11 जुला. सन 1997 को मुंबई के रमाबाई नगर में पुलिस ने 10 दलितों को गोलियों से भून डाला था.इस सामूहिक हत्या कांड में 35 लोग बुरी तरह जख्मी हुए थे. इस निर्मम गोलीबारी में मारी गयी एक दलित महिला भी थी.लोक शाहिर विलास ने घटना-स्थल के कई चक्कर लगाये थे.दलितों की इतनी निर्मम हत्या और फिर शहीदों को दी गई अग्नि; इन सब घटनाओं का एक सन्वेदनशील और भावुक कवि प्रत्यक्ष-दर्शी था.उसने अपनी आँखों से यह सब घटित होते देखा था.वह घटना से एकदम विचलित हो गया था.सन 1978 के ' मराठवाडा नामांतर-आन्दोलन के बाद, ये दूसरा बड़ा दलित नर-संहार था.
शासन-प्रशासन की क्रूरता से क्षुब्द हो कर दलित लोक शाहिर विलास घोगरे ने 17 जुला. 1997 को घर में ही फांसी लगा कर आत्म-हत्या का ली थी.ब्राह्मणवादी व्यवस्था के निर्दयी चेहरे ने एक संवेदनशील दलित कवि को आत्म-हत्या के लिए मजबूर कर दिया था.विलास घोगरे की जिन्दगी और मौत, दलित-अस्मिता की एक ऐसी घटना है, जो भुलाये नहीं जा सकती.आइये, ऐसे सन्वेदनशील और भावुक शाहिर को जानने का यत्न करें.
विलास का जन्म पूना के मंगलवारा पेठ में 1 जून 1946 को एक दलित महार समाज में हुआ था.इनके पिता का नाम भिकाजी घोगरे था. विलास का घराना कबीर पंथी था.वह देवी-देवता और पोंगा-पंथियों में विश्वास नहीं करता था. विलास करीब 4-5 साल का रहा होगा, तभी इनके माता-पिता चल बसे थे.विलास का बचपन उनके काका और बुआ के पास बीता था. विलास ने बड़े ही आर्थिक तंगी में अपना बचपन गुजरा था.वह बमुश्किल मेट्रिक तक पढ़ सका था.स्कूल छोड़ने के बाद विलास का सामना जिंदगी की कडुवी सच्चाई से हुआ था.उसके सामने पेट भरने की समस्या आई.विलास ने कैसा भी काम करने में कोई शर्म नहीं की. हम्माली लेकर सब्जी-भाजी बेचने तक का कार्य विलास ने किया.मगर,विलास को गाने का शौक था. उसे बचपन से ही गाने का शौक था.10-12 वर्ष की आयु से ही विलास रोज शाम को बच्चों को इकठ्ठा करके टीन का डिब्बा बजा-बजा कर गायन किया करता था. उसके पिता को भी गाने का शौक था. वे इकतारा बजा कर गाते थे.
विलास को जब भी मौका मिलता, चाहे आम्बेडकर जयंती हो या गणेश-उत्सव, वह मंच पर शायरी करने पहुँच जाता.विलास सन 1965 में मुम्बई आ कर कुर्ला के झोपड़-पट्टी में अपनी चचेरी बहन के पास रहने लगा था.यहाँ पर उसने साड़ी में जरी करने का काम किया. मगर, वह शाहिरी भी कर रहा था.उसने 'विलास आर्केस्ट्रा' बना कर मोहम्मद रफ़ी के गीत गाना शुरू किया था.
विलास की शायरी में ही उसे एक लड़की के प्रेम हो गया. लड़की जो चमार समाज की थी, से विलास ने विवाह कर लिया.मगर, उनका दांपत्य-जीवन अधिक समय तक चल न सका.एक साल के अन्दर ही डिलेवरी के समय आई गड़बड़ी के कारण जच्चा और बच्चा चल बसे. विलास एकाकी हो गया.एकाकी से सम्भलने विलास को थोडा वक्त लगा.उसने शायरी के क्षेत्र में खुद को झोक दिया.विलास ने अपना पहला स्व-रचित गीत सन 1971 में एक कार्य-क्रम के दौरान गाया था.तब, 'गर्जा महाराष्ट्र' नामक विलास के इस गीत ने लोगों के बीच बड़ी धूम मचाई थी.
इसी बीच विलास, आशा नामक एक लड़की के साथ विवाह-सूत्र में बन्ध गए.उनके तीन बच्चें हुए .परिवार के साथ मुम्बई आकर विलास मुलुंड डम्पिंग रोड स्थित लान्जेवाड़ी की झोपड़-पट्टी में रहने लगे.इस बार विलास को वागले स्टेट की एक रबर फेक्ट्री में काम मिल गया.यहाँ पर अपने साथ काम करने वाले कामगारों के शोषण को विलास ने नजदीक से देखा. परन्तु , यह फेक्ट्री जल्दी ही बंद हो गई.विलास फिर सडक पर आ गया. उसने परिवार का पेट भरने के लिए हम्माली का काम करना शुरू किया.उसकी सोच भी थी कि सामाजिक-परिवर्तन के गीतों के लिए जीवन में संघर्ष का होना जरुरी है.विलास मुलुंड में जहाँ वह रहता था,वहां कवि-गायकों की मंडळी थी. विलास उसका प्रमुख शाहिर था. विलास ज्यादातर बुध्द ओर भीम के गीत गाया करता था.प्रत्येक वर्ष 6 दिस. को विलास अपने गायन पार्टी के साथ दादर के चैत्य भूमि में हाजिर रहता था.वहां पर पूरी रात विलास का कार्यक्रम चलता.ऐसे अवसरों के लिए विलास ने कुछ खास गीत रचे थे.
