धम्मपद का ब्राह्मणीकरण
धम्मपद की यह गाथा 'मनुस्मृति' को भी पीछे छोड़ रही है-
न ब्राह्मणस्स पहरेय्य, नास्स मुञ्चेथ ब्राह्मणो
धि ब्राह्मणस्स हन्तारं, ततो धि यस्स मुञ्चति. 389
चीवरधारी ब्राह्मण ग्रन्थकारों ने विज्ञ पाठकों को संदेह का लाभ देने के लिए उक्त गाथा का अर्थ बहुत ही गड्ड-मड्ड किया है. बहुत कठिन शब्द नहीं हैं उक्त गाथा में. कोई भी प्रारंभिक पालि का अध्येयता बड़ी आसानी से इसका अनुवाद कर सकता है-
ब्राह्मण पर प्रहार न करे, न ब्राह्मण उस(प्रहार कर्ता) को जाने दे
धिक्कार है, ब्राह्मण की हत्या करने वाले को, धिक्कार उसको भी जिसको जाने देता है.
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