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पिछले सित. 11 को हमारा विजिट बागबाहरा हुआ था.जैसे कि मैं पूर्व में बतला चुका हूँ,बागबाहरा महासमुंद में है.यह स्थान राईस मिलों के लिए फेमस है.धान की फसल यहाँ खूब होती है.सितम्बर महीने में न तो खूब गर्मी होती है और न ही ठंड.मुझे लगता है, घूमने के हिसाब से काफी माकूल समय है.
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यहाँ मेरे ब्रदर-इन-ला प्रदीप जी रहते हैं.वे रेशम विभाग में हैं.हम लोग 30-35 साल बाद पहली बार उनके यहाँ गए थे.मेरा बीते दिस. 10 में अपनी सर्विस से रिटायरमेंट हो चुका था. जाहिर है, मैं काफी हल्का और फ्री महसूस कर रहा था.बागबाहरा में करीब एक सप्ताह के प्रवास में एक दिन प्रदीप जी हमें पास के ही पार्क-नूमा जंगल में ले गए.इसे संजय कानन पार्क के नाम से जाना जाता है.पार्क, शहर के जस्ट बाहर बिलकुल लगा हुआ ही है. मुख्य सडक से लगी बड़ी सी गेट में प्रवेश करते ही आप किसी घने जंगल में प्रवेश करते हैं.बांस के बड़े-बड़े झुंडों से आप घिर जाते हैं.सूर्य की किरणे भी बड़ी मुश्किल से पहुंचे,ऐसे जंगल-नूमा पार्क में आप खुद को पाते हैं.
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बेशक यह जंगल-नूमा पार्क, बनाया गया है. वर्ना शहर से जुड़ा इतना घना जंगल हो ही नहीं सकता. पार्क के अन्दर जगह-जगह वे सब चीजें बनायीं गई हैं, जिनकी आप एक खुशनुमा पार्क में अपेक्षा करते है.निश्चित रूप से यह विजिट करने लायक है.आप पार्क की सुख-सुविधा और इंटरटेनमेंट के साधन देख कर निश्चित रूप से पार्क की मेनेजमेंट कमेटी को सेलूट करेंगे.
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पार्क काफी विस्तृत क्षेत्र में है और पुरे एरिया को बड़े सलीके से कवर किया गया है.पार्क को मेंटेन करने वाला स्टाफ भी हमें काफी चुस्त-दुरुस्त लगा.सब अपने-अपने कामों में व्यस्त लगे.करीब दो घंटे हम ने वहां बिताया.खूब मजा आया.जब आप दिन-भर की भाग-दौड़ के बाद ऐसे पार्क में जाते हैं तो दिल तर हो जाता है.कई जगह मैंने देखा है कि पार्क तो बने है किन्तु शहर से काफी दूर बनाये गए हैं. अब आपको वहां जाने के लिए अलग से प्लानिंग करनी होती है. मुझे लगता है, इन कार्यों से सम्बन्धित अथारिटियों को इस बागबाहरा के संजय कानन पार्क से सिख लेनी चाहिए.
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