20.11.2011
कहानी के मायने धुंध नहीं है, जो आपके सामने छाई रहे.कहानी के मायने कथा भी नहीं है कि लोग भाव-विभोर हो सुनते रहे.निश्चित रूप से कहानी के कथानक में ये स्पष्टता होनी चाहिए कि पाठक को साफ-साफ दिखाई दे कि कहानीकार क्या कहना चाहता है.दरअसल, हमारे हिंदी के कहानीकारों में अभी इतना दम-ख़म ही नहीं आया है कि सामाजिक-धार्मिक मसलों पर वे अपनी बात खुल कर रख सके.शायद, वे धर्म के ठेकेदारों से डर कर अपनी बात गोल-मोल तरीके से कहना ज्यादा पसंद करते हैं. साहित्यिक पत्रिका 'अन्यथा' में प्रकाशित जया जादवानी की कहानी 'तिश्नगी' मुझे टाईम-पास लगी.बेशक कथानक मनोरंजक है.
कहानी के मायने धुंध नहीं है, जो आपके सामने छाई रहे.कहानी के मायने कथा भी नहीं है कि लोग भाव-विभोर हो सुनते रहे.निश्चित रूप से कहानी के कथानक में ये स्पष्टता होनी चाहिए कि पाठक को साफ-साफ दिखाई दे कि कहानीकार क्या कहना चाहता है.दरअसल, हमारे हिंदी के कहानीकारों में अभी इतना दम-ख़म ही नहीं आया है कि सामाजिक-धार्मिक मसलों पर वे अपनी बात खुल कर रख सके.शायद, वे धर्म के ठेकेदारों से डर कर अपनी बात गोल-मोल तरीके से कहना ज्यादा पसंद करते हैं. साहित्यिक पत्रिका 'अन्यथा' में प्रकाशित जया जादवानी की कहानी 'तिश्नगी' मुझे टाईम-पास लगी.बेशक कथानक मनोरंजक है.
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