Tuesday, December 1, 2020

जाटवाद बनाम ब्राह्मणवाद

 आज से 2500 ई.पू. जाटों ने सिंधु घाटी की सभ्यता का निर्माण चार्वाक दर्शन (भौतिकवादी दर्शन) के आधार पर किया था । उस समय जाट जाति नाग जाति कहलाती थी । सम्राट तक्षक इस जाति के सबसे बड़े चौधरी थे और नांगलोई (दिल्ली), तक्षशिला (पाकिस्तान) तथा नागौर (राजस्थान) नाग जाति के केन्द्रीय स्थान थे । नागों ने ही नागरी लिपि को विकसित किया था जो आगे चलकर देवनागरी कहलाई । इस सिंधु घाटी की सभ्यता के खिलाफ ब्राह्मणों ने षड्यन्त्र रचे तथा सम्राट तक्षक की हत्या करके एवं चार्वाक दर्शन को धीरे-धीरे खत्म करके, इस महान् सभ्यता का पतन कर दिया ।

तक्षक और सिंधु गोत्र आज भी जाटों के ही गोत्र हैं । सिंधु घाटी की सभ्यता के पतन के बाद ब्राह्मणों ने वैदिक युग (1500 ई.पू. से 600 ई.पू.) की शुरुआत की । इस वैदिक युग में वेदों की रचना हुई, पाखंडों को बढ़ावा मिला तथा जन्म आधारित जाति व्यवस्था की शुरुआत हुई । नाग (जाट) इस वैदिक व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करते रहे । आगे चलकर इस संघर्ष में से बुद्ध की ब्राह्मणविरोधी मूवमेंट खड़ी हुई । शाक्य वंशीय नागमुनि गौतम बुद्ध ने सर्वाधिक क्रान्तिकारी नागों को नये नाम ‘जाट’ के नाम से सम्बोधित किया । जाट शब्द का अर्थ है “ब्राह्मणवाद के खिलाफ जुटे हुए सैनिक ।”

इस काल में बुद्ध के हीनयान-महायान की भान्ति जाटों के गोत्र प्रचलित हुए । जाटयान, राजयान, कादयान, ओहल्याण, बालयान, दहियान (दहिया), गुलियान (गुलिया), नवयान (नयन), लोहयान (लोहान), दूहयान (दूहन), सिद्धू (सिद्धार्थ गौतम), महायान (मान) इत्यादि ।

जाटों की भाषा ही पाली भाषा है । इसमें सभी शब्द बौद्ध आधारित हैं । जैसे - अष्टा काम (अष्टांग मार्ग, बूढ़ा-ठेरा (बौद्ध थेरा), भोला-भन्तर (भोला-भन्ते), बातों के तूत (स्तूप) बांधना, मठ (बौद्ध मठ) मरना, कसूत काम (स्तूप कार्य), थारा (थेर) इत्यादि । बुद्ध के नेतृत्व में जाटों ने सारे एशिया से ब्राह्मणवाद को खत्म कर दिया था । 

अस्तु ‘ब्राह्मण’बौद्ध धर्म के खिलाफ षड्यन्त्र करने लगा तथा उसे असली सफलता तब मिली जब सम्राट अशोक (जाट) के पोते बृहद्रथ की उसी के ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने धोखे से हत्या कर दी तथा प्रतिक्रान्ति का दौर शुरू कर दिया । इस दौर में बुद्ध का बुद्धू बना दिया गया, भन्ते का भौन्दू/भूण्डा हो गया, बर्हियात (बौद्ध सम्प्रदाय) का वाहियात बना दिया गया, मोर का चोर हो गया, थेर का ढेढ़ हो गया, त्रिशरण-पंचशील की चर्चा करना तीन-पांच करना हो गयी । इस दौर में बौद्ध धर्म ‘बोदा’ हो गया ।

इसी दौर में बौद्ध जाट गुरुओं ने भागकर जंगलों की शरण ली । जंगल में ये गंजे ना रहकर बड़े बाल रखकर रहने लगे क्योंकि गंजा सिर बौद्ध का प्रतीक था और ऐसे हर सिर पर एक सौ स्वर्ण मुद्रा का ईनाम था । इसी प्रतिक्रान्ति के दौर में जाटों ने बुद्ध को ‘शिव’ कहना शुरू कर दिया और कालान्तर में इन्हीं बाल बढ़ाए हुए प्रच्छन्न बौद्ध संन्यासियों की परम्परा से शिवभक्त नाथ सम्प्रदाय की स्थापना हुई । नाथ शब्द ‘नाग’ से बना था और सिद्ध शब्द ‘सिद्धार्थ’ गौतम बुद्ध से बना था । इस नाथ सम्प्रदाय से अनेकानेक सिद्ध पुरुष पैदा हुए जिन्होंने ब्राह्मण-विरोधी मठों को स्थापित किया । रोहतक स्थित ‘बोहर मठ’ एक ऐसा ही मठ था । इस बोहर गांव में किसी समय में 51 ब्राह्मण परिवारों को जिन्दा जला दिया गया था, जो कि इतिहास है ।

