Friday, February 28, 2020

छतिसगढ़ के स्कूल-कालेजों में पालि पढाया जाए

सेवा में
1. आदरणीय भूपेश बघेलजी
माननीय मुख्यमंत्री महोदय,
छत्तीसगढ़ राज्य शासन, रायपुर
1. आदरणीय - - - - - - - -
माननीय स्कूल शिक्षा मंत्री महोदय,
छत्तीसगढ राज्य शासन, रायपुर
1. आदरणीय - - - - - - - -
माननीय उच्चशिक्षा मंत्री महोदय,
छत्तीसगढ़ राज्य शासन, रायपुर

विषय-   स्कूल-कालेजों में महाराष्ट्र,  उ. प्र., बिहार आदि राज्यों की तरह संस्कृत के साथ पालि भाषा पढ़ाये जाने एवं केन्द्र की तरह राज्य में पालि भाषा के संवर्धन हेतु ‘छत्तीसगढ़ पालि प्रतिष्ठान’ की स्थापना बाबद।

महोदय!
पालि भाषा भारत-वर्ष की अत्यन्त पुरातन और अतीव महत्त्वपूर्ण भाषा है। इस देश की संस्कृति, इतिहास और दर्शन पालि-भाषा से पूर्णतः प्रभावित और अभिसिंचित हैं। भारत-वर्ष के प्राचीन इतिहास से ज्ञात होता है कि इस देश में पुरातन काल में पालि-भाषा एक ‘जनभाषा’ थी। समाज के सभी वर्गों के लोग इस भाषा के माध्यम से अपने विचारों तथा सांस्कृतिक-विरासत का आदान-प्रदान किया करते थे। इसी भाषा को तथागत भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेशों की माध्यम-भाषा बनाया, ताकि समाज के सभी वर्गों के लोग उनकी शिक्षा को समझ सके तथा तदनुसार उन्हें ग्रहण कर आचरण में उतार सके। एक समय ऐसा भी था कि जनभाषा होने तथा लोकप्रियता के कारण यह भाषा ‘राष्ट्र-भाषा’ का गौरव प्राप्त किये हुए थी। फिर समय बदला और धीरे-धीरे इस भाषा का देश से विलोप ही हो गया, किन्तु पड़ौसी देशों ने इसे बड़ा ही सम्भाल कर रखा तथा इसका संवर्धन भी किया। आज से लगभग 110 वर्ष पूर्व भारत के महान् मनीषियों एवं विद्वानों के माध्यम से इसका भारत में पुनरागमन हुआ है तथा आज अनेक विश्वविद्यालयों में इसके स्वतन्त्रा विभाग संचालित हो रहे हैं।

यद्यपि पालि भाषा का समाज में आज अधिक प्रचलन नहीं हो पाया है। आज नागरिक पालि के विषय में अधिक नहीं जानते हैं, किन्तु भारतीय भाषाओं में पालि भाषा के शब्द तथा धातुएँ बड़ी संख्या में प्राप्त होते हैं। विलुप्त होने के बावजूद पालि भाषा की सुगन्ध को यहाँ की विभिन्न भाषाओं (मराठी, भोजपुरी, हिन्दी, उड़िया, तेलुगु, गुजराती इत्यादि) में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यूरोप तथा एशिया महाद्वीप सहित विश्व के अनेक देशों में पालि-भाषा का समाज में अत्यन्त सम्मानजनक स्थान है। अनेक देशों में पालि-भाषा के अध्ययन-अध्यापन की अच्छी व्यवस्था है। पालि के अध्ययन-अध्यापन के लिए वहां स्वतन्त्र विश्वविद्यालय तक हैं। भारत में पालि की स्थिति अच्छी नहीं है।

यहाँ समाज का एक बड़ा वर्ग (बौद्ध-जनसमुदाय) आज पालि-भाषा के माध्यम से अपने संस्कार करता आ रहा है। बौद्धों में परित्त-पाठ मूलतः पालि में ही सम्पन्न किया जाता है। लेकिन इसके बावजूद पालि के संवर्धन, अनुसन्धान और प्रचार-प्रसार हेतु कार्य करने वाली एक भी शासकीय संस्था सही अर्थों में पूरे देश में नहीं है। समाज का प्रबुद्ध वर्ग पालि के प्रचार-प्रसार के लिए थोड़ा प्रयासरत भी दिखाई दे रहा है; किन्तु यह अपर्याप्त ही है। हाँ, विपस्सना के प्रचार के साथ धीरे-धीरे समाज में पालि के प्रति जागरुकता बढ़ रही है तथा लोग पालि को पाठ्यक्रम में शामिल कराते हुए अपने बच्चों को इसका अध्यापन कराने के इच्छुक हैं, क्योंकि समस्त पालि साहित्य में नैतिक-शिक्षा, शील-सदाचार और शुद्ध-धर्म का स्वरूप ही विद्यमान है। यदि बच्चों को पालि पढ़ाना शुरु कर दिया जाये, तो आने वाली पीढ़ी शील-सदाचार और चारित्रिक दृष्टि से अधिक बलवती होगी।

