Sunday, January 6, 2013

भारत और इण्डिया में फर्क

आर एस एस और बीजेपी  'रामराज्य' को आदर्श सामाजिक व्यवस्था मानती है। मगर, देश का बुद्धिजीवी वर्ग कम-से कम घर के बाहर, शैक्षणिक-सामाजिक मंचों से इसकी आलोचना करते रहा है। 'रामचरित मानस' में जिसे 'शुद्र' कहा गया है और जो हिन्दुओं का बहु-संख्यक है, की सामाजिक स्थिति 'रामराज्य' में कमो-वेश दलित और स्त्री जैसी है। दलित समाज तो इसका मुखर विरोधी है।

मुझे लगता है कि मिडिया और फेसबुक आदि सोसल साइट्स पर अब 'रामराज्य' पर खुली बहस होनी चाहिए।
उन मिथिकीय चरित्रों पर खुली बहस होनी चाहिए क्योंकि ये केरेक्टर हिन्दुओं के प्रेरणा-स्रोत हैं। क्योंकि, हिन्दू देश की जन-संख्या का अधि-संख्यक है, लोग चाहे हिन्दू न भी हो, उनकी सोच से प्रभावित होते हैं और तद्-अनुसार आचरण करते हैं। फिर, आर एस एस और बीजेपी वाले, लोगों को चाहे जिस धर्म-सम्प्रदाय के हो, उन्हें 'भारतीय संस्कृति' से रचने-बसने की बात करते हैं।

आर एस एस चीफ मोहन भागवत को हल्के से नहीं लिया जाना चाहिए। उनका बहुत बड़ा नेट-वर्क है। उनका शिक्षा के क्षेत्र में 'विद्या-भारती' से संचालित 'सरस्वती शिशु मन्दिर' नामक बड़ा नेट-वर्क है, जहाँ करोड़ों बच्चों को 'संस्कारित' किया जाता है। ये बच्चे ही आगे जा कर सामाजिक-राजनैतिक क्षेत्र में 'स्वयं सेवक' बन कर काम करते हैं। ये स्वयं सेवक ही आर एस एस के 'रामराज्य' की फिलासफी को जन-जन तक पहुंचाते हैं।

आर एस एस चीफ, अगर भारत और इण्डिया में फर्क करते हैं तो लोगों को समझने की जरुरत है कि  भारत से उनका आशय क्या है ? उनके भारत और रामराज्य में क्या फर्क है ? देश का संविधान समानता की बात करता है। मगर, रामराज्य में भगवान् राम का शासन असमानता पर आधारित है।

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