पालि को जन-भाषा बनाने की कार्य-योजना-
सीखने की क्षमता बच्चों में सर्वाधिक होती है. बच्चों को पालि पढ़ा कर कुछ ही वर्षों में इसे 'जन-भाषा' बनाया जा सकता है.
1- सामाजिक उत्थान में कार्य-रत कुछ समाज-सेवी स्थान-स्थान पर कोचिंग क्लासेस चलाते रहते हैं. इसमें पालि भाषा एक अतिरिक्त विषय के रूप में पढ़ायी जा सकती है.
2. प्रत्येक रविवार को विभिन्न स्थानों पर स्थित बुद्ध विहारों में आस-पास में रहने वाले बच्चों को एकत्र कर एक घंटे की कोचिंग क्लास लगायी जा सकती है.
प्रो. प्रफुल्ल गढ़पाल जैसे सक्षम अधिकारी द्वारा वर्ग- 1 से वर्ग 5 तक की कक्षाओं के लिए रंग-बिरंगी सुन्दर पुस्तकें तैयार हैं. संस्कृत से अत्यंत सरल होने के कारण प्रारंभिक तौर पर पालि पढ़ाने किसी दक्षता की आवश्यकता नहीं है. सामान्य हिन्दी/संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षक भी पालि पढ़ा सकते हैं. स्मरण रहे, प्रो. गढ़पाल बीच-बीच में इस सम्बन्ध में 10 से 15 दिनों के 'पालि प्रशिक्षण शिविर' आयोजित करते रहते हैं.
पालि' सीखना आवश्यक है.
भाषा, संस्कृति का हिस्सा है. बोल-भाषा और आचार-विचारों से ही संस्कृति का निर्माण होता है. हमारा देश बहु-भाषी देश है. निस्संदेह यहाँ संस्कृतियाँ अनेक हैं. हर समाज की अपनी भाषा और संस्कृति है.
पालि का सम्बन्ध जितना ति-पिटक से हैं, उससे कहीं अधिक सम्बन्ध बुद्ध की वाणी से है. पालि, बुद्ध की भाषा है. पालि बुद्ध के वचन है. आप पालि सीख कर बुद्ध वचनों को सीखते हैं.
जिस प्रकार, समाज और संस्कृति पर्यायवाची हैं, ठीक उसी प्रकार भाषा और संस्कृति पर्याय वाची है. आप संस्कृति से भाषा को अलग नहीं कर सकते. भाषा है तो संस्कृति है और संस्कृति है तो समाज है. और इसलिए बुद्ध को नष्ट करने के लिए सर्व-प्रथम उसकी भाषा अर्थात उसके ग्रंथों को जलाया गया. महीनों नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, जगद्दल आदि बौद्ध विश्वविद्यालयों के विशाल ग्रंथालय जलते रहे.
पालि हमारी संस्कृति है, हमारी अस्मिता है. यह हमारी संस्कार-भाषा है. सारे बौद्ध संस्कार हमारे पालि में होते हैं और इसलिए, बाबासाहब अम्बेडकर द्वारा पुनर्स्थापित बुद्ध और उनके धम्म को बचाए रखना है, क्योंकि, तो पालि सीखना आवश्यक है.