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01. 07. 2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
सो होति। ते होन्ति।
सो अत्थि। ते सन्ति।
1. एकं 2. द्वे
3. तीणि 4. चत्तारि
5. पंच 6. छह
7. सत्त 8. अट्ठ
9. नव 10. दस
11. एकादस 12. द्वादस/बारस
13. तेरस/तेळस 14. चतुद्दस
15. पंचदस/पण्णरस 16. सोळस
17. सत्तदस 18. अट्ठदस
19 एकूनवीसति 20. वीसति
21. एकवीसति 22. बावीसति
23. तेवीसति 24. चतुवीसति
25. पंचवीसति 26. छब्बीसति
27. सत्तवीसति 28. अट्ठवीसति
29. एकूनत्तिंसति 30. त्तिंसति
31. एकत्तिंसति 32. बत्तिंसति
33. तेत्तिंसति 34. चतुत्तिंसति
35. पंचत्तिंसति 36. छहत्तिंसति
37. सत्तत्तिंसति 38.अट्ठत्तिंसति
39. एकूनचत्तालिसति 40. चत्तालिसति/चत्ताळीसति
41. एकचत्तालिसति 42. द्वेचत्तालिसति
43. तिचत्तालिसति 45. चतुचत्तालिसति
45. पंचचत्तालिसति 46. छहचत्तालिसति
47. सत्तचत्तालिसति 48. अट्ठचत्तालिसति
49. एकूनपञ्चासा 50 पञ्चासा
एकं च एकं योगं द्वे होति।
तीणि च चत्तारि योगं सत्तं होति।
पञ्च च अट्ठं योगं तेळस होति।
एकादसं च बाविसति योगं तेत्तिंसति होति।
एकं गुणितं एकं, एकं होति।
तीणि गुणितं पञ्च पञ्चदसं होति।
सत्तं गुणितं अट्ठं छह पञ्चासा होति।
छह गुणित छह छहत्तिंसति।
पञ्च उन तीणि द्वे सेसेति/अवसेसति।
बारस उन छह, छह होति/सेसेति।
पञ्चविसति उन पञ्च, विसति होति/सेसेति
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03. 06. 2020
कनिट्ठ माणवकानं
पालि किय सरला भासा!
वत्तमान(पचुपन्न) कालोः परस्सपद
पुरिस एकवचन अनेकवचन
उत्तम पुरिसो अहं पठामि। अम्हे पठाम।
(मैं पढ़ता हूँ) (हम पढ़ते हैं)
मज्झिम पुरिसो त्वं पठसि। तुम्हे पठथ।
(तुम पढ़ते हो) (तुम लोग पढ़ते हों)
पठम पुरिसो सो पठति। ते पठन्ति।
(वह पढ़ता है) (वे पढ़ते हैं)।
वाक्यानि पयोगा-
1. विसाखा बुद्धविहारं गच्छति।
विसाखा बुद्धविहार जाती है।
2. मातु भोजनं पचति।
माता भोजन पकाती है।
3. कम्मकरो सीसेन भारं वाहेति।
कर्मकार सीर से भार वहन करता है।
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जेट्ठ माणवकानं
‘तुं’ निमित्तार्थक किरिया-प्रत्यय
पालि में किरिया के साथ ‘तुं’ प्रत्यय का प्रयोग ‘के लिए’ के अर्थ हेतु किया जाता है।
1. बालिका पाठसालं गन्तुं इच्छति।
2. बालका कीळितुं कीळांगणं गच्छन्ति।
3. अहं अम्बु-फलं खादतुं इच्छामि।
4. भवं किं कातुं इच्छति?
5. भरिया मातु-घरं गन्तुं इच्छति।
6. सिस्सा पालि भासा लिखितुं जानन्ति।
7. सो नहायितुं तळाकं गच्छति।
8. खेत्तं रुन्धितुं गच्छ आनेहि।
9. पथिको गामं गन्तुं मग्गं न जानाति।
10. राहुलो तिपिटकं पठितुं आचरियस्स सन्तिके गच्छति।
गन्तुं(गच्छति)- जाने के लिए।
कीळितुं(कीळति)- खेलने के लिए।
कातुं(करोति)- करने के लिए। सन्तिके- नजदीक
गच्छ- रुन्धने की घास। आनेहि- लाओ।
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04. 07. 2020
कनिट्ठ माणवकानं
वत्तमान(पचुपन्न) कालोः परस्सपद
पुरिस एकवचन अनेकवचन
उत्तम पुरिसो अहं पठामि। अम्हे पठाम।
(मैं पढ़ता हूँ) (हम पढ़ते हैं)
मज्झिम पुरिसो त्वं पठसि। तुम्हे पठथ।
(तुम पढ़ते हो) (तुम लोग पढ़ते हों)
पठम पुरिसो सो पठति। ते पठन्ति।
(वह पढ़ता है) (वे पढ़ते हैं)।
वाक्यानि पयोगा
एकवचन अनेक/बहु वचन
1. अहं बुद्धं सरणं गच्छामि। मयं बुद्धं सरणं गच्छाम।
2. बालको बुद्धं वन्दति। बालका बुद्धं वन्दन्ति।
3. अहं रथेन गच्छामि। मयं रथेन गच्छाम।
4. अहं जलं पिबामि। मयं जलं पिबाम।
5. त्वं रथेन गच्छसि। तुम्हे रथेन गच्छथ।
6. त्वं दण्डेन सुनखं पहरसि। तुम्हे दण्डेहि सुनखे पहरथ।
7. सुदो घटे धोवति। सुदा घटे धोवन्ति।
8. सकुणो रुक्खे वसति। सकुणा रुक्खेसु वसन्ति।
4. वर्तमानकाल की दी गई क्रियाओं में से रिक्त स्थान भरिए ?
(गच्छामि/पिबामि/गच्छाम/वन्दति)
अहं बुद्धं सरणं ...........।
बालको बुद्धं ..............।
मयं रथेन ..................।
अहं जलं ..................।
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जेट्ठ माणवकानं
‘तुं’ निमित्तार्थक किरिया-प्रत्यय
पालि में किरिया के साथ ‘तुं’ प्रत्यय का प्रयोग ‘के लिए’ के अर्थ हेतु किया जाता है।
वाक्यानि पयोगा-
सो अत्तनो धीतरं विवाह इदानि संवच्छरे कातुं न इच्छति।
अहं अत्तनो धीतरं भवं पुत्तस्स दातुं इच्छामि।
अहं भरियाय सद्धिं पाठसालं गन्तुं इच्छामि।
कुहिं त्वं भरियाय सद्धिं गन्तुं गच्छसि?
सिस्सा इदानि पालि भासाय लेखनानि लिक्खितुं जानन्ति।
नरा भारियानं दातुं आपनेहि वत्थानि कीणान्ति।
दारिका घरं गन्तुं मग्गं न जानाति।
गिलाना घरानि गन्तुं ओसधसालाय निक्खिमन्ति।
भारिये, कुहिं त्वं गन्तुं इच्छसि?
