
छोटू (ऐश्वर्य ) की वेडिंग 18 अप्रेल 2014 सम्पन्न होने के बाद हम लोग दल्ली-राजहरा से सीधे सालेबर्डी गए। तय प्रोग्राम के अनुसार, 19 अप्रेल का नाइट हाल्ट सालेबर्डी था।

घर के बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद नई नवेली दुल्हन और दूल्हे को लेना चाहिए। बड़े-बुजुर्गों का दर्शन प्रेरणादायी होता है। वे जमीन से जुड़े रहने की सीख देते हैं।

इस बार दामाद बिपिन और बिटिया भी साथ थे। हम उम्र होने से बिटिया-दामाद और बेटा-बहू के बीच गाढ़ी छन रही थी। उम्र के साथ-साथ विचारों का अंतर मैं साफ-साफ देख रहा था। विचारों की समानता उम्र का लिहाज नहीं करती , एक बार पुन: यह विचार मुझे दकियानूसी लगा। मैं अलग होकर भी अलग नहीं रह सकता था। बेटे और दामाद से भला आप अलग कैसे हो सकते हैं ?




बच्चें होते हैं, पलते-बढ़ते हैं। शिक्षा प्राप्त करते हैं- शहर में, मेट्रोपोलिटन नगरों में। पढ़-लिख कर शादी होने के बाद बच्चों में अपने पितृ-स्थान में जाने की ललक हो, यह जरुरी नहीं है. मुझे इसके लिए आज-कल के बच्चों पर कम उनके माँ-बाप पर तरस अधिक आता है।


मगर , इसका क्या किया जाए कि यह तहज़ीब अब गांवों को भी टा टा करने लगीं है।
Excellent
ReplyDeleteExcellent..............
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