Monday, March 1, 2021

भूतकाले किरिया पयोगा(1)

01. 02. 2021

अतीतकालो

एकवचन-- अनेकवचन

उत्तम  पुरिसो- अहं बुद्धं वन्दिं।-- मयं बुद्धं वन्दिम्ह।

मैं बुद्ध को वन्दन किया।-- हमने बुद्ध को वन्दन किया।

मज्झिम पुरिसो- त्वं बुद्धं वन्दि।-- तुम्हे बुद्धं वन्दित्थ।

      तुमने बुद्ध को वन्दन किया।-- तुम लोगों ने बुद्ध को वन्दन किया।

अञ्ञ पुरिसो- सो बुद्धं वन्दि।-- ते बुद्धं वन्दिंसु।

उसने बुद्ध को वन्दन किया।-- उन्होंने बुद्ध को वन्दन किया।

सरलानि वाक्यानि- 

रात में मैं अच्छे से सोया.  रत्तियं अहं सम्मा सयिं. 

क्या तुमने आज नहाया ? किं त्वं अज्ज नहायि?

क्या तुमने आज अल्पहार किया ? किं त्वं अज्ज अप्पहारं करि? 

आज तुमने भोजन कहाँ किया ? अज्ज त्वं भोजनं कुत्थ करि? 

अज्ज अहं भोजन घरं एव करि. आज मैंने भोजन घर में ही किया.


02-02-2021

मैं भोजन किया- अहं भोजन करिं-

मैं पानी पिया- अहं जलं पिबिं

मैं चाय पिया- अहं चायं पिबिं-

मैं सोया- अहं सयिं

मैं बैठा- अहं निसीदिं-

मैं कुर्सी पर बैठा- अहं पीठे निसीदिं-

मैं उठा- अहं उठिं

मैं प्रातकाल उठा- अहं पातकाले उठिं-

मैं प्रातकाल 6 बजे उठा- अहं पात काले 6 वादने उठिं-

मैं गाया- अहं गायिं

 मैं गीत गया- अहं गीतं गायिं-

मैंने लिखा] अहं लिखिं-

मैंने पालि भाषा लिखा- अहं पालि भासं लिखिं-

मैं गया- अहं गच्छिं-

मैं नागपुर गया- अहं नागपुरं गच्छिं-

मैंने देखा- अहं पस्सिं-

मैंने नागपुर देखा- अहं नागपुरं पस्सिं-

मैंने नागपुर में दिक्खा-भूमि देखा- अहं नागपुरे दिक्खा&भूमिं पस्सिं-



   

  

6- पेड़ों पर बन्दर चढ़े- रुक्खेसु वानरा आरुहिंसु-

७- पेड़ों पर बन्दर चढ़कर फलों को खाया-

रुक्खेसु वानरा आरुहित्वा फलानि खादिंसु-

8. क्या तुम्हें पुस्तकें प्राप्त हुई ? किं तुय्हं  पोत्थकानि अलभित्थ ? 

7. भगवा धम्मचक्क पवत्तयि. बुद्ध ने धम्मचक्क प्रवर्त्तन किया.


2. नरपति हत्थेन असिं गहेत्वा अस्सं आरुहि।

राजा हाथ में तलवार लेकर घोड़े पर चढ़ा.

3. कदा तुम्हे कविम्हा पोथकानि अलभित्थ?

तुम लोगों को कवि से कब पुस्तकें प्राप्त हुई ?

4. कपयो रुक्खं आरुहित्वा फलानि खादिंसु।

बंदरों ने पेड़ पर चढ़ कर फलों को खाया.

5. सकुणा खेत्तेसु वीहिं दिस्वा खादिंसु।

खेतों में धान देख पक्षियों ने खाया .

6. गहपति अतिथीहि संद्धिं आहारं भुञ्जित्वा मुनि पस्सितुं अगमि।

गृहपति अतिथियों के साथ भोजन कर मुनि को देखने आया.

7. सुनखा अट्ठीनि गहेत्वा मग्गे धाविंसु।

कुत्ता हड्डियों को पकड़ कर सड़क पर दौड़ा.

8. अहं ममं ञातिनो घरे चिरं वसिं।

मैं  अपने सम्बन्धी के घर दीर्घ समय रहा.

9. अहं तेसं आरामे अधिपति अहोसिं।

मैं उसके विहार में स्वामी होता था .

10. अहं गन्त्वा कविनो वदिं।

मैं जाकर कवि को कहा .

अरञ्ञे पक्खिनो दन्तिनं आगच्छन्तं दिस्वा रवं करिंसु।


थालियं उच्छिट्ठं भोजनं अवक्कार-पातियं ठापेतु। 

भित्तीयं सन्धियं अम्हे रत्तियं सप्पे पस्सिम्ह।

यायं तिथियं रत्तियं वुट्ठि भवि, अम्हाकं गब्भीनी गावि विजायि।

भिक्खिुनियो गहपतानीनं ओवादं अदंसु।

नारियो महेसिं पस्सितुं नगरं अगमिंसु।

पारगू मग्गे मूल्हो सागरं गतो।

मा मज्झण्हे धेनूनं तिण्णं अदा। 

सुजाता गाविया खीरेन पायासं पचित्वा बोधिसत्तस्स अदासि।

सुजाता ने गाय के दुध से खीर बना कर बोधिसत्व को दिया।

सो सयं अकासि। उसने स्वयं किया।

र××ाा तस्मिं गामे एको भिक्खूनं आवासो कारापितो।

राजिनि पसन्नम्हि भटो धनवा जातो।

र××ो रज्जं कारेन्ते मागधे अजातसत्तुस्ंिम, भगवा परिनिब्बायि।

अम्हाकं सत्थुनो पादे मयं सिरसा अवन्दम्हा।

सानो सेहि सद्धिं सन्धवं न करोन्ति।

खेत्तेसु तिणानि भु×िजतविनो गावो गोपालस्स अक्कोस्सनं सुत्वा निवत्तिंसु।

मय्हं भाता गोनं तिणं अदा। 

मेरे भाई ने गायों को घास दिया।

‘‘भदन्ते’’ ति ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं। स. नि. 1.249

