Friday, April 6, 2012

प्रेरक प्रसंग

1. भदंत आनंद कौसल्ल्यायन एक बार डा. बाबा साहेब आंबेडकर से मिलने के लिए उनके दादर निवास पर गए हुए थे. चर्चा के दौरान बाबा साहेब ने पूछा-
"भंते जी. आपको भ. बुध्द की कौन-सी मूर्ति अच्छी लगती है ?"
" वह जो ध्यानस्थ अवस्था में आँख बंद किये हुए बैठे हैं." - भदंत जी ने स्वभावत: जवाब दिया.
" और मुझे वह जो हाथ में भिक्षा-पात्र लिए बुध्द,  चारिका के लिए निकल पड़ते हैं।  - बाबा साहेब ने अपनी पसंद बतलाई।
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2. महाराजा रंजितसिंह आम के बगीचे में टहल रहे थे।  तभी एक छोटा-सा पत्थर उनको आ लगा। महाराजा के अनुचर एक बच्चे को पकड़ कर लाए।
"पर मैंने तो आम तोड़ने के लिए पत्थर मारा था ?" - बच्चे ने डरते हुए कहा।
" तो हम तुम्हें कैसे सजा दे सकते हैं, जबकि वही पत्थर पेड़ को लगता तो वह तुम्हें आम देता ! है न ?" - महाराज रंजीत सिंह ने मुस्करा कर सोने का एक सिक्का बच्चे को देते हुए कहा।
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3. सन 1934  की अवधि में बंबई(मुम्बई ) सरकार ने एक जाँच-समिति नियुक्त किया था जिसका काम नाना पेशवा से संबंधित जाँच करना था। छानबीन करते वक्त समिति के एक ब्राह्मण सदस्य को पेशवा के दफ्तर में नाना पेशवा के रखैलों की सूची मिली। उसने वह अपने सीनियर ब्राह्मण सदस्य को दिखाई। सीनियर ने उस चिट्ठी को तुरंत निगल जाने को कहा।
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४. राजस्थान के अलवर में स्थापित महात्मा ज्योतिबा फुले की मूर्ति का अनावरण मान्य. कांशीराम साहब के हाथों हुआ था।  साहब को भनक लगी कि बनारस के डा. सम्पूर्णानंद की मूर्ति के तरह महात्मा ज्योतिबा फुले की मूर्ति को गंगा जल से धोने की तैयारी है.
 खबर मिलते ही पत्रकारों को बुला कर साहब ने डपटते हुए कहा-
" अव्वल तो ऐसी किसी घटना को रोकना मुख्यमंत्री का काम है. और अगर मुख्यमंत्री अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाता है तो उसे और उसके कांग्रेस पार्टी को मिटटी में मिलाना ये कांशीराम चमार की जिम्मेदारी है। " ( बहुजन संगठक 24  जुल. 2000 ).

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