ति-पिटक या बाह्य जो भी ग्रन्थ हैं, अगर गाथा में हैं, छंदोबद्ध रचना है, तो वे बुद्ध्वचन नहीं हो सकते. छंदोबद्ध काव्य बुद्धदेशना की प्रकृति के सर्वथा विरुद्ध है. बुद्ध ने 'छंदोबद्ध काव्य'('पद्यमय रचना') का विरोध किया है (संयुक्त निकाय भाग- 1 पृ 308 )।
No comments:
Post a Comment