Friday, July 3, 2020

औदंतपुरी (बिहार) और विक्रमशिला(जिला भागलपुर) विश्‍वविद्यालय

यह बुद्ध प्रतिमा पाल वंश के शासन काल में बनी है ।
 शशांक की मृत्यु के बाद 650 से 750 ई. के बीच बंगाल का इतिहास अराजकता तथा अव्यवस्तता से परिपूर्ण था । यह वही शशांक था जिसने बोधिवृक्ष को नष्ट करने का प्रयास किया था । 750ई. में बंगाल में जनता द्वारा गोपाल को चुना गया । जिसने पाल वंश की स्थापना की ।
 पाल साम्राज्य मध्यकालीन "उत्तर भारत" का सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण साम्राज्य माना जाता है, जो कि 750 - 1174 ई. तक चला। पाल राजवंश ने भारत के पूर्वी भाग में एक विशाल साम्राज्य बनाया। इस राज्य में वास्तु कला को बहुत बढावा मिला। पाल वंश के सभी राजा बौद्ध थे । पाल राजाओ के समय में बौद्ध धर्म को बहुत संरक्षण मिला । पाल राजाओं ने बौद्ध धर्म के उत्थान के लिए बहुत से कार्य किये जो कि इतिहास में अंकित है। पाल राजाओ ने बौद्ध धर्म को आगे बढ़ने के लिए अनेकों बौद्ध विहारों का निर्माण कराया और शिक्षा के लिए विश्वविद्यालयो का निर्माण कराया ।
 बंगाल में जनता द्वारा गोपाल को सिंहासन पर आसीन किया गया था। गोपाल ने बंगाल को एक स्वतन्त्र राज्य घोषित किया। वह योग्य और कुशल शासक था, जिसने 750 ई. से 770 ई. तक शासन किया। इस दौरान उसने औदंतपुरी (बिहार) में एक बौद्ध मठ तथा विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया। पाल शासक बौद्ध धर्म को मानते थे। आठवीं सदी के मध्य में पूर्वी भारत में पाल वंश का उदय हुआ। गोपाल को पाल वंश का संस्थापक माना जाता है
 गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल 770 ई. में सिंहासन पर बैठा। धर्मपाल ने 40 वर्षों तक शासन किया। धर्मपाल बौद्ध धर्मावलम्बी था। उसने अनेकों मठ व बौद्ध विहार बनवाये। धर्मपाल एक उत्साही बौद्ध समर्थक था उसके लेखों में उसे परम सौगात कहा गया है। उसने सोमपुरी प्रसिद्ध बिहारों की स्थापना की। भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया था। उसके देखभाल के लिए सौ गाँव दान में दिये थे।
 धर्मपाल के बाद उसका पुत्र देवपाल गद्दी पर बैठा। इसने अपने पिता के अनुसार विस्तारवादी नीति का अनुसरण किया। इसी के शासनकाल में अरब यात्री सुलेमान आया था। उसने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाई। उसके शासनकाल में दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे। उसने जावा के शासक शैलेंद्र के आग्रह पर नालन्दा में एक विहार की देखरेख के लिए 5 गाँव अनुदान में दिए।
 देवपाल ने 850 ई. तक शासन किया था। देवपाल के बाद पाल वंश की अवनति प्रारम्भ हो गयी। मिहिरभोज और महेन्द्रपाल के शासनकाल में प्रतिहारों ने पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के अधिकांश भागों पर अधिकार कर लिया। देवपाल की मृत्यु के साथ ही पाल साम्राज्य का गौरव समाप्त हो गया । उसके उत्तराधिकारियों के काल में राज्य का विघटन धीरे-2 होता रहा। देवपाल का उत्तराधिकारी विग्रहपाल था। तीन या चार साल के छोटे शासन काल के बाद विग्रहपाल ने गद्दी त्याग दी।
 पालों की गिरती हुई साख को कुछ हद तक महिपाल प्रथम ने संभाला। महिपाल के शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना बंगाल पर राजेन्द्र चोल का आक्रमण है। राजेन्द्र चोल के उत्तरी अभियान का विवरण उसके तिरुमलाई शिलालेख में मिलता है। चोल आक्रमण द्वारा बंगाल में उसकी संप्रभुता स्थापित नहीं हो सकी ।
 बंगाल का पाल वंश भारत में अंतिम बौद्ध शासक वंश के रूप में जाना जाता है। बारहवीं शताब्दी में पाल वंश के पतन के साथ बौद्ध धर्म का भी पतन आरंभ हो गया ।
 पाल वंश के शासक
गोपाल (पाल) (750-770)
धर्मपाल (770-810)
देवपाल (810-850)
शूर पाल महेन्द्रपाल (850 - 854)
विग्रह पाल (854-855)
नारायण पाल (855-908)
राज्यो पाल (908-940)
गोपाल 2 (940-960)
विग्रह पाल २ (960-988)
महिपाल (988-1038)
नय पाल (1038-1055)
विग्रह पाल 3 (1055-1070)
महिपाल 2 (1070-1075)
शूर पाल 2 (1075-1077)
रामपाल (1077-1130)
कुमारपाल (1130-1140)
गोपाल 3 (1140-1144)
मदनपाल (1144-1162)
गोविन्द पाल (1162 - 1174)
पाल राजवंश के शासकों ने बंगाल पर 400 से अधिक वर्षों तक राज किया । बौद्ध धर्म के लिए अनेकों बौद्ध विहारों का निर्माण कराया ।
 आज के समय में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जो पालवंश से हैं । वो बौद्ध विचारधारा को मानते हैं । उनके पिता आए दिन ब्राह्मणवाद के खिलाफ़ बोलने की वजह से सुर्खियों में रहते हैं ।

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