Thursday, July 21, 2011

संत गाडगे बाबा

       संत गाडगे बाबा का नाम, डा. बाबा साहेब आम्बेडकर लिटरेचर पढने के दौरान हुआ था।  सहज ही कुतूहल हुआ,  ये गाडगे बाबा कौन है ? और डा. आम्बेडकर के साथ इनका क्या रिश्ता है ? आइये, महाराष्ट्र के इस महान संत को हम जानने का प्रयास करे-    

गाडगे बाबा का जन्म 23 फर, 1876 को महाराष्ट्र के शेगांव में हुआ था। इनके पिता का नाम झिंगराजी और माता का नाम सखुबाई था। गाडगे बाबा के बचपन का नाम ढेबु था। ढेबुजी अपने माँ- बाप की अकेली संतान थे।   ढेबु जब काफी छोटे थे, तभी इनके पिताजी का देहांत हो गया था। झिंगराजी के गुजर जाने के बाद सखुबाई इस छोटे-से बच्चे को लेकर अपने भाई के आश्रय में आकर रहने लगी थी.

ढेबु बचपन से ही कुछ अलग प्रवृति के थे। वे साथ के बच्चों से हट कर रहते थे। वे निर्विकार भाव से घंटों आसमान की ओर कुछ देखा करते थे।  माँ को बच्चे की यह प्रवृति परेशान करती थी। खैर, बालक ढेबु बड़ा होता है। बड़े होने के साथ उसमे अन्य साथी बच्चों के साथ घुल-मिलने की आदत बढती है।  वह किसानी करता है।  खेत में जानवर चराने ले जाता है।
  
ढेबु जब जवान होता है तो उसकी शादी कुंता बाई से होती है। उनके चार बच्चें होते हैं। ढेबु भी खेत में काम करते हैं। किन्तु , आगे चलकर दो-तीन साल निरंतर अकाल पड़ने से उन्हें अपने खेत से हाथ धोना पड़ता है। तब,  ढेबु को साहूकार के खेत में काम करने जाना पड़ता है।

एक दिन ढेबु जब खेत के अनाज की फसल पर बैठे पक्षियों को भगाते होते हैं, उस समय वहां से एक साधू गुजरता हैं। साधू उसकी हरकत को बड़े कुतुहल से देखता है।  वह ढेबु से पूछता है,  क्या वह उस अनाज का मालिक है ? ढेबु को एकाएक जैसे बोध होता है।  वह क्या है, कौन है.....जगत क्या है... समाज क्या है ? और फिर, ढेबु घर छोड़ देता है।  वह निकल पड़ता है, इन सब सवालों के उत्तर जानने।  वह पैदल यात्रा करता है।  एक गाँव फिर,  दूसरा गाँव।  तीसरा गाँव...चौथा,पांचवा।  वह निरंतर चलता है।  और फिर, उसके हाथ में आती है- झाड़ू।
  
उसकी खोज पूरी होती है-झाड़ू से।  वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि उसके आस-पास जैसा है, ठीक नहीं है। सफाई की जरुरत है।  लोगों की, उनके घर-परिवार की।  उनके दिमाग के नालियों की।  वह झाड़ू पकड़ता है और शुरू हो जाता है।  लोगों के घर के सामने गन्दी नालियों की सफाई करने।  ढेबु के अनुसार  ये कीचड़ से भरी गन्दी नालियां ही हैं, जो लोगों की सोच को गन्दा रखती है। अगर,  लोगो के घर-आँगन  के सामने की इन गन्दी और बदबूदार नालियों की सफाई की जाए तो हो सकता है, लोगों की सामाजिक सोच बदले ?

इसकी चिंता किये बगैर कि लोग क्या सोचेंगे, ढेबु अपने काम में लग जाते हैं।  ढेबु ने अपने पास कटोरे-नुमा एक मिटटी का पात्र रख लिया था। वे गाँव-घरों के आस-पास जहाँ कहीं गन्दगी देखते, झाड़ू लेकर शुरू हो जाते। इस दौरान अगर कोई उन्हें खाने के कुछ देता तो उसे वे अपने मिटटी के पात्र में ले लेते। कुछ लोग इसके एवज में ढेबु को पैसा भी देने लगे।  ढेबु इसमें से थोड़े पैसे अपने पास रख लेते और अधिकांश गावं के मुखिया को यह कर लौटा देते कि ये गाँव की सफाई पर खर्च करें।

शुरू-शुरू में लोगों को ढेबु का यह गोरख-धंधा बड़ा विचित्र लगा।  मगर, जल्दी ही उन में से कुछ बुजुर्ग ढेबु के काम की सराहना करने लगे।  ढेबु अपने काम में मस्त थे।  उन्हें कोई प्रशंसा करता है या बुराई, इसकी तनिक भी परवाह नहीं थी।  मगर, धीरे-धीरे ढेबु से लोग जुड़ते गए। कारवां बढ़ता गया। अब लोगों के दिलों में ढेबु के प्रति सम्मान नज़र आने लगा था । वे उन्हें अब ढेबुजी कह कर पुकारने लगे थे .
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgircMltNRFd2GV6466yqqOavnyqPxx74TWuU8nAbp0s2l0yIKNJCetCiOHCmcNekg5SD8U77oKhIOPpgRg_dU3ojjC3RDMiXx6BVLA6u3d_6HI-hJ6HWF2qRlqYymSk78rwq9B77yqa_A/s1600/al033.jpg   
अपने सफाई के अभियान में लोगों की सांत्वना पाकर ढेबुजी को अच्छा लगा है।उनके दिमाग में अब एक और बात आती है। वे देखते हैं कि किसानों को अच्छी फसल न होने का कारण वर्षा की कमी है।  इसका हल वे नदी-नाले में  जगह-जगह घाट बना कर वर्षा का पानी रोकने में देखते हैं। वे लोगों तक अपनी बात पहुंचाते का अभियान छेड़ते हैं। वे खुद इस काम में जुट जाते हैं। धीरे-धीरे लोगों को ढेबुजी की यह बात पसंद आती है। और फिर,  वे एक बड़े जन-आंदोलन से नदियों पर कई घाट बनवाते हैं।
      
इधर, ढेबुजी कीर्तन करना शुरू कर देते हैं।  वे अपनी बात कीर्तन के माध्यम से लोगों तक पहुंचाते हैं। वे बताते हैं कि उनके दुःख का कारण गावों में फैला अन्धविश्वास है।  जादू-टोना, देवी-देवता की अंध-पूजा में वे जकड गए हैं।  पत्थरों के मूर्तियों की पूजा करने से उनका कल्याण नहीं हो सकता है।  उन्हें अपना कल्याण तो खुद करना पडेगा।  अगर वे किसी मुसीबत में हैं तो उपाय उन्हें स्वयं ढूँढना होगा। वे अपने कथन के समर्थन में  कबीर और  तुकाराम, ज्ञानदेव आदि महाराष्ट्र के संतों को उदृत करते हैं।

जमीन से जुड़े ऐसे संत की मुलाकात बाबा साहब आंबेडकर से होती है।  बाबा साहब  दलित समाज में पैदा हुए ऐसे महान संत से मिलकर अभिभूत होते हैं। साथियों, यह महान संत  20 दिस 1956 को  इस दुनिया से अलविदा लेते हैं।
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Gadge Baba died on December 20, 1956 on his way to Amravati, on the banks of river Pedhi nearValgaon.

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