पिछली 24 अप्रेल 14 को एक शादी में शरीक होने के सिलसिले में हमारा जाना अपने पैतृक गावं सालेबर्डी हुआ। सालेबर्डी जाने के लिए हमने वारासिवनी-रामपायली वाला मुख्य मार्ग न पकड़ कर अन्सेरा-खड़गपुर मार्ग पकड़ा।
चूँकि वारासिवनी से रामपायली के लिए जो रोड है , वह पिछले 3 -4 वर्षों से इस कदर उखड़ा और गढ्ढों से भरा है कि लोग बमुश्किल ही वहां से आना-जाना करते हैं। यद्यपि यह मुख्य मार्ग है जो भंडारा (महा.) को बालाघाट (म प्र) जिले से जोड़ता है।
अपने यहाँ 'विकास' के नाम पर चुनाव लड़ा जाता है। अभी इसी चुनाव में मोदी ने विकास के नाम पर चुनाव जीता। यद्यपि , म प्र में पिछले 10 वर्षों से बीजेपी की सरकार है। मगर ,विकास किधर हो रहा है , समझ के परे है।
खैर, हम बात रहस्यमयी कुएं की कर रहे थे। दरअसल , गावं जाते वक्त दिमाग इतना ख़राब होता है कि बात कुछ भी हो, रोड बीच में घुस आता है।
जैसे कि मैं बतला रहा था , वारासिवनी से हमने अन्सेरा-खड़गपुर मार्ग पकड़ा। मगर , यह रोड सही हो , ऐसा नहीं है। करीब 2 की मी में कच्चा रोड ऐसा है कि नानी याद आती है। हाँ , इसके बाद 8-9 की मी का रोड पक्का है , जो एकदम दुरुस्त है। सड़क पर अपनी गाड़ी के अलावा आपको दूसरी गाड़ियां दूर-दूर तक नज़र नहीं आएगी।
अन्सेरा के बाद खड़गपुर का जंगल शुरू होता है। किसी ज़माने में खड़गपुर का जंगल बहुत घना था। यहाँ पर घटित मामे-भानजे की दर्दनाक घटना रोंगटे खड़ा करती है। दादी के अनुसार, लकड़ी काटने मामा-भांजा जंगल गए थे। तभी, कहीं से शेर आया और भांजे को खींचते हुए घनी झाड़ियों में गायब हो गया। उस समय से कोई भी मामा-भानजा एक साथ इस जंगल से नहीं जाता । मगर , अब यहाँ कोई जंगली जानवर रहता हो, लगता नहीं।
एकाएक , पास बैठे भतीजे प्रशांत ने सड़क के बायीं ओर किसी रहस्यमयी कुएं की ओर संकेत किया । मैंने झट ही गाड़ी धीमी कर सड़क के एक ओर खड़ी कर दी। हम सब नीचे उतरे।
वहां पहले से ही कुछ लोग खड़े थे। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। बतलाए अनुसार , यहाँ का पानी कम नहीं होता, चाहे ठण्ड हो या गर्मी । दूसरे , यह कुआं 4-5 की मी आगे जा कर पांजरा नामक गावं से गुजरती चनई नदी के गहरे डोह में निकलता है। यहाँ काफी गहरा पानी है जिसे 'नन्द भौरा' कहते है। यहाँ तीन गावं ; अन्सेरा, खड़गपुर और जराह मोहगावं का 'चिमटा' है , अर्थात तीन गावों की सीमा मिलती है।
चूँकि वारासिवनी से रामपायली के लिए जो रोड है , वह पिछले 3 -4 वर्षों से इस कदर उखड़ा और गढ्ढों से भरा है कि लोग बमुश्किल ही वहां से आना-जाना करते हैं। यद्यपि यह मुख्य मार्ग है जो भंडारा (महा.) को बालाघाट (म प्र) जिले से जोड़ता है।
अपने यहाँ 'विकास' के नाम पर चुनाव लड़ा जाता है। अभी इसी चुनाव में मोदी ने विकास के नाम पर चुनाव जीता। यद्यपि , म प्र में पिछले 10 वर्षों से बीजेपी की सरकार है। मगर ,विकास किधर हो रहा है , समझ के परे है।
खैर, हम बात रहस्यमयी कुएं की कर रहे थे। दरअसल , गावं जाते वक्त दिमाग इतना ख़राब होता है कि बात कुछ भी हो, रोड बीच में घुस आता है।
जैसे कि मैं बतला रहा था , वारासिवनी से हमने अन्सेरा-खड़गपुर मार्ग पकड़ा। मगर , यह रोड सही हो , ऐसा नहीं है। करीब 2 की मी में कच्चा रोड ऐसा है कि नानी याद आती है। हाँ , इसके बाद 8-9 की मी का रोड पक्का है , जो एकदम दुरुस्त है। सड़क पर अपनी गाड़ी के अलावा आपको दूसरी गाड़ियां दूर-दूर तक नज़र नहीं आएगी।
अन्सेरा के बाद खड़गपुर का जंगल शुरू होता है। किसी ज़माने में खड़गपुर का जंगल बहुत घना था। यहाँ पर घटित मामे-भानजे की दर्दनाक घटना रोंगटे खड़ा करती है। दादी के अनुसार, लकड़ी काटने मामा-भांजा जंगल गए थे। तभी, कहीं से शेर आया और भांजे को खींचते हुए घनी झाड़ियों में गायब हो गया। उस समय से कोई भी मामा-भानजा एक साथ इस जंगल से नहीं जाता । मगर , अब यहाँ कोई जंगली जानवर रहता हो, लगता नहीं।
एकाएक , पास बैठे भतीजे प्रशांत ने सड़क के बायीं ओर किसी रहस्यमयी कुएं की ओर संकेत किया । मैंने झट ही गाड़ी धीमी कर सड़क के एक ओर खड़ी कर दी। हम सब नीचे उतरे।
वहां पहले से ही कुछ लोग खड़े थे। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। बतलाए अनुसार , यहाँ का पानी कम नहीं होता, चाहे ठण्ड हो या गर्मी । दूसरे , यह कुआं 4-5 की मी आगे जा कर पांजरा नामक गावं से गुजरती चनई नदी के गहरे डोह में निकलता है। यहाँ काफी गहरा पानी है जिसे 'नन्द भौरा' कहते है। यहाँ तीन गावं ; अन्सेरा, खड़गपुर और जराह मोहगावं का 'चिमटा' है , अर्थात तीन गावों की सीमा मिलती है।
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