सवाल नीयत का है
खबर है कि उ.प्र. के नए मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने पूर्व मुख्य-मंत्री मायावती के फैसले को उल्ट कर राज्य के विभिन्न संस्थानों के द्वारा जारी ठेकों में दलित जातियों का आरक्षण समाप्त कर दिया है. विदित हो कि वर्षों से दलितों की यह मांग थी कि नौकरियों के साथ सरकारी ठेकों में भी आरक्षण का प्रावधान हो. यह ऐसा फैसला था जिसके तहत मायावती की नीयत का पता चलता था कि वह दलित जातियों के उत्थान के लिए कितनी सिद्दत से काम रही थी.
दलित जातियों की यथा-स्थिति में बदलाव के लिए केन्द्रीय व् राज्य स्तरों पर बहुतेरे कार्य-क्रम चलाये जाते हैं. यहाँ तक कि संवैधानिक बाधा के नाम पर नए कानून बनाये जाते हैं. मगर, इतना सब होने के बाद भी दलित जातियों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आता ? दरअसल, सवाल नीयत का है.
खबर है कि उ.प्र. के नए मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने पूर्व मुख्य-मंत्री मायावती के फैसले को उल्ट कर राज्य के विभिन्न संस्थानों के द्वारा जारी ठेकों में दलित जातियों का आरक्षण समाप्त कर दिया है. विदित हो कि वर्षों से दलितों की यह मांग थी कि नौकरियों के साथ सरकारी ठेकों में भी आरक्षण का प्रावधान हो. यह ऐसा फैसला था जिसके तहत मायावती की नीयत का पता चलता था कि वह दलित जातियों के उत्थान के लिए कितनी सिद्दत से काम रही थी.
दलित जातियों की यथा-स्थिति में बदलाव के लिए केन्द्रीय व् राज्य स्तरों पर बहुतेरे कार्य-क्रम चलाये जाते हैं. यहाँ तक कि संवैधानिक बाधा के नाम पर नए कानून बनाये जाते हैं. मगर, इतना सब होने के बाद भी दलित जातियों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आता ? दरअसल, सवाल नीयत का है.
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