वाल्मीकि (भंगी) कौन ?
वाल्मीकि समाज को भंगी / चुहडा /खाकरोब /मेहतर /स्वीपर आदि नामों से भी पुकारा या जाना जाता था। "वाल्मीकि" नाम बहुत बड़ी साजिश /षडयंत्र के तहत दिया गया था, साजिश /षडयंत्र क्या था? वाल्मीकि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सत्यता की जानकारी हेतु यह लेख लिखा गया है, कृपया इसे जरूर पढियेगा।
आखिर वाल्मीकि कौन थे ब्राह्मण या अछूत, आइये जानते हैं अब तक की सबसे कड़वी सच्चाई
काफी समय से यह चर्चा का विषय रहा है कि आखिर वाल्मीकि कौन थे, ब्राह्मण या अछूत, अब पूरी तरह सिद्ध हो चुका हैं कि महाकवि वाल्मीकि ब्राह्मण थे ,उनका अछूतों और दलितों से किसी भी प्रकार का दूर- दूर तक क़ोई सम्बन्ध ही नही था और न है ।
महाकवि वाल्मीकि का खानदान इस प्रकार है*
ब्रह्मा, प्रचेता और वाल्मीकि। वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड सर्ग 16 श्लोक में वाल्मीकि ने कहा है, राम मैं प्रचेता का दसवाँ पुत्र हुँ। मनुस्मृति में लिखा है प्रचेता ब्रह्मा का पुत्र था । रामायण के नाम से प्रचलित कई पुस्तको में भी महाकवि वाल्मीकि ने अपना जन्म ब्राह्मण कुल में बताया है ।
चूहड़ा जाति को वाल्मीकि कब बनाया गया, इसके पीछे लगभग 80-90 वर्षो पुराना इतिहास है । जब डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर ने घोषणा की कि मैं हिन्दू पैदा हुआ , यह मेरे वश में नही था , लेकिन मैं हिन्दू के तौर पर मरूँगा नही। और अछूतों को हिन्दू धर्म का त्याग कर देना चाहिए क्योकि हिन्दू धर्म में रहते हुए ऊँची जाति की नफ़रत और भेदभाव से छुटकारा नही मिल सकता ।
बाबा साहब डॉ अम्बेडकर की इस घोषणा से गैर हिन्दुओं के मुह में अछूतों को अपने धर्म में शामिल करने के लिए मुंह में पानी आता रहा। वही हिन्दू धर्म के ठेकेदारो के पैरो के नीचे से जमींन खिसकने लगी थी।अपनी योजना के अधीन हिन्दू आर्य समाजी नेताओ ने चूहड़ा जाति के लिए महाकवि वाल्मीकि को खोज निकाला, और चमारो को उनके जाति में पैदा होने के कारण रविदास जी के अनुयायी बनने के लिए प्रेरित किया ।
आर्य समाज ने अपनी इस योजना को सफल बनाने के लिए लाहौर में वेतनभोगी कुछ वर्कर नियुक्त किये इनमें पृथ्वीसिंह आजाद ,स्वामी शुद्रानंद और प्रो. यशवंत राय प्रमुख थे। इन लोगो ने लाहौर ट्रेनिंग से वापस आकर वाल्मीकि को चूहड़ा जाति के ऊपर थोप दिया। हिन्दुओ की नफरत से बचने के लिए चूहड़ा जाति ने आर्य समाज के प्रचारको के प्रभाव में आकर अपनी जाति का नाम बदलकर वाल्मीकि रख दिया।
किन्तु हिन्दुओ की नफ़रत में कोई अंतर नही आया भेदभाव और नफ़रत पहले जैसे ही बरक़रार है।आज कल के शिक्षित नौजवान इस सडयंत्र को समझने लगे है। वे मानते है कि वाल्मीकि यदि शुद्र था तो उनको संस्कृत पड़ने लिखने का आधिकर उस काल में किसने दिया ? वाल्मीकि शुद्र थे तो रामायण में शूद्रों के प्रति इतनी नफ़रत क्यों लिखी गई।
आज नौजवान न तो अपने आप को वाल्मीकि कहलाने से इंकार कर रहे है, बल्कि दूसरी तरफ वे वाल्मीकि रामायण की कठोर शब्दों में आलोचना भी करते है। आप खुद सोचिये और अपना भविष्य उज्जवल करने के लिए अम्बेडकर की विचार धाराओं को अपनाना है या फिर जीवन भर इसी दलदल में रहना है।
अब आप ही को तय करना है कि हमें रोशनी और उन्नति की ओर जाना है या अँधेरे में फसकर अपना जीवन बर्बाद करना है
1927 में साइमन कमीशन का प्रतिनिधि मंडल एक दिन रात्री 11 बजे पंडित जवाहरलाल नेहरू के बंगले पर मिलने गया, पता लगा कि वह सो रहे है, 12 बजे मोहन दास करमचंद गांधी से मिलने गये तो वह भी सोये हुए मिले, एक बजे रात्रि बाबासाहेब से मिलने गये तो वह जाग रहे थे, प्रतिनिधि मंडल ने नेहरू और गांधी के बारे में जब बताया तो बाबासाहेब ने कहा कि "उनका समाज जाग रहा है इसलिए वे सो रहे है, लेकिन मेरा समाज सो रहा है इसलिए मैं जाग रहा हूँ ''
