Thursday, December 24, 2020

मेरि जाति बिखिआत चमार "

 

मेरि जाति बिखिआत चमार "

“My caste is eminent Chamar”

सतगुरु रविदसजी महाराज ने लगभग 600 वर्ष पहले कहा था " मेरि जाति बिखिआत चमार "।

It is now 600 years Satguru Ravidas used to say that he belonged to the highly acclaimed caste Chamar

लेकिन आज संपूर्ण भारत मे " चमार " शब्द का इस्तेमाल एक गाली की तरह किया जाता है ।

But now the word “Chamar” is most abusive/offensive /condemned in whole India.

ऐसा क्यूँ है ? Why is it so?

ऐसा क्यूँ है की हमारें समाज की " पहचान " एक गाली बन चूकी है ?

Why our community is identified by this abused word?

" अछूत पहले कौन थे ? " सन 1948 में लिखी इस किताब में बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर जी नें स्पष्ट तौर पर कहा है की " चमार " शब्द के अलावा अन्य किसी भी अछूत जाति का उल्लेख हिन्दू धर्मशास्रों में नहीं है ।

In the book titled “Who were untouchables” Dr Ambedkar had stated clearly that there is no other Castes except Chamar which recognised untouchables/outcastes in all Hindu scriptures.

इसका तात्पर्य यह है की, " चमार " इस नाम से प्रसिद्ध हमारे समाज को ब्राहमणों द्वारा अछूत घोषित कर गुलाम बनाया । This means that the Brahmins declared all untouchables/outcastes to be their slaves & called them ‘Chamar’, once an eminent community.

सवर्ण हिन्दुओं के गुलाम बन चूके हमारें समाज से जबरदस्ती हल्के काम करवाये गयें । इस तरह हल्के काम करने के कारन हमारें समाज की पहचान "चमार" एक गाली बन चूकी है ।

One time acclaimed Chamar community served Savarn high caste Hindus through all menial jobs & therefore their indulging in various menial jobs gradually identified them as Chamar caste that became synonymous with an abuse.

आगे हिन्दुओं की गुलमी करते-करते चमारों ने भी अपने आप को हिन्दू कहना आरंभ कर दिया ।

Thus Chamars served under high caste Hindus as their slaves & began calling themselves Hindus.

इस तरह हिन्दूओं की नकल करने के कारण, जैसा जिसका काम वैसा उसके जाति का नाम तर्ज पर चमारों में भी जातियों का निर्माण हुआ ।

Practising slavery through those myriad menial jobs for/under Hindu high Castes resulted into many castes amongst Chamars, once eminent Chamar community.

अतः इससे स्पष्ट होता है कि मुलतः एक " दि ग्रेट चमार " जाति के लगभग 12 सौ अलग-अलग जातियाँ बन चूकी है । " चमार " मतलब जूते बनानेवाला ही नही बल्कि मरे हुये पशु ढोनेवाले, मैला उठानेवाले भी चमार ही है ।

Over the years “The great Chamars” gradually turned into about 1200 different castes not only by their shoe-making job but also jobs of removing dead animals, scavenging, removing stools manually etc.

Satguru Ravidas writes, "मेरी जाति कुट बांढला ढोर ढोवंता नितहि बनारसी आस पास II"

(अर्थात मेरे जाति के लोगों से अब मरे हुये पशूओं को ढोने का काम करवाया जाता हैं। यह जो हल्के काम करनेवाले है , सभी मेरी जाति के बिखिआत चामार है।)

meaning “various castes now doing various menial jobs were once upon a time an eminent Chamar community” 

तो फिर काहा खो गया है हमारे अंदर का वह दि ग्रेट चमार ?

Where did we lose our real identity as Great Chamar ?

जरा सोचिए ! जरा पहचानिए ! आप के अंदर का वह " दि ग्रेट चमार " कहां खो गया है ?

Brood over & try realising our great identity ! Have we lost our real identity as Great Chamar ?

इसका एक ही जवाब है, हमारें अंदर का वह " दि ग्रेट चमार " हिन्दू धर्म निगल चूका है।

The only answer to this question seems to be the fact that our real identity has been swallowed by word ‘Hindu’.

मतलब हिन्दू धर्म के कारण हीं चमार जातियों की सामाजिक प्रतिष्ठा एवं पहचान खो चूकी है।

Prestigious identity attached earlier to Chamar community is lost due to word ‘Hindu’ attached with it.

तो जानिए " चमार समाज " की वास्तविक प्रतिष्ठा खत्म करनेवाला हिन्दू धर्म कैसा है ?

Let us understand this word ‘Hindu’ stated to be a religion, which lowered the prestige of Chamar community.

हिन्दू धर्म एक बरगद के पेड़ जैसा है और अछूत उस पेड़ के निचे उगे पौधों की तरह है।

The word ‘Hindu’ is like a large Banyan tree & untouchables under it look like small bushes. 

क्या आपने बरगद के पेड़ के नीचे पौधा कभी पेड़ बनते हुये देखा है ?

Is it possible to grow any bush under a big banyan tree  ?

जैसे बरगद के पेड़ के नीचे पौधा कभी पेड़ नहीं बन सकता वैसे हीं हिन्दू धर्म में रहते हुये चमार जातियों को अपनी प्रतिष्ठा एवं पहचान प्राप्त नही हो सकती। क्यूंकि, हिन्दू धर्म रुपी बरगद के पेड़ की जड़ें  सनातनी है।

Hindu religion has got its age old deep roots like a banyan tree & closeness of Chamar community with Hindu resulted into losing its eminence.

उसका तना ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों की धार्मिक एकजुटता के कारण मजबूत बना है । लगभग चार हजार सवर्ण जातियाँ उसकी शाखाएं है ।It’s roots are deep due to the strong religious unity amongst it’s four Varnas i.e. Brahmin, Kshatriya, Vaishya & Shudra, whose 4000 savarna castes are it’s branches.

बरगद के पेड़ की शाखाओं की तरह अलग-अलग दिखनेवाली हजारों सवर्ण जातियाँ हिन्दू धर्म सुत्र मे एक रुप, एक संघ है।

Thousands of savarna castes are unified with Hindu religion just as there are different branches of a Banyan tree.

उसके प्रत्येक शाखा से नीचें उतरतीं जडे़ं मतलब हिन्दू संत, महात्मा और महापुरुष हैं।

Each branch has it’s roots in the form of Hindu saints, messiah.

जैसे शाखाओं में से नीचे उतरती जड़ें वट-वृक्ष को आधार, मजबूती देतें हैं वैसे हीं संत-महात्मा और महापुरुषों का काम भी हिन्दू धर्म को आधार देना होता है। These saints & messiah support Hindu religion just like the roots support all branches of a Banyan tree.

हिन्दू धर्म रुपी इस बरगद के पेड़ की जडे़ं, तना एवं सभी शाखाएं भी यदि सवर्ण हिन्दुओं के हक मे है तो फिर उसमे अछुत चमार जातियों का स्थान कहाँ है ?

तो उन्हें बस उस पेड़ के नीचे जगह मीली है।

The condemned untouchable Chamars have no place under this tree though they find some space under the shade of plenty of branches of savarna high caste saints having deep roots like Banyan tree with Hindu religion.