एको गो तमसि खेत्तं अगमा। 

एक बैल तुम्हारे खेत गया।यो पुरिसो मं पस्सि, सो अगमासि।

जिस आदमी ने मुझे देखा, वह चला गया।

येन मग्गेन सो आगतो, तेन मग्गेन अहं गच्छिस्सामि।

जिस रास्ते वह आया, मैं उस रास्ते से जाऊंगा।

या इत्थी मं पक्कोसि, सा अतिविय पंडिता।

जिस स्त्राी ने मुझे बुलाया, बहुत बुद्धिमान है।

येसं पुरिसानं ते सहाया भवन्ति तेसं अहं सहायो भविस्सामि।

जिन पुरुषो के वे सहायक हैं, उनका मैं भी सहायक बनूंगा।

तुम्हे तं न गुणवन्तं जानेय्य, यं सो पंडितो होति।

तुम्हें उसे गुणवन्त नहीं जानना चाहिए जब तक वह पण्डित न हो।

सो किं अकासि, यो मरणं पापुणि?

सो किं अकासि? उसने क्या किया?

उसने क्या किया जो मृत्यु को प्राप्त

 यानि कि×चापि करणीयानि किच्चानि भविंसु,

जो कुछ करणीय कार्य हो रहे थे, 

दिट्ठं, सुतं, मुतं वि××ाातं- सब्बं अनिच्चतो पच्चवेक्खितब्बं।

भगवा सावकेहि पुट्ठे प×हे ब्याकरोति।

एवं मे सुतं। ऐसा मेरे द्वारा सुना गया।

1. तस्ंिम दीपे साकुणिका गन्त्वा सकेन पाटवेन बहू सकुणे गण्हिंसु।

उस द्वीप में चिड़ीमारों ने जाकर अपनी पटुता से बहुत से पक्षियों को पकड़ा।

2. सोगतस्स सûिकं अज्जवं मद्दवं दिस्वा उपासकस्स चित्तं पसीदि।

बुद्ध के संघ की रिजुता मृदुता देखकर उपासक का चित्त प्रसन्न हुआ।

3. सेट्ठिम्हि कालं कते तस्स पुत्तो मत्तिकं पेत्तिकं धनं लभित्वा लोकिकं 

वोहारो करोन्तो जीवं कप्पेसि। सेठ के मरने पर उसका पुत्रा, माता-पिता

पुत्तिके! भोति कदाचि कुत्थचि विवाह-उस्सवे गतवति किं ?

पुत्राी, आप कभी कहीं पर विवाह-उत्सव में गयी क्या?नदिया तीरं गताविनो पुरिसा नहायिंसु।

नदी किनारे गए हुए पुरुषों ने नहाया।

बुद्धं आगते, बालका सप्पं पहरन्तमानस्मा विरमिंसु च

ते सद्धाष्य बुद्धस्स पादेसु सीसे पक्खपित्वा वन्दिंसु।

बुद्ध के आने पर, लड़के सांप मारने से रुके और

उन्होंने श्रद्धा के साथ बुद्ध के चरणों पर सिर रखकर वन्दना की।

पठिते गंथे पुनप्पुनं पठितब्बं।

पढ़े गए ग्रंथों का बार-बार पढ़ना चाहिए।

के धन को प्राप्त कर लौकिक व्यवहार से जीवन व्यतित करने लगा।

4. कपासिकानि वत्थानि आच्छादेत्वा सारदिकाय रत्तियं सेतानि 

 पदुमानि गहेत्वा बुद्ध वन्दनाय सा चेतियं गच्छि। 

  सूती वस्त्रा धारण कर शरद रितु की रात में श्वेत कमल-पुष्पों के साथ 

   वह बुद्ध वन्दना करने चैत्य गई।

5. समणको गामे पिण्डाय चरन्तो एकस्मिं गेहे तेलकेन मिस्सतं ओदनं लभिं।

समण ने गांव में भिक्षाटन करते हुए एक घर में तेल मिला भात प्राप्त किया। 

7. भगवा पुग्गलिकस्मा दानस्मा सûिकस्स दानस्स अतिरेक गारवतं पकासेसि।

भगवान ने व्यक्ति-विशेष को दिए दान से सû को दिए दान की 

अतिरेक महत्ता प्रकाशित किया है।पिता पन तुम्हाकं जानाम, मातरं पन न पस्सिम्हा।

तुम्हारे पिता को जानते हैं, किन्तु माता को हमने नहीं देखा है।

अहं मग्गे गच्छन्तो तं पुरिसं पस्सिं। 

मैंने मार्ग में जाते हुए उस पुरुष को देखा।

पब्बतस्स समीपे तिट्ठन्तानि घरानि, वाणिजा अज्ज विक्किणिंसु।

पर्वत के समीप खड़े घरों को व्यापारी ने आज बेचा।

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