पिछले अप्रेल 11 में हम लोगों का विजिट नागपुर हुआ था.नागपुर को डा. आम्बेडकर ने नाग लोगों की राजधानी कहा है.लेख है कि एक समय इसे नागों ने बसाया था.डा.आम्बेडकर जैसी अथारिटी के लिखे शब्द मायने रखते हैं.महाराष्ट्र शाशन ने उनकी समस्त लेखनी को जस के तस कई खण्डों में प्रकाशित किया है.आज विश्व-विद्यालयों में उनकी लेखनी पर रिसर्च हो रही है.इतिहास और पुरातत्व खनन से उनके द्वारा लिखे गए शोध-प्रबंधों की पुष्टि की जा रही है.
डा. आम्बेडकर ने कहा है कि नाग, बौद्ध-धर्मी थे.अर्थात नागपुर बौद्ध धर्म का केंद्र था.यह एक लम्बा पीरियड था.किन्तु कालांतर में यहाँ हिन्दू राज्य स्थापित हुआ.हिन्दू राज्य क्यों और कैसे हुआ, यह इतिहास के विद्यार्थियों के लिए अब अनजान विषय नहीं हैं.आगे डा. आम्बेडकर ने यह भी कहा की आज की महार कम्युनिटी वे ही नाग लोग है.
महारों के बारे में आम्बेडकर लिखते हैं की यह कौम बड़ी बहादूर कौम है.मूलत: यह लड़ाका कौम है.अपनी इसी विशेषता के कारण इस कौम ने नागपुर को अपनी राजधानी बनाया था.आज अगर आप नागपुर जायेंगे तो यह कौम आप को बड़ी संख्या में मिल जाएगी.कालांतर में ये लोग हिन्दू वर्ण-व्यवस्था के तहत शुद्र से अति-शूद्रों में गिने जाने लगे थे.हिन्दुओं की छुआ-छूत,गैर-बराबरी और जाति-गत घृणा ने इस कौम को पशुओं से बदतर जीवन जीने के लिए बाध्य किया. मगर,इसी कौम में ही पैदा हुए डा.बाबा साहेब आम्बेडकर के सन 1956 के धर्मान्तरण आन्दोलन के बाद ये लोग बड़ी संख्या में अपने मूल धर्म (बौद्ध धर्म) में लौट आये.अब नागपुर फिर से बौद्ध धर्म की सांकृतिक- राजधानी बन गया है.यहाँ बड़ी संख्या में बौद्ध विहारों का निर्माण हुआ हैं.नागपुर के लगभग प्रत्येक मोहल्ले में आपको बौद्ध विहार मिल जायेंगे.नागपुर ही नहीं,कामठी से लेकर रामटेक और तुमसर तक आप को बड़े-बड़े बौद्ध विहार देखने मिल जायेंगे.पूरे महाराष्ट्र में जितनी बड़ी संख्या में बौद्ध विहार मिलेंगे, देश के अन्य प्रान्तों में आप को नहीं देखेंगे.
मगर, इन सब में इन्दोरा का बौद्ध विहार एक अपनी अलग ही पहचान रखता है.बाबा साहेब डा. आम्बेडकर के बौद्ध धर्म की दीक्षा के बाद निर्मित यह सबसे पुराना और भव्य बौद्ध विहार है. यह बात नहीं की इस विहार में हम पहली बार गए हो. दरअसल, हम लोग जिस किसी कारण से नागपुर आते हैं, यहाँ के बौद्ध विहार में जरुर जाते हैं. यह उसी तरह है जिस तरह पंजाब विजिट के दौरान सिख अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में माथा टेकने जाते हैं. बेशक, मामला आस्था का है.मगर,आम्बेडकर के अनुयायियों की आस्था कुछ हट कर है. बौद्ध विहारों में जाने वाले आम्बेडकर के अनुयायियों की धार्मिक भावना का प्रगटीकरण वैसा नहीं होता जैसे की हिन्दू करते हैं. आम्बेडकर के फालोवर बुद्ध विहार तो जाते हैं मगर, वे भगवान् बुद्ध की मूर्ति से कुछ मांगते नहीं, कि उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हो या उन के बच्चे को नौकरी मिले. वे बुद्ध की विशाल मूर्ति के सामने बैठ कर भंते जी की साक्षी में इस बात की पुन: प्रतिज्ञा लेते हैं कि अपने व्यक्तिगत चारित्रिक-गुणों का विकास वे ठीक उसी तरह करने का प्रयास करेंगे, जैसे की भगवान् बुद्ध ने देशना की है.