विदेशों से पढ़ाई समाप्त कर बाबासाहेब ने थोडे़ समय वकालत की, कालेज में पढाया भी, बॉम्बे हाईकोर्ट के जज का पद भी ठुकराया, केवल इसलिए क्योंकि वह स्वतंत्र होकर उन लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहते थे, जिन्हें सदियों से गुलामों से भी बदतर जीवन जीने के लिए बाध्य /मजबूर किया गया था। बाबासाहेब ने बहुत परिश्रम करके आंदोलन /संघर्ष किये जिससे अछूतों को कुछ सुविधाएं मिलती शुरू हुई और वह बाबासाहेब के आंदोलनों में सक्रिय होकर भाग लेने लगे।
साइमन कमीशन 1927 में सर्वे करने इस उद्देश्य से आया भारत की अंदरूनी स्थिति क्या है? क्योंकि कांग्रेस की कार्य प्रणाली से मौहम्मद अली जिन्ना भी नाराज चल रहे थे और बाबासाहेब भी। साइमन कमीशन को वास्तविक स्थिति की रिपोर्ट ब्रिटिश प्रधान मंत्री को 1930 में होने वाली Round Table Conference के लिए सौंपनी थी। *कृपया ध्यान दें।
अछूतों की हमदर्दी का नाटक हिन्दूवादी शक्तियां /कांग्रेस कर रही थीे, यानी उनका कहना था कि हम तो डॉ. अंबेडकर से पहले अछूतोद्धार के लिए काम कर रहे है, इस सबके बावजूद भी अछूत बाबासाहेब के आंदोलन में लामबंद हो रहे थे।
आपने देखा होगा या सुना होगा कि गांव /देहात में भंगी और चमारों की बस्तियों सटी हुई होती है। भंगी कौम मार्शल आर्ट की जन्मदाता है, दूसरे नंबर पर चमार आते हैं।
यह भी लोगों का कहना है मैंने भी बचपन में सुना था , शायद आपने भी सुना होगा कि भंगी का लठ पहले तो निकलता नहीं और अगर निकल गया तो मकसद पूरा करके ही वापस आता है नहीं तो आता ही नहीं है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि भंगी जाति के लोग चमारों से भी ज्यादा हौंसला बुलंद लोग हैं।
हिन्दूवादी ताकतों /कांग्रेस ने चिंतन शुरू किया कि डा अंबेडकर के आंदोलन को कैसे कमजोर किया जायें?? यह सोचकर हिन्दू महासभा ने लाहौर अब पाकिस्तान में हिन्दूवादी शक्तियों /कांग्रेस की कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी। Conference में मोतीलाल नेहरू, मोहन दास करमचंद गांधी, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित अमीचंद आदि ने भाग लिया था, सम्मेलन में चर्चा हुई कि अछूतो में दो जातियां शारीरिक रूप से ताकतवर है और संख्या में भी ज्यादा है, भंगीयों व चमारों अपनी ओर मिला लिया जाये तो डॉ.अंबेडकर का आंदोलन असफल/कमजोर हो सकता है। सम्मेलन में प्रस्ताव पारित किया गया कि भंगीयों को वाल्मीकि नाम से संबोधित किया जाये और बताया जाये कि आप उस महर्षि वाल्मीकि के वंशज हो जिसने राम के जन्म से हजारों वर्ष पूर्व रामायण जैसा ग्रन्थ लिख दिया था, इसलिए आप हमारे भाइ हो जो हमसे बिछड गये थे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पंडित अमीचंद शर्मा ने "वाल्मिकी प्रकाश" नामक एक किताब लिखी और उसकी चौपाइयों तथा महर्षि वाल्मीकि का पूरे देश में योजना वद्ध तरीके से हारमोनियम, ढोलक, चिमटा बजाकर भंगीयों की बस्तियों में प्रचार प्रसार करना आरम्भ कर दिया , इस समाज के लोग महर्षि वाल्मीकि को अपना वंशज /गुरु मान कर आसमान में उडने लगे क्योंकि नामकरण पंडितों के द्वारा हुआ था। बाद में भंगी समाज के लोग खुश होकर स्वंय ही वाल्मीकि प्रकाश /महर्षि वाल्मीकि का प्रचार प्रसार करने लगे। बस फिर क्या था अमीचंद शर्मा का तीर ठीक निशाने पर लगा, वही हुआ जो वो चाहता था ।
उसी सम्मेलन में चमारों को जाटव नाम से पुकारने की योजना बनाई गई और बताया कि आप उसी जटायु के वंशज हो, जिन्होनें हमारी सीता माता की रक्षा के लिए रावण से युद्ध करते करते वीरगति प्राप्त की थी, आप भी हमारे भाई हो।
यह प्रमाणिकता बाबा साहेब के साहित्य में उपलब्ध है।
चमारों पर हिन्दूओं की इस काल्पनिक कहानी का असर न के बराबर रहा, इसलिए आज वह बाल्मिकीयों के मुकाबले अधिक उन्नतिशील है। लेकिन भंगीयों पर वाल्मीकि प्रकाश /महर्षि वाल्मीकि का एेसा जादू चढा कि वह बाबासाहेब के आंदोलन से भटक गए। आज भी 90 % वाल्मिकी भटके हुये ही है । काश यह समाज वाल्मीकि प्रकाश / महर्षि वाल्मीकि नाम के चक्कर न पडकर बाबासाहेब के सिद्धांतों पर चलता तो आज समाज, चमारों से ज्यादा उन्नतिशील होता
बौद्धाचार्य डॉ एस एन बौद्ध 9953177126
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