एक मेरे मित्र है. नाम है, गुलाबचंद रिछारिया. आप भाजपा के जिला अध्यक्ष हैं. इसके साथ ही आप आर.एस.एस. और इसके आनुषंगिक कई संगठनों के जिला और प्रांतीय स्तर के पदाधिकारी हैं.आम्बेडकर जयंती के मंचों पर आपसे अक्सर मुलाकात होती है. वे खटिक समाज के हैं.जैसे कि भाजपा और इससे सम्बन्धित संगठनों के लोग रहते हैं, रिछारियाजी भी धोती-कुर्ता, गले में गमछा और माथे पर लम्बा टिरा लगाते हैं. भाषा से भी पक्के सनातनी हिन्दू लगते हैं .एक दिन मैंने पूछ ही लिया -
"रिछारिया जी, क्या आपको अजीब नहीं लगता कि आर.एस.एस. के आदमी होकर भी आप डा. आम्बेडकर के सामाजिक-परिवर्तन पर भाषण करते हैं ?
"उके जी,क्या आप नहीं चाहते कि अपने लोग भी इन संगठनों में होना चाहिए ताकि वहां क्या हो रहा है, मालुम हो सके ? और फिर, उन्हें भी तो हमारी जरुरत है ? अगर आपको वहां रहकर मान-सम्मान मिलता है तो क्या बुरा है ?
No comments:
Post a Comment