छत्तीसगढ़ एक बहु-सांस्कृतिक तथा विविधता से परिपूर्ण प्रदेश है। यहाँ इस भाषा तथा संस्कृति से सम्बद्ध अनेक पुरातात्विक-धरोहरें भी हैं। प्राचीनकाल में दक्षिण कोशल के नाम से प्रसिद्ध यह प्रदेश बुद्ध का प्रवास स्थान रहा है, जैसे कि प्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ ‘अवदानशतक’ में उल्लेख है। चीनी यात्राी ह्वेनसांग (639 ईस्वी)  के अनुसार अपनी धम्मयात्रा के दौरान सम्राट अशोक ने दक्षिण कौशल की राजधानी सिरपुर में एक स्तूप का निर्माण किया था, जो ‘अवदानशतक’ में किए गए उल्लेख का ठोस सबूत है। 6वीं से 10वीं सदी के मध्य सिरपुर महत्वपूर्ण बुद्धिस्ट स्थल के साथ एक बहुमुखी व्यापारिक केन्द्र भी रहा है। ह्वेनसांग के ही अनुसार महान दार्शनिक बौद्ध भिक्षु नागार्जुन यहां के एक विहार में रहा करते थे।

पण्दुवंशी राजा भवदेव रणकेसरी के आरंग अभिलेखानुसार उसने बुद्ध आवास का निर्माण किया था जिसे पूर्व में राजा सूर्यघोष ने अपने मृत पुत्र की याद में खड़ा किया था। स्पष्ट है, राजा भवदेव रणकेसरी स्वयं बौद्ध राजा था। पूरातत्व विभाग द्वारा किए गए खनन से प्राप्त बौद्ध विहारों की विसाल श्रंखला और अन्य सामग्री से स्पष्ट है बुद्धिज्म इस प्रदेश में 13 सदी तक फलता-फूलता रहा।

मल्हार(बिलासपुर) में प्राप्त 7 से 12 वीं सदी का बौद्धकालीन इतिहास अपनी समृद्धता की दास्तान स्वयं कहता है। इसी प्रकार का साक्ष्य पुरातात्विक खनन से प्राप्त भोंगपाल(बस्तर) का बौद्धकालीन इतिहास है। प्रज्ञागिरी(दूर्ग) पहाड़ी पर स्थित 30 फुट उंची बुद्ध प्रतिमा जैसे बगल के राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरते यात्रियों को शांति और करुणा का संदेश देती है। तिब्बति बौद्ध परम्परा का केन्द्र बना ‘मेनपाट’ तिब्बतियों के साथ राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है; आदि अनेक स्थान हैं, जो बौद्ध-कला, स्थापत्य और इससे सम्बद्ध हैं।

निस्संदेह, छत्तीसगढ़ किसी समय बौद्ध कला और शिक्षा का बड़ा केन्द्र रह चुका है। भगवान बुद्ध की शिक्षा का छत्तीसगढ़ की धरा से पूरे विश्व में शान्ति स्थापना के लिए सन्देश सम्प्रेरित किया गया। अतः छत्तीसगढ़ में पालि भाषा के संवर्धन, अनुसन्धान, अध्ययन-अध्यापन और प्रचार-प्रसार की दृष्टि से स्कूल-कालेजों में पालि पढ़ने-पढ़ाने की सुविधा देना आवश्यक है वहीं, राज्य की राजधानी रायपुर अथवा प्राचीन बुद्धिस्ट नगरी सिरपुर में ‘छत्तीसगढ़ पालि प्रतिष्ठान’ की स्थापना परम आवश्यक है। अनेक देशों के नागरिक श्रद्धापूर्वक छत्तीसगढ़ की पावन धरा में स्थित धम्म-स्थलों के दर्शन और अनुसन्धान हेतु आते हैं। इस कारण ‘छत्तीसगढ़ पालि प्रतिष्ठान’ के माध्यम से पालि को वास्तविक रूप में वैश्विक-प्रसार प्राप्त होगा तथा अन्तर्राष्ट्रीय रोजगार की दृष्टि से भी यह अतीव लाभदायक सिद्ध होगा। पालि भाषा के विकास से अवश्य ही छत्तीगढ़ को विश्व के मानचित्र में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होगा। ‘छत्तीसगढ़ पालि प्रतिष्ठान’ की स्थापना के पश्चात् यह भी आवश्यक है कि यह संस्था वास्तविक रूप में पालि के विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार की दृष्टि से कार्य करें। इस हेतु इसमें अनेक महत्त्वपूर्ण विभागों, प्रभागों तथा केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए, जिससे भारत का प्राचीन इतिहास पुनर्जीवित हो सकेगा ।
तत्सम्बन्ध में अनुरूप कार्रवाई की अपेक्षा में। धन्यवाद।

दिनाँक
  हस्ताक्षर
नाम-
                                                   संस्था का नाम(जिसके आप सम्बद्ध हैं)- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
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निवेदक- अ. ला. उके
सम्पर्क- 0963082611/ amritlalukey@gmail.com

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