इस कथा से सीख : -

Lesson of this story is :

जैसे समझदार माली बरगद के पेड़ के नीचें से उस पौधे को धीरे से हटाकर पर्याप्त दूरी पर लगाएगा तो आप देखेंगे की, कुछ हीं दिनों में उस पौधे का एक मजबूत पेड़ बन चूका है , वैसे ही शांतिपूर्ण तरीके से हिन्दू धर्म से अलग होकर ही अछूत, चमार जातियों की खो चूकी प्रतिष्ठा एवं पहचान पुनः प्राप्त कर सकते है।

As a good gardner is able to grow sapling into a Banyan tree by keeping proper distance from main Banyan tree, condemned Chamar community is required to distance itself from Hindus to restore it’s eminence & previous glory.

अर्थात अछूत चमारों को प्रथम हिन्दू धर्म से अलग होने के लिए प्रयास करने चाहिए । लेकिन अपने आप को और अपने समाज को हिन्दू धर्म से अलग करने के बजाए हमारें समाज के कुछ यंगस्टर्स, बुध्दिजीवी, राजनेता खुद को हिन्दू बनाए रख़ते हुये, दलित नाम का सिक्का उछालकर संगठन बनाते है और हिन्दू धर्म रुपी उस बरगद के पेड़ के ऊपर पत्थर मारने का कम करतें हैं। लेकिन वे भुल जातें हैं की, जिस पेड़ के उपर वे पत्थर मार रहें है उस पेड़ के नीचे उन्हीं के ही भाई बैठें हुये है! इसीलिए सर भी उन्ही के फूट रहें है।

Instead of such distancing from Hindu religion, many youngsters, intellectuals & politicians try to throw stones to this Banyan tree resembling Hindu religion, being proud Hindus through their Dalit identity, forgetting the fact that the stones thrown above boomerang & harm their own brethren sitting below.

उन्हें इस बात का भी संज्ञान लेना चाहिए की, भारत के इतिहास मे अनेक संत, महात्मा और महापुरुषों ने भी अपने आप को हिन्दू बनाए रख़ते हुये, अछूत चमार जातियों का उद्धार करनें का प्रयास तो किया ! लेकिन हिन्दू धर्म मे अछूत चमार जातियों की सामाजिक स्थिति जैसे थी आज लगभग वैसे ही हैं।

We should know that many saints & seers in the past could not achieve any success to improve our lot with best of their efforts while remaining with Hindu fold

सच कहें तो इस सच्चाई को हम सभी जानतें और समझते भी हैं लेकिन हमारे समाज की स्थिति उस ताक़तवर हाथी जैसी हो गई है जिसे महज मामूली रस्सी से बांधकर रख़ा गया हो।

Though we know this reality, we have been positioned like a strong elephant tied with a weak rope.

रोड़ किनारे खड़े हाथी को देखकर महावत से किसी नें पुछा, ताक़तवर हाथी रस्सी तोड़कर जंगल मे भाग जायेंगे , क्या आप को डर नहीं लगता ?

Seeing an elephant by the side of road, someone asked mahout whether he fears elephant breaking the rope and abscond away ?

महावत ने जवाब दिया , जंगल से लाये तब यह हाथी बच्चे थे उस समय भी उन्हें इसी रस्सी से बांधकर रख़ा जाता था । बच्चे हाथी , रस्सी तोड़ने का प्रयास करते थे लेकिन रस्सी तोड़ नहीं पाते थे ।अब हाथी बड़े हो चूके हैं लेकिन रस्सी तोड़ने का प्रयास नहीं करते हैं । क्योंकि हाथियों ने मन बना लिया है की रस्सी तोड़ना उनके बस में नहीं है।

हमारे समाज की स्थिति भी कुछ ऐसी हीं हो चुकी है।

Mahout replied, ‘Now that elephant is old & doesn’t try breaking the rope though he tried while young but could not break due to low strength while old & now he is accustomed of being tied & never attempts to break the rope. Likewise position of our community is conditioned to be like a tied elephant.

मै बस इतना ही कहना चाहता हूँ की , आप यदि हिन्दू हीं बनकर रहना चाहते हैं तो फिर शौक से रहिए आप को कोई नही रोक सकता।

If you are hell-bent on be part of Hindu, nobody stops you.

लेकिन यदि सवर्ण हिन्दूओं के कहर से अपनी अगली पिढी को बचना चाहते हैं तो फिर अपना इतिहास जानिए और पुछिये अपने आप से, अपने समाज से की, कौन है आप और कौन हूँ मै ?

हम तो अपने आपको हिन्दू मानतें हैं लेकिन क्या सवर्ण हिन्दू भी हमें हिन्दू मानते हैं ?

Once you understand your own history & ask oneself & one’s community, ‘who am I & who are all others; you will be able to realise that your sufferings should not be passed on to your generations. Though we believe ourselves to be Hindus, whether savarna Hindus accept us as Hindus ?

क्या पहचान है हमारी ?

What is our real identity ?

क्या हम हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं ?

Are we part of Hindu religion ?

और , यदि हम हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं, तो फिर सवर्ण हिन्दू हमें, अछूत, दलित, हरिजन, नीच, अपवित्र समाज क्यूँ कहते हैं ?

If yes, why savarna Hindus call us untouchables, Dalit, Harijan, mean & unholy ?

हमारे इस देश में अन्य धर्मों के लोग जैसे, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी आदि भी रहते हैं लेकिन सवर्ण हिन्दू उन्हें सम्मान देते हैं।

There are other people in India who are Muslims, Christians, Sikhs, Bouddh, Jain, Parsi etc , but savarna Hindus respect them.

यदि हम लोग मुस्लिम होते !

तो क्या सवर्ण हिन्दू हमें, अछूत, दलित, हरिजन, नीच, अपवित्र समाज कह सकते थे ? नहीं।

If we were Muslims, savarn Hindus would not have dared to call us untouchables, Dalit, Harijan, mean & unholy.

यदि हम लोग ईसाई होते !

तो क्या सवर्ण हिन्दू हमें, अछूत, दलित, हरिजन, नीच, अपवित्र समाज कह सकते थे ? नहीं।

If we were Christians, savarn Hindus would not have dared to call us untouchables, Dalit, Harijan, mean & unholy.

यदि हम लोग जैन होते !

तो क्या सवर्ण हिन्दू हमे अछूत, दलित, हरिजन, नीच, अपवित्र समाज कह सकते थे ? नहीं।

If we were Jains, savarn Hindus would not have dared to call us untouchables, Dalit, Harijan, mean & unholy.

यदि हम लोग सिख होते !

तो क्या सवर्ण हिन्दू हमें अछूत, दलित, हरिजन, नीच, अपवित्र समाज कह सकते थे ? नहीं।

If we were Sikhs, savarn Hindus would not have dared to call us untouchables, Dalit, Harijan, mean & unholy.

यदि हम लोग बौद्ध होते !

तो क्या सवर्ण हिन्दू हमें, अछूत, दलित, हरिजन, नीच, अपवित्र समाज कह सकते थे ? नहीं।

If we were Buddhists, savarn Hindus would not have dared to call us untouchables, Dalit, Harijan, mean & unholy.

हमें इस बात का भी संज्ञान लेना चाहिए की, जब कोई व्यक्ति या समाज हमारें समाज को अछूत , नीच , अपवित्र समाज कहता हैं तो वह व्यक्ति या समाज दोषी नही हैं बल्कि वह धर्मशास्त्र वह धर्म दोषी हैं जो हिन्दुओं को ऐसा करने के लिए सिखाते है।

We should realise that when some people & community call us untouchable, mean & unholy it’s accountability lies with the Hindu scriptures & it’s directions according to which these savarna people are bound to behave.

इससे यह स्पष्ट होता है की, हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक चमार जातियों को हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं माना जाता है।

From this it becomes clear that Chamar castes are not part of Hindu religion according to Hindu scriptures.

