Monday, November 14, 2011

अनागारिक धम्मपाल (Anagarik Dharmapal)

अनागारिक धम्मपाल(1864 -1933)
अनागारिक धम्मपाल बुद्धिष्ट जगत के लिए एक प्रकाश-स्तम्भ हैं। भारत में बौद्ध धर्म के पतन के हजारों वर्षों बाद अनागारिक धम्मपाल ही थे जिन्होंने न सिर्फ इस देश में बौद्ध धर्म का पुन: झंडा फहराया वरन एसिया,यूरोप और उत्तरी अमेरिका में इसके प्रचार-प्रसार के लिए व्यापक पैमाने पर काम किया।

अनागारिक धम्मपाल का जन्म कोलम्बो (श्रीलंका) के पोटान जिले के हेवाविताराना में 17 दिस. 1864 को हुआ था। इनके बचपन का नाम डेविड था। डेविड का जन्म एक धनी व्यापारी के घर हुआ था। उनके पिता का नाम डॉन केरोलिस और माता का नाम मल्लिका धर्मागुनवर्धने था।

 बालक डेविड के शुरूआती जीवन में मेडम ब्लावास्त्सकी और कर्नल ओलकोट्टहाद का बहुत बड़ा योगदान है।  सन 1875 के दौरान मेडम ब्लावास्त्सकी (Blavatsky) और कर्नल ओलकोट्टहाद (Olcotthad) ने अमेरिका के न्यूयार्क शहर में थियोसोफिकल सोसायटी( Theosophical society) की स्थापना की थी। इन दोनों ने  बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन किया था। सन 1880  में जब ये सिंहल द्वीप आएं तो इन दोनों ने न सिर्फ स्वयं को बुद्धिस्ट घोषित कर दिया वरन बौद्ध भिक्षु का चीवर धारण कर लिया।

मेडम ब्लावास्त्सकी और कर्नल ओलकोट्टहादबाद ने सिंहलद्वीप में रहते हुए 300 के ऊपर स्कूल खोलें और बौद्ध धर्म की शिक्षा पर व्यापक काम किया।  डेविड इनसे काफी प्रभावित थे। डेविड को पालि सिखने की प्रेरणा इन्हीं से मिली थी। यह वह समय है जब, डेविड ने अपना नाम बदल कर 'अनागारिक धम्मपाल' कर दिया था।

 सन 1891 में अनागारिक धम्मपाल ने भारत स्थित बुद्धगया के महाबोधि महाविहार की यात्रा की। यह वही पवित्र स्थान है जहाँ, सिद्धार्थ गौतम को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। अनागारिक धम्मपाल यह देख कर अचंभित रह गए कि किस तरह हिन्दू पंडा-पुजारियों ने बुद्ध के मूर्तियों को हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों में तब्दील कर दिया है। हिन्दू पंडा-पुजारियों ने तब, महाबोधि महाविहार में बौद्धों को प्रवेश करने से निषेध कर रखा था।

भारत में बौद्ध धर्म ओर बौद्ध तीर्थ-स्थलों की बेदशा देख कर अनागारिक धम्मपाल को बेहद दुक्ख हुआ। बौद्ध धर्म-स्थलों की बेहतरी के लिए आपने विश्व के कई बौद्ध देशो को पत्र लिखा। आपने इसी कि निमित्त सन 1891 में महाबोधि सोसायटी की स्थापना की।  तब, इसका हेड-आफिस कोलम्बो था। किन्तु शीघ्र ही इसे कलकत्ता स्थान्तरित किया गया।

महाबोधि सोसायटी की ओर से अनागरिक धम्मपाल ने एक सिविल सुट दायर किया जिसमे मांग की गई थी कि महाबोधि महाविहार और दूसरे अन्य तीन प्रसिध्द बौद्ध-स्थलों को बौद्धों को हस्तांतरित किये जाएं। इसी रिट का ही परिणाम था कि आज महाबोधि महाविहार में बौद्ध जा सकते हैं। परन्तु तब भी यहाँ आज भी हिन्दुओं का कब्ज़ा है।

यह अनागारिक धम्मपाल का ही प्रयास था कि कुशीनगर, जहाँ भगवान् बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ था, फिर से बौद्ध जगत में दर्शनीय-स्थल बन गया।

शिकागो में संपन्न विश्व धर्म-संसद, जो 18 सित. सन 1893 में हुई थी; अनागारिक धम्मपाल के द्वारा बौद्ध-दर्शन पर दिए भाषण से वहां पर उपस्थित दुनिया के विभिन्न धर्मों के विद्वान् भौचक्क रह गए थे।  इसी धर्म-संसद में हिन्दू दर्शन पर स्वामी विवेकानंद का भाषण हुआ था।

अपने जीवन के 40 वर्षों में, अनागारिक धम्मपाल ने  भारत, सिंहलद्वीप और विश्व के कई देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के अनन्य उपाय किए. आपने कई स्कूल और अस्पतालों का निर्माण किया।  कई स्थानों पर  आपने बुद्ध विहारों का निर्माण किया।  सारनाथ का प्रसिध्द बुद्ध महाविहार आपने ही बनाया था।

13 जुला.1931 को अनागारिक धम्मपाल विधिवत बौद्ध भिक्षु हो गए थे। बौद्ध भिक्खु बनने के बाद आपका  नाम  'देवमिता धम्मपाल' हो गया था ।  धम्म के इतने बड़े पुरोधा 29 अप्रैल सन 1933 को इस दुनिया से अलविदा हो गए।

2 comments:

  1. Ecris: Au Nom d'Allah, le Clément, le Miséricordieux.

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  2. Its very helpful for pali literature student
    Thank u

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