Friday, November 2, 2018

चरथ, भिक्खवे, चारिकं

धम्म-ग्रंथों का पुनर्पाठ
1 .  चरथ भिक्खवे चरिकं 
एकं समयं भगवा वराणसियं विहरति
एक समय बुद्ध विहर रहे थे, वाराणसी में
इसिपतने मिगदाये।
इसि पतन के मृगदाव में।
 तत्र खो भगवा भिक्खू आमंतेसि-
वहां बुद्ध ने भिक्खुओं को आमंत्रित किया-
"भिक्खवो"ति।
"भिक्खुओं ?"
"भदन्ते "ति। ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं।
"भदंत !"  -कह कर उन भिक्खुओं ने बुद्ध को उत्तर दिया। 
भगवा एतद वोच-
बुद्ध ने ऐसा कहा-
"मुत्ता अहं भिक्खवे,
भिक्खुओं, मैं मुक्त हो गया हूँ
सब्ब पासेहि ये दिब्बा ये च मानुसा।
सभी जालों से, चाहे दिव्य हो या मानुसी
तुम्हे अपि, भिक्खवे,
तुम भी भिक्खुओं,
मुत्ता सब्ब पासेहि ये दिब्बा च ये मानुसा।
सभी जालों से मुक्त हो, चाहे दिव्य हो या मानुसी
चरथ, भिक्खवे, चारिकं
विचरण करो भिक्खुओं, चारिका करते हुए , 
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय
बहुजनों के हित के लिए, बहुजनों के सुख के लिए
लोकानुकम्पाय
लोगों पर अनुकम्पा करने
अत्त्थाय, हिताय सुखाय
हित के लिए, सुख के लिए
इत्थी-पूरिस्सानं।
महिला और पुरुषों के लिए
मा एकेन द्वे अगमित्थ।
एक साथ दो मत जाओ
देसेथ भिक्खवे, धम्मं
धम्म का उपदेश करो
आदिकल्याणं मज्झेकल्याणं
आदि में कल्याण कारक, मध्य में कल्याण कारक
परियोसानकल्याणं
अंत में कल्याण कारक
सात्थ, सब्यञ्जनं, केवल, परिपूण्णंं
अर्थ सहित, व्यंजन सहित, समस्त, परिपूर्ण
परिसुद्धंं,  विसुद्ध** चरियं पकासेथ।
परिशुद्ध, विसुद्ध-चरिया का प्रकाश करो।"
स्रोत- पास सुत्त (4.1.5): संयुक्त निकाय
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मूलपाठ- *  देव-मनुस्सानं        **  ब्रह्म
प्रस्तुति  अ ला उके मो. 9630826117   @ amritlalukey.blogspot.com

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