Friday, October 21, 2011

Sirpur: the remains of Buddhism

Anand Prabhu Kuti Vihar
Anand Prabhu Kuti Vihar
पिछले सित 2011 में हमारा प्रवास छत्तीसगढ़ की तहसील मुख्यालय बागबाहरा था।  बागबाहरा धान की मंडी
है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा क्यों कहा जाता है , यह छत्तीसगढ़ के अंदरूनी इलाकों में जा कर ही पता लगता है। पूरे छत्तीसगढ़ में फैले जब धान के लहलाते खेत देखते हैं तब , अनायास ही आपको भरा-भरा लगता है।  छत्तीसगढ़,  धान की फसल के लिए प्रसिद्द तो है ही इसके साथ यह प्राचीन 'बुद्धिस्ट साइट्स' के लिए भी प्रसिद्द है।  यह अलग बात है कि पुरातत्व विभाग के द्वारा बौद्ध धरोहर के रूप में ये जो साइट्स सामने आयी हैं , संकीर्ण
Anand Prabhu Kuti Vihar
Anand Prabhu Kuti Vihar
मानसिकता के चलते उन में से कइयों को हिन्दू मंदिरों में बदला जा रहा है। यह ठीक है कि अतीत में यहाँ कई स्थान सर्व धर्म समभाव के केंद्र रहे हैं और जहाँ तक इतिहास की बात है
, बौद्धों द्वारा कहीं भी मूर्ति या मंदिरों को बौद्ध विहारों में तब्दील करने का जिक्र नहीं है। जबकि , इसके उलट प्रचुर इतिहास है। और इस देश का दुर्भाग्य कि संस्कृति का यह अपघात बदस्तूर जारी है।

Museum
बागबाहरा जाने का हेतु मेरे ब्रदर-इन-लॉ प्रदीप नागदेवे जी हैं।  आप पिछले करीब  10  वर्षों से बागबाहरा में है।  वे सेरीकल्चर में अफसर है। शासकीय सेवा से रिटायर होने के बाद मेरे पास समय ही समय था।
Padmpani Vihar
 रिटायर होने के बाद प्राय: मेरे जैसे लोग किसी शहर में बस जाते हैं जिसकी प्लानिंग वर्षों पहले की होती है। मेरी सोच कुछ दूसरी थी। लीक से हट कर आप चलते हैं तो ताने भी पड़ते हैं।  खैर,  फिर कभी।
मैंने प्रदीप जी से कहा कि हम उनकी गृहस्थी के रंग में भंग घोटने आ रहे हैं। प्रदीप जी,  मेरे ही जैसे हैं। हंस कर स्वागत करते हुए उन्होंने कहा, आप आईये तो ?
Padmpani Vihar

यह बागबाहरा जाने पर ही पता चला कि अंतर्राष्ट्रीय बुद्धिस्ट साईट सिरपुर पास ही में है। यूँ सिरपुर के बारे में हमें काफी पहले से पता था। मगर , बागबाहरा जाने पर सिरपुर का विजिट होगा , यह प्रदीप जी के अतिथि बनने पर ही सम्भव हुआ। प्रदीप जी जानते हैं कि मैं एक लेखक हूँ और किसी बुद्धिस्ट साईट पर जाना मेरे लिए मायने रखता है। लिहाजा , दूसरे दिन ही प्रदीप जी ने एक फोर व्हीलर बुक की। हमने टिफिन साथ में रखा और निकल पड़े सिरपुर कि ओर।
Said 'Laxman Temple'
छत्तीसगढ़,  प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म का केंद्र रहा है। ईसा की 6 वीं शताब्दी से 10 वीं शताब्दी के बीच बौद्ध धर्म यहाँ काफी फला-फुला।  प्रसिद्द चीनी यात्री व्हेनसांग जो 643 की अवधि में यहाँ आया था , अपने यात्रा वृतांत में इस बात का उल्लेख किया है कि यह भू -भाग बौद्ध धर्म का केंद्र था।  और कि यहाँ का राजा सभी धर्मों का आदर करने वाला था।  वह हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म को समान रूप से राजकीय सरंक्षण प्रदान करता था। व्हेनसांग ने यह भी लिखा है कि यहाँ बहुत बड़ा शिक्षा का केंद्र था।  दक्षिण-पूर्व एसिया से दूर-दूर के शिक्षार्थी यहाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। दो मंजिला बौद्ध विहारों में एक समय 10,000 से अधिक विद्यार्थी विद्या अध्ययन करते थे।
Statue inside Laxman temple

इतिहास गवाह है कि समुद्रगुप्त ने 4 थी शताब्दी के दौर में यहाँ शासन किया था।  मौर्य शासनाधीन यह अंचल दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था।  सोमवंशी राजाओं के समय सिरपुर राजधानी हुआ करती थी।
Laying Buddha( Laxman temple)
इसी राजवंश के शक्तिशाली राजा महा शिवगुप्त बालार्जुन ने यहाँ एक लम्बे समय तक राज्य किया था। कहा जाता है कि इसी राजा के समय प्रसिद्द लक्षमण मंदिर का निर्माण कराया गया था।

