Friday, October 21, 2011

Sirpur: the remains of Buddhism

Anand Prabhu Kuti Vihar
Anand Prabhu Kuti Vihar
पिछले सित 2011 में हमारा प्रवास छत्तीसगढ़ की तहसील मुख्यालय बागबाहरा था।  बागबाहरा धान की मंडी
है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा क्यों कहा जाता है , यह छत्तीसगढ़ के अंदरूनी इलाकों में जा कर ही पता लगता है। पूरे छत्तीसगढ़ में फैले जब धान के लहलाते खेत देखते हैं तब , अनायास ही आपको भरा-भरा लगता है।  छत्तीसगढ़,  धान की फसल के लिए प्रसिद्द तो है ही इसके साथ यह प्राचीन 'बुद्धिस्ट साइट्स' के लिए भी प्रसिद्द है।  यह अलग बात है कि पुरातत्व विभाग के द्वारा बौद्ध धरोहर के रूप में ये जो साइट्स सामने आयी हैं , संकीर्ण
Anand Prabhu Kuti Vihar
Anand Prabhu Kuti Vihar
मानसिकता के चलते उन में से कइयों को हिन्दू मंदिरों में बदला जा रहा है। यह ठीक है कि अतीत में यहाँ कई स्थान सर्व धर्म समभाव के केंद्र रहे हैं और जहाँ तक इतिहास की बात है
, बौद्धों द्वारा कहीं भी मूर्ति या मंदिरों को बौद्ध विहारों में तब्दील करने का जिक्र नहीं है। जबकि , इसके उलट प्रचुर इतिहास है। और इस देश का दुर्भाग्य कि संस्कृति का यह अपघात बदस्तूर जारी है।

Museum
बागबाहरा जाने का हेतु मेरे ब्रदर-इन-लॉ प्रदीप नागदेवे जी हैं।  आप पिछले करीब  10  वर्षों से बागबाहरा में है।  वे सेरीकल्चर में अफसर है। शासकीय सेवा से रिटायर होने के बाद मेरे पास समय ही समय था।
Padmpani Vihar
 रिटायर होने के बाद प्राय: मेरे जैसे लोग किसी शहर में बस जाते हैं जिसकी प्लानिंग वर्षों पहले की होती है। मेरी सोच कुछ दूसरी थी। लीक से हट कर आप चलते हैं तो ताने भी पड़ते हैं।  खैर,  फिर कभी।
मैंने प्रदीप जी से कहा कि हम उनकी गृहस्थी के रंग में भंग घोटने आ रहे हैं। प्रदीप जी,  मेरे ही जैसे हैं। हंस कर स्वागत करते हुए उन्होंने कहा, आप आईये तो ?
Padmpani Vihar

यह बागबाहरा जाने पर ही पता चला कि अंतर्राष्ट्रीय बुद्धिस्ट साईट सिरपुर पास ही में है। यूँ सिरपुर के बारे में हमें काफी पहले से पता था। मगर , बागबाहरा जाने पर सिरपुर का विजिट होगा , यह प्रदीप जी के अतिथि बनने पर ही सम्भव हुआ। प्रदीप जी जानते हैं कि मैं एक लेखक हूँ और किसी बुद्धिस्ट साईट पर जाना मेरे लिए मायने रखता है। लिहाजा , दूसरे दिन ही प्रदीप जी ने एक फोर व्हीलर बुक की। हमने टिफिन साथ में रखा और निकल पड़े सिरपुर कि ओर।
Said 'Laxman Temple'
छत्तीसगढ़,  प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म का केंद्र रहा है। ईसा की 6 वीं शताब्दी से 10 वीं शताब्दी के बीच बौद्ध धर्म यहाँ काफी फला-फुला।  प्रसिद्द चीनी यात्री व्हेनसांग जो 643 की अवधि में यहाँ आया था , अपने यात्रा वृतांत में इस बात का उल्लेख किया है कि यह भू -भाग बौद्ध धर्म का केंद्र था।  और कि यहाँ का राजा सभी धर्मों का आदर करने वाला था।  वह हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म को समान रूप से राजकीय सरंक्षण प्रदान करता था। व्हेनसांग ने यह भी लिखा है कि यहाँ बहुत बड़ा शिक्षा का केंद्र था।  दक्षिण-पूर्व एसिया से दूर-दूर के शिक्षार्थी यहाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। दो मंजिला बौद्ध विहारों में एक समय 10,000 से अधिक विद्यार्थी विद्या अध्ययन करते थे।
Statue inside Laxman temple