भारिया दारिकानं दातुं ओदनं पचति।
दारिकायो उग्गण्हितुं पाठसालं गच्छन्ति।
ते गंगाय कीळितुं इच्छन्ति।
कञ्ञायो आहरं भुञ्जितुं सालायं निसिदन्ति।
खेत्त रुन्धितुं गच्छं (गाछ/पौधा) आनेहि।
सो नहायितुं नदिं गच्छति।
अजाय खीरं पातुं बालको इच्छति।
अहं तिपिटकं पठितुं आचरियस्स सन्तिके गच्छामि।
धम्मं सोतुं अम्हे गच्छाम।
मम भरिया अज्झेतुं विज्झालयं गच्छति।
सो अत्तनो आहरं पचितुं तण्डुलं याचति।
किञ्चि ‘पि कातुं सो न जानाति।
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05. 07. 2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ माणवकानं
वत्तमान(पचुपन्न) कालोः परस्सपद
पुरिस एकवचन अनेकवचन
उत्तम पुरिस अहं पठामि। अम्हे पठाम।
(मैं पढ़ता हूँ) (हम पढ़ते हैं)
मज्झिम पुरुस त्वं पठसि। तुम्हे पठथ।
(तुम पढ़ते हो) (तुम लोग पढ़ते हों)
पठम पुरिस सो पठति। ते पठन्ति।
(वह पढ़ता है) (वे पढ़ते हैं)।
वाक्यानि पयोगा
एकवचन अनेक/बहु वचन
1. अहं बुद्धं सरणं गच्छामि। मयं बुद्धं सरणं गच्छाम।
2. बालको बुद्धं वन्दति। बालका बुद्धं वन्दन्ति।
3. अहं रथेन गच्छामि। मयं रथेन गच्छाम।
4. अहं जलं पिबामि। मयं जलं पिबाम।
5. त्वं रथेन गच्छसि। तुम्हे रथेन गच्छथ।
6. त्वं दण्डेन सुनखं पहरसि। तुम्हे दण्डेहि सुनखे पहरथ।
7. सुदो घटे धोवति। सुदा घटे धोवन्ति।
8. सकुणो रुक्खे वसति। सकुणा रुक्खेसु वसन्ति।
जेट्ठ माणवकानं
‘तुं’ निमित्तार्थक किरिया-प्रत्यय
पालि में किरिया के साथ ‘तुं’ प्रत्यय का प्रयोग ‘के लिए’ के अर्थ हेतु किया जाता है।
1. लिखति- लिखता है।
अहं लिखितुं वायामो करोमि। मयं लिखितुं वायामो करोम।
मैं लिखने के लिए प्रयास करता हूँ। हम लिखने के लिए प्रयास करते हैं।
इसी प्रकार वाक्य बनाईये-
2. धावति- दौड़ता है। .................................।.................................।
3. चलति- चलता है। .................................।.................................।
4. पठति- पढ़ता है। ...................................।.................................।
5. खेलति- खेलता है। ................................।.................................।
6. नमति- नमन करता है। ..........................।.................................।
7. पस्सति- देखता है। ...............................।.................................।
8. निसीदति- बैठता है। ...............................।.................................।
9. उट्ठहति- उठता है। ...............................।.................................।
10. विहरति- विहार करता है। ......................।................................।
11. नहायति- नहाता है। ..............................।.................................।
12. इच्छति- इच्छा करता है। ........................।.................................।
13. चजति- त्याग करता है। .........................।.................................।
14. देति- देता है। .......................................।.................................।
15. खादति- खाता है। ..................................।.................................।
16. याचति- याचना करता है। .......................।.................................।
17. नच्चति- नाचता है। ................................।.................................।
18. धोवति- धोता है। ..................................।.................................।
19. सुणोति- सुनता है। ................................।.................................।
20. निन्दति- निन्दा करता है। .......................।.................................।
21. गायति- गाता है। ..................................।.................................।
22. पिबति- पीता है। ..................................।.................................।
23. सयति- सयन करता है। ........................।.................................।
24. रक्खति- रक्षा करता है। .........................।.................................।
25. खिप्पति- फेंकता है। ..............................।.................................।
26. सेवति- सेवा करता है। ..........................।.................................।
27. कम्पति- काम्पता है। .............................।.................................।
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06. 07. 2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
वर्ण परिचय
बुद्धकाल में हुए भदन्त कच्चायन ने पालि भाषा का व्याकरण तैयार किया था। उन्होंने उसमें 8 स्वर और 33 वर्ण मिलाकर 41 वर्ण माने थे।
भदन्त कच्चायन के अनन्तर भदन्त मोग्गलायन ने अपने व्याकरण में ‘ऐ’ और ‘औ’ को मिलाकर 10 स्वर और 33 व्यंजन माने।
किन्तु वर्तमान में कच्चायन व्याकरण ही मान्य है, जिसमें 8 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं-
स्वर
अ आ, इ ई, उ ऊ, ए ऐ, ओ औ
एक जोडी को एक सवर्ण कहा गया है।
यथा- अ आ, इ ई, उ ऊ, ए ऐ, ओ औ
व्यंजन
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
स ह ळ अं.
1. पांच-पांच वर्ण के पांच वर्ग होते हैं, जैसे क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त
वर्ग, प वर्ग। क वर्ग में क ख ग घ ड ये पांच वर्ण आते हैं, इस प्रकार
33 वर्ण हैं। प्रत्येक वर्ग का पांचवां वर्ण ‘अनुनासिक’ होता है।
2. पालि में अं( ं ) को निग्गहित(अनुस्वार) कहते है। इसे व्यंजन माना जाता है। इसका उच्चारण ‘अं ’ और ग को मिलाकर किया जाता है। जैसे, बुद्धं = बुद्ध+अं।
3. ङ और अं के उच्चारण में कोई अन्तर नहीं होता। ‘ङ’ कभी भी शब्द के अन्त में नहीं आता है, बल्कि उसके साथ सदैव उसी वर्ग का कोई व्यंजन रहता है।
4. ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ का उच्चारण ‘ह’ ध्वनि के साथ किया जाता है।
5. पालि भाषा में विसर्ग(: ) और हलन्त( ् ) का प्रयोग नहीं होता है। सभी शब्द स्वरान्त होते हैं।
गृह - गहं। नृत्यं- नच्चं। कृत- कतं।
धृत- धतं। नृत्य- नच्चं। यहां ‘अ’ का उच्चारण होता है।
कृत्य- किच्चं। दृष्ट- दिट्ठ। ऋण- इणं। यहां ‘ऋ’ का ‘इ’ हुआ।
ऋषि - इसि। यहां ऋ’ का ‘इ’ और ‘षि’ का ‘सि’ हुआ।
ऋतु- उतु। ऋषभ- उसभ। वृष्टि- वुट्ठि। यहां ‘ऋ’ का ‘उ’ हुआ।
7. पालि में मूर्धन्य ‘ष’ तथा तालव्य ‘श’ नहीं होते हैं। इन दोनों के स्थान पर दन्त्य ‘स’ का प्रयोग होता है। यथा-
यश- यस। शिष्य- सिस्स आदि।
8. हिन्दी का क्ष पालि में ‘क्ख’ हो जाता है। यथा- शिक्षा- सिक्खा आदि।
9. इसी प्रकार ‘ऐ’ और ‘औ’ पालि में ए और ओ हो जाता है। यथा-
ऐरावण- एरावण।
वैमानिक- वेमानिक। वैयाकरण- वेयाकरण।
कभी.कभी ‘ऐ’ का ‘इ’ अथवा ‘ई’ हो जाता है। यथा-
गैवेयं- गीवेय्यं। सैन्धव- सिन्धवं।
औदरिक- ओदरिक। दौवारिक- दोवारिक।
कभी.कभी ‘औ’ का अथवा ‘उ’ हो जाता है। यथा-
मौत्त्किक- मुत्तिक। औद्धत्य- उद्धच्च।
यहां ‘मौ’ का मु(म + उ ) और ‘औ’ का उ(अ + उ ) हुआ।
10. पालि में ‘ल’ और मराठी के समान ‘ळ’ भी होता है।
11. पालि में ‘र’ वाला रेफ और संयुक्त ‘र’ का लोप हो जाता है। यथा-
कर्म- कम्म। निर्जल- निज्जल।
सर्व- सब्ब। वर्ग- वग्ग।
तर्हि- तरहि। एतर्हि- एतरहि।
आर्य- अरिय। सूर्य- सुरिय।
भार्या- भरिया। पर्यादान- परियादान।
तिर्थ- तित्थ। धार्मिक- धम्मिक।
संयुक्त ‘र’ का लोप-
क्रीत- कीत। प्रेत- पेत।
ग्राम- गाम। प्रक्रम- पक्कम।
त्रिपिटक- ति-पिटक। स्रावक- सावक।
सूत्रा- सुत्त। समुद्र- समुद्द।
समग्र- समग्ग। आदि।
11. पालि में ‘ष्ट’ या ‘ष्ठ’ के स्थान पर ‘ट्ठ’, तथा ‘स्त’ के स्थान पर ‘थ’, ‘त्थ’ अथवा ‘त्त’ हो जाता है। यथा-
स्तम्भ- थम्भ। हस्ती- हत्थी। दुस्तर- दुत्तरं।
12. निम्न परिवर्तन भी दृष्टव्य है-
स्थूल- थूलो। स्थान- ठानं। अस्थि- अटि। मस्त्य- मच्छो।
उल्का- उक्का। फल्गु- फग्गु। ग्लान- गिलानो।
क्लेश- किलेसो। ज्वलति- जलति।
पक्वं- पक्कं। अध्दा- अद्धा। ह्रस्व- रस्सो। स्कन्ध- खन्धो।
निष्क्रम- निक्खम्मो। पश्चात- पच्छा।
स्पृशति- फुसति। पुष्पं- पुप्फं। देय- देय्यं। श्रेय- सेय्यो।
सप्त- सत्तं। लवण- लोणं। स्नेह- सनेहो।
चन्द्रमा- चन्दिमा। गुरु- गरु। पुरुष- पुरिस। कील- खीलो।
प्रसेनजित- पसेनदि। प्रति- पटि। प्रत्यय- पच्चय।
प्रज्ञा- पञ्ञा। संज्ञा- संञ्ञा। ज्ञाति- ञाति। ज्ञान- ञाणं।
धान्य- धञ्ञं । सून्य- सुञ्ञं । हीरण्य- हिरञ्ञं।
पृथ्वी- पठवी। दहति- डहति आदि।
12. संयुक्त व्यंजनों को लिखते समय पहले उच्चारित व्यंजन को ऊपर और बाद में उच्चारित व्यंजन को नीचे लिखा जाता है।
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07. 07. 2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
पूर्वकालिक किरिया रूप
'कर' अथवा 'करके' के अर्थ में किरिया में 'त्वा' प्रत्यय लगाया जाता है। यथा -
करोति- करता है। करित्वा(कर)
धावति- दौड़ता है। धावित्वा(दौड कर)
खादति- खाता है। खादित्वा(खा कर)
इसी प्रकार निम्न किरिया शब्दों में 'त्वा' प्रत्यय लगा कर छोटे-छोटे वाक्य बनाईये-
2. धावति- दौड़ता है। .................................।
3. चलति- चलता है। .................................।
4. पठति- पढ़ता है। ...................................।
5. खेलति- खेलता है। .................................।
6. नमति- नमन करता है। ..........................।
7. पस्सति- देखता है। ...............................।
8. निसीदति- बैठता है। ...............................।
9. उट्ठहति- उठता है। ................................।
10. विहरति- विहार करता है। ......................।
11. नहायति- नहाता है। ..............................।
12. इच्छति- इच्छा करता है। ........................।
13. चजति- त्याग करता है। .........................।
14. देति- देता है। .........................................।
15. खादति- खाता है। ..................................।
16. याचति- याचना करता है। .......................।
17. नच्चति- नाचता है। ................................।
18. धोवति- धोता है। ....................................।
19. सुणोति- सुनता है। ..................................।
20. निन्दति- निन्दा करता है। .......................।
21. गायति- गाता है। ....................................।
22. पिबति- पीता है। ....................................।
23. सयति- सयन करता है। ..........................।
24. रक्खति- रक्षा करता है। ..........................।
25. खिप्पति- फेंकता है। ...............................।
26. सेवति- सेवा करता है। ............................।
27. कम्पति- काम्पता है। .............................।
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08. 07. 2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
'त्वा' प्रत्यय
(भूतकालिक निपात/पूर्वकालिक किरिया)
‘कर’ या ‘करके’ के अर्थ के लिए धातु में 'त्वा' प्रत्यय जोड़ा जाता है।
'त्वा' प्रत्यय लगने के पूर्व धातु के आगे बहुधा 'इ' लग जाता है।
यथा-
पच-त्वा(पचित्वा)- पका कर।
गमु-त्वा(गन्त्वा)- जा कर।
ठा-त्वा(ठत्वा)- खड़ा होकर।
निसीदित्वा- बैठ कर।
कीळित्वा- खेलकर।
पा-त्वा(पित्वा)/पिबित्वा।
कभी-कभी ‘त्वा’ के स्थान पर ‘त्वान’ या ‘तून’ प्रत्यय जोड़े जाते हैं-
कत्वा/करित्वा/कत्वान/कातून- करके।
सुत्वा/सुत्वान/सोतून- सुन कर
पा-त्वा(पित्वा)/पिबित्वा/पिबित्वान/पिबितून- पी कर; आदि।
कभी कभी इस प्रकार के प्रयोग देखने मिलते हैं-
आ-गमु-त्वा(आगत्वा)/आगम्म-आ कर।
सक्करित्वा/सक्कच्च- सत्कार करके।
समेत्वा/समेच्च- मिलकर
