Tuesday, October 19, 2010

दलितों को अब, नौकरी नहीं व्यवसाय में जाना चाहिए.

आज, पूरी दुनिया हमारे देश को एक बड़े बाजार और अवसर के रूप में देख रही है। ज़ाहीर है, इसका लाभ देश के अमीरों के साथ-साथ इस देश के दलितों को भी उठाना चाहिए । अब समय आ गया है कि दलित समाज के लोग इसे एक अवसर के रूप में देखे । दलित समाज के उन नौकरी पेशा लोगों को जिनकी एक-दो पीढियां बीत चुकी हैं, अब बिजनेस में उतरना चाहिए। क्योंकि, नौकरी में ज्यादा गुंजाईश नहीं है। नौकरी में आप परिवार पाल सकते हैं, बच्चों को पढ़ा सकते हैं और मकान बना सकते हैं। इससे ज्यादा नौकरी के मथ्थे कुछ नहीं किया जा सकता।
मगर, क्या इतना ही किया जाना चाहिए है ? निश्चित ही आज, देश का दलित इससे आगे जाना चाहेगा. निश्चित ही वह समृद्ध भारत का हिस्सेदार होना चाहेगा। आप व्यवसाय में जाकर दस लोगों को नौकरी दे सकते हैं।
आज हमारे देश में दलित समाज के कुछ लोग ने, भले ही वे उँगलियों में गिनने लायक हो, खासा नाम कमाया है। मसलन, कामायनी ट्यूब्स की मालकिन कल्पना सरोज, एपीए इन्फ्रास्ट्रक्चर पाली के सर्वेसर्वा संजय क्षीर सागर, प्रसिद्ध व्यवसायी सुनील खोब्रागड़े, आगरा के हेरिटेज अस्पताल के संचालक हरिकृष्ण पिप्पल, जीटी पेस्ट कंट्रोल प्राइवेट कम्पनी के मालिक राजेन्द्र गायकवाड़ , एवरेस्ट स्पून पाइप इंडस्ट्री (महा ) के नामदेव जगताप, महाराष्ट्र के ही चीनी मिल मालिक स्वप्निल भिन्गारदेवे, यूनाइटेड इंटरनेशनल के अविनाश काम्बले आदि ने अपने दम पर अपना व्यवसाय खड़ा किया हैं (स्रोत: दैनिक भास्कर जबलपुर १७ अक्टू १०) । फिक्की, एसोचेम, सीआइआइ की तर्ज पर जिस तरह पुणे के मिलिंद काम्बले ने 'हम कर सकते हैं ' - की थीम पर दलित इन्डियन चेम्बर्स आफ कामर्स ( डिक्की) की स्थापना कर दलित छोटे व्यावसायिकों को प्रमोट किया , इसी तरह के और भी व्यावसायिक मंच खड़े कर निश्चित रूप से दलित आज तेजी से बढ़ते समृद्ध भारत में अपनी व्यावसायिक भागीदारी सुनिश्चित कर सकते हैं।

3 comments:

  1. .
    चाणक्य कहता है : यदि समाज में कोई वर्ण अपने-अपने कर्तव्यों का सही से पालन नहीं कर रहा हो तो समाज की पूरी व्यवस्था को शीर्षासन करा देना चाहिये. जैसे योग में शीर्षासन शरीर को पुनः उर्जावान करने के लिए बेहद जरूरी है वैसे ही अपने समय में चाणक्य ने एक शूद्र पुत्र को राज्य की बागडोर थमा कर विकृत हो चुकी व्यवस्था को सही किया.
    लेकिन अब मैं समझता हूँ कि आजादी के बाद से हमारे समाज ने जो शीर्षासन लगाया हुआ है उसे अब सीधा खड़ा हो जाना चाहिये.
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    क्या यह शीर्षासन सवर्णों को दलित बना देने तक लगा रहने वाला है?
    .

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  2. शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

    -लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
    E-mail : dplmeena@gmail.com
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