कुतुमिनार (टूरिस्ट स्पॉट)
दिल्ली की कुतब मीनार, ऐसी धरोहर है कि जिसे देखना हर कोई चाहता है। आप दिल्ली जायेंगे और कुतब मीनार न देखने जाएं , ऐसा हो नहीं सकता। बल्कि , यह कहना ज्यादा सही होगा कि दिल्ली की पहचान कुतब मीनार है। बच्चें, बूढ़े और जवान हर कोई कुतब मीनार के पास खड़े हो कर फोटो खीचना चाहते है।
मुझे खुद याद नहीं है कि कुतब मीनार के बारे में, मैं कबसे जानता हूँ। गावं में पहले बाइस्कोप वाला आता था। वह एक या दो पैसे में तमाम बच्चों को कुतब मीनार, ताज महल दिखाता था। फ़िल्मी हीरो और हीरोईनों को हमने वहीँ देखा था।
मगर, अब जमाना बदल गया है। अब गावं में बाईस्कोप की जगह टी वी आ गया है। टी वी में बच्चें कुतब मीनार तो देखना चाहते हैं मगर, लाईट ही नहीं रहती।
कुछ लोगों का ख्याल है कि कुतब मीनार और इस तरह की अन्य इमारतें बनाने के लिए मंदिरों को तोडा गया था।
हो सकता है, ऐसा हो। मगर, ऐसा था तब भी कोई बात नहीं। क्योंकि, ऐसा तो हर शासक ने किया है। फिर, चाहे वह शासक मुस्लिम हो या हिन्दू। इतिहास की दूसरी किताबों में साफ-साफ लिखा है कि हिन्दू शासकों ने बौद्धों और जैनियों के मन्दिरों को तोडा था। आपके पास सत्ता है तो आप कुछ भी तोड़ सकते हैं। अगर आप अधिसंख्य है तो बाबरी मस्ज़िद ढहा सकते हैं।
ऐतिहासिक इमारतें हमें अपने इतिहास की जानकारी देती है। यही कि, यहाँ कौन आया, कौन गया। उसने क्या बनाया, क्या तोडा ? रियाया से उसका किस तरह का बर्ताव था। और फिर, वह मरा तो कैसे मरा ? अपनी मौत मरा या बेमौत मरा ......?
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यक़ीनन, इतिहास की पुस्तकों के साथ छेड़कानी की जा रही है। आप इतिहास को पलट
सकते हैं। अगर, आप सत्ता में है तो ऐसा, आसानी से कर सकते हैं। मगर, हाँ, आप इन इमारतों की इबारत नहीं बदल सकते ? उन पत्थरों पर उकेरे गए शब्दों की तहजीब नहीं मिटा सकते। लगता है, लोगों को इस बात का अंदाजा था कि आने वाले ज़माने में जनता के नुमाईन्दे इस तरह की ओछी हरकत करेंगे। शायद यही वजह है कि उन्होंने अपनी कब्र उसी ईमारत के नीचे रखने की जिद की। कुतब मीनार के पास कम-से-इल्तुतमिश की कब्र देख कर तो यही लगता है।
जब मैं पढता था तब एजुकेशनल टूर के नाम पर हमें दिल्ली की कुतब मीनार दिखाई गयी थी। एक-दो जगह और ले जाये गए थे मगर, वह सब याद नहीं। मुझे तो कुतब मीनार ही याद है। मगर, जिस समय हम लोग आये थे तब की कुतब मीनार और आज की कुतब मीनार में फर्क है। तब की कुतब मीनार को देख कर लगता था कि कोई पुराने ज़माने की चीज है। मगर, आज बदला-बदला नजारा दीखता है। कभी-कभी तो लगता है कि यह दो-चार साल पहले बनाई गई हो।
हमें गाईड ने बताया था कि इसे 12 वी शदी के दौरान कुतुबुददीन ऐबक नामक एक मुस्लिम बादशाह ने बनाया था। क्यों बनाया था ? यह गाईड ने नहीं बतलाया। सच तो ये है कि हम में से ये किसी ने पूछा भी नहीं था। एजुकेशनल टूर में किस में हिम्मत होती है कि इस तरह के उलुल-जुलूल सवाल करे ?
अगर मैं भूल नहीं रहा तो कुतब मीनार की ऊंचाई तब गाईड ने 72.5 मी बतलाया था। इतनी ऊंचाई पहले बहुत होती थी। मगर, अब तो पावर हॉउस की चिमनी 150 मी तक होती है। हम लोग एक-आध घंटे कुतब मीनार के परिसर में रहे होंगे। इस दौरान कई प्लेन परिसर के ऊपर से उड़ते दिखे। मुझे लगता है, आर्किअलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया ने इसे नोटिस में लिया होगा। और न भी ले तो हम क्या उखाड़ लेंगे ?
कहा जाता है कि तब कुतब मीनार के ऊपरी तल पर चढ़ कर अजान दी जाती थी ताकि आवाज दूर-दूर तक सुनाई दे। हो सकता है, यह बात सही हो। क्योंकि, तब लाउड स्पीकर नहीं थी।
दिल्ली अब ग्रीनरी के लिए जाना जाने लगी है। यह जरुरी भी है। 6 X 2 के लेन में गाड़िया ऐसे सरकती है जैसे बाला जी के दर्शन करने मंदिर की ड्योडी पर भक्तों की भीड़। आप खड़े हैं या चल रहे है, पता ही नहीं चलता। दिल्ली जैसे शहर में, अगर ग्रीनरी न हो तो लोग सांस कैसे ले ? कुतब मीनार परिसर में भी खूब ग्रीनरी है। वाकई, चरने का मन करता है।
कुतब मीनार, बेशक चाहे जिसने बनाई हो। मगर, वाकई में यह हिन्दू-मुस्लिम तहजीब का संगम है। मीनार के पास खड़ा ऊंचा लोह स्तम्भ अशोक के लाट की याद ताजा करता है। परिसर में स्थित अन्य और भी कई इमारतें हैं जो यह साबित करने के लिए काफी है।
पांच मंजिली कुतब मीनार के नीचे की दो मंजिल लाल
पत्थर (red sand stone) से निर्मित है और ऊपर की तीन सफेद संगमर मर (white marble) की। मगर, इसके बनाने में यह ध्यान रखा गया है कि पूरी मीनार एक समान लगे। इसके प्रथम तल का व्यास 14.3 और ऊपरी पांचवें तल का व्यास 2.75 मी बतलाया जाता है ।
कुतब मीनार कई स्टेज में बनी है। कुतबुद्दीन ऐबक ने तो इसका फाउनडेशन रखा था। इसके बाद मुहम्मद गोरी ने इसे आगे बढाया। तब कहीं जा कर शमसुद्दीन इल्तुत्मिश ने इसे पूरा किया।
कहा जाता है कि कुतब मीनार की तरह एक दूसरी मीनार खड़ी करने का प्रयास अलाउद्दीन खिलजी ने किया था। मगर, बेचारा मर गया। अफ़सोस इस का नहीं की वह मरा बल्कि, इसका कि उसके अधूरे काम को किसी ने आगे नहीं बढाया। क्योंकि, तब एक नहीं, दो कुतब मीनार होते।
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