इतिहास गवाह है कि समुद्रगुप्त ने 4 थी शताब्दी के दौर में यहाँ शासन किया था।  मौर्य शासनाधीन यह अंचल दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था।  सोमवंशी राजाओं के समय सिरपुर राजधानी हुआ करती थी।
Laying Buddha( Laxman temple)
इसी राजवंश के शक्तिशाली राजा महा शिवगुप्त बालार्जुन ने यहाँ एक लम्बे समय तक राज्य किया था। कहा जाता है कि इसी राजा के समय प्रसिद्द लक्षमण मंदिर का निर्माण कराया गया था।

Surang Tila
 पुरातात्विक खोज से प्राप्त बौद्ध स्मारक और शिलालेख इस बात के साक्षी है कि यहाँ बौद्ध धर्म का व्यापक प्रभाव था। शायद,  यहाँ बौद्ध धर्म की महायान शाखा का प्रभाव था। सिरपुर के आलावा , छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी रतनपुर तथा मल्हार , तुरतुरिया , सरगुजा , बस्तर अदि क्षेत्रो से प्राप्त अवशेष इस तथ्य को प्रयाप्त आधार प्रदान करते हैं।

Surang Tila
सर्व प्रथम खुदाई का कार्य यहाँ सन 1872 में अंग्रेजों के शासन काल में शुरू हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन 1953  में भारत सरकार द्वारा फिर खुदाई की गई।  इस खुदाई में आनंद प्रभु कुटी विहार , पद्मपाणि विहार , और दूसरे अन्य हिन्दू मंदिरों के भग्नावशेष उभर कर सामने आए।

Surang Tila
हम ने सीधा आनंदप्रभु कुटी विहार की साईट पर अपनी गाड़ी रोकी। यह काफी बड़ी साईट है।  साईट देख कर लगता है कि यह 14 कमरों का विहार रहा होगा जिसका बड़ा-सा प्रवेश द्वार था।  प्रवेश द्वार के दोनों ओर पत्थर के बड़े स्तम्भ अब भी खड़े हैं जिन पर द्वारपालों को उकेरा गया है। अंदर भगवन बुद्ध की दाएं हाथ से जमीन को स्पर्श करती 6 फुट ऊँची मूर्ति है।  कहा जाता है कि भगवन बुद्ध के जिस शिष्य ने इसका निर्माण कराया था उनका नाम आनंद प्रभु था।
आनंद प्रभु विहार की साईट पर हमें एक कर्मी मिला।  शायद , साईट की रूटीन देख-भाल के लिए वह तैनात था। हम ने कुछ फ़ोटो लिए और अगली साईट के लिए बगल में ही मुड़ गए। यह पद्मपाणि विहार था। यह साईट आनंद प्रभु विहार की तरह ही थी। इसके बाद इसी से लगे दो साईट देखे।  वह हिन्दू मंदिरों की साईट थी।  मगर, यहाँ अच्छा लगा। बुद्धिस्ट साइटों में रख-रखाव का जो बेमनापन था , वह यहाँ नजर नहीं आया। घास की हरियाली, पौधों में खिलते फूल , फूलों पर मंडराते भौरे बड़े अच्छे लग रहे थे।  यहाँ गॉर्डन -गॉर्डन लग रहा था।  गॉर्डन अटेंडेंट के द्वारा पाइप से पानी सींचा जा रहा था। साफ-सफाई भी पर्याप्त लगी।
Buddha Vihar 1 to 4