हिन्दू धर्मशास्त्र तथा ब्राह्मणों द्वारा सवर्ण हिन्दुओं को ऐसा सिखाया जाता है की यह समाज अछूत, नीच, अपवित्र समाज है । इसीलिए सवर्ण हिन्दू हमें अछूत, दलित, हरिजन, नीच,अपवित्र समाज मानकर हमसे दूरी बनाए रख़ते हैं। Hindu scriptures taught by Brahmins say that Chamar community is untouchable, outcaste, Dalit, mean & unholy, therefore savarna Hindus keep distance from it.

हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक चमार जातियों को हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं माना गया है ।इसका मतलब है ब्राह्मणों ने चमार जातियों को हिन्दू नही बनाया है यह स्पष्ट होता है।

Hindu scriptures do not accept Chamar community to be the part of Hindu religion, hence Brahmins do not accept Chamar community to be part of Hindu religion.

तो क्या संघ या बजरंग दल वालों ने डंडा दिखाकर जबरदस्ती चमार जातियों को हिन्दू बनाया है ?

If this is so, have RSS or Bajrang Dal, outfits of Hindu religion coerced us into being Hindu ?

यदि नहीं !

तो फिर वह कौन है ?

जिन्होंने हमें हिन्दू बनाया है।

वह कौन है ?

जिन्होंने हमारें माथें पर हिन्दू धर्म का स्टैंप मारा है।

वह कौन है ?

जिन्होंने हमारा धर्म हिन्दू लिख़ा है।

वह कौन है ?

जिन्होंने बचपन में उंगली पकड़कर हमें स्कूल ले गये और स्कूल दाखिले में हमारे धर्म की पहचान के तौर पर हिन्दू धर्म लिख़ा है।

वह कौन है ?

If the answer to this is negative, then who is that person who has made us Hindu, stamped us as Hindu, identified our religion as Hindu & written our religion as Hindu in school admission forms while we were admitted first time in schools when we were too young ?

इन सभी सवालों का एक हीं जवाब है : -

वह हैं हमारे अपने जन्मदाता, पिता ! जिन्होंने हमारी पहचान हिन्दू बनायी है ।

और, नतीजा यह है की लोग हमें अछूत, दलित, हरिजन, नीच कहकर एक " अपवित्र इंसान " मानते हैं।

The only answer to these questions is : Our own fathers have done this & identified us as Hindus & due to this identity we are continued to be called untouchable, outcaste, Dalit, Harijan, mean & recognise us as unholy people.

दुर्भाग्यवश हम हमारे अपने जन्मदाता, पिता के एक भूल का अजीवन शिकार बन चूके हैं । और, अब हम भी पिता, जन्मदाता बनने जा रहे हैं।

तो सवाल यह है की क्या हमें भी वही गलती करनी चाहिए, जैसे की हमारे पिता ने की थी ? या फिर बदलाव करना चाहिए ?

It is unfortunate that owing to this single mistake of our father we have been victimised all along our lives & when we become father, will we repeat the same mistake or will we be able to make amends ?

इन सवालों के सही जवाब हीं आपकी अगली पिढियों को सही राह दिख़ा सकेंगे । उन्हें जीवन के हर एक मोड़पर समान अवसर तथा समान सामाजिक दर्जा प्राप्त करने का मौका मिल सकेगा।

निर्णय आपको करना है।

[5:41 PM, 12/23/2020] Anil Rangari: इन सभी सवालों का एक हीं जवाब है : -

वह हैं हमारे अपने जन्मदाता, पिता ! जिन्होंने हमारी पहचान हिन्दू बनायी है ।

और, नतीजा यह है की लोग हमें अछूत, दलित, हरिजन, नीच कहकर एक " अपवित्र इंसान " मानते हैं।

The only answer to these questions is : Our own fathers have done this & identified us as Hindus & due to this identity we are continued to be called untouchable, outcaste, Dalit, Harijan, mean & recognise us as unholy people.

दुर्भाग्यवश हम हमारे अपने जन्मदाता, पिता के एक भूल का अजीवन शिकार बन चूके हैं । और, अब हम भी पिता, जन्मदाता बनने जा रहे हैं।

तो सवाल यह है की क्या हमें भी वही गलती करनी चाहिए, जैसे की हमारे पिता ने की थी ? या फिर बदलाव करना चाहिए ?

It is unfortunate that owing to this single mistake of our father we have been victimised all along our lives & when we become father, will we repeat the same mistake or will we be able to make amends ?

 

इन सवालों के सही जवाब हीं आपकी अगली पिढियों को सही राह दिख़ा सकेंगे । उन्हें जीवन के हर एक मोड़पर समान अवसर तथा समान सामाजिक दर्जा प्राप्त करने का मौका मिल सकेगा।

निर्णय आपको करना है।

It is now upto you whether you decide to guide them rightly as a turning point so that they are able to achieve equal opportunity & social status.

मै बस इतना हीं कहना चाहता हूँ की...

इस समय हमें न तो हमारी जाति छोड़ने की आवश्यकता है और ना ही यहाँ की संस्कृति, परंपराएं, रीति-रीवाज से मूहँ मोड़नें की आवश्यकता है।

बस हमें तो सिर्फ़ हिन्दू धर्म से अलग होने की आवश्यकता है। सिर्फ़ धर्म बदल करने की आवश्यकता है।

The only one thing we need to do is to change our Hindu religion without change in our traditions, culture & customs.

संविधान आपको जाति बदल ने की अनुमति नहीं देता है।

इसीलिए जाति को बदलना नही है।

भारतिय संविधान में सभी चमार जातियों को अनुसूचित जाति के माध्यम से संरक्षित किया गया है।

Indian constitution doesn’t permit us to change our castes but we can change our religion, so without change in our castes which are so fixed & permanent as per Hindu scriptures, we have to move along with our castes to another religion other than Hindu, because our Chamar castes are already included & protected legally as Scheduled Castes in the Indian constitution.

भारतीय संविधान के मुताबिक अनुसूचित जाति के लोग अपनी जाति समेत धर्म को बदल सकते हैं।

As per Indian constitution, people belonging to Scheduled Castes can move with their castes in the religion they prefer & change their religion.

मतलब धर्म बदल कर अनुसूचित जाति का नुकसान नहीं होगा बल्कि हिन्दू धर्म से अलग हो जाने से चमार जातियों को उच्च सामाजिक दर्जा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। तब जा कर के हम गर्व से कहे सकतें है की , मेरी जाति बिख़ियात चमार! दि ग्रेट चमार !

This means Scheduled Castes will not lose anything by change in religion but separating the Chamar castes from Hindu religion will restore it to high social status & prestige. Only then we can say with pride that our Chamar caste is eminent Great Chamar !

अब बात करते हैं, धर्म बदल करने के बाद हमारी, परंपराओं, रीति-रिवाज, संस्कृति का क्या होगा ?

Let us ponder over what will happen to our traditions, customs & culture once we change our religion ?

तो इस विषय पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी नें कहा है

In this context Dr Babasaheb Ambedkar says:

"BUDDHISUM" is part and parcel of Indian tradition, Culture and History of this land. 

