Thursday, February 3, 2011

चेत्य भूमि(Visit of Chetya Bhoomi)

               पिछले दिनों हमें किसी काम से मुंबई जाने का मौका मिला. सोचा,काफ़ी वर्षों से चैत्य भूमि के दर्शन नहीं हुए हैं,अत वहां हो आया जाय.हम गए.मुझे देख कर ख़ुशी हुई कि बीते वर्षों में काफ़ी कुछ किया गया है.सबसे अच्छा कार्य समुद्र तट का लगा.वहां किनारे-किनारे बाउंड्री के साथ आर सी सी के  तिकोने स्लेब बड़ी मात्रा में करीने से पाट दिए गए हैं.
             इधर चेत्य भूमि जाने की दिशा में आम्बेद्करी पुस्तकों के स्टाल तरीके से लगे हैं.ठीक चैत्य भूमि से सटकर 'दी बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया' का बुकस्टाल लगा है. मुझे बड़ा अच्छा लगा.मैंने वहां से कुछ पुस्तकें खरीदी. आगे की बुक स्टालों से भी कुछ सीडी और पुस्तकें खरीदी. यहाँ पर सावधान करना चाहूँगा. भरी सीडी की जगह आपको खाली/ब्लैंक सीडी भी मिल सकती है, जिसका पता आपको घर जाकर लगेगा.चैत्य भूमि के व्यवस्थापकों से अनुरोध है कि वे यह सुनिश्चित करें कि बुक स्टाल वाले सीडी प्लेयर अवश्य रखें और सीडी प्ले करने के बाद ही बेचें. क्योंकि,दलित समाज के पास इतना पैसा नहीं है कि वे भरी सीडी के जगह खाली/ब्लैंक सीडी घर ले जाय.
        मेन रोड से जैसे  ही आप चैत्य भूमि के तरफ मुड़ते हैं,मोड़ पर एक पुलिस चौकी तैनात है. हम वहां करीब २-३ घंटे रुके होंगे.मुझे बड़ा सकून मिला. मैंने देखा कि बाबा साहेब के भक्तों का रेला लगातार आ जा रहा है. बच्चे-बूढ़े माँ-बहने सब  एक-दूसरे को 'जयभीम' कह
रहे हैं. करीब २वर्ष पहले दलित साहित्य अकादमी के सम्मेलन में मेरा सपत्निक
 जाना हुआ था.तबका नजारा बेहद अफसोसनाक था.प्रातकालीन नित्य
 कर्म से लोगों ने
समुद्र के रेतीले किनारे को पाट दिया था.
हम काफ़ी देर,बाबा साहेब के चैत्य भूमि के अंदर रहे.बड़ी तसल्ली के साथ उनकी गर्मी को महसूस किया.उन्हें नमन किया.वहां पर विराजमान भंतेजी 'बुद्धिस्ट वे आफ लाइफ' को सुशोभित कर रहे थे.बाबा साहेब के भक्तों को 'अपना दीपक आप बनो' का मन्त्र दे रहे थे.अनायास इसी बीच कोई बड़ी हस्ती आयी. उनके साथ काफ़ी लोग थे. सभी ने भंतेजी के द्वारा  त्रि शरण-पंचशील ग्रहण  किया और बड़ी शांति के साथ प्रस्थान हुए.कही कोई अव्यवस्था नहीं दिखी.
           अव्यवस्था पर याद आया कि धम्म दीक्षा भूमि नागपुर भी एक उदाह्र्ण है, इस मामले में. वहां भी काफ़ी लोग आते हैं. खासकर १४ अक्टू. के दौरान तो भीड़ देखते ही बनती है. मगर, मजाल है कि कोई हादसा हो जाय. हम आये दिनों अख़बार और टीवी में इस तरह के अन्य   स्थानों पर हुई भगदड़ और इसके बाद की  दुर्घटनाओं के समाचार सुनते हैं.आम्बेडकर के अनुयायियों से अन्य मत/सम्प्रदाय/धर्म के अनुयायियों को शिक्षा लेनी कि जरूरत है  कि आँख मूंद कर और आँख बंद कर चलने में फर्क है. बाबा साहेब ने अपने अनुयायियों को आँख खोलकर चलने की शिक्षा दी.

1 comment:

  1. आपके इस विवरण ने मेरी चैत्य भूमी जाने की इच्छा को बलवती कर दिया है.

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