 इसके बाद हम वापस सिरपुर चौराहे की तरफ आ गए.यहाँ चौराहे पर बाबासाहेब आंबेडकर
Buddha VIhar 1 to 4
की काफी ऊँची प्रतिमा खड़ी देख कर अच्छा लगा. सुना है, यहाँ भंते सुरई ससाई काफी लम्बे समय तक रहे थे. लोग बता रहे थे की उनके देख-रेख में 
बौद्ध विहार क्र. 1 से  4  की साईट का उत्खनन किया गया था. बाबा साहेब की प्रतिमा को निहार कर हम लोग उसी साईट की और मुड़ गए. यह एक बहुत बड़ी साईट है. मगर, बोर्ड जो बाहर लगा है,
Buddha Vihar 1 to 4
Buddha Vihar 1 to 4
उस में भंते जी का कोई उल्लेख नहीं दिखा.हम ने यहाँ भी कुछ स्नेप लिए और आगे की साईट की और प्रस्थान किया.यह साईट लक्ष्मण मन्दिर के नाम से
फेमस है. यहाँ का नजारा बेहद अच्छा लगा.यहाँ काफी सुविधाएँ हैं. यहाँ तक की पीने के पानी के लिए कूलर लगा है.लक्ष्मण मन्दिर से सटा हुआ मुजियम भी है जहाँ पर कुछ मूर्तियों के भग्नावशेष रखे हैं.यहाँ पर भगवान बुद्ध की एक-दो खंडित मूर्तियाँ दिखी.'गाइड' के रूप में जो व्यक्ति वहां तैनात था, जैसे की वह बतला रहा था, देशी दारू पिए था.उसने बदतमीजी तो नहीं की. मगर, पुरातत्व विभाग की कार्य शैली पर जरुर सवालिया निशान लगा रहा था. आखिर वहां देश-विदेश के विजिटर्स भी तो आते रहते हैं.
          
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
इसके बाद हम ने बौद्ध संथागार की और रुख किया.यह काफी विस्तृत
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
एरिया में फैला है.लगता है कि  यहाँ पूरा का पूरा नगर बसा रहा होगा.यहाँ का दृश्य देख कर आप उस समय के नगर की बसाहट, मकानों की डिजाइन,अनाज रखने के भण्डार-गृह, कुए की बनावट,भू-ड्रेनेज-सिस्टम और बाजार के दृश्य का अवलोकन कर सकते हैं. मुझे लगा कि आज जो पाश कालोनियों का निर्माण करते हैं, उन्हें जरुर यहाँ का विजिट करना चाहिए.
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
मगर, साईट के रख-रखाव की अव्यवस्था देख यहाँ भी मुझे कोफ़्त हुई. लगा कि काश,किसी बुद्धिस्ट पुरातात्विक हस्ती के मार्ग-दर्शन में यहाँ का उत्खनन किया जाता. जो जगह-जगह बोर्ड लगे थे, उससे मालूम हुआ की  ए. के. शर्मा जी के देख-रेख में यह कार्य किया जा रहा है.अब शर्मा जी बुद्धिस्ट भी है की नहीं, पता नहीं.
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
        हमारे यहाँ, यही होता है. किसी दूरस्थ ट्राइबल डिस्ट्रिक्ट में कोई शर्मा जी को कलेक्टर बना कर भेज दिया जाता है. अनु. जाति विभाग का प्रमुख या तो दुबे जी होते हैं या फिर कुलकर्णी.ये बेचारे अफसर निर्लिप्त भाव से सरकारी जिम्मेदारी का फर्ज निभाते हैं. उन्हें उनके अगले स्थानांतरण तक समझ नहीं आता कि आखिर वहां उन्हें भेजा क्यों गया था.
       
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
  खैर, अब तक हम लोग काफी थक गए थे. यद्यपि घर से चलते वक्त खाने का काफी बंदोबस्त कर रखा था जिसे लक्षण-मन्दिर परिसर में बैठ कर बड़े आराम के साथ खाया था. क्योंकि, जैसे की मैंने पूर्व में बता चूका हूँ , वहां ठंडे पानी के लिए कूलर तक की सुविधा थी.
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)

     अब हम ने नदी तरफ गाड़ी बढ़ा दी. नदी के विशाल और चौड़े पाट को निहारते हुए अगर आप किनारे के पत्थर पर बैठ कर बहती पानी की धारा में पैर रख दे तो कुछ देर के लिए आप दुनिया के तमाम दुःख भूल जाते हैं.सही में यहाँ हमे बड़ा सुकून मिला.
      यह महानदी है. आपको स्मरण होगा कि दुनिया कि बड़ी-बड़ी संस्कृतियाँ नदियों के किनारे ही फली-फूली है. छत्तीसगढ़ की इस सबसे बड़ी नदी के किनारे अगर हमे 6-7  वी.शताब्दी की एक समृध्द बौद्ध संस्कृति के अवशेष मिलते है, तो यह स्वाभाविक ही है.
विशाल महानदी का मनोरम दृश्य
नदी के तट पर खड़ा चिंतित लेखक 
 
