बच्चों को शुरू से ही संस्कारित करना उस नींव की तरह है, जो मजबूती के साथ खड़ी रहती है.धम्म प्रचार का यह ठोस उपाय है- भंते जी की सोच थी. धम्म के कार्य में रूचि रखने वाले साधारण गृहस्थ भी चीवर धारण करते हैं.मगर, बच्चें जो शुरू से ही धम्म-कार्य में संस्कारित होते हैं, वे अंत तक पूरे मनोयोग से यह कार्य करते हैं.
हम चीवर धारी बच्चों से इंटरेक्ट हुए. वे काफी प्रसन्न लग रहे थे. मुझे लगा कि उनकी सुख-सुविधा का ठीक ध्यान रखा जा रहा है. विहार के कई कमरों में बच्चों के आवास और खान-पान की व्यवस्था की जाती है.विहार परिसर के ही लम्बे-चौड़े प्रागण में दीक्षा-भूमि की शैली में भव्य स्तूप-नुमा कन्स्ट्रशन किया जा रहा है.मुख्य सडक मार्ग पर ही बड़ी-सी गेट है. जिससे आप बुद्ध भूमि महा विहार परिसर में प्रवेश करते हैं. कन्स्ट्रशन वर्क्स को देखने से लगता है की कार्य लम्बे समय से पेंडिंग है.
मैंने देखा है की बुद्ध विहार के निर्माण कार्यों में पैसे की कमी एक बड़ा मसला है.हम देखते हैं की बाबा साहब के अनुयायियों की, ज्यादा से ज्यादा यह दूसरी पीढ़ी है. ये ठीक है की कुछ लोग नौकरी में आ गए हैं.मगर अभी भी करीब 70 % लोग कम-या ज्यादा उसी स्थिति में है जिन्हें रोजी-रोटी के लाले हैं. अब बेचारे वे बुद्ध विहार बनाने में कैसे मदद करे ? हिन्दू उन्हें मदद करते नहीं है जबकि 100% दलित समाज के लोग, हिन्दू मन्दिर बनाने में मदद करते हैं-तन से, मन से और धन से.
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