Friday, May 1, 2020

देवता

देवता-
1. बौद्ध ग्रंथों में एक वे देवता हैं, जो आम जन की तरह अपनी शंकाओं का समाधान और कठिनाइयां दूर करने के लिए बुद्ध के पास आते हैं, जैसे कि बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर ने अपने लेख ‘रिवोल्यूशन एंड काउंटर रिवोल्यूशन इन एनसिएन्ट इन्डिया’ में लिखा है-
बौद्ध साहित्य बताता है कि ‘देव’ मानव समुदाय ये थे। बहुत से देव बुद्ध के पास अपनी शंकाओं का समाधान तथा कठिनाइयां दूर करने के लिए आते थे। यदि देव मानव नहीं होते तो ऐसा कैसे हो सकता था(बाबासाहब डॉ. अम्बेउकर सम्पूर्ण वामय खण्ड- 7, पृ. 16 )?
उक्त अप्रकाशित लेख को ‘डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर सोर्स मैटेरियल पब्लिकेशन कमेटी’ उनके प्रकाशित/अप्रकाशित लेखन को प्रकाशित करने दौरान प्राप्त किया था। कमेटी ने लेख में स्वयं बाबासाहब अम्बेडकर के द्वारा स्थान-स्थान पर कुछ वृद्धि तथा संशोधन भी नोट किया था।
2.  दूसरे, वे देवता हैं जो बौद्ध पूजा-पाठ और मंगल गाथाओं में स्थान-स्थान पर आते हैं और जिनसे आरक्षा के लिए अभ्यर्थना की जाती है। यथा-
1. भवतु सब्ब मंगलं, रक्खन्तु सब्ब देवता।
सब्ब बुद्धानुभावेन, सदा सोत्थि भवन्तु ते। सब्बसुख गाथा
2. सत्था देव-मनुस्सानं, बुद्धो भगवा‘ति। बुद्ध-वन्दना गाथा
3. समन्ता चक्कवालेसु, अत्रा गच्छन्तु देवता। अव्हान सुत्त
4. सब्बेसु चक्कवालेसु , यक्खा देवा च ब्रम्हुनो। परित्राण-पाठ गाथा
5. बहु देवा च मनुस्सा च, मंगलानि अचिन्तयु। महामंगल सुत्त गाथा
6.  एतावता च अम्हेहि, सम्भतं पु सम्पदं।
सब्बे देवा अनुमोदन्तु, सब्ब सम्पति सिद्धिया। पुण्यानुमोदनगाथा आदि।
स्मरण रहे, ‘बुद्ध वन्दना’ जिसमें उक्त गाथा क्र 2 आती है, बाबासाहब अम्बेडकर द्वारा 1950 में सिंहलद्वीप की यात्रा के दौरान बौद्ध अनुयायियों के  उपयोगार्थ संकलित की गई बौद्ध थी जो फर. 1956 में ‘बौद्ध पूजा-पाठ’ के नाम से प्रकाशित हुई थी और जिसकी प्रस्तावना स्वयं बाबासाहब ने लिखी थी।
3. अपने लेख ‘रिवोल्यूशन एंड काउन्टर रिवोल्यूशन इन एनसिएन्ट इन्डिया’ में आगे, आर्यों की सामाजिक स्थिति के बारे में बतलाते हुए बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर लिखते हैं- आर्यों में लोगों का एक ऐसा वर्ग होता था, जिसे देव कहते थे, जो पद और पराक्रम में श्रेष्ठ माने जाते थे। अच्छी संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से आर्य लोग देव वर्ग के किसी भी पुरुष के साथ अपनी स्त्रियों को संभोग करने की अनुमति देते थे। यह प्रथा इतने व्यापक रूप से प्रचलित थी कि देव लोग आर्य स्त्रियों के साथ पूर्वास्वादन को अपना आदेशात्मक अधिकार समझने लगे थे। किसी भी आर्य स्त्री का उस समय तक विवाह नहीं हो सकता था, जब तक कि वह पूर्वास्वादन के अधिकार से अथवा देवों के नियंत्रण से मुक्त नहीं कर दी जाती थी।
4. भारत में इन कथित देवताओं को बौद्ध धर्म के ह्रास का कारण  बतलाते हुए राहुल सांस्कृत्यायन लिखते हैं-  वेदों में इन्द्र, सोम, वरुण आदि कई देवता हैं। ब्राह्मण कहीं तो इन देवताओं की अराधना करते हैं तो कहीं इनके उपर ब्रह्मा को सर्वेसर्वा बतलाते हैं। बाद में जब यही ब्राह्मण बुद्ध की शरण आए तो अपने साथ इन देवताओं को भी लेते आए। बौद्ध महायान शाखा तब इन्हें सुविधाजनक दिखाई  दी। महायान का आदर्श चाहे जितना उच्च हो, उसकी बुद्ध को अलौकिक और अमानव रूप देने की संकल्पना ने भारत में उसे कमजोर करने में अहम भूमिका निभाई(राहुल सांकृत्यायनः बौद्ध संस्कृति)।
5. 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' में ऐसे कई स्थल हैं, जहाँ  बाबासाहब अम्बेडकर ने 'देवता' से दूरी बनाई है. यथा- 'धम्मपद' की गाथा- 56 के पद ‘गन्धो वाति देवेसु उत्तमो’ का अर्थ 'उसकी गन्ध देवताओं तक बहती है' न कर  बाबासाहब अम्बेडकर ने ‘उसकी गन्ध बहुत दूर तक जाती है’ किया है।
6. हमारा सीधा सवाल है, ये देवता, जो बौद्ध पूजा-पाठ और मंगल गाथाओं में स्थान-स्थान पर आते हैं, क्या यह वैदिक संस्कृति का अन्धानुकरण नहीं हैं ?  'बुद्धा एंड  हिज धम्मा' में बाबासाहब अम्बेडकर ने स्थान-स्थान पर   'बुद्ध चरित' आदि ब्राह्मण-रचित ग्रंथों से उद्धरण ज्यों के त्यों यह बताने के लिए हैं कि वहां कैसा वर्णन है . इसके आलावा उनके पास अन्य स्रोत भी तो नहीं थे. और यही कारण  है कि नागपुर में उन्होंने अपने अनुयायियों को धम्म की दीक्षा देते हुए 22  प्रतिज्ञाएं कराई जो स्पष्ट रूप से देवी-देवताओं को अस्वीकार करती हैं. हमने 1956 में ही घर के तमाम देवी-देवताओं को देव घर से निकाल कर गावं के नदी-नाले में शांत करा दिया हैं. हमें अब 'देवता' स्वीकार नहीं है चाहे बौद्ध ग्रंथों के ही क्यों न हों ?

No comments:

Post a Comment