Surang Tila
 पुरातात्विक खोज से प्राप्त बौद्ध स्मारक और शिलालेख इस बात के साक्षी है कि यहाँ बौद्ध धर्म का व्यापक प्रभाव था। शायद,  यहाँ बौद्ध धर्म की महायान शाखा का प्रभाव था। सिरपुर के आलावा , छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी रतनपुर तथा मल्हार , तुरतुरिया , सरगुजा , बस्तर अदि क्षेत्रो से प्राप्त अवशेष इस तथ्य को प्रयाप्त आधार प्रदान करते हैं।

Surang Tila
सर्व प्रथम खुदाई का कार्य यहाँ सन 1872 में अंग्रेजों के शासन काल में शुरू हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन 1953  में भारत सरकार द्वारा फिर खुदाई की गई।  इस खुदाई में आनंद प्रभु कुटी विहार , पद्मपाणि विहार , और दूसरे अन्य हिन्दू मंदिरों के भग्नावशेष उभर कर सामने आए।

Surang Tila
हम ने सीधा आनंदप्रभु कुटी विहार की साईट पर अपनी गाड़ी रोकी। यह काफी बड़ी साईट है।  साईट देख कर लगता है कि यह 14 कमरों का विहार रहा होगा जिसका बड़ा-सा प्रवेश द्वार था।  प्रवेश द्वार के दोनों ओर पत्थर के बड़े स्तम्भ अब भी खड़े हैं जिन पर द्वारपालों को उकेरा गया है। अंदर भगवन बुद्ध की दाएं हाथ से जमीन को स्पर्श करती 6 फुट ऊँची मूर्ति है।  कहा जाता है कि भगवन बुद्ध के जिस शिष्य ने इसका निर्माण कराया था उनका नाम आनंद प्रभु था।
आनंद प्रभु विहार की साईट पर हमें एक कर्मी मिला।  शायद , साईट की रूटीन देख-भाल के लिए वह तैनात था। हम ने कुछ फ़ोटो लिए और अगली साईट के लिए बगल में ही मुड़ गए। यह पद्मपाणि विहार था। यह साईट आनंद प्रभु विहार की तरह ही थी। इसके बाद इसी से लगे दो साईट देखे।  वह हिन्दू मंदिरों की साईट थी।  मगर, यहाँ अच्छा लगा। बुद्धिस्ट साइटों में रख-रखाव का जो बेमनापन था , वह यहाँ नजर नहीं आया। घास की हरियाली, पौधों में खिलते फूल , फूलों पर मंडराते भौरे बड़े अच्छे लग रहे थे।  यहाँ गॉर्डन -गॉर्डन लग रहा था।  गॉर्डन अटेंडेंट के द्वारा पाइप से पानी सींचा जा रहा था। साफ-सफाई भी पर्याप्त लगी।
Buddha Vihar 1 to 4

 इसके बाद हम वापस सिरपुर चौराहे की तरफ आ गए.यहाँ चौराहे पर बाबासाहेब आंबेडकर
Buddha VIhar 1 to 4
की काफी ऊँची प्रतिमा खड़ी देख कर अच्छा लगा. सुना है, यहाँ भंते सुरई ससाई काफी लम्बे समय तक रहे थे. लोग बता रहे थे की उनके देख-रेख में 
बौद्ध विहार क्र. 1 से  4  की साईट का उत्खनन किया गया था. बाबा साहेब की प्रतिमा को निहार कर हम लोग उसी साईट की और मुड़ गए. यह एक बहुत बड़ी साईट है. मगर, बोर्ड जो बाहर लगा है,
Buddha Vihar 1 to 4
Buddha Vihar 1 to 4
उस में भंते जी का कोई उल्लेख नहीं दिखा.हम ने यहाँ भी कुछ स्नेप लिए और आगे की साईट की और प्रस्थान किया.यह साईट लक्ष्मण मन्दिर के नाम से
फेमस है. यहाँ का नजारा बेहद अच्छा लगा.यहाँ काफी सुविधाएँ हैं. यहाँ तक की पीने के पानी के लिए कूलर लगा है.लक्ष्मण मन्दिर से सटा हुआ मुजियम भी है जहाँ पर कुछ मूर्तियों के भग्नावशेष रखे हैं.यहाँ पर भगवान बुद्ध की एक-दो खंडित मूर्तियाँ दिखी.'गाइड' के रूप में जो व्यक्ति वहां तैनात था, जैसे की वह बतला रहा था, देशी दारू पिए था.उसने बदतमीजी तो नहीं की. मगर, पुरातत्व विभाग की कार्य शैली पर जरुर सवालिया निशान लगा रहा था. आखिर वहां देश-विदेश के विजिटर्स भी तो आते रहते हैं.
          
