Dr Ambedkar with his Independent Labour Party members |
इनडिपेंडेंट लेबर पार्टी का हिंदी तर्जुमा 'आजाद मजदूर संघ' कह सकते हैं। मगर, यह देश की आजादी के आंदोलन में इनडिपेंडेंट लेबर पार्टी (Independent Labour Party )' के नाम से ही दर्ज है। इसकी स्थापना डॉ आंबेडकर ने की थी। इसका उद्देश्य मजदूरों के हितों को सुरक्षित करना था।
अब आइए , इसके गठन की पृष्ठ भूमि पर गौर करे।
पाठकों को ध्यान हो कि सन 1932 के दौरान हुए पूना पेक्ट में डॉ आंबेडकर, हिंदुओं से दलित जातियों के लिए कुछ सामाजिक और राजनैतिक अधिकार मांगने में सफल हुए थे। लन्दन में हुए गोलमेज सम्मेलनों में डॉ आंबेडकर ने दलित हितों की जिस तीव्रता से पैरवी की थी , गांधीजी और कांग्रेस सहित ब्रिटिश सरकार पर उसका व्यापक प्रभाव पड़ा था। ब्रिटिश पार्लियामेंट में इण्डिया बिल पर बहस के दौरान कंजरवेटिव पार्टी के नेता ए डब्ल्यू गुडमैन ने भारत की दलित जातियों की सामाजिक -राजनैतिक अधिकारों के न्यायोचित मांगों की जोरदार वकालत की थी।
इधर , संवैधानिक सुधारों के परिप्रेक्ष्य में ब्रिटिश भारत में चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई थी। अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी चुनावों में भाग लेकर संवैधानिक सुधारों पर आगे बढ़ने को तैयार थी। नयी-नयी पार्टियों का उदय हो रहा था। प्रजा पार्टी, जस्टिस पार्टी , सेल्फ रिस्पेक्ट पार्टी, राष्ट्रीय खेतिहर पार्टी , डेमोक्रेटिक पार्टी, यूनियनिस्ट पार्टी, पॉपुलर पार्टी आदि कई चुनाव मैदान में आ डटी थी।
डॉ आंबेडकर समझ गए थे कि दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ना है तो चुनाव समर भूमि में उतरना होगा।
उन्होंने साथियों से सलाह-मशविरा कर 15 अग. सन 1936 में डॉ आंबेडकर ने 'इनडिपेंडेंट लेबर पार्टी' का गठन किया। इनडिपेंडेंट लेबर पार्टी के उद्देश्य निम्न प्रकार थे -
- राज्य पोषित उद्योगीकरण को बढ़ावा हो ।
- कारखाना- मजदूरों के हितों को सुनिश्चित करना ।
- जागीरदारी प्रथा को खत्म करना।
- उद्योगों/कारखानों में अच्छे पदों पर दलितों को न रखे का विरोध।
पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि उन्होंने नई पार्टी का गठन क्यों किया, इस पर डॉ आंबेडकर का जवाब था- ' प्रांतीय असेम्बलियों की कुल 175 में से सिर्फ 15 सीटें ही सुरक्षित हैं। अगर दलितों की आवाज शक्ति से उठाना है तो ये 15 सीटें अपर्याप्त हैं। डॉ आंबेडकर को इस चुनाव में 17 में से 15 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई थी।
उस समय श्रमिकों में भारी अशांति थी। मिल मालिकों द्वारा मजदूरों पर अत्याचार और शोषण की खबरों से अखबार पटे पड़े थे। डॉ आंबेडकर ने इसके विरुद्ध आवाज उठाने का फैसला किया था। डॉ आंबेडकर के नेतृत्व में 7 नव 1938 को मुम्बई के मिल और कार-कारखानों में एक दिन की हड़ताल करने की घोषणा की गई। हड़ताल सफल रही। डॉ आंबेडकर की ख्याति एक मजदूर नेता के रूप में चारों ओर फ़ैल गई ।
