Saturday, June 27, 2020

बाबरी मस्जिद बनाम साकेत मुद्दा: कुछ उठते प्रश्न ?

बाबरी मस्जिद बनाम साकेत मुद्दा: कुछ उठते प्रश्न ?
1. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विवादित अयोध्या ढांचे में हिंदूओ सरकार द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए खुदाई समतलीकरण का कार्य प्रारंभ किया गया था। इसी दरमियान वहां 2000 वर्ष पुरानी भगवान बुद्ध की कई मूर्तियां सम्राट अशोक कालीन अवशेष अशोक चक्र मिले हैं, बुद्ध प्रतिमा अवशेष मिलने पर वह बौद्धौ ने उक्त ढांचे पर निर्माण हो रहे राम मंदिर निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग कर कहा कि यह स्थल अयोध्या नहीं साकेत बौद्ध स्थल है, यहां बावरी नामक बुद्ध विहार था, जिसे पुष्यमित्र शुंग नामक ब्राह्मण ने नष्ट किया था, विवादित ढांचे पर सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं के आस्थाओं के आधार पर मनुवादी सरकार के दबाव एवं राज्यसभा सांसद बनाए जाने के प्रलोभन में असंवैधानिक एक पक्षीय फैसला दिया गया था, राम मंदिर निर्माण समतलीकरण का कार्य अचानक रोक दिया गया है,
जिस पर बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजरत्न अंबेडकर द्वारा एक वीडियो यूट्यूब जारी कर यह बताया गया कि राम मंदिर निर्माण कार्य को बौद्धौ के संघर्ष आवाज उठाने के कारण रोक दिया गया है, इस मामले में हमें बहुत बड़ी सफलता मिल गई है, उन्होंने उक्त मुद्दे पर आवाज उठाने के लिए बौद्ध भिक्षु सुमित रत्न लखनऊ को साधुवाद दिया है, वही जब भंते सुमित रत्न से अहमदाबाद निवासी बुद्धिस्ट अकादमी गुजरात के अध्यक्ष अमृत प्रियदर्शी से फोन पर कार्य रोके जाने पर चर्चा हुई तो भंते सुमित रत्न ने कहा कि यह निर्माण समतलीकरण का कार्य टेक्निकल कारणवश रोका गया है, 1 जुलाई को राम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन होना है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है, और उन्होंने अपना समय नहीं दिया है, और कोरोनावायरस के चलते लाखों की भीड़ जमा करना उचित नहीं है,इसलिए काम को रोका गया है, इसका मतलब यह है कि कार्य बौद्धौ के प्रभाव दबाव में नहीं बल्कि टेक्निकल कारणवश रोका गया है, ऐसी स्थिति में राज रतन अंबेडकर का यह बयान कि बौद्धों के द्वारा उठाई गई आवाज के चलते कार्य रोका गया। यह बयान हास्यास्पद एवं गुमराह करने वाला है, भंते सुमित रत्न के अनुसार यह बताया गया कि अयोध्या साकेत आंदोलन के लिए देशव्यापी संगठन बना लिया गया है, और देश के सभी राज्यों में जिम्मेदारी भी दी गई है, इस पर सवाल खड़ा होता है, कि जब देशव्यापी संगठन बना लिया गया है,तो फिर बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क, बहुजन आंदोलन के प्रणेता वामन मेश्राम, प्रोफेसर विलास खरात द्वारा साकेत बचाओ विरासत बचाओ अभियान भंते सुमित रत्न से अलग समूचे देश में क्यों चलाया जा रहा है? दि बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजरत्न अंबेडकर,बौद्ध भिक्षु सुमित रत्न से हटकर अलग से अंतरराष्ट्रीय न्यायालय यूनेस्को में कार्यवाही क्यों कर रहे हैं? वही एक और बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया के तथाकथित राष्ट्रीय अध्यक्ष चंदू पाटिल, डॉक्टर पी जी ज्योतिकर अहमदाबाद कुछ दिनों पहले तक क्यों भंते सुमितरत्न से हटकर अलग सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे थे? क्यों भंते आनंद दिल्ली भंते सुरई ससाई जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के बौद्ध भिक्षु है, जिन्होंने बोधगया महाबोधी बुद्ध विहार मुक्ति आंदोलन चलाया भंते सदानंद तथा हाल ही में कल मुझे दिल्ली निवासी और वह भी भारतीय बौद्ध महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष 78 वर्षीय सीएम पीपल ने फोन कर उक्त मुद्दे पर चर्चा कर कुछ सलाह सुझाव मांगा था, और वह भी अपने स्तर पर अयोध्या साकेत मुद्दे पर अलग से कार्यवाही करने जा रहे हैं, तो मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि भंते सुमित रत्न थेरा ने अयोध्या साकेत बचाओ आंदोलन के लिए कौन सा देशव्यापी संगठन बनाया है? और उस देशव्यापी संगठन से जो बुद्धौ के हित संरक्षण में वर्षों से बड़े-बड़े संघर्ष करने वाले बौद्ध संगठनों के प्रमुखों को बौद्ध भिक्षुओं के प्रमुखों को शामिल किए बिना ही कैसे भंते सुमित रत्न का देशव्यापी संगठन बन गया? और किस-किस राज्य में किस को जवाबदारी दे दी गई ?