वाक्यानि पयोगा-
सो मग्गे धावित्वा विहारं गच्छति।
तथागतो अनुकम्पं कत्वा धम्मं देसेति।
माणवा पातोव पबुज्झित्वा पोत्थके वाचन्ति।
धम्मं सुत्वा गहपतीनं बुद्धे सद्धा उप्पज्जति।
भिक्खु तस्स उपकारं सरित्वा पब्बाजेति।
सुनखा अट्ठीनि गहेत्वा मग्गे धावन्ति।
सकुणा खेत्तेसु वीहिं दिस्वा खादन्ति।
अतिथि अम्हाकं घरं आगन्त्वा आहारं भुञ्जति।
कपयो रुक्खं आरुहित्वा फलानि खादन्ति।
तच्छका रुक्खे छिन्दति, साखा-पलासे कन्तित्वा पीठं करोन्ति।
निम्न किरिया शब्दों के साथ इसी प्रकार के वाक्य बनाईये-
28. मद्दति- मर्दन करता है।
29. निम्मीलेति- आंखे झपकता है।
30. उम्मीलेति- आंखे खोलता है।
31. निवसति- निवास करता है।
32. तोटेति- तोड़ता है।
33. कत्तेति- काटता है।
34. खण्डेति- खण्ड-खण्ड करता है।
35. जलति- जलता है।
36. पप्पोति- प्राप्त करता है।
37. लभति- प्राप्त करता है।
38. विकसति- विकसित करता है।
39. वड्ढेति- बढ़ता है।
40. जानाति- जानता है।
41. बुज्झति- बुझता/समझता है।
42. अन्विसति- अन्वेषण करता है।
43. हिंसति- हिंसा करता है।
44. लज्जति- लज्जा/शर्माता है।
45. सोभति- शोभा देता है।
46. रोचति- रुचिकर लगता है।
47. हसति- हंसता है।
48. रुदति- रुदन करता है।
49. पचति- पकाता है।
50. उड्डेति- उड़ता है।
51. डयति- उड़ता है।
52. चिनोति- चुनता है।
53. उपदिसति- उपदेश देता है।
54. कण्डुवति- खुजलाता है।
55. झायति- ध्यान करता है।
56. जयति- जीतता है।
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09. 07. 2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
पूर्वकालिक किरिया रूप
'कर' अथवा 'करके' के अर्थ में 'त्वा' प्रत्यय धातु में लगाया जाता है। यथा -
कर(करना)+ त्वा- कत्वा/करित्वा(करके)।
धाव(दौड़ना)+ त्वा- धावित्वा(दौड कर)
वाक्यानि पयोगा-
सीलरतनो सिनानं करित्वा पाठसालं गच्छति।
विसाखा धावित्वा बुद्ध विहारं गच्छति।
धम्मरक्खिता चलित्वा करियालयं गच्छति।
विवेको गायित्वा सिनानं घरे नहायति।
इसी प्रकार निम्न किरिया शब्दों में 'त्वा' प्रत्यय लगाकर छोटे-छोटे वाक्य बनाईये-
2. धावति- दौड़ता है। .................................।
3. चलति- चलता है। .................................।
4. पठति- पढ़ता है। ...................................।
5. खेलति- खेलता है। .................................।
6. नमति- नमन करता है। ..........................।
7. पस्सति- देखता है। ...............................।
8. निसीदति- बैठता है। ...............................।
9. उट्ठहति- उठता है। ................................।
10. विहरति- विहार करता है। ......................।
11. नहायति- नहाता है। ..............................।
12. इच्छति- इच्छा करता है। ........................।
13. चजति- त्याग करता है। .........................।
14. देति- देता है। .........................................।
15. खादति- खाता है। ..................................।
16. याचति- याचना करता है। .......................।
17. नच्चति- नाचता है। ................................।
18. धोवति- धोता है। ....................................।
19. सुणोति- सुनता है। ..................................।
20. निन्दति- निन्दा करता है। .......................।
21. गायति- गाता है। ....................................।
22. पिबति- पीता है। ....................................।
23. सयति- सयन करता है। ..........................।
24. रक्खति- रक्षा करता है। ..........................।
25. खिप्पति- फेंकता है। ...............................।
26. सेवति- सेवा करता है। ............................।
27. कम्पति- काम्पता है। .............................।
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10. 07. 2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
विसेसण सद्दा-
विसेसण, लिंग, विभक्ति और वचन में अपने विशेष्य का अनुकरण करते हैं।
विसेसण 4 प्रकार के होते हैं-
1. गुणवाचक- सुन्दरो बालको।
2. संख्यावाचक- एको बालको।
3. कृदन्त- पठमो बालको।
4. तद्धितान्त- पठमानो(पढ़ता हुआ) बालको।
1. गुणवाचक-
पुल्लिंगे-
एकवचन- अनेकवचन
सुन्दरो बालको। सुन्दरा बालका।
विसालो गजो। विसाला गजा।
सुगमो मग्गो। सुगमा मग्गा।
अनुत्तरो धम्मो। अनुत्तरा धम्मा।
इत्थिलिंगे-
सुन्दरी बालिका। सुन्दरियो बालिकायो।
गुणवंती दारिका। गुणवन्तियो दारिकायो
धाविका कञ्ञा। धाविकायो कञ्ञायो।
सुफला लता। सुफलायो लतायो।
नपुंसकलिंगे-
सुन्दरं फलं। सुन्दरानि फलानि।
सीतलं जलं। सीतलानि जलानि।
विसालं नगरं। विसालानि नगरानि।
उच्चं आसनं। उच्चानि आसनानि।
कुछ गुणवाचक विशेषण, सब्द-
अखिल, अब्भुत, अनुत्तर, अन्ध, अप्प, उग्ग, उण्ह, कटुक
अतीत, अधम, अनुरत्त(अनुरक्त), अलस, अड्ढ(धनी), उच्च
उजु, काण, गोल, चंचल, दुब्बल, पिय, वधिर, मलिन, रस्स
विचित्त, विसाल, सीतल, सुफल, धम्मिक, नव, पोराण, फरुस
मत(मृत), मूग(गूंगा), रित्त, विनित, वित्थत, सुक्क, सुगम आदि।
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11. 07. 2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
विसेसण सद्दा-
2. संख्या-विसेसण
पुल्लिंगे-
एको बालको।
द्वे/दुवे बालका।
तयो बालका।
चतुरो बालका।
पञ्च बालका।
इत्थिलिंगे-
एका बालिका।
द्वि बालिकायो।
तिस्सो बालिकायो।
चतस्सो बालिकायो।
पञ्च बालिकायो।
नपुसंकलिंगे-
एकं फलं।
द्वि फलानि।
तीनि फलानि।
चत्तारी फलानि।
पञ्च फलानि।
-पञ्च से आगे एकूनविसति तक पञ्च के समान ही 'संख्या विसेसण' लगते हैं।
विंसति मनुस्सा। विंसति इत्थी। विंसति फलानि।
पञ्चासा मनुस्सा। पञ्चासा इत्थी। पञ्चासा फलानि।
वाक्यानि पयोगा-
एका बालिका विणा मधुरं वादेति।
सा एकं पुप्फं गुच्छं देति।
एक किलोगाम सेब फलं किय मूल्यं अत्थि ?
