिडिया इसे अन्ना वर्सेस कांग्रेस बता रहा था. मगर, अब जबकि बी.जे.पी. की सुषमा स्वराज ने कहा कि अन्ना हजारे की टीम अपने आन्दोलन से भटक गयी है, मिडिया एकाएक असहाय-सा महसूस कर रहा है..
       लोकतान्त्रिक व्यवस्था की कामयाबी में मिडिया की भूमिका है. मगर, हरेक संस्थाओं की अपनी सीमाएं हैं. मिडिया दूसरी संस्थाओं पर ऊंगली उठाता है. मगर, उसे यह भी देखना चाहिए कि बाकि की ऊँगलियाँ उसके खुद की अपनी ओर हैं. पिछले दिनों एक चेनल का एडिटर अपने 'पोस्ट मार्टम' में संसदीय व्यवस्था को  खुलेआम धकिया रहा था.
         दलित वायस ( बंगलौर) के सम्पादक  वी. टी. राजशेखर इस मिडिया को 'टायलेट पेपर' नाम दिया है.वे कहते हैं, हमारे देश का मिडिया वही करता है, जो वह करना चाहता है.वह चाहे तो गलत को सही और सही को गलत सिध्द्द कर सकता है.