 यहाँ पर हम ने फोटो खिचे.पानी में खूब एंज्वाय किया.नदी के किनारे ही एक हिन्दू मन्दिर है- गंधर्वेश्वर.वर्तमान में मन्दिर का जो प्रवेश द्वार बनाया गया है, उसे देख कर तो लगता है कि यह शिव मन्दिर है. मैंने ऐसा इसलिए कहा की अन्दर में हमें कई बुद्ध मूर्तियों के भग्नावशेष मिले. मन्दिर के सामने एक बहुत बड़ा बड़ का पेड़ है. जिसकी टहनियों से निकली  भारी-भरकम जटाएं बड़ी गम्भीरता के साथ किसी बौद्ध मंदिर/विहार का संकेत दे रही थी.उस पेड़ के तने के नीचे भगवान् बुद्ध की

एक सुन्दर मूर्ति पद्मासन में रखी मिली. मन्दिर परिसर में ही एक टपरे नुमा कमरे के बाहर बुद्ध मूर्तियाँ दिखी.मेरी शंका का एक और कारण है. वह यह की बौद्ध संथागार के देखने के दौरान हमे  वहां के एक कमरे में शंकर की पिंडी ताजा-ताजा  रखी दिखी थी.यद्यपि व्हेनसांग के यात्रा वृतांत में तत्कालीन राजा द्वारा सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की बात कही गई है. किन्तु यह ईसा की 7 वी. शताब्दी की बात है, आज की नहीं.

Thursday, October 20, 2011

मेरी रचना-धर्मिता

        
  पढ़ने का शौक मुझे बचपन से ही था. स्कूल/कालेज लाइफ में मुझे दोस्तों की एक तिगडी मिली थी.इस
तिगडी में जासूसी उपन्यास जम कर पढ़े जाते थे.जासूसी उपन्यास पढ़ने का शौक मुझे यहीं से पैदा हुआ.मैंने ढेर सारे उपन्यास पढ़े. कभी-कभी सामाजिक उपन्यास भी पढ़ लेता था.जासूसी उपन्यास पढ़ने से बेशक, मुझ में एक साहित्यिक सोच विकसित हुई.आप जब एक लम्बे समय तक कुछ खास तरह का लिटरेचर पढ़ते है,उस पर चिंतन करते हैं,स्वाभाविक रूप से तब आपकी भाषा-शैली में तदनुरूप बदलाव आता है.
      सन 1977 के दौर में जब मैं नौकरी में आया तब भी मुझे जो दोस्त मिले,वे साहित्यिक रुझान वाले थे. तब हम लोग सारिका, कादम्बिनी, नवनीत जैसी पत्रिकाएं पढ़ते थे.हम लोग बाकायदा मैगजीन क्लब चलाते थे.इस दौर में मैंने इस तरह का काफी साहित्य पढ़ा. और तब ही मैं देश के चोटी के साहित्यकारों की लेखनी, भाषा-शैली और उनके जिंदगीनामे से रुबरूं हुआ. सादत हसन मंटो,राही मासूम रजा, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव,कमला दास, मेह्रुनिसा परवेज अमृता प्रीतम आदि साहित्यकारों से मैं काफी प्रभावित हुआ.
        फिर आता है, नब्बे का दशक. अब मैंने अपने अन्दर उमड़ते-घुमड़ते विचारों को शक्ल देना शुरू कर दिया था.पत्र-पत्रिकाएँ जो मैं पढ़ता, उन पर प्रतिक्रियाएं देना शुरू कर दिया था.इससे मुझ में लेखन शैली का विकास
हुआ.
       एक दलित कौम का होने के कारण मुझ में सामाजिक विद्रोह की भावना तो जैसे अन्तर्निहित थी.तिस पर, मुझे अपने फादर से समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा मिला था.मेरे फादर बीडी के ठेकेदार थे. उन्होंने करीब 30-35 वर्ष तक बीडी का कारखाना चलाया था. यह बात 1925-60 के दौर की है.वे तब के चौथी पास थे. पटेल और जागीरदारों के ज़माने में उन्होंने एक लम्बे समय तक शोषक पटेल-जागीरदारों के अत्याचारों के विरुद्ध समाज का नेतृत्व किया था. मेरा बचपन कुछ इसी तरह के माहौल में बिता था.उस समय अपने खेतों में काम करने के पूर्व हमारे लोगों को गाँव के पटेल/जमीदारके खेत में जाकर पहले उनके खेती का काम करना पड़ता था.
 