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
इसके बाद हम ने बौद्ध संथागार की और रुख किया.यह काफी विस्तृत
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
एरिया में फैला है.लगता है कि  यहाँ पूरा का पूरा नगर बसा रहा होगा.यहाँ का दृश्य देख कर आप उस समय के नगर की बसाहट, मकानों की डिजाइन,अनाज रखने के भण्डार-गृह, कुए की बनावट,भू-ड्रेनेज-सिस्टम और बाजार के दृश्य का अवलोकन कर सकते हैं. मुझे लगा कि आज जो पाश कालोनियों का निर्माण करते हैं, उन्हें जरुर यहाँ का विजिट करना चाहिए.
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
मगर, साईट के रख-रखाव की अव्यवस्था देख यहाँ भी मुझे कोफ़्त हुई. लगा कि काश,किसी बुद्धिस्ट पुरातात्विक हस्ती के मार्ग-दर्शन में यहाँ का उत्खनन किया जाता. जो जगह-जगह बोर्ड लगे थे, उससे मालूम हुआ की  ए. के. शर्मा जी के देख-रेख में यह कार्य किया जा रहा है.अब शर्मा जी बुद्धिस्ट भी है की नहीं, पता नहीं.
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
        हमारे यहाँ, यही होता है. किसी दूरस्थ ट्राइबल डिस्ट्रिक्ट में कोई शर्मा जी को कलेक्टर बना कर भेज दिया जाता है. अनु. जाति विभाग का प्रमुख या तो दुबे जी होते हैं या फिर कुलकर्णी.ये बेचारे अफसर निर्लिप्त भाव से सरकारी जिम्मेदारी का फर्ज निभाते हैं. उन्हें उनके अगले स्थानांतरण तक समझ नहीं आता कि आखिर वहां उन्हें भेजा क्यों गया था.
       
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)
  खैर, अब तक हम लोग काफी थक गए थे. यद्यपि घर से चलते वक्त खाने का काफी बंदोबस्त कर रखा था जिसे लक्षण-मन्दिर परिसर में बैठ कर बड़े आराम के साथ खाया था. क्योंकि, जैसे की मैंने पूर्व में बता चूका हूँ , वहां ठंडे पानी के लिए कूलर तक की सुविधा थी.
Bauddh Sanghaaram(Bhikshu Residence)

     अब हम ने नदी तरफ गाड़ी बढ़ा दी. नदी के विशाल और चौड़े पाट को निहारते हुए अगर आप किनारे के पत्थर पर बैठ कर बहती पानी की धारा में पैर रख दे तो कुछ देर के लिए आप दुनिया के तमाम दुःख भूल जाते हैं.सही में यहाँ हमे बड़ा सुकून मिला.
      यह महानदी है. आपको स्मरण होगा कि दुनिया कि बड़ी-बड़ी संस्कृतियाँ नदियों के किनारे ही फली-फूली है. छत्तीसगढ़ की इस सबसे बड़ी नदी के किनारे अगर हमे 6-7  वी.शताब्दी की एक समृध्द बौद्ध संस्कृति के अवशेष मिलते है, तो यह स्वाभाविक ही है.
विशाल महानदी का मनोरम दृश्य
नदी के तट पर खड़ा चिंतित लेखक 
 
 यहाँ पर हम ने फोटो खिचे.पानी में खूब एंज्वाय किया.नदी के किनारे ही एक हिन्दू मन्दिर है- गंधर्वेश्वर.वर्तमान में मन्दिर का जो प्रवेश द्वार बनाया गया है, उसे देख कर तो लगता है कि यह शिव मन्दिर है. मैंने ऐसा इसलिए कहा की अन्दर में हमें कई बुद्ध मूर्तियों के भग्नावशेष मिले. मन्दिर के सामने एक बहुत बड़ा बड़ का पेड़ है. जिसकी टहनियों से निकली  भारी-भरकम जटाएं बड़ी गम्भीरता के साथ किसी बौद्ध मंदिर/विहार का संकेत दे रही थी.उस पेड़ के तने के नीचे भगवान् बुद्ध की

एक सुन्दर मूर्ति पद्मासन में रखी मिली. मन्दिर परिसर में ही एक टपरे नुमा कमरे के बाहर बुद्ध मूर्तियाँ दिखी.मेरी शंका का एक और कारण है. वह यह की बौद्ध संथागार के देखने के दौरान हमे  वहां के एक कमरे में शंकर की पिंडी ताजा-ताजा  रखी दिखी थी.यद्यपि व्हेनसांग के यात्रा वृतांत में तत्कालीन राजा द्वारा सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की बात कही गई है. किन्तु यह ईसा की 7 वी. शताब्दी की बात है, आज की नहीं.

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