अहं एकस्मिं ठाने तिट्ठामि।
दुवे गायिकायो अम्हाकं गामे आगच्छन्ति।
सीलरतनो एकस्स याचकस्स भिक्खं देति।
अहं द्वीहि नेत्तेहि पस्सामि।
एकस्मिं मासे चत्तारा सत्ताहा होन्ति।
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12. 07. 2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
विभत्तिरूप
1.6 ‘इ’कारान्त इत्थिलिंगे
1.6.1 भूमि
विभत्ति एकवचनं- अनेकवचनं
पठमा- भूमि- भूमी, भूमियो
दुतिया- भूमिं- भूमी, भूमियो
ततिया- भमिया- भूमीहि, भूमीभि
चतुत्थी- भूमिया- भूमिनं
पञ्चमी- भूमिया- भूमीहि, भूमीभि
छट्ठी- भूमिया- भूमीनं
सत्तमी- भूमिया, भूमियं- भूमीसु
आलपनं- भूमि- भूमी, भूमियो
समं रूपं-
अटवि(जंगल), अरति(अरुचि), असनि(बिजली), अवनि, अंजलि, आसन्दि, आपत्ति, आसत्ति(आसक्ति), ओसधि, कन्ति(कान्ति), कटि, केलि(क्रीडा), कित्ति(कीर्ति), कोटि(करोड़), खन्ति(सहनसीलता), गति, चुति(मृत्यु), छवि(त्वचा), जाति(जन्म), तन्ति(तार), तित्ति(तृप्ति), तिथि, तुट्ठि(संतोष), दिट्ठि(मत), दुन्दुभि(बाजा), दोणि(ढोंगी), धूलि, धिति(धीरज), नन्दि(आनन्द), नाभि, निब्बति(जन्म), नेमि(पहिये का घेरा)।
सरलानि वाक्यानि-
रत्तियं कवि पोत्थकं लिखति।
रत्तियं चन्दिमाय आलोको गेहे भवति।
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13.07.2020
अज्ज पाठो
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
विभत्तिरूप
‘इ’कारान्त इत्थिलिंगे
भूमि
विभत्ति एकवचनं- अनेकवचनं
पठमा- भूमि- भूमी, भूमियो
दुतिया- भूमिं- भूमी, भूमियो
ततिया- भमिया- भूमीहि, भूमीभि
चतुत्थी- भूमिया- भूमिनं
पञ्चमी- भूमिया- भूमीहि, भूमीभि
छट्ठी- भूमिया- भूमीनं
सत्तमी- भूमिया, भूमियं- भूमीसु
आलपनं- भूमि- भूमी, भूमियो
समं रूपं-
पन्ति(पंक्ति), पत्ति(प्राप्ति), पवत्ति(समाचार), पटिपत्ति(आचार), पटिपाटि(क्रम), पटिसन्धि(जन्म लेना), पालि(पंक्ति), पीति(प्रीति), बुद्धि, बोधि, भति(मजदूरी), भत्ति(भक्ति), भित्ति(दीवार), भीति(डर), मति, मुट्ठि, मुत्ति(मुक्ति), यट्ठि(लाठी), युत्ति(युक्ति), युवति, रस्सि(लगाम), रंसि(रश्मि), वासि(वसूला), वुट्ठि(वृष्टि), वुत्ति(जीवन-वृत्ति), वुद्धि(वृद्धि), सति(स्मृति), सत्ति(योग्यता) सन्ति(सान्ति), सन्धि(मेल), सुगति, सम्पत्ति, सुगन्धि, सुद्धि, हानि आदि।
सरलानि वाक्यानि-
रत्तियं कवि पोत्थकं लिखति।
रत्तियं चन्दिमाय आलोको गेहे भवति।
आसत्तियं तित्ति नत्थि।
अहं सन्ति विन्दामि(अनुभव करता हूँ )।
सुद्धिहि जना सुज्झन्ति।
धनेन लोके वुद्धि भवति।
खन्तिया पीति उप्पज्जति ।
रत्तिया जायति सोको।
रत्तिया जायति भयं।
असोको अस्सम्हा भूमियं न पतति ।
गहपति कुदालेन भूमियं कूपं खणिस्सति।
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14. 07. 2020
कनिट्ठ च जेट्ठ माणवकानं
अज्ज पाठो
सुरियो
सुरियो पुब्बदिसाय उदेति।
उदित भानु सब्बे विहगमा,
मधुरेन सरेन रवन्ति।
तस्स आगमनं थोमेन्ति।
सब्बे मनुस्सा सकानि सकानि,
कम्मानि आरभन्ति।
अयं सब्बेसानं जीवनदाता।
पभाते अयं सविता अतीव सुखदो,
पसादकरो।
मज्झन्तिके सो येव तपनो, तापतरो।
सायण्हे पुनं सीतकरो, नेत्तहरो।
अयं सुरियो दिवाकरो, पभाकरो,
दिनकरो आदि अञ्ञेहि नामेभि ञायते।
सुरियो अन्धकारं अपनेति,
पठवीं च पभासेति।
भगवा बहुजनानं अञ्ञाणं अन्धकारो अपनेति
अपि च धम्म-ञ्ञाणं दत्वा
जनस्मिं निब्बानसुखं वितरेति।
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15. 07. 2020
अज्ज पाठो
विभत्ति
‘किं’/का (कौन)
पुल्लिंग-
एकवचन- अनेकवचन
पठमा (कौन) को- के
दुतिया (किसको) कं- के
ततिया (किससे) केन- केहि, केभि
चतुत्थी (किसके लिए) कस्स- केसं, केसानं
पंचमी (किससे) कस्मा, कम्हा- केहि, केभि
छट्ठी (किसका) कस्स- केसं, केसानं
सत्तमी (किस में) कस्मिं, कम्हि- केसु
सरलानि वाक्यानि-
को नाम त्वं?
को नाम एसो?
को नाम ते आचरियो?
इदानि एसो किं करिस्सति?
किं त्वं एतं पुच्छसि?
एसा नारी ते किं होति?
स्वे(सुवे) किं एते करिस्सन्ति?
तेसं धनेन मे किं पयोजनं?
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16. 07. 2020
अज्ज पाठो
विभत्ति
‘किं’/का (कौन)
इत्थिलिंग-
एकवचन- अनेकवचन
पठमा का- का, कायो
दुतिया कं- का, कायो
ततिया कस्सा, काय- काहि, काभि
चतुत्थी कस्सा, काय- कासं, कासानं
पंचमी कस्सा, काय- काहि, काभि
छट्ठी कस्सा, काय- कासं, कासानं
सत्तमी कस्सं, कायं- कासु
नपुंसकलिंग-
पठमा किं, कं- के, कानि
दुतिया किं, कं- के, कानि
सरलानि वाक्यानि-
किस्स फलं नाम एतं?
कायं दिसायं तस्सा जननी इदानि वसति?
कस्स धम्मं सोतुं एते इच्छन्ति?
यं त्वं इच्छसि तं एतस्स आरोचेहि।
को जञ्ञा, कदा किं भविस्सति?
को जानाति किं ‘एसो करिस्सति?
को आकास-मग्गेन सद्दं करोन्तो गच्छति?
...............................
सरनीयं- अनिश्चय वाचक सर्वनाम बनाने के लिए सभी लिंगों में ‘क’ की सभी विभक्तियों में ‘चि’ प्रत्यय लगाया जाता है, यथा- कोचि, काचि इत्यादि।
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17. 07. 2020
अज्ज पाठो
विभत्ति
‘किं’/का (कौन)
पुल्लिंग-
एकवचन- अनेकवचन
पठमा (कौन) को- के
दुतिया (किसको) कं- के
ततिया (किससे) केन- केहि, केभि
चतुत्थी (किसके लिए) कस्स- केसं, केसानं
पंचमी (किससे) कस्मा, कम्हा- केहि, केभि
छट्ठी (किसका) कस्स- केसं, केसानं
सत्तमी (किस में) कस्मिं, कम्हि- केसु
नपुंसकलिंग-
पठमा किं, कं- के, कानि
दुतिया किं, कं- के, कानि
- सेस पुल्लिंग समं।
इत्थिलिंग-
एकवचन- अनेकवचन
पठमा का- का, कायो .