जहाँ तक अछूतों की समस्या थी, नौकरी के अन्य विभागों और संस्थानों की तरह मीलों में भी अनेक पद और स्थान ऐसे थे जहाँ अछूतों की नियुक्ति नहीं होती थी। यहाँ तक कि उन्हें रेलवे स्टेशनों पर कुली तक बनने का हक नहीं था। इस समय अछूतों को सेना में भो नहीं लिया जाता था। डॉ आंबेडकर ने बम्बई के गवर्नर को पत्र लिखा। यह डॉ आंबेडकर का ही प्रयास था कि सेना में न सिर्फ अछूतों की भर्ती शुरू हुई बल्कि, महारों के सेना में शौर्य का इतिहास देखते हुए महार बटालियन की स्थापना की गई। इस समय डॉ आंबेडकर भारत के वाइसरॉय के सुरक्षा सलाहकार थे ।
मगर, डा आंबेडकर की इस इनडिपेंडेंट लेबर पार्टी को श्रमिकों के लिए काम करने वाले कम्युनिस्ट पचा नहीं पा रहे थे। कम्युनिस्टों को भय था कि इससे मजदूरों का जाति के आधार पर विभाजन होगा। कम्युनिस्टों के इस दोगलेपन को उजागर करने का बीड़ा डा आंबेडकर ने उठाया। उन्होंने इस संबंध में अपने विचारों को अपनी प्रसिद्द पुस्तक 'एनहीलेशन ऑफ़ कास्ट' देश की जनता के सामने रखा। इस शोध लेख में उन्होंने सिद्ध किया कि हिन्दुओं की जाति; श्रम का विभाजन नहीं है बल्कि, यह श्रमिकों का भी विभाजन है। कम्युनिस्टों की पोल खोलते हुए डॉ आंबेडकर ने कहा कि वे मजदूरों के हितों की तो बात करते है। मगर, उन्हें दलित जातियों के मानवीय अधिकारों से कोई मतलब नहीं है।
सन 1938 में कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी के साथ इनडिपेंडेंट लेबर पार्टी ने कोकण प्रदेश में किसानों को ले कर एक बड़ा आन्दोलन चलाया था। इसी वर्ष, दूसरा आन्दोलन कम्युनिस्टों के साथ मुंबई टेक्सटाईल मिल के मजदूरों की हड़ताल के सम्बन्ध में चलाया गया था। डा आंबेडकर ने इनडिपेंडेंट लेबर पार्टी के मंच से कारखानों में कार्य रत मजदूरों के प्रति सरकार की गलत नीतियों का पर्दा-फांस किया था।
मुंबई विधान सभा में स्वतन्त्र मजदूर पार्टी ने विरोधी पक्ष की भूमिका निभाई थी। उस समय पार्टी के विधान सभा में 14 और विधान परिषद् में 2 सदस्य थे। मध्य प्रान्त और बरार की विधान सभा में 5 सदस्य थे। 1936 से 1942 के दौरान डॉ अम्बेडकर, मजदूरों के नेता के तौर पर कार्य कर रहे थे(धम्म चक्र प्रवर्तन के बाद परिवर्तन : डॉ प्रदीप आगलावे पृ 234 )।
1942 में सर स्टेफोर्ड क्रिप्स भारत के स्वतंत्रता की योजना लेकर भारत आए। डॉ अम्बेडकर ने क्रिप्स मिशन के सामने अछूतों की राजनीतिक मांगें 'स्वतन्त्र मजदूर पार्टी' के द्वारा रखी। किन्तु क्रिप्स ने उनकी मांग पर विचार करने को इंकार कर दिया और कहा कि वे 'मजदूर संगठन' की बजाय किसी जातीय संगठन के प्लेट्फॉर्म से अछूतों की राजनीतिक मांगे रखें(वही, पृ 235 )।
परिणामस्वरूप, 18-19 जुला 1942 को नागपुर में अखिल भारतीय स्तर के अछूतों का सम्मेलन आयोजित कर 'ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन' का गठन किया गया। डॉ अम्बेडकर इसके अध्यक्ष डॉ चुने गए किन्तु इसी बीच 9 जुला 1942 को वॉयसरॉय के मंत्री-मंडल में उन्हें लेने के कारण मद्रास के राव बहादुर एन शिवराज को फेडरेशन का अध्यक्ष बनाया गया(वही )।
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