जंगमस्वामी नामक शाहिर का विलास बडा दीवाना था. यद्यपि उनसे, विलास की मुलाकात कभी नहीं हुई. इसी बीच विलास नवरंग राजणे नामक शाहीर के सम्पर्क में आये.आगे जाकर विलास पूना के ही शाहिर बाल पाटस्कर की मंडळी में रहने लगे थे. बाल पाटस्कर के साथ विलास लम्बे अरसे तक रहे.विलास ने उनसे काफी कुछ सिखा. इसी बीच विलास नक्सलवादी आन्दोलन से प्रेरित संस्था 'आव्हान नाट्य मंच ' के संपर्क में आये.
नक्सलवादी आन्दोलन से प्रेरित संस्था 'आव्हान नाट्य मंच' की स्थापना सन 1979 में की गई थी.इस संस्था के सदस्य जन-चेतना के लिए चौराहों पर नुक्कड़ नाटक किया करते थे.स्मरण रहे, इसी समय आंध्र-प्रदेश के तेलंगाना में 'पीपुल्स वार' नामक नक्लवादी आन्दोलन चल रहा था.प्रसिध्द क्रन्तिकारी लोक कवि ग़दर इसी वार ग्रुप के सदस्य थे.वास्तव में, लोक जन-चेतना के गीतों की शुरुआत गदर द्वारा ही शुरू की गई थी.उनके ही नेतृत्व में 'आव्हान नाट्य मंच' ने आम जनता की लोक-कला की गायन शैली में गाने लिखने और गाने की शुरुआत की थी.विलास को ग़दर की काव्य शैली से बड़ी प्रेरणा मिली थी.उसने इसी शैली को अपने लोकगीतों और शायरी में अपनाया था. ग़दर जैसी हस्तियों से सम्बन्ध होने के कारण विलास की पहचान भारत के कई राज्यों के लोक-रचनाकारों से हुई.उसे जन-चेतना के लिए विभिन्न राज्यों में आयोजित कार्यक्रमों में जाने का अवसर मिला था.निश्चय ही इससे विलास की दुनिया व्यापक हुई थी.कहा जाता है कि भूमिगत होने के दौरान ग़दर,कुछ दिन विलास के घर ठहरे थे. विलास ने 1980-90 के दशक में लोक-जाग्रति की अभिनव शाहिरी की.
सन 1982 में मुलुंड के लोहाना ट्रस्ट के एक स्कूल में विलास को चपरासी की नौकरी मिल गई थी.इससे उसके घर में थोडा सुधर आया.मगर तब भी वह अपने लिए एक अदद घर नहीं बना सका.विलास के लिए गीत लिखना बाये हाथ का खेल था. वह किसी भी ज्वलंत समस्या पर बैठे-बैठे गीत बना लेता था.वह चंद मिनटों में ही गीतों को लय-बध्द कर लेता था.मराठी, हिंदी ओर गुजराती तीनों भाषाओँ पर उसका प्रभुत्व था.इसी कारण वह अनुवाद भी जीवंत कर लेता था.उसने कई गुजराती,तेलगु गीतों का अनुवाद किया था.विलास के हिंदी गीतों को पढ़ कर कहीं से नहीं लगता कि वह हिंदी भाषी नहीं है.उसने हिंदी का अत्यंत सरल और सहज रूप स्वीकार कर अपनी अभिव्यक्ति को सक्षम बनाया था. विलास शब्दों को बहुत घिसा नहीं करता था.उसके गीतों में अनुभव की व्यापकता और आंतरिक तडप दिखाई देती थी.
सन 1978 में मराठवाडा नामांतर ने तीव्र रूप धारण कर लिया था.मराठवाडा में आगजनि,क़त्ल और बलात्कार जैसी घिनौनी घटनाओं ने भीषण रूप धारण कर लिया था.गावं ओर शहरों में दलितों पर हमले होने लगे थे.विलास ओर उसके साथियों ने इस कत्लेआम का विरोध करने के लिए मुम्बई की सडकों पर गाने का कार्यक्रम रखा.इसी वक्त विलास ने 'जलतोय मराठवाडा' गीत की रचना की थी.इस गीत ने मराठवाडा के गावं-गावं में तहलका मचा दिया था.विलास मराठवाडा के गावं-शहरों में घूम-घूम कर दलित मोहल्लों में अलख जगा रहे थे.जेलों में ठूंस दिए गए निरपराध दलितों को रिहा करने के उद्देश्य से विलास गली-सडकों की खाक छान रहे थे.
15 जुला. 1995 को घटी एक घटना ने विलास को तोड़ कर रख दिया. विलास की बड़ी बेटी नूतन ने घर कलह से तंग आ कर आत्म-हत्या कर ली थी.विलास ने अपने तीनों बच्चों को आर्थिक तंगी के बावजूद बड़े जतन से पाला था.वह शायरी के सिलसिले में घर से बाहर तो रहता मगर, जब भी घर पर रहता, बच्चों का पूरा ख्याल रखता.उसने बच्चों को अपने पैरों पर खड़े होने की शिक्षा दी थी.
विलास के एक बेटे को सरकारी नौकरी मिल गई थी.वह बेटे की शादी भी करने वाले थे. दादर के आम्बेडकर भवन में 12 अप्रेल 1997 को पुलिस द्वारा हमले के विरोध में ली गई आम सभा विलास का अन्तिम कार्यक्रम था.
Jai Bhim COmrade! Thanx for this most valuable and crucial information about Comrade Vilas Ghogare ji. This is a reality which Shahir Vilas Ghogare lived and struggled constantly which will inspire young ones..always- Vasudha Kalyankar
ReplyDeleteI felt very sad when I was reading this. My heart beats for such people.
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