दुतिया कं- का, कायो
ततिया कस्सा, काय- काहि, काभि
चतुत्थी कस्सा, काय- कासं, कासानं
पंचमी कस्सा, काय- काहि, काभि
छट्ठी कस्सा, काय- कासं, कासानं
सत्तमी कस्सं, कायं- कासु
-----------------------------
सरनीयं- अनिश्चय वाचक सर्वनाम बनाने के लिए सभी लिंगों में ‘क’ की सभी विभक्तियों में ‘चि’ प्रत्यय लगाया जाता है, यथा- कोचि, काचि इत्यादि।
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18.07. 2020
अज्ज पाठो
अज्झयन-घरं
आनन्दो- संगणको कुत्थ अत्थि?
राहुलो- संगणको फलकाधारे अत्थि।
आनन्दो- फलकाधारे किं किं अत्थि?
राहुलो- फलकाधारे कुंचिका-पटलं च झेराक्स-यन्तं सन्ति।
आनन्दो- फलकाधारो कुत्थ अत्थि?
राहुलो- फलकाधारो अज्झयन-गहे अत्थि।
आनन्दो- अज्झयन-गहे किं किं अत्थि?
राहुलो- अज्झयन-गहे आसन्दिका अत्थि, लेखन-फलको अत्थि,
-गन्थ-कपाटिका अत्थि, सीतकं अत्थि, घटिका अत्थि,
-दिनदस्सिका अत्थि, मान-चित्तं च अत्थि।
आनन्दो- लेखन-फलके किं किं अत्थि?
राहुलो- लेखन-फलके अंक-संगणको अत्थि, सद्द-कोसो अत्थि,
-अंकनी अत्थि, लेखनी अत्थि, दीप्पणी-पोत्थिका च अत्थि।
आनन्दो- गंथ-कपाटिकायं किं किं अत्थि?
राहुलो- गंथ-कपाटिकायं गन्थानि सन्ति, पोत्थकानि च संचिकायो सन्ति।
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कुत्थ- कहां अत्थि- है संगणको- कम्प्युटर
फलकाधारे- टेबिल पर कुंचिका-पटल- की बोर्ड
झेराक्स-यन्तं- झेराक्स मशीन अज्झयन-गहे- अध्ययन-कक्ष
आसन्दिका- कुर्सी लेखन-फलके- लेखन-टेबिल पर
कपाटिका- आलमिरा सीतकं- कुलर घटिका- घड़ी
दिन-दस्सिका- कलेण्डर मान-चित्तं- मान-चित्रा
अंक-संगणको- लेपटाप सद्दकोसो- शब्दकोश
अंकनी- पेंसील लेखनी- पेन गंथानि- अनेक ग्रंथ
दीप्पणी-पोत्थिका- राइटिंग-पेड पोत्थकानि- पुस्तकें
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19. 07. 2020
अज्ज पाठो
अनागतकालो
धातु पच- पकानाः परस्सपद
पुरिस एकवचन- अनेकवचन
उत्तम पुरिसो- अहं पचिस्सामि। मयं पचिस्साम।
मैं पकाऊँगा। हम पकाएंगे।
मज्झिम पुरिसो- त्वं पचिस्ससि। तुम्हे पचिस्सथ।
तू पकायेगा। तुम लोग पकाओगे।
अञ्ञ (पठम) पुरिसो- सो पचिस्सति। ते पचिस्सन्ति।
वह पकायेगा। वे पकाएंगे।
सरलानि वाक्यानि-
जलं पिबिस्सामि।
जल पीऊंगा।
सच्चं भणिस्सामि।
सत्य बोलूंगा।
न कुज्झिस्सामि।
क्रोध न करूंगा।
अक्कोधेन कोधं जिनिस्सामि। जिनाति/जेति
अक्रोध से क्रोध को जीतूंगा।
असाधुं साधुना जेस्सामि। जेति/जयति
असाधु पर साधु से जीतूंगा ।
सुचरितं धम्मं चरिस्सामि।
सुचरित धम्म आचरण करूँगा।
दुच्चरितं न चरिस्सामि।
दुष्चरित न आचरण करूँगा।
यो धम्मं चरिस्सति, सो सुख सेस्सति।
जो धम्म से आचरण करता है, वह सुख से सोता है।
अविज्जाय बन्धनं छिन्दिस्सामि।
अविद्या का बंधन काटूँगा।
सब्बे सत्ता मरिस्सन्ति।
सभी सत्व मरेंगे।
सब्बे पाणा मरिस्सन्ति।
सभी प्राणी मरेंगे।
अयं कायो अचिरं पठविं अधिसेस्सति।
यह काया शीघ्र पृथ्वी पर लेट जाएगी।
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20. 07. 2020
अज्ज पाठो
अनागतकालो
धातु पच- पकानाः परस्सपद
इसे भविस्सकाल भी कहते हैं।
वत्तमान की किरिया यथा, पचति- पकाता हूँ के धातु(पच) में 'इ' प्रत्यय लगा कर उसमें भविस्सकाल का प्रत्यय 'स्स' जोड़ा जाता है। यथा - पच+इ = पचि+स्स = पचिस्स+ति = पचिस्सति(पकाऊंगा)।
पुरिस एकवचन- अनेकवचन
उत्तम पुरिसो- अहं पचिस्सामि। मयं पचिस्साम।
मैं पकाऊँगा। हम पकाएंगे।
मज्झिम पुरिसो- त्वं पचिस्ससि। तुम्हे पचिस्सथ।
तू पकायेगा। तुम लोग पकाओगे।
अञ्ञ (पठम) पुरिसो- सो पचिस्सति। ते पचिस्सन्ति।
वह पकायेगा। वे पकाएंगे।
सरलानि वाक्यानि-
1 . सो सिसु अत्थि। सुवे सो दहरो भविस्सति।
2. जोति पालि पठति। सुवे सा पालि आचरिया भविस्सति।
3. मयं पालि पठाम। सुवे गाम-गामं जना पठिस्सन्ति।
4. नूनं(निस्संदेह) भगवा भासा आकासे सुरियो विय पभासेन्ति।
5. सचे(यदि) सम्मा वायामो(प्रयास) करोम, पालि रट्ठ भासा भविस्सति।
6. कसको बीजं वपति। सो रुक्खो भविस्सति।
7. आकासे मेघा दिस्सति। कदाचि वुट्ठि(वर्षा) भविस्सति।
8. कोरोना लक्खणा दिस्सति। खिप्पं आरोग्य भव।
9. ता बालिका मनसा(मन से) पठति। सा उच्चाधिकारी भविस्सति।
10. अहं बुद्धं नमिस्सामि। अहं धम्म नमिस्सामि। अहं सघं नमिस्सामि।
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21.07.2020
वत्तमान(पच्चुपन्न) कालो
1. धातुः गच्छ- जाना
परस्सपद
पुरिस एकवचन अनेकवचन/बहुवचन
उत्तम पुरिस अहं गच्छामि। मयं गच्छाम।
मैं जाता हूॅं। हम जाते हैं।
मज्झिम पुरिस त्वं गच्छसि। तुम्हे गच्छथ।
तुम जाते हो। तुम लोग जाते हो।
अञ्ञं(पठम) पुरिस सो गच्छति। ते गच्छन्ति।
वह जाता है। वे जाते हैं।
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सरनीयं-
1. वत्तमाने मिम ति सिथ ति अन्ति।
2. वत्तमान काल में, सभी गण के धातु से परे निम्न प्रत्यय आते हैं-
3. पुरिस एकवचन- अनेकवचन
उ. पु.-- मि- म
म. पु.-- सि- थ
अ. पु. -- ति- अन्ति
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85. कथयति - कहता है।
86. भमति - घूमता है।
87. परिवेसति - भोजन परोसता है।
88. पविसति - प्रवेश करता है।
89. भासति - बोलता है।
90. निम्माति - निर्माण करता है।
91. कसति - कृषि करता है।
92. सिंचति - सिंचाई करता है।
93. रटति- रटता है।
94. रचति- बनाता है।
95. यतति- प्रयत्न करता है।
96. ओतरति- नीचे उतरता है।
97. आरोहति- चढ़ता है।
98. सरति- स्मरण करता है।
99. पापुणोति- प्राप्त करता है।
100. उग्घाटेति- खोलता है।
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22. 07. 2020
जेट्ठ माणवकानं
अज्ज पाठो
85. कथयति - कहता है।
86. भमति - घूमता है।
87. परिवेसति - भोजन परोसता है।
88. पविसति - प्रवेश करता है।
89. भासति - बोलता है।
90. निम्माति - निर्माण करता है।
91. कसति - कृषि करता है।
92. सिंचति - सिंचाई करता है।
93. रटति- रटता है।
94. रचति- बनाता है।
95. यतति- प्रयत्न करता है।
96. ओतरति- नीचे उतरता है।
97. आरोहति- चढ़ता है।
98. सरति- स्मरण करता है।
99. पापुणोति- प्राप्त करता है।
100. उग्घाटेति- खोलता है।
--------------------------------
23. 07. 2020
अनुज्ञा परस्पद
आदेसात्मक/इच्छात्मक भाववाचक वाक्यानि
एकवचन- अनेकवचन
उत्तम पुरिस- पचामि (मैं पकाऊं)। पचाम (हम पकाएं)।
मज्झिम पुरिस- पच, पचाहि (तुम पकाओ)। पचथ (तुम लोग पकाओ)।
पठम पुरिस- पचतु (वह पकाए)। पचन्तु (वे पकाएं)।
..........................