और कैसे दे दी गई? 23 मई को उक्त मुद्दे पर जब लखनऊ में भंते सुमित रत्न की अध्यक्षता में लखनऊ के ही 4 बौद्धौ की बैठक संपन्न हुई उसके बाद ही मैंने एक लेख जारी कर अनुरोध किया था कि उक्त मुद्दा अहम एवं गंभीर है, सरकार और सुप्रीम कोर्ट एक है। मनुवादियों की सरकार है। यह सरकार भगवान बुद्ध एवं डॉ अंबेडकर के विचारों के विपरीत सरकार है, संविधान विरोधी सरकार है, इस सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अकेले भंते सुमित रत्न या अकेले कोई भी संगठन नहीं लड़ सकते, और लड़ भी ले तो जीत नहीं सकते, सफल नहीं हो सकते, इसलिए देश के तमाम बौद्ध संगठनों के प्रमुख बौद्ध चिंतक बौद्ध विद्वानों सुप्रीम कोर्ट के बहुजन लायर एवं इमानदार संघर्षशील बौद्धौ की एक संयुक्त कमेटी बनाई जाए यह निवेदन किया था। परंतु उपरोक्त बयानों और अलग-अलग नेताओं द्वारा अलग-अलग कार्यवाही आंदोलनों से यह नहीं लगता कि भंते सुमित रत्न ने कोई देशव्यापी संगठन इस साकेत बचाओ आंदोलन के लिए खड़ा किया हो। मैं भंते सुमित रत्न जी को याद दिलाना चाहता हूं,और यह बताना चाहता हूं इस देश में मनुवाद वर्सेस अंबेडकरवाद की ही लड़ाई है, इस देश में बौद्ध धम्म को नष्ट करने के लिए ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए 84000 स्तूप बुद्ध विहार ओं को नष्ट कर दिया था, लाखों बौद्ध भिक्षुओं को कत्लेआम सर काट दिए गए थे, उन्हीं के वंशजों से आज हमारी लड़ाई है, यह लड़ाई को इतनी आसान और सरल नहीं समझना चाहिए। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने मोहर लगाई है, सरकार व्यक्तिगत रूप से राम मंदिर के पक्ष में है,और सरकारी पैसों से राम मंदिर बनवा रही है, औरंगाबाद यूनिवर्सिटी का नामकरण डॉक्टर अंबेडकर यूनिवर्सिटी किए जाने की मांग को लॉन्ग मार्च निकाला गया था, 16 वर्षों तक शरद पवार सरकार से लड़ाई लड़ी गई थी, कई अंबेडकर वादियों ने कुर्बानी दिए थे, तब कहीं यूनिवर्सिटी का नाम डॉ आंबेडकर विद्यापीठ किया गया था, रायपुर जो आज छत्तीसगढ़ की राजधानी है वहां शासन द्वारा निर्मित 700 बिस्तर वाले अस्पताल का प्रस्तावित नाम डॉक्टर भीमराव अंबेडकर किए जाने कई वर्षों तक कांग्रेस सरकार से संघर्ष किया गया, सरकार ने 14 अप्रैल डॉक्टर अंबेडकर जयंती के दिन ही हजारों संघर्षरत अंबेडकरवादियों को जेल में डाल दिया था , लंबा और कठिन संघर्ष के बाद उस 700 बिस्तर के भव्य अस्पताल का नाम डॉक्टर भीमराव अंबेडकर किया गया है। साकेत बचाओ आंदोलन में हम अकेले अकेले लड़ नहीं सकते और लड़ भी ले तो विजय प्राप्त नहीं कर सकते, इसलिए तुरंत सभी बौद्ध संगठनों बुद्धिजीवियों की एक संयुक्त कमेटी का गठन होना चाहिए। और यदि ऐसा नहीं होता है तो मैं समझूंगा कि हम साकेत बचाओ आंदोलन नहीं चला रहे हैं , बल्कि जिस तरह से बच्चे कबड्डी कबड्डी खेलते हैं , उस तरह से हम राजनीति राजनीति खेल रहे। भदंत नागार्जुन सुरईससाई की एक भूल से बोधगया महाबोधि विहार मुक्ति आंदोलन खत्म हो गया,अटल बिहारी की सरकार ने भंते सुरई ससई को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का सदस्य बनाकर बोधगया महाबोधि बुद्ध विहार आंदोलन ही खत्म करवा दिया था, साकेत बचाओ आंदोलन तो बोधगया महाबोधी बुद्ध विहार मुक्ति आंदोलन से भी बड़ा आंदोलन है, इस आंदोलन को खत्म करने के लिए भी किसी बौद्ध भिक्षु या बौद्ध नेता को किसी भी राष्ट्रीय आयोग में ले लिया जाएगा और आंदोलन खत्म कर दिया जाएगा , यह उक्त समीक्षा आंदोलन संघर्ष मे मैं स्वयं वर्षों से सक्रिय रहा हूं,‌यह मेरा अनुभव है, इसलिए संगठित हो जाओ और संघर्ष करो, जीत हमारी होगी.