मतलब हमारे पुरखों से हमें विरासत मे मिली परंपराएं, रीति-रीवाज, संस्कृति, इतिहास बौद्ध धर्म का ही हिस्सा है ।

इसीलिए ,हमें बहुसंख्याक हिन्दू समाज की परंपराएं, संस्कृति, रीति-रीवाज और इतिहास को अपना मानकर के उनके रंग में रंगते हुये सिर्फ़ हिन्दू धर्म से अलग होना है। मतलब, ब्राह्मणवाद , मनूवाद के चक्रव्युह से अपनी आगली पिढियों को आज़ाद कराने का अंतिम विकल्प बौद्ध धर्म है।

Accepting traditions, culture, customs & history of majority Hindus we have to separate ourselves from Hindu religion. The only ultimate alternative before our coming generations is Buddhism, if they want to free themselves from chakravyuh of Brahmanism.

सबसे बडी बात यह है की, बौद्ध बनने के लिए हमें धर्मांतरण या धर्म परिवर्तन जैसा कुछ करने की आवश्यकता भी नही है। इसका कारण यह है की,

संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश,10 अगस्त 1950 के अनुच्छेद (paragraph) -3 में " हिन्दू " शब्द को डाला गया तथा संविधान (अनुसूचित जाति ) आदेश (संशोधित), 25 सितंबर 1956 में "सिख" एवं संविधान ( अनुसूचित जाति) आदेश (संशोधित), 3 जून 1990 में " बौद्ध " शब्द को प्रतिस्थापित किया गया है।

Important thing we have to learn here is that no conversion is required if we want to become Buddhists because

a word ‘Hindu’ is inserted in Para 3 of Constitutional (Scheduled Castes) Order dt 10th August 1950,

a word ‘Sikh’ was inserted in amendment to Scheduled Castes Order dt 25th September 1956 & finally

a word ‘Bouddh’ was inserted to Constitutional (Scheduled Castes) Order dt 3rd June 1990 (as amended)

मतलब भारतीय संविधान सभी अनुसूचित जातियों को हिन्दू व सिक्ख धर्म के साथ-साथ बौद्ध भी मानता है।

इसीलिए हमें धर्मांतरण या धर्म परिवर्तन जैसा कुछ करने की आवश्यकता हीं नहीं है।

As Indian constitution recognises all Scheduled Castes to be Hindus & Sikhs, it also recognises all Scheduled Castes to be Buddhists.

हमें बस "हिन्दू" के बजाए"बौद्ध" लिख़ना है।

We have simply to mention our religion as Bouddh instead of Hindu

मतलब "हिन्दू" होंने और "बौद्ध" होंने में लिखने मात्र का ही फर्क है और जैसे हिन्दू धर्म के साथ अपनी जाति लिखते थे, बौद्ध धर्म के साथ भी अपनी जाति लिख़ने मात्र से हीं आपका धर्म बदल कानूनी माना जाता है।

It makes so much difference on writing our religion Hindu or Bouddh. Just as earlier we used to write our caste along with religion Hindu, we have to write it with religion Bouddh & this change in religion is legally allowed.

इसीलिए दिनांक 3 जून 1990 को हुए संविधान संशोधन के बाद , अपने आप को " बुध्दिस्ट " मानने वाला अनुसूचित जाति का कोई भी व्यक्ति जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्र में "धर्म हिन्दू" और जाति चमार, महार ..आदि लिखते थे, उसके बजाए धर्म के कॉलम में "बौद्ध" और जाति के कालम में आपकी जो भी अनुसूचित जाति है जैसे- चमार , महार ...आदि लिखकर भी जाति प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकतें है।

As per Constitutional (Scheduled Castes) Order

dt 3rd June 1990 (as amended), if any person belonging to Scheduled Castes opts his religion to be Bouddh, he may fill in the column of religion as Bouddh & write his caste (as falling in the list of Scheduled Castes e.g. Chambhar, Mahar etc) in the column of caste in the caste application & obtain caste certificate accordingly.

इतना हीं नहीं अपने बच्चों के स्कूल दाखिले में भारतीय जनगणना या अपने नीजी तथा सरकारी दस्तावेजों में भी " धर्म के कालम में " बौद्ध " और जाति के कालम में "चमार".आदि लिख़ सकते हैं।

Moreover, one may mention ‘Bouddh’ in column of religion & (various Castes mentioned in Constitutional Schedule) e.g. ‘Chamar’  etc in column of caste in School admission forms, Indian Census, private/government documents.

वास्तव मे हमें धर्मांतरण या धर्मपरिवर्तन जैसा कुछ करना ही नहीं है।

We have not to do anything which is required in religious conversion.

हमें बस सदियों से बिगड़ा हुआ हमारे जनसंख्या का गणित ठीक करना है ।

सवाल सिर्फ़ धर्म लिखने का है।

We need to make corrections in the errors committed from one generation to the other in our census statistics.

यदि आप हिन्दू लिखते हैं, तो हिन्दुओं मे गीने जाएंगे और हिन्दुओं का संख्याबल बढ़ेगा।

यदि आप बौद्ध लिखतें हैं, तो बौद्धों में गीने जाएंगे और बौद्धों का संख्याबल बढ़ेगा।

If you write ‘Hindu’, number of Hindus will increase, if you write ‘Bouddh’, number of Buddhists will increase.

भारत में लगभग 25 करोड़ अनुसूचित जाति के लोग यदि बौद्ध धर्म लिखेंगे तो लगभग 25 करोड़ बौद्धों का संख्याबल दुनियां देखेगी।

In India, if 25 crores Scheduled Castes write ‘Bouddh’ as their religion, the whole world will see an increase of 25 crores in number of Buddhists.

इतना हीं नहीं, आज भारत मे लगभग 100 करोड़ हिन्दुओं की कुल जनसंख्या होने की धौंस दिखाकर, बात बात पर हिन्दूराष्ट्र की बातें करने वालें मनूवदियों का संख्याबल लगभग 25 करोड़ से कम होकर के लगभग 75 करोड़ ही रह जायगा।

Manuvadis attempting ‘Hindurashtra’ in India, & believing that the same is possible with strength of 100 crores Hindus, will be left short of this number by 25 crores & total number of Hindus will be only 75 crores

कमजोर पड़े मनूवदियों को जब , लगभग 25 करोड़ - बौद्ध , लगभग 15 करोड़ - मुस्लिम , लगभग 4 करोड़ - सिक्ख , लगभग 3.5 करोड़ - इसाई और अन्य कुल मिलाकर लगभग 50 करोड़ धार्मिक अल्पसंख्यांक समाज की शक्ति का एहसास होगा तब जा कर के सही मायने में हमारें भारत की एक सेक्यूलर राष्ट्र के रुप मे संस्थापना होगी।

When such weakened Manuvadis realise that there are 50 crores minority religion people other than Hindu (25 crores Buddhists, 15 crores Muslims, 4 crores Sikhs, 3.5 crores Christians etc), this fact will shatter their dream of HinduRashtra & secular concept enshrined in the Indian constitution will be factually & respectfully established.

धन्यवाद!

जय भीम नमोबुद्धाय!             

  अच्युत भोईटे (बी.काम,एम.बी.ए)     

   संस्थापक तथा राष्ट्रीय संयोजक,

          बुद्धिस्ट-शेड्यूल कास्ट मिशन आॅफ इंडिया

मो. 9870580728

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विशेष चिंतन , समज, सोच विचार के लिए।

Territories "conquered by Ashoka

 Territories "conquered by the Dhamma" according to Major Rock Edict No.13 of Ashoka (260–232 BCE).

Ten years (of reign) having been completed, King Piodasses (Piyadassi) made known (the doctrine of) Piety to men; and from this moment he has made men more pious, and everything thrives throughout the whole world. And the king abstains from (killing) living beings, and other men and those who (are) huntsmen and fishermen of the king have desisted from hunting. And if some (were) intemperate, they have ceased from their intemperance as was in their power; and obedient to their father and mother and to the elders, in opposition to the past also in the future, by so acting on every occasion, they will live better and more happily.

