महाराष्ट्र संत-महात्माओं की धरती रही है. यहाँ के संत-महात्माओं ने जाति-पातीं की ऊंच-नीचता और धार्मिक कर्म-कांडों के विरुद्ध जो सामाजिक-चेतना का जन-आन्दोलन चलाया, वह पूरे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी स्तुतिय है. सामाजिक चेतना के इन जन-आन्दोलनों में अमरावती के साधू बाबा जिवलंगदास हमेशा याद किये जाते रहेंगे.इतिहास के गर्भ में ऐसे कई महापुरुष होंगे जिन पर इतिहास लिखने वालों की इनायत न हुई हो.साधू बाबा जिवलंगदास शायद ऐसे ही हैं.
सन 1992 के दौरान जब में अपने पूज्य गुरु महंत बालकदास साहेब के कृतित्व पर 'साक्षात्कार' नामक ग्रन्थ लिख रहा था तो गुरूजी ने अवश्य साधू बाबा का जिक्र किया था. मगर चूँकि उस समय मेरे अध्ययन का केंद्र गुरूजी थे, अत साधू बाबा के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं जान पाया.आज न तो गुरूजी हैं और न ही साधू बाबा मगर, मुझे लगता है, साधू बाबा के बारे में लिख कर मैं न सिर्फ अपनी गलती सुधार रहा हूँ बल्कि, इतिहास के इन पृष्ठों से लोगों को रूबरु करा रहा हूँ जो शायद अभी तक अनपलटे हैं.
एक बात और, इतिहास कोई एक आदमी नहीं लिखता. वास्तव में इतिहास घटनाओं का सिलसिला हैं, जो कई लोगों के द्वारा विभिन्न समय में लिखा जाता है. यह एक लेखन प्रवाह है, जो चलते रहता है. प्रस्तुत लेख के माध्यम से गुजारिश होगी कि जिन पाठकों को साधू बाबा के बारे में अधिक जानकारी हैं, कृपया वे मुझे अप-डेट कर इस कार्य को आगे बढ़ाये.
साधू बाबा महाराष्ट्र के जिला अमरावती के हैं. आपका जन्म महार जाति के राउरकर परिवार में हुआ था. बाबा कद-काठी के ऊंचे-तगड़े और आचार-विचार में सदाचारी के थे. उनके हाथ में हमेशा चिमटा और कुबजी तथा पैर में खडाऊं रहते थे. वे पंचीकरण* के सिद्धहस्त योगी थे.
साधू बाबा, सामाजिक-चेतना के कार्यों के अलावा जीवन-व्यापन के लिए छोटा-मोटा धंधा किया करते थे.अमरावती और इसके आस-पास कपास की खेती होती है. बाबाजी के पास एक ऊँट था.बाबाजी आस-पास के गांवों से कपास फुटकर में खरीदते और ऊँट की पीठ पर लाद कर दूर तुमसर की कपास मंडी में बेच आते .बाबाजी की एक बहन सुकडी में रहती थी.बाबाजी जब भी कपास लेकर तुमसर मंडी आते, अक्सर अपनी बहन के यहाँ मुकाम करते थे.मगर, यह तो एक माध्यम था. वास्तव में, साधू बाबा अमरावती से तुमसर तक की यात्रा में जगह-जगह संत-महात्माओं के बीच बैठकर सामाजिक-चेतना की अलख जगाते थे.
साधू की नजर साधू को तलाश करती है. शायद, इसी तलाश में सन 1937 के दरमियान साधू बाबा की नजर बपेरा के एक तेजस्वी बालक पर पड़ी जो 12-13 वर्ष की उम्र से ही साधू वेष में रहता था.
जल्दी ही साधू बाबा की कृपा इस बालक पर हुई. यही बालक, जो आगे चल कर ' कबीर पंथ के महंत गुरु बालकदास' के नाम से प्रख्यात हुए, को साधू बाबा ने योग्य उत्तराधिकारी जान गुरु परम्परा से प्राप्त रामानंद पंथ की गद्दी सौंप दी और खुद को धन्य समझा. क्योंकि, योग्य उत्तराधिकारी भाग्य से ही मिलता है. यह घटना सन 1941 की है.
