Friday, May 22, 2020

मम दिनचरिया

22- 05- 2020
मम दिनचरिया (1)
निम्न पाठ को दो -तीन  बार पढ़  लें-

मम नाम विसाखा।
मेरा नाम विसाखा है।
अहं सोळस वस्सीया बालिका।
मैं 16 वर्षीय बालिका हूँ।

मम नाम सीलरतनो।
मेरा नाम शीलरत्न है।
अहं सोळस वस्सीयो बालको।
मैं 16 वर्षीय बालक हूँ।

अहं दसमे वग्गे अज्झयन करोमि।
मैं 10वेें वर्ग/कक्षा में पढ़ती/पढ़ता हूँ ।

मम पिता कसको अत्थि।
मेरे पिता किसान है।
मम पिता सासकीय अधिकरी।
मम पिता व्यवसायी।

मम नाम रतनमानिका।
मेरा नाम रत्नमानिका है।
अहं गहणी।
मैं गृहणी हूँ।

मम नाम जोति।
अहं सासकीय अधिकारी।
मम नाम ललिता।
अहं समाजसेविका।

अहं पभाते(सुबह) उट्ठहामि।
मैं सुबह उठती/उठता हूँ।
उट्ठहित्वा मात-पितुनो दस्सनं(दर्शन) करोमि।
उठकर मात-पिता के दर्शन करती/करता हूँ।
बुद्धं वन्दामि।
बुद्ध को वन्दन करती/करता हूँ।
ततो एकं चसकं(गिलास) जलं पिबामि।
उसके बाद एक गिलास जल पीती/पीता हूँ।

ततो पात-किरिया(प्रातः क्रिया) सम्पादेमि।
उसके बाद प्रातः क्रिया का सम्पादन करती/करता हूँ ।
ततो दन्त मज्जनं, मुख धोवनं करोमि।
उसके बाद दन्त मन्जन, मुंह धोती/धोता हूँ ।
वत्थेन(वस्त्र से) मुखं पुच्छामि।
वस्त्र के मुंह पोंछती/पोंछता हूँ ।
अनन्तरं पात-भमणं करोमि।
अनन्तर प्रातः भ्रमण करती/करता हूँ ।
पात-भमणं आरोग्यकारी।
प्रातः भ्रमण आरोग्यकारी होती है।
पात वायु सुखकारी।
प्रातः वायु सुखकारी होती है।


23.05. 2020
सुप्पभातं
जय भीम. नमो बुद्धाय
मम दिनचरिया (2 )
निम्न पाठ को दो -तीन  बार पढ़  लें-

तदन्तरं अहं अप्पहारं(अल्पहार) करोमि।
अप्पहारं भुञ्जित्वा(खाकर) अज्झयनं करोमि।
दस वादने(बजे) अहं विज्झालयं गच्छामि(जाता हूं)।
विज्झालये झानेन(ध्यान से) अज्झयनं करोमि।
अहं मम आचरियानं(आचार्यों का) गारवं(गौरव) करोमि।
ते अम्हे विसयानुसारं पाठेन्ति।
अहं विञ्ञाणं(विज्ञान), गणितं, हिन्दी, पालिं च
आग्लं(अंगेजी) भासा पठामि।
विञ्ञाणं मम पिय विसयो।
पालि मम पिय भासा।
घरे परिवारजनेहि(परिवार के लोगों के) सह(साथ)
पालि वदितुं(बोलने के लिए) अहं वायाम(प्रयास) करोमि।
पालि एका सरला, सुबोधा भासा।
पालि अम्हाकं(हमारी)  संखार(संस्कार) भासा।

मज्झण्हे(मध्याण्ह) भोजनं भुञ्जामि(भोजन करता हूं)।
अहं सब्बदा(सर्वदा) साकाहारं भोजनं करोमि।
साकाहार भोजनं उत्तमं।
मज्झण्हे भोजनं भुञ्जित्वा पुनं अज्झयनं करोमि।
विज्झालये विविध अवसरेसु
विजिंगिसा(प्रतियोगिताएं) अयोजिता होन्ति।
अहं रुचिपुब्बकं(रूचि पूर्वक) पटिभागं(प्रतिभाग/हिस्सा) गण्हामि(लेती/लेता हूं)।

अपरण्हे(अपराण्ह) अहं घरं आगच्छामि।
घरं आगत्वा(आकर) मुखं च हत्थ-पादे धोवामि।
विज्झालय गणवेसं(स्कूल ड्रेस) परिवत्तेमि(बदलता हूं)।
ततो मित्तेहि-सह(मित्रों के साथ) कीळामि(खेलता हूं)।
सायंकाले घरस्स(घर के) सह-कम्मं करोमि।
परिवारजनेहि सह बुद्ध विहारं गच्छामि।
अम्हाकं बुद्ध विहारो सिक्खाय पमुख ठानं।
जना, इध पालि भासा पठन्ति, पाठेन्ति।

रत्तियं(रात में) अहं भोजनं भुञ्जामि।
अनन्तरं विज्झालयस्स गह-कम्मं करोमि।
ततो मात-पितु वन्दित्वा(वन्दन कर) सयामि(सोता हूं)।
इति पाठो

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