Indian Toilet paper
कल मीडिया ने जिस तरह भय का माहौल बनाया था, लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था. देश के टी वी चेनलों ने 'इंडियन एक्सप्रेस' के न्यूज को इस तरह पेश किया जैसे लग रहा था, मानो हम इण्डिया नहीं पाकिस्तान में बैठे हो.
रूटीन ड्रिल के तहत सैनिक की दो टुकडियां अभ्यास के लिए निकली थी, जैसे कि रक्षा मंत्रालय द्वारा स्पष्ट किया गया. इसके लिए मंत्रालय या हायर कमांड को सूचना देना जरुरी नहीं होता. इस तरह के ड्रिल-कार्यक्रम साल भर पहले से तय होते हैं.
अब इस खबर को एक अंग्रेजी दैनिक राष्ट्रीय समाचार पत्र 'इन्डियन एक्सप्रेस ' इस तरह प्रकाशित करता है, मानो सेना ने दिल्ली पर कब्जा करने के लिए 'मूह' किया हो. निश्चित रूप से इस खबर से कई लोगों को पडोसी देश पाकिस्तान में इस तरह हुई घटनाओं की याद आई होगी. मजे की बात है कि मिलट्री हेड क्वार्टर इसे 'मूर्खतापूर्ण खबर' बतलाता है. रक्षा-मंत्रालय 'सेना का मनोबल कंम करने की खबर' कहता है.पी. एम्. ओ. भी इसे 'बेबुनियाद खबर' कहता है. तब, भी देश का मिडिया इसे पूरी तन्मयता के साथ प्रसारित करते रहता है.
लोग भूले नहीं होंगे, पिछले दिनों अन्ना हजारे के आन्दोलन को भी मिडिया कुछ इसी तरह सनसनीखेज बना रहा था.मिडिया इसे अन्ना वर्सेस कांग्रेस बता रहा था. मगर, अब जबकि बी.जे.पी. की सुषमा स्वराज ने कहा कि अन्ना हजारे की टीम अपने आन्दोलन से भटक गयी है, मिडिया एकाएक असहाय-सा महसूस कर रहा है..
लोकतान्त्रिक व्यवस्था की कामयाबी में मिडिया की भूमिका है. मगर, हरेक संस्थाओं की अपनी सीमाएं हैं. मिडिया दूसरी संस्थाओं पर ऊंगली उठाता है. मगर, उसे यह भी देखना चाहिए कि बाकि की ऊँगलियाँ उसके खुद की अपनी ओर हैं. पिछले दिनों एक चेनल का एडिटर अपने 'पोस्ट मार्टम' में संसदीय व्यवस्था को खुलेआम धकिया रहा था.
दलित वायस ( बंगलौर) के सम्पादक वी. टी. राजशेखर इस मिडिया को 'टायलेट पेपर' नाम दिया है.वे कहते हैं, हमारे देश का मिडिया वही करता है, जो वह करना चाहता है.वह चाहे तो गलत को सही और सही को गलत सिध्द्द कर सकता है.
कल मीडिया ने जिस तरह भय का माहौल बनाया था, लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था. देश के टी वी चेनलों ने 'इंडियन एक्सप्रेस' के न्यूज को इस तरह पेश किया जैसे लग रहा था, मानो हम इण्डिया नहीं पाकिस्तान में बैठे हो.
रूटीन ड्रिल के तहत सैनिक की दो टुकडियां अभ्यास के लिए निकली थी, जैसे कि रक्षा मंत्रालय द्वारा स्पष्ट किया गया. इसके लिए मंत्रालय या हायर कमांड को सूचना देना जरुरी नहीं होता. इस तरह के ड्रिल-कार्यक्रम साल भर पहले से तय होते हैं.
अब इस खबर को एक अंग्रेजी दैनिक राष्ट्रीय समाचार पत्र 'इन्डियन एक्सप्रेस ' इस तरह प्रकाशित करता है, मानो सेना ने दिल्ली पर कब्जा करने के लिए 'मूह' किया हो. निश्चित रूप से इस खबर से कई लोगों को पडोसी देश पाकिस्तान में इस तरह हुई घटनाओं की याद आई होगी. मजे की बात है कि मिलट्री हेड क्वार्टर इसे 'मूर्खतापूर्ण खबर' बतलाता है. रक्षा-मंत्रालय 'सेना का मनोबल कंम करने की खबर' कहता है.पी. एम्. ओ. भी इसे 'बेबुनियाद खबर' कहता है. तब, भी देश का मिडिया इसे पूरी तन्मयता के साथ प्रसारित करते रहता है.
लोग भूले नहीं होंगे, पिछले दिनों अन्ना हजारे के आन्दोलन को भी मिडिया कुछ इसी तरह सनसनीखेज बना रहा था.मिडिया इसे अन्ना वर्सेस कांग्रेस बता रहा था. मगर, अब जबकि बी.जे.पी. की सुषमा स्वराज ने कहा कि अन्ना हजारे की टीम अपने आन्दोलन से भटक गयी है, मिडिया एकाएक असहाय-सा महसूस कर रहा है..
लोकतान्त्रिक व्यवस्था की कामयाबी में मिडिया की भूमिका है. मगर, हरेक संस्थाओं की अपनी सीमाएं हैं. मिडिया दूसरी संस्थाओं पर ऊंगली उठाता है. मगर, उसे यह भी देखना चाहिए कि बाकि की ऊँगलियाँ उसके खुद की अपनी ओर हैं. पिछले दिनों एक चेनल का एडिटर अपने 'पोस्ट मार्टम' में संसदीय व्यवस्था को खुलेआम धकिया रहा था.
दलित वायस ( बंगलौर) के सम्पादक वी. टी. राजशेखर इस मिडिया को 'टायलेट पेपर' नाम दिया है.वे कहते हैं, हमारे देश का मिडिया वही करता है, जो वह करना चाहता है.वह चाहे तो गलत को सही और सही को गलत सिध्द्द कर सकता है.
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