6.‘‘भन्ते नागसेन, को पटिसन्दहति?’’ राजा आह।
‘‘भन्ते नागसेन, कौन पुनर्मिलन करता है?’’
‘‘नामरूपं महाराज, पटिसन्दहति।’’ थेरो आह।
‘‘महाराज! नाम और रूप पुनर्मिलन करता है।’’
‘‘किं इमं येव नामरूपं पटिसन्दहति?’’
‘‘क्या यही नाम और रूप पुनर्मिलन करता है?’’
‘‘न खो महाराज, इमं येव नामरूपं न पटिसन्दहति।’’
‘‘ नहीं महाराज, यही नाम और रूप पुनर्मिलन नहीं करता।’’
‘‘इमिना पन, महाराज, नामरूपेन कम्मं करोति सोभनं वा पापकं वा, तेन कम्मेन अञ्ञेन नामरूपं पटिसन्दहति।’’ ‘‘
किन्तु महाराज, इस नाम और रूप से कर्म करता है; पुण्य या पाप, उस कर्म से दूसरा नाम और रूप पुनर्मिलन करता है।’’
‘‘यदि भन्ते, न इमं येव नामरूपं पटिसन्दहति, ननु सो मुत्तो भविस्सति पापकेहि कम्मेहि।’’
‘‘यदि भन्ते! यही नाम और रूप पुनर्मिलन नहीं करता, तो निश्चय ही वह पाप-कर्मोंसे मुक्त होगा ?’’
‘‘यदि न पटिसन्दहेय्य, मुत्तो भवेय्य पापकेहि कम्मेही। यस्मा च खो महाराज, पटिसन्दहति, तस्मा न मुत्तो पापकेहि कम्मेहि।’’
‘‘यदि पुनर्मिलन न हो, तो मुक्त हो पाप कर्मों से। जब तक पुनर्मिलन होता है, तब तक पाप-कर्मों से मुक्ति नहीं।’’
'पुनर्मिलन' के प्रश्न की विवेचना करते हुए, बाबासाहब डा. अम्बेडकर अपने कालजयी ग्रन्थ 'बुद्धा एंड धम्मा' में लिखते हैं- अच्छा हो, इस प्रश्न को दो हिस्सों में बाँट लिया जाए। 1. किस चीज का जन्म ? 2. किस व्यक्ति का जन्म ?
बुद्ध के अनुसार चार भौतिक पदार्थ हैं, चार महाभूत हैं जिससे शरीर बना है- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु। प्रश्न है जब शरीर का मरण होता है तो इन चार महाभूतों का क्या होता है ? बुद्ध ने कहा कि आकाश में जो भौतिक पदार्थ सामूहिक रूप से विद्यमान हैं, वे उनमे मिल जाते हैं। इस विद्यमान तैरती हुई राशि में से जब इन चार महा भूतों का पुनर्मिलन होता है, तो पुनर्जन्म होता है।
इन भौतिक पदार्थों के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे उसी शरीर के हो जिसका मरण हो चुका है। वे नाना मृत -शरीरों के भौतिक अंश हो सकते हैं। यह बात ध्यान देने की है कि शरीर का मरण होता है लेकिन भौतिक पदार्थ बने रहते हैं। बुद्ध इसी प्रकार के पुनर्जन्म को मानते थे(भगवान बुद्ध और उनका धम्म : खंड 4 भाग 2 )।
अब प्रश्न के दूसरे भाग को लें। किस व्यक्ति का जन्म ? इसके के लिए, पहले हम देखें कि व्यक्ति के मरने पर क्या होता है ? दरअसल, व्यक्ति के मरने का अर्थ शरीर में शक्ति/उर्जा का नव-निर्माण रुक जाना है और दूसरे, शक्ति का शरीर से निकल कर विश्व में संचरण कर रही अनंत शक्ति-पुंज में मिल जाना है ।
दो स्कंधों का मिलन है- नाम और रूप स्कन्ध । पृथ्वी, आप, तेज, वायु चार महाभूतों का मिलन 'रूप' स्कंध है। वेदना, सञ्ञा, संखार, विञ्ञान का मिलन 'नाम' स्कंध है। वेदना नाम अनुभूति है, यथा सुख-दुक्खादि वेदना । घर, पेड़, गावं आदि विषयक कल्पनाओं को सञ्ञा कहते हैं। स्मृति में अंकित भिन्न-भिन्न अनुभवों को संखार कहते हैं। इन्हीं अनुभवों के आधार पर हमें कुछ पदार्थों में रूचि होती है और कुछ पदार्थों में अरुचि । विञ्ञान का अर्थ है- जानना। यथा आँख से पेड़ को देख कर हम जानते हैं कि यह पेड़ है, कान से शब्द को सुन कर हम जानते हैं कि कोई कुछ कह रहा है। मोटे तौर पर वेदना, संज्ञा, संखार- रूप के संपर्क से विज्ञान की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ हैं(महा वेदल्ल सुत्त : म. नि. 1-5-3)।
मिलिन्द-पञ्ह के उक्त ‘कर्म’ के ब्राह्मणी-सिद्धांत को बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘बुद्धा एॅण्ड धम्मा’ में यह कहते हुए नकार दिया है कि‘‘बुद्ध के कर्म का सिद्धांत का संबंध मात्र ‘कर्म’ से था और वह भी वर्तमान जन्म के कर्म से।’’(देखें- दूसरा भागः चतुर्थ काण्ड, कर्मः 2/3, पृ. 269)
प्रस्तुति- अ. ला. ऊके
‘‘भन्ते नागसेन, कौन पुनर्मिलन करता है?’’