        लेखनी के साथ-साथ मैंने सामाजिक क्षेत्र में काम करना शुरू किया.दलित साहित्य सम्मेलनों/मंचों  में मैंने शिरकत की. और इन सब से फायदा यह हुआ कि सामाजिक कार्यों और साहित्य से जुड़े लोगों से मेरा वैचारिक रिश्ता बना.विचारों के आदान-प्रदान से आपकी सोच में विविधता, पैनापन और गंभीरता आती है.आप विषय को समग्रता से पकड़ने का प्रयास करते हैं.मुझे भी इसका फायदा हुआ.
          एक बड़े संत हुए हैं-महंत बालकदास साहेब. आप महाराष्ट्र और मध्य-प्रदेश के सीमांत क्षेत्र भंडारा-बालाघाट में कबीर पंथ के प्रख्यात विद्वान् हुए हैं.आपकी विद्वता और व्यक्तित्व से पिताजी काफी प्रभावित थे.तब मेरी उम्र करीब 13-14 साल रही होगी,जब पिताजी ने बालकदास साहेब को गुरु बनाया था.गुरूजी की मुझ पर भारी कृपा थी. शायद वे मुझे अपनी गद्दी का उत्तराधिकारी के रूप में देखते थे. निश्चित रूप से मैंने उन से काफी कुछ सिखा. मगर,गद्दी के उत्तराधिकारी बनने का मेरा इष्ट नहीं था. दरअसल,हम लोग आम्बेद्करवादी  थे.समाज किधर जा रहा है, इसका मुझे इल्म था.बाबा साहेब के विचारों से मैं बड़ा प्रभावित था.कबीर के विचार जितने भी क्रन्तिकारी रहे हो,कबीर-पंथ को इसके ठेकेदारों ने इसे हिन्दू धर्म का एक संप्रदाय बना कर रख दिया है. कबीर विचारधारा का हिन्दू धर्म से घाल-मेल मुझे रास नहीं आ रहा था. मैंने समय-समय पर हुई चर्चा में गुरूजी को अपने विचारों से अवगत करा दिया था. किन्तु,गुरुजी को उनके गद्दी का उपयुक्त वारिस दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा था.मैंने निर्णय लिया कि गुरूजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर मैं एक ग्रन्थ की रचना करूँ.और इस तरह मैं गुरु-ऋण से कुछ हद तक मुक्त होऊं.सन 1992 में प्रकाशित 'साक्षात्कार' मेरे इसी ऋण की कुछ हद तक अदायगी थी.
      सन 1992 में ही विश्वनाथ प्रतापसिहं की सरकार द्वारा पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी.सवर्ण हिन्दू और उनका मिडिया इसका पुरजोर विरोध कर रहा था.पान-ठेलों से लेकर हाट-बाजार और बस-ट्रेनों में इसी की चर्चा थी.मैंने देखा की आरक्षित वर्ग के अधिकांश लोगों को यही मालूम नहीं था की उन्हें आरक्षण क्यों मिला है ? और यहीं कारण है की वे गली-हाट में खड़े हो कर और ट्रेनों में सफ़र के दौरान आरक्षण विरोधियों को काउंटर नहीं कर पा रहे थे.तभी मुझे लगा की क्यों न उस पृष्ठ-भूमि और तथ्य-तर्कों को एक पुस्तक का रूप देकर लोगों तक पहुचाया जाय ? सन 1995 में सागर प्रकाशन मैनपुरी (उ.प्र.) से प्रकाशित पुस्तक 'आरक्षण और हिन्दू-मानसिकता'  इसी की परिणति है.
   
