अपने यहाँ यही दिक्कत है कि ए सी में बैठते ही आप जमीन से कट जाते हैं। वैसे, रेलवे खुद भी नहीं चाहती की 'साहब लोग' एयर कंडीशन कम्पार्टमेंट में बैठ कर बाहर ताक-झांक करे।
बाहर , विदेशों में ऐसा नहीं होता। 'एम्सटरडेम विजिट' के दौरान मैंने यूरोप में देखा कि वहां ट्रेनों और बसों में खिड़कियों के कांच पूरी तरह ट्रांसपेरेंट होते हैं। मगर , हमारे यहाँ 'डिस्टेंस' मेंटेन किया जाता है।
एक समय था जब हम जनरल बोगी में सफर करते थे। शुरुआत के दिन थे। नया खून था और जेब में फाईन भरने के लिए पैसे नहीं थे । जनरल बोगी का डंडा पकडे लटक कर सैकड़ों की मी का सफर करते थे । मगर , अब ऐसा नहीं है। अब तो इमरजेंसी में जनरल की टिकिट खरीदवा कर भी मिसेज स्लीपर की बोगी के तरफ धकेलती है।
स्लीपर बोगी में बैठने के दो फायदे हैं। एक तो आप जमीन से जुड़े रहते हैं और दूसरे , आपको अपनी औकात पता होती है ।
कुछ इसी तरह का नियम ट्रेन या प्लेन में सफर करने का है। एक आफिस असिस्टेंस फस्ट क्लास की टिकिट का एंटाइटल्ड होता है । मगर, बाबू मोशाय है कि बैठते स्लीपर क्लास में ही हैं !
No comments:
Post a Comment