"The Greek Section of the Kandahar Inscription" as translated by G. P. Carratelli in A Bilingual Graeco-Aramaic Edict by Aśoka: The First Greek Inscription Discovered in Afghanistan (1964) edited by G. P. Carratelli and G. Garbini, p. 32; Piyadassi is one of the titles of Ashoka, meaning Beloved of the Gods, "Piety" here is a translation of the Greek εὐσέβεια, Eusebeia.

Wednesday, December 23, 2020

महार म्हणजे सरदार, मुखिया

हिंदी शब्दकोषात महार म्हणजे सरदार,मुखिया,श्रेष्ठ,बड़ा असा आदरसूचक अर्थ दिलेला आहे. खरेतर महार म्हणजे महाआर्य, म्हणजेच महानआर्य. ही गौरवाने दिलेली पदवी आहे.

भ.बुद्धाच्या मते आर्यमनुष्य म्हणजे जो प्राणी हिंसा करीत नाही असा श्रेष्ठ, सुसंस्कृत मनुष्य होय. ऋग्वेदानुसार आर्यमनुष्य म्हणजे सभ्य मनुष्य. म्यक्मुल्लरच्या मते आर्य म्हणजे शेतकरी अर्थात सभ्य मनुष्य होय. पाणिनिच्या मते आर्य म्हणजे उत्तम जन्माचा. आर्यशब्द बौद्ध धम्माशी जोडलेला आहे. अनेक बौद्ध भिक्खुंच्या नावात आर्य गौरवाने लावत. भ.बुद्धाच्या भिक्खू संघास आर्य संघ म्हणत. म्हणूनच महार म्हणजे सर्वश्रेष्ठ, अतिशय सुसंस्कृत किंवा सर्वोतम जण्माचा मनुष्य. पुर्वी सर्व भारताला आर्यावर्त म्हणत. महारगणाचा इतिहास फार पुरातन आहे. श्रीलंकेतील प्रसिद्ध ग्रंथ महावंसमधे इस.पू. 200मधे महाराचा उल्लेख आहे. पराक्रमी, शूर,लढवय्ये नागवंशी महारगणाचे लोक पूर्वी सर्व भारतभर पसरलेले होते व आजही सर्व भारतभर पसरलेले आहेत.

सर्व उत्तरी भारतात ते मेहरा जातीने सवर्ण आहेत.काही ठिकाणी कूळ मेहरा तर जात क्षत्रिय,खत्री,जाट लावतात.mpआणि ओरिसात मेहरा जात scआहे. प.बंगालमधे महर म्हणून sc. आसामसह सर्वपूर्व भारतात ते महरा म्हणून scआहेत.तर कर्नाटक,गुजरात, महाराष्ट्रात ते महार म्हणून SC आहेत.नागवंशी शूर महार लोक पूर्वी राज्यकरते होते.

पैठणचे प्रसिद्ध सातवाहन राजे महार होते.काळ इ. पु. 235 ते इस 230 असा 465 वर्ष प्रदीर्घ काळ त्यानी राज्य केले. त्यांचे राज्य सम्पूर्ण महाराष्ट्र, कर्नाटक,आंध्र तर म.प्रदेशातील सांची पर्यंत होते. ते जरी महार होते तरी त्यांनी बौद्ध धम्म स्वीकारून धम्म प्रचार केला. त्यांची अनेक सापडलेली नाणी साक्ष देतात. वेरूळ, अजिंठा,अंधेरी,जुन्नर,नाशिकसह अनेक बौद्ध लेण्या त्यांच्या काळात त्यांनी खोदल्या.

सातवाहन म्हणजेच आजचे सातव, साळवे,सातवने होत. राजघराणे अभिर म्हणजे आजचे आहीरे, अहिर, आहेर होत. राजघराणे वाकाटक म्हणजे आजचे वाकोडे,.शिलाहार आजचे शेलार. यादव म्हणजेच जाधव. त्रयकूटक म्हणजेच आजचे तिरकुटे, तिरपुडे होत. हे सर्व महारच राज्यकरते होते. हे सर्व कूळनामे महारातील आहेत. महार व मराठे एकच आहेत.आजच्या मराठयांत म्हारूडे, महाडिक म्हणजेच महारीक, मेहर, महारु इ. कूळनामे याची साक्ष आहेत.

महाराष्ट्रातील महारातील सर्वच कूळनामे मराठयांत आहेत. ज्यांचे ज्यांचे कुळनाम एक तेते सर्व एकमेकांचे नातेवाइक, अर्थात भाऊबन्द. मग ते कुठल्याही जातीचे असोत. असे बाबासाहेबांनीच अश्प्रुश्य मूळचे कोण? व ते अश्प्रुश्य कसे बनले?या ग्रंथात म्हटले आहे. इ.स.400ला ब्राम्हण गुप्त राजांनी गायीला पवित्र माणून गौहत्त्या करणार्यास म्रुत्यूदंडाची शिक्षा जाहीर केल्यानंतर ज्या ज्या महारांनी मेलेल्या गायींचे मांस खाने चालूच ठेवले तेते अश्प्रुश्य झाले. इथे गायीची हत्त्या होत नव्हती. म्रुत्युदंडाचा प्रश्नच येत नव्हता. ज्यांनी मांस खाने सोडले तेते सवर्ण झाले. अश्प्रूश्यता इस 400ला जरी सुरू झाली. तरी तिची तिव्रत्ता आदि शंकराचार्यांच्या काळात , 9व्या शतकात वाढली.

पेशवाईत तर अतिशय लाजिरवाने जिणे झाले. याचाच बदला 500शूरवीर महारांनी 1जानेवरी 1818ला ब्रिटिशांकडून पेशव्यांविरुध्द लढून घेतला. फक्त 500 शूरवीर महारांनी 30हजार पेशव्यांना भीमाकोरेगावच्या ऐतिहासिक लढाईत हरवीले. अर्धे अधिक पेशवे सैनिक कापून टाकले. आणि अत्त्याचारी पेशवाई सम्पवीली. असा पराक्रम जगात कोठेच सापडणार नाही. म्हणूनच या लढाईत बलिदान दिलेल्या 22शूरवीर महारांची नांवे ब्रिटिशांनी उभारलेल्या भीमाकोरेगावच्या विजयी स्थंभावर कोरलेली आजही दिसतात.त्या विजयी महार शुरविरांना मानवंदना देण्यासाठी दरवर्षी 1जानेवारीला लाखों बौद्ध (पुर्वाश्रमीचे महार) भीमाकोरेगावला जातात.

मौल्सवर्थ शब्दकोषात डा. विल्सनच्या मते महार राष्ट्र म्हणजेच महाराष्ट्र. त्यास इतिहासकार डा.ओपर्ट व केतकर यांचेही समर्थन लाभलेले आहे. इतिहासकार वामनराव भट म्हणतात महाराष्ट्राच्या पठारावर महार जमात मोठ्या प्रमाणात राहत होती. म्हणून महाराष्ट नाव पडले. इतिहासकार बेडेन पॉवेल म्हणतात प. भारतात महारांचे राज्य होते म्हणून या प्रदेशाला महाराष्ट म्हणतात. अशा या महाआर्यानी बाबासाहेबांसोबत 14आँक्टोबर 1956ला जगातील सर्वोतम बौद्ध धम्म स्वीकार केला. आणि सम्पूर्ण भारतात इतकेच नव्हे तर संपूर्ण जगात हा बौद्ध धम्म नेऊ इतका दूर्दम्य आशावाद आम्ही आम्बेडकरवादी बाळगतो.