    कभी-कभी मैं अपने  विचारों को कविता की शक्ल में प्रगट करता था. काफी कवितायेँ विभिन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो चुकी थी. तब यार लोगों ने सलाह दिया की क्यों न कुछ सिलेक्टेड कविताओं का एक संग्रह निकाला जाय ? सन 1998 में नव लेखन प्रकाशन हजारीबाग (बिहार) से प्रकाशित 'पत्थर उठाते हाथ' वही काव्य संग्रह है.
       अब बात जब संग्रह की आयी तो लेख, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे, को एक पुस्तक की शक्ल देना अपरिहार्य-सा हो गया.सन 2008 में शिल्पायन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स दिल्ली द्वारा प्रकाशित 'दलित चिंतन के विविध आयाम' इसी तरह का ग्रन्थ है.    
         इस दौरान कवितायेँ और लेख जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहें,उनमे से कुछ का लेखा-जोखा निम्न हैं-
क्यों लगता है चमार को चमार कहना बुरा ?    लेख    दलित साहित्य 2001 (संपा-जय प्रकाश कर्दम ) 
Separate educational institutions                    Article    Dalit Voice (Bangalore)Nov I /02
  -must for dalit identity and culture
दलितों की एकता सामूहिक बौद्ध                    लेख    अश्वघोष:जून-जुलाई 99 (संपा.डा.तुलसीराम )
  -धर्मान्तरण से ही संभव
डा. आम्बेडकर;स्वतंत्रता आन्दोलन -             लेख   हम दलित  दिस.98 (संपा- प्रेम कपाडिया दिल्ली )
  -और भारतीय संविधान