        
2. 
अयोध्या साकेत विवादित मामले में चौथी याचिका सुप्रीम कोर्ट में बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया के ट्रस्टी चेयरमैन डॉक्टर पी जी ज्योतिकर अहमदाबाद ने दायर की है,
 इसके पूर्व भी बुद्धिस्ट सोसाइटी के एक और राष्ट्रीय अध्यक्ष राज रतन अंबेडकर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में इसी मसले को लेकर याचिका दायर की गई है, तथा लखनऊ उत्तर प्रदेश के बौद्ध भिक्षु  सुमित रत्न द्वारा भी याचिका दायर की गई है, एवं 2 वर्ष पूर्व से विनीत मौर्य द्वारा भी याचिका दायर है, डॉक्टर पी जी ज्योतिकर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है, कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण समतलीकरण खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध की मूर्तियां अशोक स्तंभ धम्मचक्र सम्राट अशोक कालीन अवशेष निकले हैं उन सभी ऐतिहासिक धरोहर पुरातन वस्तुओं का सरकार जतन एवं संरक्षण करें, एवं उसी स्थल को पुरातत्व विभाग अपने अधिकार क्षेत्र में लेकर निरीक्षण जांच कर, जांच रिपोर्ट सार्वजनिक कर और म्यूजियम बनाकर सुरक्षित करें,तथा जिस स्थान से अवशेष प्राप्त हुए हैं, उसी स्थान पर संशोधन उपरांत उसका पुनर्गठन किया जाए और पुनर्गठन कार्य में संस्था यानी कि उनकी सोसाइटी का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए, उक्त दायर याचिका में कहीं यह नहीं कहा गया है कि अयोध्या विवादित ढांचे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा हिंदुओं की आस्था को आधार मानकर राम मंदिर निर्माण किए जाने का जो एक पक्षीए  असंवैधानिक फैसला दिया गया है, बिना साक्ष्य प्रमाण के वह विवादित स्थल को रामलला राम जन्मभूमि मान लिया गया है, जबकि राम मंदिर निर्माण खुदाई समतलीकरण के दौरान उस विवादित स्थल से भगवान बुद्ध की 2000 वर्ष पूर्व की मूर्तियां अशोक स्तंभ धम्म चक्र सम्राट अशोक कालीन अवशेष निकले हैं, इसलिए यह स्थल बौद्ध स्थल है, जो साकेत नगर था, और इस जगह बावरी नामक बुद्ध विहार था, इसलिए इस स्थान पर राम मंदिर का निर्माण कार्य जो चल रहा है, उस निर्माण कार्य पर सबसे पहले रोक लगाई जाए, और पुरातत्व विभाग उसी स्थल का निरीक्षण करें और वह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश कर उसे सार्वजनिक करें ऐसा उल्लेख याचिका में नहीं किया गया बल्कि यह कहा गया है कि जो अवशेष निकले हैं अवशेषों का सरकार जतन करें, मेरा मानना है कि जब उस स्थल पर राम मंदिर निर्माण का कार्य जारी रहेगा तो उसी स्थान पर सरकार  म्यूजियम कैसे बनाएगी? उस स्थान पर सरकार अवशेषों का जतन एवं संरक्षण कैसे करेगी? जब उस स्थल से बुद्ध मूर्तियां अवशेष प्राप्त हो रहे हैं तो उस स्थल पर बौद्ध स्मारक बुद्ध विहार बनना चाहिए राम मंदिर क्यों? क्योंकि खुदाई के दौरान राम जन्मभूमि राम की कोई मूर्तियां हिंदू धर्म से संबंधित कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं मिले हैं, इसका मतलब वह स्थल राम जन्मभूमि राम लला का नहीं है, वह बौद्ध स्थल है, इसलिए सबसे पहले उसी स्थल पर राम मंदिर निर्माण कार्य को रोका जाना आवश्यक है, और यदि ऐसा नहीं हुआ तो राम मंदिर का निर्माण कार्य चलता रहेगा और उक्त सभी दायर याचिकाओं पर कोई निर्णय होते तक राम मंदिर बन जाएगा, फिर उसे किसकी हिम्मत है कि तोड़ दे? इसलिए राम मंदिर निर्माण कार्य को रोके जाने की मांग याचिका में करना चाहिए था, लेकिन ऐसा क्यों नहीं किया गया या जानबूझकर सरकार के साथ सांठगांठ कोई षड्यंत्र के तहत गोलमोल याचिका दायर की गई है?