डा. आम्बेडकर ने कहा है कि नाग, बौद्ध-धर्मी थे.अर्थात नागपुर बौद्ध धर्म का केंद्र था.यह एक लम्बा पीरियड था.किन्तु कालांतर में यहाँ हिन्दू राज्य स्थापित हुआ.हिन्दू राज्य क्यों और कैसे हुआ, यह इतिहास के विद्यार्थियों के लिए अब अनजान विषय नहीं हैं.आगे डा. आम्बेडकर ने यह भी कहा की आज की महार कम्युनिटी वे ही नाग लोग है.
महारों के बारे में आम्बेडकर लिखते हैं की यह कौम बड़ी बहादूर कौम है.मूलत: यह लड़ाका कौम है.अपनी इसी विशेषता के कारण इस कौम ने नागपुर को अपनी राजधानी बनाया था.आज अगर आप नागपुर जायेंगे तो यह कौम आप को बड़ी संख्या में मिल जाएगी.कालांतर में ये लोग हिन्दू वर्ण-व्यवस्था के तहत शुद्र से अति-शूद्रों में गिने जाने लगे थे.हिन्दुओं की छुआ-छूत,गैर-बराबरी और जाति-गत घृणा ने इस कौम को पशुओं से बदतर जीवन जीने के लिए बाध्य किया. मगर,इसी कौम में ही पैदा हुए डा.बाबा साहेब आम्बेडकर के सन 1956 के धर्मान्तरण आन्दोलन के बाद ये लोग बड़ी संख्या में अपने मूल धर्म (बौद्ध धर्म) में लौट आये.अब नागपुर फिर से बौद्ध धर्म की सांकृतिक- राजधानी बन गया है.यहाँ बड़ी संख्या में बौद्ध विहारों का निर्माण हुआ हैं.नागपुर के लगभग प्रत्येक मोहल्ले में आपको बौद्ध विहार मिल जायेंगे.नागपुर ही नहीं,कामठी से लेकर रामटेक और तुमसर तक आप को बड़े-बड़े बौद्ध विहार देखने मिल जायेंगे.पूरे महाराष्ट्र में जितनी बड़ी संख्या में बौद्ध विहार मिलेंगे, देश के अन्य प्रान्तों में आप को नहीं देखेंगे.
मगर, इन सब में इन्दोरा का बौद्ध विहार एक अपनी अलग ही पहचान रखता है.बाबा साहेब डा. आम्बेडकर के बौद्ध धर्म की दीक्षा के बाद निर्मित यह सबसे पुराना और भव्य बौद्ध विहार है. यह बात नहीं की इस विहार में हम पहली बार गए हो. दरअसल, हम लोग जिस किसी कारण से नागपुर आते हैं, यहाँ के बौद्ध विहार में जरुर जाते हैं. यह उसी तरह है जिस तरह पंजाब विजिट के दौरान सिख अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में माथा टेकने जाते हैं. बेशक, मामला आस्था का है.मगर,आम्बेडकर के अनुयायियों की आस्था कुछ हट कर है. बौद्ध विहारों में जाने वाले आम्बेडकर के अनुयायियों की धार्मिक भावना का प्रगटीकरण वैसा नहीं होता जैसे की हिन्दू करते हैं. आम्बेडकर के फालोवर बुद्ध विहार तो जाते हैं मगर, वे भगवान् बुद्ध की मूर्ति से कुछ मांगते नहीं, कि उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हो या उन के बच्चे को नौकरी मिले. वे बुद्ध की विशाल मूर्ति के सामने बैठ कर भंते जी की साक्षी में इस बात की पुन: प्रतिज्ञा लेते हैं कि अपने व्यक्तिगत चारित्रिक-गुणों का विकास वे ठीक उसी तरह करने का प्रयास करेंगे, जैसे की भगवान् बुद्ध ने देशना की है.
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