आमच्या पुढे अशक्य असे काहीच नाही. कारण आमचे आदर्श विश्वशांती दूत तथागत भ.बुद्ध आणि विश्वरत्न डा.बाबासाहेबांचे तत्वज्ञान आहे ज्याला जगात तोड़ नाही.आम्बेडकरवादी धम्म प्रचार प्रसार करीत आहेत.म्हणूनच आज अनेक देशांतील मानवी समूह बुद्ध धम्म स्विकारत आहेत. - एम बी सिंगारे

Tuesday, December 22, 2020

Stupa found Mohenjo-daro.

 Buddhist stupa found Mohenjo-daro.

Sindh, Pakistan. 

Buddhist stupa is the the highest and most prominent structure of Mohenjo-daro, and is located atop the citadel mound. 

The mound is thought to have housed the elite of the early society and to have been a very sacred part of the ancient city.

 The stupa was built during the Kushan Empire, 1st to 4th centuries CE, while all of the other excavated ruins are from 2,600-1,900BCE.

About Mohenjo-daro:

Mohenjo-daro is an archaeological site in the province of Sindh, Pakistan. 

Built around 2500 BCE, it was one of the largest settlements of the ancient Indus Valley civilization, and one of the world's earliest major cities, contemporaneous with the civilizations of ancient Egypt, Mesopotamia, Minoan Crete, and Norte Chico. 

 Mohenjo-daro was abandoned in the 19th century BCE as the Indus Valley Civilization declined, and the site was not rediscovered until the 1920s. 

Significant excavation has since been conducted at the site of the city, which was designated an UNESCO World Heritage Site in 1980. The site is currently threatened by erosion and improper restoration.

अमेरिका की खोज

 कहते हैं कि अमेरिका की खोज 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने की थी....

अमेरिकी लेखक चार्ल्स जी. लेलैंड ( 1824 - 1903 ) ने 1875 में " फुसांग : दी डिस्कवरी आॅफ अमेरिका बाइ चाइनीज बुद्धिस्ट मंक्स इन दी फिफ्थ सेंचुरी " नामक किताब लिखी थी....

इस किताब में विस्तार से बताया गया है कि अमेरिका की खोज कोलंबस से बहुत पहले पाँचवी सदी में चीनी बौद्ध भिक्खुओं के एक दल ने की थी....

चीनी बौद्ध भिक्खुओं के इस दल का नेतृत्व होई शिन ने किया था, होई शिन के व्याख्या सहित यात्रा- वृत्तांत का प्रकाशन 1841 में जर्मन प्रोफेसर न्यूमन ने कराया था....

प्रिंसटन विश्वविद्यालय में पढ़े - लिखे चार्ल्स जी. लेलैंड ने जब यह बताया कि अमेरिका की खोज कोलंबस ने नहीं बल्कि बौद्ध भिक्खुओं ने की थी, तब वे न्यूमन के इसी पुस्तक के हवाले से बताया था....

Wednesday, December 16, 2020

डॉ पी जी ज्योतिकर

आदरणीय आयुष्मान डॉ पी जी ज्योतिकर साहेब के पुण्य स्मृति में भावभीनी हार्दिक श्रद्धांजलि।

भदंत प्रज्ञाशील महाथेरो

पूर्व भिक्षु प्रभारी अधिक्षक और प्रथम बौद्ध सचिव बीटीएमसी, जुलाई 1995-2001

पूर्व राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय भिक्खु महासंघ दिल्ली तथा अखिल भारतीय बुद्ध गया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन समिति

डॉ पी जी ज्योतिकर साहेब एक विवादित व्यक्तिमत्व

के विषय में श्रद्धा सद्भावना पर कुछ अनुभव

आदरणीय ज्योतिकर साहेब के लिए अखिल भारतीय भिक्खु महासंघ दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष भदंत आनंद महाथेरो जी ने नाम रखा था अंधेराकर, भंते जी का कहना रहा है कि जो व्यक्ति बात बाबासाहेब आंबेडकर की करता था लेकिन बैठता हिंदू संगठनों के दफ्तर में। उत्तर गुजरात के विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष भी रहे है और 14अप्रेल 1994 के अहमदाबाद में भदंत आर्य नागार्जुन शुरेई ससाई जी द्वारा दिए गए बौद्ध धम्म दीक्षा के कार्यक्रम से हमसे परिचित रहें है। बुद्ध गया महाबोधि महाविहार में हमारे छह साल के अवैतनिक (volunteer) सेवा कार्यकाल में वे लगभग तीन-चार बार महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया के पदाधिकारी होने के कारण वार्षिक समारोह और बैठक में भाग लेने आते थे। एक बार दस दिन के लिए श्रामणेर बने हुए थे तब लगभग रोज ही बोधगया मंदिर प्रबंधकारिणी समिति कार्यालय में मेरे पास मिलने आते थे। महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया में लगभग अस्सी प्रतिशत गैरबौद्धो की भीड़ के विषय में मुझसे उनकी वार्ता में उनका कहना था कि अनागारिक धर्मपाल जी ने महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया के अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी को बनाया था। तबसे संस्था में बंगाली ब्राम्हणों की संख्या अधिक रही है इसलिए हम बाबासाहेब डॉ आंबेडकर के मानने वालों की उसमें संख्या बढ़नी चाहिए इसलिए मेरे पास सदस्यता फार्म की पुरी पुस्तक ही लाकर दी थी।  बुद्ध गया महाबोधि महाविहार का दान विदेशी बौद्धों द्वारा मेरे आंखों के सामने बोधगया मंदिर प्रबंधकारिणी समिति को न देकर महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया के कार्यालय में सभी को देखने पर मैंने अपने कार्यालय के बाहर बड़े साईन बोर्ड पर महाबोधि महाविहार संचालित द्वारा बोधगया मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के नाम से अंग्रेजी में, जापानी और कोरियन, तिब्बती भाषा में महाबोधि महाविहार के मुख्य द्वार के पास लगवाए थे और छोटे छोटे पर्चे भी आनेवाले यात्रियों में बंटवाते थे।

गया के तत्कालिन जिलाधिकारी सह पदेन अध्यक्ष श्री एस एम राजू ने हमारी बातों पर पूरा ध्यान दिया और उन्होंने अपने बैठने के सुंदर और वातानुकूलित आकर्षक कमरे को सजवाया था।

उनके पहले के दो जिलाधिकारी सह अध्यक्ष बोधगया मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के श्री राजीव गौबा और श्री सुधीर कुमार ने विशेष ध्यान नहीं दिया था। श्री एस एम राजू कर्नाटक के अनुसूचित जाति से आने के कारण बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी के द्वारा होस्टल में रहने और स्कालरशिप पर पढ़ने की बात करते थे। महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया के तत्कालीन भिक्खु प्रभारी पुज्य भंते एम विमलसार थेरो के साथ अनबन हुई और दान वस्तु चढ़ावे को लेकर तनातनी और मुकदमा भी मेरे और भदंत आनंद महाथेरो के नाम से व्यक्तिगत गया की अदालत में चले थे। करीब तीन साल में बहुत कुछ उतार चढ़ाव हुए। आखरी में जानलेवा हमले और गोलीकांड भी बुद्ध गया महाबोधि महाविहार के प्रबंधकारिणी समिति कार्यालय परिसर में हुआ था। पहली बार समिति में अमिताभ चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा लामाजी अयांग रिंपोचे ने  टाटा सूमो एसी कार खरिदकर दान में लाकर दी थी। मैं ने उसे व्यक्तिगत स्विकार नहीं किया, अधिक्षक के पद नाम से लिया ताकि उस गाड़ी का रखरखाव समिति करें। दंगाइयों द्वारा गाड़ी को तोड़फोड़ कर बर्बाद कर दिया गया था। कहानी बहुत लंबी है।

महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया में पूर्व सांसद आयुष्मान चंद्रपाल शैलानी थे उन्होंने हल्ला हंगामा करने से महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया संस्था में गैर बौद्धों की संख्या में परिवर्तन करने का प्रस्ताव पारित किया था और पचहत्तर प्रतिशत बौद्ध होने की बात मानी गई थी। 

डॉ पी जी ज्योतिकर साहेब महामहिम दलाई लामा जी और विश्व हिन्दू परिषद , तिब्बत मुक्ति आंदोलन आदि के साथ महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया और महाबोधि सोसायटी आफ श्रीलंका के पदाधिकारियों में रहें है।

गुजरात बुद्धिस्ट अकादमी, अहमदाबाद के कोषाध्यक्ष(खजांची) आयुष्मान निखिल भाई गौतम के निवास पर बहुत बार वार्तालाप और दो तीन बार विवाद हुआ है। गोधरा काण्ड और गुजरात दंगे के बाद एक जगह पर धम्मसभा में डॉ साहब और आयुष्मान दिक्षित भाई सुतरिया में मारपीट की नौबत को लोगों ने रोका था।

भारतीय बौद्ध महासभा गुजरात और विश्व हिन्दू परिषद के तालमेल से बौद्ध समाज के दो संगठन आपस में लड़ने का काम करते रहे है।

डॉ पी जी ज्योतिकर साहेब ने बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी के जीवन पर पीएचडी का प्रबंध लिखा उसमें गुजरात में अनुसूचित जाति के वणकर और चमारों की जातियों के कार्यकर्ता ओं में पक्षपात किया है। 

गुजरात दूरदर्शन के फिल्म डिविजन से सेवा निवृत्त अधिकारी, बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी के डॉ आंबेडकर राइटिंगस् एंड स्पीचेस के गुजराती भाषा में अनुवाद करने वाले बामसेफ संघठन के अंतरराष्ट्रीय कोआर्डिनेटर आयुष्मान एम के परमार साहब के पास मैंने तुलनात्मक जानकारी इकट्ठा करने पर पता चला कि बाबासाहेब आंबेडकर जी के जीवनी में गुजरात के समर्पित कार्यकर्ताओं का नाम दर्ज नहीं किया और चमार वणकर को जोड़ने की जगह तोड़ने का ही काम किया है।

लोगों का कहना होता है कि व्यक्ति के गुजर जाने पर सभी गीले शिकवे भूला देना चाहिए। बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी की हत्या के बाद लोगों में आज भी आक्रोश है। सरकार ने निष्पक्ष जांच और उसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है।

बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी ने अपने लेख " महान कौन है ? Who is the great man? में (करीब तीस साल पहले पढ़ा था, हु-ब-हू याद नहीं है) लिखा था कि किसी भी महापुरुष के गुण देखते है तब उसके दोष भी देखने जरुरी है। बिना गुण और दोषों की तुलना किए महापुरुष की व्याख्या करना अधुरा काम है।

मेरे द्वारा लिखी गई पोस्ट किसी भी प्रकार के राग द्वेष से हटकर व्यक्ति के किए गए कायिक वाचिक और मानसिक कर्मों पर आधारित है। गुजरात बुद्धिस्ट अकादमी के सभी पदाधिकारियों में डॉ पी जी ज्योतिकर साहेब के कार्यों को लेकर चर्चा रही है। आयुष्मान अमृतलाल परमार रेलवे से सेवा निवृत्त, मंगल प्रेरणा के संपादक, परसों दिवंगत हुए आयुष्मान डॉ जयवर्धन हर्ष जी, और आयुष्मान जनबंधु कौशांबी और आयुष्मान एम के परमार साहब और सुरत निवासी सेवानिवृत्त जेल अधीक्षक आयुष्मान राहुल भाई राष्ट्रपाल जिनकी साहित्यिक जानकारी और रेफरेंस इकट्ठा करने और लिपिबद्ध करने की आदत से भविष्य के कार्यकर्ताओं को पढ़ने लिखने में आसानी होती है।

मेरे छोटे से लेख में पाठकों को कुछ असुविधा जरुर होगी, उसके लिए खेद है।

दिवंगत आयुष्मान डॉ जयवर्धन हर्ष और दिवंगत आयुष्मान डॉ पी जी ज्योतिकर साहेब को दोबारा हार्दिक श्रद्धांजलि।

भदंत प्रज्ञाशील महाथेरो

तान्या समुई होलीस्टिक हेल्थकेयर सेंटर,समुई द्वीप, सुरत थानी संभाग, दक्षिण थाईलैंड

E.mail: bhadantpr@gmail.com

Bhadant Prajnasheel Thero

Suan Mokkh Balaram forest monastery Lamet Chaiya, Suratthani Province.

At present for treatment

www.tanyasamui.com

Wednesday 16/12/2020

Monday, December 14, 2020

प्रो. डाॅ. विमलकीर्ति

 प्रो. डाॅ. विमलकीर्ति 

(पाली, धम्म और अम्बेडकर थाट्स के शीर्षस्थ स्कालर) 



जन्म- 5 फर. 1949 देवरी देवतह, तुमसर जिला- भंडारा महा.                 

शिक्षा- एम. ए. पालि, भाषाशास्त्र और राजनीतिशास्त्र

बी. जे.,  पी. एच. डी.

अध्यापन- स्नाकोत्तर पालि-प्राकृत विभाग

रा. तु. म. नागपुर विद्यापीठ महारास्ट में 25 साल तक अध्यापन 

प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत।

25 साल का स्नाकोत्तर कक्षाओं में पालि भाषा और बुद्धिज्म का अध्यापन  

- 100 से भी अधिक शोध प्रबंध प्रकाशित 

- 30 से भी अधिक पी.एच.डी. छात्रों का मार्ग-दर्शन जिसमें 19 छात्रों को पी.एच.डी. प्राप्त 

रचनाएं- बौद्ध धर्म के विकास में डाॅ. बी. आर. अम्बेडकर का योगदान शोध-प्रबन्ध, धर्मान्तरणः प्रेरणा और प्रयोजन, स्वतंत्रा मजदूर पक्ष, पालि-व्याकरण, डाॅ. आम्बेडकर आणि आधुनिकता, थेरगाथा, थेरीगाथा, सुत्तनिपात, धम्मपद, अभिधम्मसंगहो, बोधिचर्यावतार, आवश्यक पालि, मोग्गल्लान पालि व्याकरण, ज्योतिबाफुले रचनावलि, बाबासाहेब आम्बेडकर ने कहा आदि 150 से अधिक स्वयं लिखित, अनुदित/सम्पादित पुस्तकें प्रकाशित।

संचालन- डाॅ. भदन्त आनन्द कोसल्यायन पालि और बौद्ध विद्या रिसर्च सेन्टर।

‘भारतीय पालि साहित्य परिषद’ के द्वारा पालि साहित्य के प्रचार-प्रसार का कार्य।

अंगुत्तर' पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन 

तीन अखिल भारतीय हिंदी दलित लेखक साहित्य सम्मेलनों का आयोजन 


सम्प्रति- 29, ग्रीनफील्ड लेआउट, भामटी नागपुर- 22

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13. 30 बजे, 14. 12. 2020

दुक्खदायी और अचम्भित करने वाली खबर

प्रो. डॉ विमलकीर्ति, नागपुर बजे नहीं रहे !!!