और यह बात समझ के परे है कि अवशेष जिस स्थान से प्राप्त हुए हैं उसी स्थान पर संशोधन उपरांत उस का पुनर्गठन किए जाने और पुनर्गठन कार्य में संस्था यानीकि डॉक्टर पी जी ज्योतिकर के सोसायटी का प्रतिनिधित्व सरकार में सुप्रीम कोर्ट सुनिश्चित करें  यह उल्लेख किया गया है, यह कौन सी भाषा में है, यह कोई बुद्धिस्ट सोसाइटी का बुद्धिजीवी स्पष्ट करेगा? ताकि मैं और बौद्ध समाज यह सोसाइटी कौन से स्थान का संशोधन करने की मांग कर रही है, और संशोधन के उपरांत किस चीज का पुनर्गठन करना चाहती है, और कौन से पुनर्गठन कार्य में सोसाइटी का प्रतिनिधित्व चाहती है, यह समझ सके यह भी स्पष्ट करें? जब उक्त मुद्दे सामने आया तो मैंने सबसे पहले अपना सुझाव दिया था, कि उक्त मुद्दा अत्यंत अहम एवं गंभीर है, सरकार और सुप्रीम कोर्ट एक ही है, सरकार राम मंदिर के पक्ष में है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को दबाव एवं प्रलोभन देकर हिंदुओं के पक्ष में राम मंदिर निर्माण हेतु फैसला करवाया गया है, सरकार और न्यायालय संविधान से हटकर मनुवादी व्यवस्था के चलते मनुस्मृति के अनुरूप आस्था पर फैसले कर रहे हैं, बौद्धों के पास आस्था के अलावा साक्ष्य प्रमाण भी है, इसलिए उक्त मुद्दे पर संघर्ष आंदोलन की रूपरेखा के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की संयुक्त कमेटी बनाई जाए और जितने भी जिन्होंने अभी अलग-अलग याचिकाएं दायर की है, उन्हें भी तथा बौद्ध संगठनों के प्रमुखों बुद्धिजीवियों बौद्ध चिंतकों को कमेटी में शामिल किया जाए परंतु ऐसा नहीं किया गया जिसका नतीजा यह है कि एक ही मुद्दे पर चार याचिकाएं अलग-अलग ढंग से दायर की गई है, जिसे सुप्रीम कोर्ट एक मुद्दा मानकर संयुक्त सुनवाई करेगा और जो याचिका गोलमोल रूप से दायर की गई है, उस याचिका पर अपना निर्णय देगा, इसका अंजाम क्या होगा यह बुद्धिजीवी सच्चे अंबेडकरवादी जानते हैं, इस मुद्दे पर न्यायालयीन कार्यवाही के अलावा अंतरराष्ट्रीय  आंदोलन की आवश्यकता है , हमें सरकार को ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के आस्था के आधार पर दिए गए फैसले के खिलाफ भी लड़ाई लड़ना पड़ेगा अन्यथा हम अपनी-अपनी फॉर्मेलिटी निभा रहे हैं, अभी भी हम एक साथ आकर कोई ऐतिहासिक आंदोलन की तैयारी कर सकते हैं, समूचे देश के बौद्ध इस आंदोलन में कूदने मरने लड़ने कटने तैयार है, परंतु कोई नेतृत्व दिख नहीं रहा है,‌ऐसी स्थिति में अयोध्या साकेत जो बौद्धो की विरासत है, हमारी अस्मिता है, उसे कैसे बचा पाएंगे यह विचारणीय प्रश्न है ?  
- विजय बौद्ध संपादक दि बुद्धिस्ट टाइम्स भोपाल मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 942475 6130       

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