कुसंगति-
‘नाहं भिक्खवे, अञ्ञं एकधम्मम्पि समनुपस्सामि, यो एवं महतो अनत्थाय संवत्तति, यथा इदं, भिक्खवे, पापमित्तता। पापमित्तता, भिक्खवे, महतो अनत्थाय संवत्तति’(पमादादि वग्गो- 94ः एकक निपातः अंगुत्तर निकाय)।
-भिक्खुओ! किसी भी दूसरी चीज(अञ्ञं) को मैं नहीं (नाहं) देखता(समनुपस्सामि) हूँ, जो इतनी ज्यादा(महतो) अनर्थकर (अनत्थाय) होती हो(संवत्तति), जितनी पाप-मित्रता(कुसंगति)। पाप-मित्रता, भिक्खुओ! बहुत अनर्थकारी है।
‘नाहं भिक्खवे, अञ्ञं एकधम्मम्पि समनुपस्सामि, यो एवं महतो अनत्थाय संवत्तति, यथा इदं, भिक्खवे, पापमित्तता। पापमित्तता, भिक्खवे, महतो अनत्थाय संवत्तति’(पमादादि वग्गो- 94ः एकक निपातः अंगुत्तर निकाय)।
-भिक्खुओ! किसी भी दूसरी चीज(अञ्ञं) को मैं नहीं (नाहं) देखता(समनुपस्सामि) हूँ, जो इतनी ज्यादा(महतो) अनर्थकर (अनत्थाय) होती हो(संवत्तति), जितनी पाप-मित्रता(कुसंगति)। पाप-मित्रता, भिक्खुओ! बहुत अनर्थकारी है।
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