टिप. 1. ‘हि’, ‘मि’ और ‘म’ के पहले आने वाला स्वर सदैव दीर्घ होता है।
2. द्वितीय पुरिस में एक अतिरिक्त प्रत्यय ‘अ’ होता है।
वाक्यानि पयोगा-
यानं मन्दं चालेतु।
आसन्दं इध आनेतु।
मम आसयं सुणोतु।
द्वारं उग्घाटेसु।
विजनं चालेतु।
अजयं इदं सूचेतु।
अज्ज चलचित्तं पस्साम।
अवगच्छन्तु ?
आम, अवगच्छाम।
यमहं(एवं-अहं) वदामि तं वदेहि/वदेथ।
अज्ज अहं अवकास सिकरोमि।
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24. 07. 2020
अनुज्ञा परस्पद
आदेसात्मक/इच्छात्मक भाववाचक वाक्यानि
एकवचन- अनेकवचन
उत्तम पुरिस- अहं पचामि (मैं पकाऊं)। मयं पचाम (हम पकाएं)।
मज्झिम पुरिस- त्वं पच/पचाहि (तुम पकाओ)। तुम्हे पचथ (तुम लोग पकाओ)।
पठम पुरिस- सो पचतु (वह पकाए)। ते पचन्तु (वे पकाएं)।
..........................
टिप. 1. ‘हि’, ‘मि’ और ‘म’ के पहले आने वाला स्वर सदैव दीर्घ होता है।
2. द्वितीय पुरिस में एक अतिरिक्त प्रत्यय ‘अ’ होता है।
आदेस-
इध आगच्छ।
यहाँ आओ।
त्वं धरस्मा निक्खमाहि।
तुम घर से निकलो।
तुम्हे इध तिट्ठथ।
तुम लोग यहां खड़े होओ।
इच्छा-
अहं बुद्धो भवामि।
मैं बुद्ध बन जाऊं।।
बुद्धो धम्मं देसेतु।
बुद्ध धम्म का उपदेस करें।
सरलानि वाक्यानि-
भिक्खूनं धम्मं देसेतु।
भिक्खुओं को धम्म का उपदेश करें। इच्छा/आदेस
भवं, पीठेसु निसिदतु।
महोदय, आसनों पर विराजमान हों। इच्छा/आदेस
भवं, तव लेखनि ददातु।
महोदय, आपका पेन दो। इच्छा/आदेस
धेनु तिणं खादतु।
गाय घास खाए। इच्छा /आदेस
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25. 07. 2020
जेट्ठ माणवकानं
अनुज्ञा परस्पद
आदेसात्मक/इच्छात्मक भाववाचक वाक्यानि
एकवचन- अनेकवचन
उत्तम पुरिस- अहं पचामि (मैं पकाऊं)। मयं पचाम (हम पकाएं)।
मज्झिम पुरिस- त्वं पच/पचाहि (तुम पकाओ)। तुम्हे पचथ (तुम लोग पकाओ)।
पठम पुरिस- सो पचतु (वह पकाए)। ते पचन्तु (वे पकाएं)।
..........................
टिप. 1. ‘हि’, ‘मि’ और ‘म’ के पहले आने वाला स्वर सदैव दीर्घ होता है।
2. द्वितीय पुरिस में एक अतिरिक्त प्रत्यय ‘अ’ होता है।
सरलानि वाक्यानि -
आवुसो, अटविया दारुं आहरित्वा अग्गिं करोहि।
आवुस, जंगल से लकड़ी लाकर अग्नि जलाओ। इच्छा/आदेस
भिक्खवे, अहं धम्मं देसेस्ससामि, साधुकं सुनाथ।
भिक्खुओं, मैं धम्म देशना करता हूँ, तुम ठीक से सुनो। इच्छा/आदेस
याव‘हं(यावं-अहं ) गच्छामि, ताव इध तिट्ठथ।
जब तक मैं यहाँ बैठता हूँ , तब तक इधर खड़े रहो। इच्छा/आदेस
भिक्खू पण्हं साधुकं बुज्झन्तु।
भिक्खुओं, प्रश्न ठीक से समझो। इच्छा/आदेस
सिस्सा, सदा कतञ्ञू होथ।
शिष्य, सदा कृतज्ञ हों। इच्छा/आदेस
‘‘धम्मं पिबथ, भिक्खवो।’’
धम्म को पीओ, भिक्खुओ। इच्छा/आदेस
अहं चक्खूहि पापं न पस्सामि, भन्ते।
मैं आँखों से पाप न देखूं, भंते। इच्छा
आवुसो, भिक्खूनं पुरतो मा तिट्ठथ। आदेस/इच्छा
आवुस, भिक्खुओं के सामने मत बैठो।
भन्ते, भिक्खुम्हा मयं पञ्हं पुच्छाम।
भंते, भिक्खु से हम प्रश्न पूछते हैं। इच्छा
नरा च नारियो च भिक्खूहि धम्मं साधुकं सुत्वा धम्मस्स पचारेन्तु। इच्छा
नर और नारी भिक्खुओं से धम्म ठीक से सुन कर धम्म का प्रचार करें ।
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अनुज्ञा परस्पद
आदेसात्मक/इच्छात्मक भाववाचक वाक्यानि
एकवचन- अनेकवचन
उत्तम पुरिस- अहं पचामि (मैं पकाऊं)। मयं पचाम (हम पकाएं)।
मज्झिम पुरिस- त्वं पच/पचाहि (तुम पकाओ)। तुम्हे पचथ (तुम लोग पकाओ)।
पठम पुरिस- सो पचतु (वह पकाए)। ते पचन्तु (वे पकाएं)।
..........................