-बदलता परिदृश्य और भंगी समाज                लेख      हम दलित अक्टू. 98
दलित समाज में विशिष्ट वर्ग की बात करना बेमानी है. लेख  हम दलित सित. 98
राष्ट्रीय स्वत्रंता आन्दोलन और डा आम्बेडकर  लेख     सजग प्रहरी (नई दिल्ली) मई 98
यक्ष प्रश्न                                               कविता    बहुजन संघर्ष: फर.-मई 98  (संपा-नागेश चौधरी)
दलित साहित्यकार और आम्बेडकर चिंतन   लेख      हम दलित अप्रैल 98
काव्य-पाठ  1.डा आम्बेडकर का छाया चित्र   कविता  प्रसारण- आकाशवाणी शहडोल(म.प्र.) 30 अप्रैल  98
                    और स्कूल का गणतन्त्र दिवस
                  2. जाति का आतंक  3.बगावत की चिगारियां 
काव्य-पाठ  1.आस्था और हम                   कविता    प्रसारण- आकाशवाणी शहडोल(म.प्र.) 11 दिस. 97
                   2. पत्थर उठाते हाथ
मायावती द्वारा चार जिलों के नाम         लेख अनार्य भारत  दिस. II/97 ( संपा. सुन्दरलाल सागर,मैनपुरी )
-बदले जाने पर इतनी हाय-तौबा क्यों ?
डा. आम्बेडकर की स्टेचू को                          लेख    अनार्य भारत:सित. 97
-अपमानित करने वाले कौन लोग थे ?
हिन्दू सामाजिक-धार्मिक तिलिस्म से टूटते शुद्र और दलित-     लेख   हम दलित  सित. 97 
राष्ट्रीय एकता और दलित                             लेख         हम दलित  सित. 97 
संत पतित पावनदास: दलित स्वाभिमान की दहकती आग-  लेख     बहुजन संघर्ष: जुला-अग.  97 
 नाई की की दूकान और देव संस्कृति               लेख       बहुजनों का बहुजन भारत: जुला . II/97
क्या बसपा चमारों की पार्टी है ?                       लेख      हम दलित:जून 97
क्या बसपा क्गामारों की पार्टी है ?                    लेख        हम दलित जून . 97  
सिध्दार्थ गौतम बुद्ध                                         लेख     दैनिक भाष्कर, जबलपुर(म.प्र.) 22 मई  97  
परिभाषाएं 1.दफ्तर  2. कलर्क  3. इतिहास   व्यंग रचना    प्रसारण- आकाशवाणी शहडोल(म.प्र.) 29 मई . 97
                 4. साइंस  5. लेखक  6. कवि
                 7.कुत्ता   8. गधा 9. मंदिर-मस्जिद
महान देश भक्त डा बाबा साहेब आम्बेडकर      लेख      दैनिक भाष्कर, जबलपुर 14 अप्रैल  97
हम और हमारी धर्म-निरपेक्षता                       लेख     बहुजनों का बहुजन भारत (औरंगाबाद) अप्रैल II/ 97
व्यक्ति परिवर्तन या राजनितिक परिवर्तन -     लेख      बहुजनों का बहुजन भारत: जन. II/97
-व्यवस्था-परिवर्तन का पर्याय नहीं
राष्ट्र और राष्ट्र-भक्ति                                       लेख    बहुजन संघर्ष फर.  97
दलित साहित्य जख्मी लोगों का साहित्य            लेख    हम दलित  जन. 97
Two major issues of indian dalit and  riddle of their leadership  Article          Dalit Vioce Feb I /96
खयाली सच                                                लेख      आम्बेडकर मिशन पत्रिका  सित-अक्टू. 96
 काव्य-पाठ 1.व्यवस्था  2. स्थिति-प्रज्ञ       कविता     प्रसारण- आकाशवाणी शहडोल(म.प्र.) 13 अक्टू. 96
अरुण शौरी के लेख 'दलित साहित्य के नाम पर नफ़रत का जहर' पर एक प्रतिक्रिया लेख बहुजन संघर्ष जून 96
अरुण शौरी के लेख ' जाँच-पड़ताल के बगैर पूजा का अभिनन्दन' पर एक प्रतिक्रिया -हम दलित अप्रैल  96
 राष्ट्रीय एकता और दलित-                           लेख     बहुजनों का बहुजन भारत   जुलाई II/ 96 
हिन्दू संस्कृति और बेंडिट क्वीन                     लेख     बहुजन संघर्ष( नागपुर )अप्रैल-मई  96
अनु.जाति,जन-जाति और पिछड़े वर्ग के आरक्षण -  लेख    हम दलित  अप्रैल . 96 
-का सवाल और डा. आम्बेडकर
हिंदुत्व और हिदुवाद राष्ट्रीयता है तो साम्प्रदायिकता क्या है ?    लेख    बहुजन संघर्ष फर.  96 
 बुद्ध भगवान् कैसे ?                                     लेख     अनार्य भारत: नव. 96   
काव्य-पाठ 1.व्यवस्था  2. स्थिति-प्रज्ञ    कविता       प्रसारण- आकाशवाणी शहडोल(म.प्र.) 13 अक्टू. 96
आम्बेडकर मिशन क्या है ?                           लेख      हम दलित नव . 96
काव्य-पाठ: 1.नारी, तुम क्या हो ?            कविता       प्रसारण- आकाशवाणी शहडोल(म.प्र.) 13 अक्टू. 96
                  2. पुरुष का लिखना नारी पर
                  3.अखबार और कवि  4. सड़क और मैं 
 मुस्लिम आरक्षण                                         लेख        हम दलित  अग. 96 
 दलित साहित्य में भाषा के संतुलन का सवाल   लेख       धम्म दर्पण  ( दिल्ली )जन.-जून 96 
नारी                                                       कविता     दैनिक भाष्कर, जबलपुर(म.प्र.) 15 मई  96   
नौकरी और धर्म                                           लेख     आम्बेडकर वाणी मई . I/96 
 गाँधी युग का अवसान बनाम आम्बेडकर युग का प्रारंभ  लेख   बहुजनों का बहुजन भारत: मार्च . II/96
मुस्लिम राष्ट्रीयता और हिन्दू राष्ट्रवाद          लेख     आम्बेडकर मिशन पत्रिका जन.फर +मार्च-अप्रैल 96
दलित-पिछड़ी जातियों के विद्रोही तेवर           लेख       दलित वायस (हिंदी)  फर . 96
पंचायती राज और दलित                                लेख       हम  दलित  फर . 96 
म.प्र. के आदिवासी बाहुल्य अंचल में संविधान की  लेख       आम्बेडकर वाणी (इंदौर)जन. I/96
-6 वी. अनुसूची लागु किये जाने की राजनीति 
भारतीय ट्रेड यूनियन और दलित-आदिवासी       लेख       बहुजनों का बहुजन भारत: जन. II/96
बाबा साहेब और हैट                                           लेख     हम दलित  दिस . 95
सामान नागरिक सहिंता                                     लेख      हम दलित  सित . 95
विदेशी पर्यटक और हिन्दू भारत                         लेख      हम दलित  सित . 95  
भारतीय सस्कृति के मायने हिन्दू संस्कृति नहीं   लेख     हम दलित  जुला . 95    
डा .आम्बेडकर और भारतीय संविधान                लेख    अनार्य भारत  (मैनपुरी ) फर. I/ 95 
खयाली सच                                                      लेख    अनार्य भारत  (मैनपुरी )दिस. II/ 94 
वर्त्तमान दलित राजनीति की धुंध मान्य. कांसीराम-  लेख   अनार्य भारत  (मैनपुरी )मई . II/ 94 
ईसाई मिशनरियां और दलित-आदिवासियों का धर्मांतरण  लेख     प्रबुद्ध आवाज, मई II/92 
         नौकरी के दरम्यान उच्च पदों पर आपको पर्याप्त समय नहीं मिलता है और यही कारण है की धीरे-धीरे मेरा लेखन कम होते गया. मगर यह बात नहीं की मैं चुप बैठा रहा. दरअसल, मैंने रचनात्मक कार्यों में इस दरम्यान ज्यादा ध्यान दिया.बीरसिहंपुर पाली जिला उमरिया(म.प्र.) में मैंने अपनी नौकरी के दौरान( सन  1999-2008)  एक स्कूल (परिवर्तन मिशन स्कूल) का सञ्चालन किया जिस में उन मजदूरों के बच्चें पढ़ते थे जो स्लम एरिया में रहते थे.
         जब कहीं प्रोजेक्ट स्टार्ट होता है तो वहां आस-पास एरिया के गरीब मजदूर डेली रोजी-रोटी के लिए झोपड़-पट्टे बना कर बस जाते हैं या बसा दिए जाते हैं. मजदूर तो पावर-हॉउस में दैनिक मजदूरी करते हैं मगर उनके बच्चें कुछ तो अपनी माँ के साथ कालोनी में झाड़ू-पोछा और बर्तन साफ करने में हाथ बटाते हैं और बाकी झोपड़-पट्टों के आस-पास खेलते रहते हैं.इन खेलते बच्चों को पकड़ कर मैंने स्कूल शुरू किया. 
         वास्तव में, कालोनी एरिया में मैंने साथियों की मदद से बौद्ध विहार निर्माण किया था. बौद्ध विहार परिसर काफी लम्बा-चौड़ा था. मुझे लगा की इस बौद्ध विहार परिसर में अगर गरीब बच्चों को पढाया जाय तो यह असली बाबा साहेब का मिशन होगा.यह स्कूल सन 2008 से खींचते-खींचते सन  2010 तक तो चला मगर, फिर इसके सञ्चालन में इक्छा-शक्ति के कमी के कारण यह बंद हो गया क्योंकि, जुलाई सन 2007 में मैं अपने प्रमोशन और स्थानांतरण की वजह से अपनी नौकरी के पहले वाले प्रोजेक्ट चचाई आ गया था.
        चचाई में मैं अधीक्षण अभियंता के पद पर पदोन्नत हो कर आया था.जैसे की बता चूका हूँ,उच्च पदों पर आप जैसे-जैसे पहुँचते हैं,जिम्मेदारियों के बढ़ने के कारण आपको कुछ और करने की फुर्सत नहीं होती.दिस.2010  में अपनी सरकारी सेवा से सेवानिवृत हुआ. किन्तु,इस बीच लेपटॉप आ गया. लेपटॉप ने मेरे लेखन का दृश्य ही बदल दिया.वर्तमान में मैंने ब्लॉग के माध्यम से अपनी साहित्यिक यात्रा को जारी रखा है.