सिद्ध गुरुओं की इस परम्परा को आदिशंकराचार्य ने 7वीं शताब्दी में हाईजैक करने की कोशिश की । ब्राह्मणों ने इस धूर्त ब्राह्मण को शिव का अवतार प्रचारित किया । इसी ने क्षत्रियों (जाटों) का विभाजन करके राजपूत जाति को जन्म दिया । इन परिस्थितियों में क्षात्र धर्म कमजोर हुआ तथा इससे भारत में बाहरी आक्रमण की शुरुआत हुई । परन्तु ब्राह्मणों ने बाहरी मुगल शासकों से तुरन्त ही गठजोड़ कर लिया और यही लोग मुगल राज के बीरबल, टोडरमल बनने लगे ।

ब्राह्मण इस्लाम के खिलाफ था, परन्तु मुस्लिम राजसत्ता के साथ था, जबकि जाट ‘इस्लाम’ के पक्ष में था परन्तु ‘मुगल सत्ता’ को खत्म करना चाहता था । इस ‘मुगल ब्राह्मण सत्ता’ के खिलाफ जाटों ने नाथ सम्प्रदाय के ही अगले संस्करण सिख धर्म का साथ दिया और मुगल सत्ता का पतन किया । जाटों ने महाराजा रणजीत सिंह की अगुवाई में सरकार खालसा की स्थापना की । ब्राह्मण इस सरकार खालसा के खिलाफ भी षड्यन्त्र रचने लगा । सरकार खालसा का पतन करवाने के लिए यह अंग्रेजों को पंजाब की धरती पर बुला लाया । अंग्रेजों से पंजाब के शूरमाओं ने टक्कर ली परन्तु अन्ततोगत्वा पंजाब भी अंग्रेजों के अधीन आ गया ।

पंजाब के अंग्रेजों के अधीन आने से और सिख सरकार के पतन होने से सिख धर्म भी जबरदस्त संकट में आ गया था, क्योंकि जो शहरी पंजाबी केवल ‘सरकार खालसा’ में फायदा उठाने के लिए ही सिख बने थे वे अब पुनः हिन्दू बनने लगे । ऐसे संकट के समय में एक और घटना घट गई । सन् 1857 में जाटों ने अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त बगावत कर दी, हरयाणा क्षेत्र ने अंग्रेजों की दिल्ली में जड़ें हिलाकर रख दी, परन्तु जाट इस लड़ाई में हार गए और इस हार के बाद अंग्रेजों ने हरयाणा क्षेत्र को तोड़ दिया । इसका कुछ हिस्सा पंजाब में मिला दिया और कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश (पश्चिमी उ.प्र.) में मिला दिया ।

हरयाणा के पंजाब में मिलने से एक अच्छी बात यह हुई कि अब हरयाणा का जाट भी सिख धर्म के सम्पर्क में आ गया था । इससे मृतप्रायः सिख धर्म में फिर से ताकत आने लगी । अम्बाला, करनाल, कुरुक्षेत्र का जाट सिख बन गया ।

सिख धर्म की बढ़ती ताकत को देखकर ब्राह्मण घबरा गया क्योंकि सिख धर्म उसके लिए बौद्ध धर्म जितना ही खतरनाक साबित होता । अतः सिख धर्म को जाटों में जाने से रोकने के लिए ब्राह्मणों ने आर्यसमाज रूपी षड्यन्त्र रचा। इसके संस्थापक महर्षि दयानन्द (ब्राह्मण) ने जाटों को क्षत्रिय कहकर चढ़ाया और इन्हें आर्यसमाज में दीक्षित करके सिख बनने से रोक दिया । आर्यसमाज ने थोड़ी बहुत ब्राह्मणों की आलोचना इसलिए की क्योंकि इसके बिना जाट आर्यसमाज की ओर आकर्षित नहीं होते ।

अतः आर्यसमाज ने पंजाब-हरयाणा में सिख धर्म की मूवमेंट को रोक दिया । अब यह आर्यसमाज पंजाब में हिन्दू-मुस्लिम दंगें करवाने की भी योजना तैयार करने लगा । इस पंजाब आर्यसमाज के सभी लीडर तो उच्च जातियों से थे परन्तु टाट बिछाने वाले और कुर्बानी देने वाले सभी जाट थे ।


पंजाब में इस आर्यसमाजी षड्यन्त्र को सबसे पहले सर छोटूराम ने समझा । इन्होंने सन् 1923 में लाहौर के मुसलमान सर फजले हुसैन के साथ मिलकर यूनियनिस्ट पार्टी गठित की । सर छोटूराम ने पंजाब में शहरी ब्राह्मण बनियों के खिलाफ जबरदस्त मुहिम शुरू की और पूरे देश का जाट यूनियनिस्ट पार्टी के झण्डे तले आ गया । जाटों की इस धर्मविहीन एकता को देखकर ब्राह्मण बनिया फिर घबरा गया और अब इनके देवताओं लाला गांधी, लाला जिन्ना, पण्डित नेहरू, लाला तारा सिंह ने मिलकर सन् 1947 में अंग्रेजों के साथ मिलकर पंजाब का विभाजन करवा दिया । ऐसा करके इन्होंने संयुक्त पंजाब की जाटों की एकता को तोड़ दिया एक तरह से ये देश का विभाजन नहीं था जाटों का विभाजन था जाटों की एकता को तोड़ने का ब्राह्मणवाद का षड्यंत्र था।

- सरदार मनोज सिंघ दूहन

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