‘‘नामरूपं महाराज, पटिसन्दहति।’’ थेरो आह।
‘‘महाराज! नाम और रूप पुनर्मिलन करता है।’’
‘‘किं इमं येव नामरूपं पटिसन्दहति?’’
‘‘क्या यही नाम और रूप पुनर्मिलन करता है?’’
‘‘न खो महाराज, इमं येव नामरूपं न पटिसन्दहति।’’
‘‘ नहीं महाराज, यही नाम और रूप पुनर्मिलन नहीं करता।’’
‘‘इमिना पन, महाराज, नामरूपेन कम्मं करोति सोभनं वा पापकं वा, तेन कम्मेन अञ्ञेन नामरूपं पटिसन्दहति।’’ ‘‘
किन्तु महाराज, इस नाम और रूप से कर्म करता है; पुण्य या पाप, उस कर्म से दूसरा नाम और रूप पुनर्मिलन करता है।’’
‘‘यदि भन्ते, न इमं येव नामरूपं पटिसन्दहति, ननु सो मुत्तो भविस्सति पापकेहि कम्मेहि।’’
‘‘यदि भन्ते! यही नाम और रूप पुनर्मिलन नहीं करता, तो निश्चय ही वह पाप-कर्मोंसे मुक्त होगा ?’’
‘‘यदि न पटिसन्दहेय्य, मुत्तो भवेय्य पापकेहि कम्मेही। यस्मा च खो महाराज, पटिसन्दहति, तस्मा न मुत्तो पापकेहि कम्मेहि।’’
‘‘यदि पुनर्मिलन न हो, तो मुक्त हो पाप कर्मों से। जब तक पुनर्मिलन होता है, तब तक पाप-कर्मों से मुक्ति नहीं।’’
'पुनर्मिलन' के प्रश्न की विवेचना करते हुए, बाबासाहब डा. अम्बेडकर अपने कालजयी ग्रन्थ 'बुद्धा एंड धम्मा' में लिखते हैं- अच्छा हो, इस प्रश्न को दो हिस्सों में बाँट लिया जाए। 1. किस चीज का जन्म ? 2. किस व्यक्ति का जन्म ?
बुद्ध के अनुसार चार भौतिक पदार्थ हैं, चार महाभूत हैं जिससे शरीर बना है- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु। प्रश्न है जब शरीर का मरण होता है तो इन चार महाभूतों का क्या होता है ? बुद्ध ने कहा कि आकाश में जो भौतिक पदार्थ सामूहिक रूप से विद्यमान हैं, वे उनमे मिल जाते हैं। इस विद्यमान तैरती हुई राशि में से जब इन चार महा भूतों का पुनर्मिलन होता है, तो पुनर्जन्म होता है।
इन भौतिक पदार्थों के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे उसी शरीर के हो जिसका मरण हो चुका है। वे नाना मृत -शरीरों के भौतिक अंश हो सकते हैं। यह बात ध्यान देने की है कि शरीर का मरण होता है लेकिन भौतिक पदार्थ बने रहते हैं। बुद्ध इसी प्रकार के पुनर्जन्म को मानते थे(भगवान बुद्ध और उनका धम्म : खंड 4 भाग 2 )।
अब प्रश्न के दूसरे भाग को लें। किस व्यक्ति का जन्म ? इसके के लिए, पहले हम देखें कि व्यक्ति के मरने पर क्या होता है ? दरअसल, व्यक्ति के मरने का अर्थ शरीर में शक्ति/उर्जा का नव-निर्माण रुक जाना है और दूसरे, शक्ति का शरीर से निकल कर विश्व में संचरण कर रही अनंत शक्ति-पुंज में मिल जाना है ।
दो स्कंधों का मिलन है- नाम और रूप स्कन्ध । पृथ्वी, आप, तेज, वायु चार महाभूतों का मिलन 'रूप' स्कंध है। वेदना, सञ्ञा, संखार, विञ्ञान का मिलन 'नाम' स्कंध है। वेदना नाम अनुभूति है, यथा सुख-दुक्खादि वेदना । घर, पेड़, गावं आदि विषयक कल्पनाओं को सञ्ञा कहते हैं। स्मृति में अंकित भिन्न-भिन्न अनुभवों को संखार कहते हैं। इन्हीं अनुभवों के आधार पर हमें कुछ पदार्थों में रूचि होती है और कुछ पदार्थों में अरुचि । विञ्ञान का अर्थ है- जानना। यथा आँख से पेड़ को देख कर हम जानते हैं कि यह पेड़ है, कान से शब्द को सुन कर हम जानते हैं कि कोई कुछ कह रहा है। मोटे तौर पर वेदना, संज्ञा, संखार- रूप के संपर्क से विज्ञान की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ हैं(महा वेदल्ल सुत्त : म. नि. 1-5-3)।
मिलिन्द-पञ्ह के उक्त ‘कर्म’ के ब्राह्मणी-सिद्धांत को बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘बुद्धा एॅण्ड धम्मा’ में यह कहते हुए नकार दिया है कि‘‘बुद्ध के कर्म का सिद्धांत का संबंध मात्र ‘कर्म’ से था और वह भी वर्तमान जन्म के कर्म से।’’(देखें- दूसरा भागः चतुर्थ काण्ड, कर्मः 2/3, पृ. 269)
प्रस्तुति- अ. ला. ऊके