सादर नमन.

सर विलियम जोन्स

सर विलियम जोन्स (28/09/1746- 27/04/1794)

(प्राचीन भारत के द्वारा खोलनेवाला महान विद्वान)                 

ब्रिटिश जब सन 1600 में भारत आये थे, तब भारत में हिन्दू और मुसलमान बडे पैमाने पर दिखाई देते थे| भारत में हिन्दू- मुसलमान यह समिकरण सन 712 में अरबी आक्रामक इब्न बिन कासिम के सिंध प्रांत पर आक्रमण के बाद तैयार हुआ था| उसके पहले भारत में मुसलमान अस्तित्व में नहीं थे| हिंदू शब्द भी उसके बाद अस्तित्व में आया था| यह शब्द प्राचीन बौद्ध या ब्राह्मण साहित्य में नहीं मिलता, क्योंकि यह पर्शियन भाषा का शब्द है और कासिम के आक्रमण के बाद अस्तित्व में आया था|  कासिम के पहले भारत कैसे हुआ होगा, यह जानने की जिज्ञासा विलियम जोन्स के मन में पैदा हुई थी|

ब्रिटिश लोग इतिहास में दिलचस्पी रखनेवाले बुद्धिजीवी लोग थे| इसलिए, कासिम के पहले का भारत कैसा था, यह वे जानना चाहते थे| लेकिन प्राचीन भारत की संपूर्ण जानकरी संस्कृत भाषा में ब्राम्हणों ने सुरक्षित रखी थी और वे उसे किसी को नहीं बताते थे| उन्हें डर लगा रहता था कि अगर संस्कृत ग्रंथों की पोल खुल गई, तो भारत का प्राचीन बौद्ध इतिहास सामने आ जाएगा| इसलिए, मुस्लिम बादशाह फिरोज शाह तुघलक ने जब अशोक के शिलास्तंभों की जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो ब्राम्हणों ने उसे यह बताया की यह विशाल शिलास्तंभ महाभारत के भीम के लाठ है और बुढ़ापे में भीम इन लाठीयों के सहारे चलते थे| फिरोज शाह की तरह तैमूरलंग भी अशोक के विशालकाय पाषाणस्तंभों से अत्यंत चकित हो गया था और उसने अपनी जीवनी में कहा की इतने महाकाय शिलास्तंभ उसने दुनिया में कहीं पर भी नहीं देखें है| लेकिन, इतिहास संशोधकों के अभाव में उन्हें वास्तविक जानकारी नहीं मिल सकी|                                            

ब्राम्हणों की मनगढंत कहानियों पर सर विलियम जोन्स को जरा सा भी विश्वास नहीं था और सच्चाई को हर हाल में वे सामने लाना चाहता थे| यह सच्चाई संस्कृत भाषा पढने पर ही मिल सकती थी, लेकिन ब्राह्मण उसे संस्कृत पढाने के लिए तैयार नहीं थे| तब विलियम जोन्स ने ओक्सफोर्ड युनिवर्सिटी के अपने दो मित्र नातनियल हालहेड और चार्ल्स विल्किन्स को काम पर लगाया और उनकी मदद से बांगला भाषा को सामने लाने की योजना बनाई| विल्किन्स ने इंग्लिश-बंगाली ग्रामर बनाया और हालहेड ने बंगाली प्रिंटिंग प्रेस बनवाई, जिससे ब्रिटिशों को बंगाली भाषा में राजकाज चलाना आसान हुआ और उन्होंने ब्राम्हणों की जगह पर बहुजन वर्गों के बंगाली लोगों को शासन प्रशासन में लेना शुरू कर दिया| ब्राह्मण इससे घबरा गये| उन्हें डर लगने लगा की अगर ब्रिटिशों ने इस तरह संस्कृत के बजाय स्थानिक भारतीय भाषाओं में राजकाज चलाना जारी रखा, तो उनका महत्व खत्म हो जाएगा| इसलिए, ब्राम्हण खुद होकर ब्रिटिशों को संस्कृत पढाने के लिए राजी हो गये| तब विलियम जोन्स ने संस्कृत की जानकारी हासिल करने के बाद सभी पुराणों और काव्यों का अध्ययन शुरू कर दिया और फिर प्राचीन भारत का इतिहास उन्हें कुछ हद तक पता चलने लगा| 

विलियम जोन्स ने अपने संशोधन को ब्रिटेन में सभी ब्रिटिशों के सामने रखा| प्राचीन भारत के इतिहास में सबसे महान साम्राज्य मौर्य साम्राज्य था, इसकी जानकारी जब ब्रिटिशों को हुई, तब उन्होंने मौर्य साम्राज्य पर अधिक संशोधन जारी रखा, जिसके तहत सम्राट अशोक मौर्य का इतिहास सामने आने लगा| विभिन्न इतिहास संशोधकों के अध्ययन से भारत का वास्तविक इतिहास दुनिया के सामने आया और प्राचीनकाल में भारत "बौद्ध भारत" था, इस सत्य को दुनिया ने स्विकार किया|                              

बुद्ध और अशोक का वजूद खोजने के लिए ब्रिटिशों ने खास संशोधन पथक अलग अलग देशों में भेजे और बौद्ध साहित्य की मदद से प्राचीन भारत का वास्तविक बौद्ध इतिहास सामने लाने में ब्रिटिश संशोधक सफल हुए| इसमें महत्वपूर्ण भुमिका सर विलियम जोन्स ने निभाई थी| अगर उन्होंने संस्कृत भाषा पढने की कोशिश न की होती, तो अशोक का शिलास्तंभ आज भी भीम की लाट समझी गई होती और अज्ञान के अंधकार में भारत का प्राचीन बौद्ध इतिहास डुबा रह सकता था| विलियम जोन्स ने ब्रिटिशों को बताया कि, भारत का प्राचीन इतिहास अत्यंत रोचक है और दुनिया पर राज करने के लिए हमें भी प्रेरणादायक हो सकता हैं| उसकी बातों में आकर ब्रिटिश सरकार ने प्राचीन भारतीय इतिहास में संशोधन करने के लिए "एशियाटिक सोसायटी", " आर्किओलोजिक सर्वे ओफ इंडिया " जैसी महत्वपूर्ण इतिहास संशोधन संस्थाएं बनवाई थी| सर विलियम जोन्स ने खुद एशियाटिक सोसायटी का गठन किया था|                            

सर विलियम जोन्स जैसे दृढ और दृष्टा इतिहास संशोधक भारत में बहुजन वर्ग के अंदर निर्माण होना जरूरी है, जो ब्राम्हणवादी काल्पनिक कथा कहानियों को डिकोड कर सच्चा इतिहास सामने लाएं और लोगों को भारत के वास्तविक बौद्ध इतिहास का एहसास करवाएं| गहरे अंधकार में सत्य जानने की जिज्ञासा रुपी टोर्च लेकर छुपे हुए प्राचीन बौद्ध इतिहास को सामने लानेवाले सर विलियम जोन्स हमारे लिए सचमुच एक "आदर्श टोर्चबिअरर" है और उनके आदर्शों पर चलकर बहुजन संशोधकों ने भी अपना संशोधन करना चाहिए|                           

-- डॉ. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क