टिप. 1. ‘हि’, ‘मि’ और ‘म’ के पहले आने वाला स्वर सदैव दीर्घ होता है।
2. द्वितीय पुरिस में एक अतिरिक्त प्रत्यय ‘अ’ होता है।
निसेधात्मक निपात ‘मा’ पयोगा-
मा गच्छ।
मा अगमासि।
मा अट्ठासि।
मा भुञ्जि।
गहपतयो, भिक्खूसु मा कुज्झथ।
गृहपति, भिक्खुओं पर क्रोधित मत हो। इच्छा/आदेस
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टिप- निपात ‘मा’ सदैव भूतकाल (पठम पुरिस) के साथ प्रयुक्त होता है।
यमहं- एवं-अहं।
अजयं इदं सूचेतु- अजय को यह बतला देना।
मया इमे सत्ता निम्मिता- मेरे द्वारा इन जीवों की रचना की गई है।
28. 07. 2020
जेट्ठ माणवकानं
ततिया विभत्ति के कुछ और वाक्य
1. सह/सद्धिं योगेन-
सिस्सेन सह आचरियो गच्छति।
शिष्य के साथ आचार्य जाता है।
जननी कञ्ञाय सह गच्छति।
मां लड़की के साथ जाती है।
भिक्खु संघेन सद्धिं भगवा निसीदति।
भगवान भिक्खु-संघ के साथ बैठते हैं।
विवेको भातरा सह आपणं गच्छति।
विवेक भाई के साथ बाजार जाता है।
धनेन मे को अत्थो? धन से मेरा क्या काम?
ञाणेन ते किं पयोजनं? तुम्हारे लिए ज्ञान का क्या लाभ?
तिलेहि खेत्ते वपति।
वह तिलों से खेत बोता है।
तेन समयेन भगवा सावत्थियं विहरति।
उस समय भगवान सावत्थी में विहार कर रहे थे।
बिना योगेन-
जलेन विना रुक्खो सुक्खति। जल के बिना वृक्ष सूखता है।
तुल्यत्थेन-
पितरा सदिसो। पिता के समान।
मातरा समो। माता के समान।
आचरियेन सदिसो सिस्सो। आचार्य के सदृश्य शिष्य।
रूपियेन उनो। एक रुपये की कमी।
धनेन हीनो। धन से हीन।
वाचाय निपुणो। वाचा से निपुण।
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29. 07. 2020
जेट्ठ माणवकानं
उकारान्त सद्दो
पितु
विभत्ति एकवचनं- अनेकवचनं
पठमा पिता- पितरो
दुतिया पितरं- पितरे, पितरो
ततिया पितरा- पितरेहि, पितरेभि, पितूहि, पितूभि
चतुत्थी पितु, पितुनो, पितुस्स- पितरानं, पितानं, पितून्नं
पञ्चमी पितरा- पितरेहि, पितरेभि, पितूहि, पितूभि
छट्ठी पितु, पितुनो, पितुस्स- पितरानं, पितानं, पितून्नं
सत्तमी पितरि- पितरेसु, पितुसु, पितूसु
आलपनं भो पित, भो पिता- भोन्तो पितरो
समं रूपं-
भातु(भाता), धीतु(धीता), दुहितु(दुहिता), जमातु(जमाता), नत्तु, होतु, पोतु आदि।
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30. 07. 2020
जेट्ठ माणवकानं
उकारान्त शब्द 'पितु' के साथ प्रश्नवाचक सर्वनाम ‘किं’/का (कौन) का प्रयोग-
1. उकारान्त 'पितु' सद्दो
विभत्ति एकवचनं- अनेकवचनं
पठमा पिता- पितरो
दुतिया पितरं- पितरे, पितरो
ततिया पितरा- पितरेहि, पितरेभि, पितूहि, पितूभि
चतुत्थी पितु, पितुनो, पितुस्स- पितरानं, पितानं, पितून्नं
पञ्चमी पितरा- पितरेहि, पितरेभि, पितूहि, पितूभि
छट्ठी पितु, पितुनो, पितुस्स- पितरानं, पितानं, पितून्नं
सत्तमी पितरि- पितरेसु, पितुसु, पितूसु
आलपनं भो पित, भो पिता- भोन्तो पितरो
समं रूपं-
भातु(भाता), धीतु(धीता), दुहितु(दुहिता), जमातु(जमाता), नत्तु, होतु, पोतु आदि।
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2. प्रश्नवाचक सर्वनाम ‘किं’/का (कौन)
विभत्ति पुल्लिंग-
एकवचन- अनेकवचन
पठमा (कौन) को- के
दुतिया (किसको) कं- के
ततिया (किससे) केन- केहि, केभि
चतुत्थी (किसके लिए) कस्स- केसं, केसानं
पंचमी (किससे) कस्मा, कम्हा- केहि, केभि
छट्ठी (किसका) कस्स- केसं, केसानं
सत्तमी (किस में) कस्मिं, कम्हि- केसु
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31. 07. 2020
जेट्ठ माणवकानं
उकारान्त शब्द 'पितु' के साथ प्रश्नवाचक सर्वनाम ‘किं’/का (कौन) का प्रयोग-
1. उकारान्त 'पितु' सद्दो
विभत्ति एकवचनं- अनेकवचनं
पठमा पिता- पितरो
दुतिया पितरं- पितरे, पितरो
ततिया पितरा- पितरेहि, पितरेभि, पितूहि, पितूभि
चतुत्थी पितु, पितुनो, पितुस्स- पितरानं, पितानं, पितून्नं
पञ्चमी पितरा- पितरेहि, पितरेभि, पितूहि, पितूभि
छट्ठी पितु, पितुनो, पितुस्स- पितरानं, पितानं, पितून्नं
सत्तमी पितरि- पितरेसु, पितुसु, पितूसु
आलपनं भो पित, भो पिता- भोन्तो पितरो
समं रूपं-
भातु(भाता), धीतु(धीता), दुहितु(दुहिता), जमातु(जमाता), नत्तु, होतु, पोतु आदि।
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2. प्रश्नवाचक सर्वनाम ‘किं’/का (कौन)
विभत्ति पुल्लिंग-
एकवचन- अनेकवचन
पठमा (कौन) को- के
दुतिया (किसको) कं- के
ततिया (किससे) केन- केहि, केभि
चतुत्थी (किसके लिए) कस्स- केसं, केसानं
पंचमी (किससे) कस्मा, कम्हा- केहि, केभि
छट्ठी (किसका) कस्स- केसं, केसानं
सत्तमी (किस में) कस्मिं, कम्हि- केसु
उकारान्त शब्द 'पितु' और प्रश्नवाचक सर्वनाम ‘किं’/का (कौन) के विभत्ति रूपों के साथ कल किये गए अभ्यास के आधार पर छोटे-छोटे वाक्य बनाईये ?