डिग्निटी आफ लेबर(Dignity of labour)


     एक बार अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति की हैसियत से अमेरिकी संसद में भाषण दे रहे थे. लिंकन थोडा ऊँची
आवाज बोल रहे थे ताकि सामने बैठे लोगों की अंतिम पंक्ति तक उनकी बात पहुँच सके. मगर,यह बात सामने बैठे एक सांसद महोदय को नागवार लग रही थी.वे बीच भाषण में उठ कर टोकने लगे- 
"जनाब ! आप जरा धीमी आवाज में बोलिए.आपके पिता मेरे जूते सिलते थे".
संसद में सन्नाटा छा गया.थोड़ी देर बाद अपने आप को संयत करते हुए अब्राहम लिंकन ने जवाब दिया- 
"महोदय,यह तो बताइए कि मेरे पिता ने आपके जूते कभी ख़राब तो नहीं सिले थे" ?
सांसद महोदय संभले, बोले-
" नहीं, सचमुच वे नामी कारीगर थे और बहुत बढ़िया जूता सिलते थे".
अब लिंकन ने जवाब  दिया- 
महोदय, इसीलिए मै ऊँची आवाज में बोल रहा हूँ ".

Tuesday, October 18, 2011

बागबाहरा का चंडी मंदिर ब्राह्मण-बनियों के कब्जे में (Chandi Mandir of Baagabahra)

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