.........................................................................................................................................................
*पांच तत्वों के गुण,क्रिया,धर्म आदि विस्तार के अध्ययन को 'पंचीकरण' कहते हैं.
सन 1992 के दौरान जब में अपने पूज्य गुरु महंत बालकदास साहेब के कृतित्व पर 'साक्षात्कार' नामक ग्रन्थ लिख रहा था तो गुरूजी ने अवश्य साधू बाबा का जिक्र किया था. मगर चूँकि उस समय मेरे अध्ययन का केंद्र गुरूजी थे, अत साधू बाबा के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं जान पाया.आज न तो गुरूजी हैं और न ही साधू बाबा मगर, मुझे लगता है, साधू बाबा के बारे में लिख कर मैं न सिर्फ अपनी गलती सुधार रहा हूँ बल्कि, इतिहास के इन पृष्ठों से लोगों को रूबरु करा रहा हूँ जो शायद अभी तक अनपलटे हैं.
एक बात और, इतिहास कोई एक आदमी नहीं लिखता. वास्तव में इतिहास घटनाओं का सिलसिला हैं, जो कई लोगों के द्वारा विभिन्न समय में लिखा जाता है. यह एक लेखन प्रवाह है, जो चलते रहता है. प्रस्तुत लेख के माध्यम से गुजारिश होगी कि जिन पाठकों को साधू बाबा के बारे में अधिक जानकारी हैं, कृपया वे मुझे अप-डेट कर इस कार्य को आगे बढ़ाये.
साधू बाबा महाराष्ट्र के जिला अमरावती के हैं. आपका जन्म महार जाति के राउरकर परिवार में हुआ था. बाबा कद-काठी के ऊंचे-तगड़े और आचार-विचार में सदाचारी के थे. उनके हाथ में हमेशा चिमटा और कुबजी तथा पैर में खडाऊं रहते थे. वे पंचीकरण* के सिद्धहस्त योगी थे.
साधू बाबा, सामाजिक-चेतना के कार्यों के अलावा जीवन-व्यापन के लिए छोटा-मोटा धंधा किया करते थे.अमरावती और इसके आस-पास कपास की खेती होती है. बाबाजी के पास एक ऊँट था.बाबाजी आस-पास के गांवों से कपास फुटकर में खरीदते और ऊँट की पीठ पर लाद कर दूर तुमसर की कपास मंडी में बेच आते .बाबाजी की एक बहन सुकडी में रहती थी.बाबाजी जब भी कपास लेकर तुमसर मंडी आते, अक्सर अपनी बहन के यहाँ मुकाम करते थे.मगर, यह तो एक माध्यम था. वास्तव में, साधू बाबा अमरावती से तुमसर तक की यात्रा में जगह-जगह संत-महात्माओं के बीच बैठकर सामाजिक-चेतना की अलख जगाते थे.
साधू की नजर साधू को तलाश करती है. शायद, इसी तलाश में सन 1937 के दरमियान साधू बाबा की नजर बपेरा के एक तेजस्वी बालक पर पड़ी जो 12-13 वर्ष की उम्र से ही साधू वेष में रहता था.
जल्दी ही साधू बाबा की कृपा इस बालक पर हुई. यही बालक, जो आगे चल कर ' कबीर पंथ के महंत गुरु बालकदास' के नाम से प्रख्यात हुए, को साधू बाबा ने योग्य उत्तराधिकारी जान गुरु परम्परा से प्राप्त रामानंद पंथ की गद्दी सौंप दी और खुद को धन्य समझा. क्योंकि, योग्य उत्तराधिकारी भाग्य से ही मिलता है. यह घटना सन 1941 की है.
.........................................................................................................................................................
*पांच तत्वों के गुण,क्रिया,धर्म आदि विस्तार के अध्ययन को 'पंचीकरण' कहते हैं.