- हिन्दू ,जो इस देश के अधि-संख्यक हैं,का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन सुचिता से लबरेज नहीं है.वो जिन संस्कारों में पलता-बढ़ता है,वे व्यक्ति की सामाजिक-नैतिकता को सपोर्ट नहीं करते हैं.
- प्रत्येक दिन स्नान करने के बाद हम घर या मन्दिर में भगवान की पूजा करते हैं.अपने अराध्य देवी या देवता को अगरबत्ती लगा के प्रार्थना करते हैं कि हमें फलां-फलां काम में सफलता मिले.हम में से बहुत-से लोग तो इससे भी दो हाथ आगे बढ कुछ 'कमिटमेंट' कर लेते हैं.मुझे लगता हैं कि हमारे दिन की शुरुआत यहीं से गलत होती हैं.नैतिक भ्रष्टाचार यहीं से आरम्भ होता है और ये 'लेन-देन' का काम देर रात तक चलते रहता है
- हमारे यहाँ सबसे बड़े भ्रष्टाचार के अड्डे तो देवी-देवताओं के मन्दिर है.यहाँ बेहिसाब पैसा है.यहाँ लोगों की आस्था को दुहा जाता है.वास्तव में व्यक्ति के सामाजिक जीवन की सुचिता को यहीं भंग किया जाता है.पण्डे-पुजारियों की जमात ने हिन्दुओं के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को भ्रष्ट कर दिया है.
हमारा देश धर्म-निरपेक्ष है.लोगों को अपने-अपने विचार रखने की आजादी है.मगर आप अयोध्या का मुद्दा उठा कर चुनाव नहीं लड़ सकते ?अगर बी जे पी जैसी प्रमुख विपक्ष की पार्टी पंडा-पुजारियों का इस्तेमाल कर राजनितिक रोटियां सेकती हैं तो फिर आप भ्रष्टाचार कैसे समाप्त कर सकते हैं ?
- हमारे यहाँ कानून घूस लेने वालों को ध्यान में रख कर बनाये गए हैं.दूसरे, अधिकतर कानून सामाजिक और आर्थिक असमानता को बढ़ावा देने वाले हैं.कानूनों को लागू करने के तरीके भी भेदभाव पूर्ण हैं. अगर भ्रष्टाचार मिटाने में आप गम्भीर हैं, तो जरुरत पहले इन कानूनों को बदलने की है.
20/- रुपये लुटने वाले को 7 वर्ष की सजा होती है.मगर, 47 करोड़ के बैंक घोटाले में महज 1 वर्ष की सजा होती है !
उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के अनुसार प्रबंधन को यह अधिकार दिया गया है की यदि कोई श्रमिक 10/- रुपये की भी अगर गडबडी करे तो उसे सेवा से हटाया जा सकता है.क्योंकि, उसने प्रबंधन का विश्वास खो दिया है.
- हमारे यहाँ उच्च श्रेणी और निम्न श्रेणी के वेतनमानों में जमीन आसमान का अंतर है.आखिर इतना भारी अंतर रखने की भला क्या जरुरत है ? क्या श्रम के प्रति यह घोर उपेक्षा और घृणा का परिचायक नहीं है ?लोवर पेड कर्मचारियों में व्याप्त यह आर्थिक असंतोष कहीं न कहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है.
-जैसे की राहुल गाँधी ने कहा है, चुनाव में आने वाला भारी भरकम खर्च राजनीतिक भ्रष्टाचार की जड़ है.इसे सीमित कर भ्रष्टाचार को ख़त्म किया जा सकता है.या चाहे तो इसे सरकार वहन कर सकती है.
- भरी संसद में करोड़ों रुपये के नोटों के बण्डल सांसदों द्वारा लहराए जाते हैं ! बाद में पता चलता है कि सरकार को अस्थिर करने के लिए कुछ विपक्षी सांसदों द्वारा रचा गया यह एक षड्यंत्र का हिस्सा है ! वह भी कब ? जब देश का सर्वोच्च न्यायालय केस को दबाने के लिए सीबीआई को फटकार लगाता है.अब किरण बेदी कहती है कि उसने रामलीला मैदान में सांसदों को जो आइना दिखायी है,वह उससे भी बड़ा आइना दिखाएगी, तो इस में बुरा मानने की क्या बात है ?
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